दोहा सलिला:
संजीव
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सकल भूमि सरकार की, किसके हैं हम लोग?
जायें कहाँ बताइए?, तज घडियाली सोग
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नित्य विदेशों से करें, जी भरकर व्यापार
कम भेजे बुलवा अधिक, करते बंटाढार
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परिवर्तन की राह कब, कहे रही आसान?
आप जूझते ही रहें, करें लक्ष्य-संधान
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केंद्र-राज्य पूरक बनें, संविधान की चाह
फर्ज़ भूल टकरा रहे, जन-गण भरता आह
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राज्यपाल का काम है, रखना सिर्फ निगाह
रहें सहायक तभी तो, हो उनकी परवाह
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जनगण ने प्रतिनिधि चुने, कर पायें वे काम
जो इसमें बाधक बने, वह भोगे परिणाम
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केद्र न तानाशाह हो, राज्य न मालगुजार
मालिक जनता रहे तो, मिटे सकल तकरार
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1 टिप्पणी:
आचार्य जी ,
बात झगड़े की नहीं है , यहाँ रगड़े की है
हमने जीता चुनाव फ़िक्र हमें किसकी है ?
हमने जो वादे किए वो नहीं पूरा करना
हमें तो जंग से है दंग , है उसे तंग करना |
कोई बताये ये की दिल्ली जब हमारी है
और को क्या हक, क्यों ये मारामारी है
जैसे हम चाहें सभी को वैसे चलना होगा
हुए हैं आम से ही ख़ास , तो डरना होगा
पीएम और जंग की है क्याभला बिसात यहाँ
अबतो जनता की भी परवा है हमको कहाँ ?
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