नवगीत:
संजीव
*
अपने घर में
आग लगायें *
इसको इतना
उसको उतना
शेष बचे जो
किसको कितना?
कहें लोक से
भाड़ में जाएँ
सबके सपने
आज जलायें
*
जिसका सपना
जितना अपना
बेपेंदी का
उतना नपना
अपनी ढपली
राग सुनाएँ
पियें न पीने दें
लुढ़कायें
*
इसे बरसना
उसको तपना
इसे अकड़ना
उसे न झुकना
मिलकर आँसू
चंद बहायें
हाय! राम भी
बचा न पायें
*
संजीव
*
अपने घर में
आग लगायें *
इसको इतना
उसको उतना
शेष बचे जो
किसको कितना?
कहें लोक से
भाड़ में जाएँ
सबके सपने
आज जलायें
*
जिसका सपना
जितना अपना
बेपेंदी का
उतना नपना
अपनी ढपली
राग सुनाएँ
पियें न पीने दें
लुढ़कायें
*
इसे बरसना
उसको तपना
इसे अकड़ना
उसे न झुकना
मिलकर आँसू
चंद बहायें
हाय! राम भी
बचा न पायें
*
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