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गुरुवार, 28 मई 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव 
*
अपने घर में 
आग लगायें *
इसको इतना 
उसको उतना
शेष बचे जो 
किसको कितना?
कहें लोक से 
भाड़ में जाएँ 
सबके सपने 
आज जलायें   
*
जिसका सपना 
जितना अपना 
बेपेंदी का 
उतना नपना 
अपनी ढपली 
राग सुनाएँ 
पियें न पीने दें 
लुढ़कायें 
*
इसे बरसना
उसको तपना 
इसे अकड़ना 
उसे न झुकना 
मिलकर आँसू 
चंद बहायें  
हाय! राम भी 
बचा न  पायें 
*

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