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रविवार, 31 मई 2015

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
दोहा का रंग सिर के संग 
संजीव 
*
पहले सोच-विचार लें, फिर करिए कुछ काम 
व्यर्थ न सिर धुनना पड़े, अप्रिय न हो परिणाम 
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सिर धुनकर पछता रहे, दस सिर किया न काज 
बन्धु सखा कुल मिट गया, नष्ट हो गया राज
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सिर न उठा पाये कभी, दुश्मन रखिये ध्यान 
सरकश का सर झुकाकर, रखे सदा बलवान
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नतशिर होकर नमन कर, प्रभु हों तभी प्रसन्न 
जो पौरुष करता नहीं, रहता 'सलिल' विपन्न 
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मातृभूमि हित सिर कटा, होते अमर शहीद 
बलिदानी को पूजिए, हर दीवाली-ईद 
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विपद पड़े सिर जोड़कर, करिए 'सलिल' विचार 
चाह राह की हो प्रबल, मिल जाता उपचार 
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तर्पण कर सिर झुकाकर, कर प्रियजन को याद 
हैं कृतज्ञ करिए प्रगट, भाव- रहें  फिर शाद 
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दुर्दिन में सिर मूड़ते, करें नहीं संकोच
साया छोड़े साथ- लें अपने भी उत्कोच  
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अरि ज्यों सीमा में घुसे, सिर काटें तत्काल 
दया-रहम जब-जब किया, हुआ हाल बेहाल 
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सिर न खपायें तो नहीं, हल हो कठिन सवाल 
सिर न खुजाएँ तो 'सलिल', मन में रहे मलाल 
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'सलिल' न सिर पर हों खड़े, होता कहीं न काम 
सरकारी दफ्तर अगर, पड़े चुकाना दाम 
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सिर पर चढ़ते आ रहे, नेता-अफसर खूब
पाँच साल  गायब रहे, सके जमानत डूब 
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भूल चूक हो जाए तो, सिर मत धुनिये आप 
सोच-विचार सुधार लें, सुख जाए मन व्याप
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होनी थी सो हो गयी, सिर न पीटिए व्यर्थ
गया मनुज कब लौटता?, नहीं शोक का अर्थ 
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सब जग की चिंता नहीं, सिर पर धरिये लाद
सिर बेचारा हो विवश, करे नित्य फरियाद 
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सिर मत फोड़ें धैर्य तज, सिर जोड़ें मिल-बैठ 
सही तरीके से तभी, हो जीवन में पैठ
सिर पर बाँधे हैं कफन, अपने वीर जवान 
ऐसा काम न कीजिए, घटे देश का मान 
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सर-सर करता सर्प यदि, हो समीप झट भाग
सर कर निज भय, सर रखो, ठंडा बढ़े न ताप 
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सर!-सर! कह थक गये पर, असर न हो यदि मीत
घुड़की दो: 'सर फोड़ दूं?', यही उचित है रीत
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कसर न छोड़े काम में, पसर न कर आराम
गुजर-बसर तब हो सके, सर बिन माटी चाम
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facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

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