षटपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
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संजीव 'सलिल'
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इनके छंद विधान में अंतर को देखें. प्रथम अमृत ध्वनि है, शेष कुण्डलिनी
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
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फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.
हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..
कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.
तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..
जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..
*
सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.
घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी भी हों प्रलयंकर.
असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..
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8 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य जी,
सुन्दर कुण्डलियाँ , ख़ास कर पहली दो.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत.. ये बहुत ही डायनमिक और सशक्त चित्र!
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जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर. .......... सुन्दर!
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..
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सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत. --- इसे पढ़ कर बस हँसी आ रही है !!
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सादर शार्दुला
आदरणीय
शाश्वत सत्य:-
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी भी हों प्रलयंकर.
सादर
राकेश
धन्य है लेखनी आप की आचार्य ' सलिल ' जी !
भिन्न भिन्न हैं विषय कि भारत, कंप्यूटर, सुंदरियाँ
धन्य सलिल जी खूब बनाई इन तीनों पर कुण्डलियाँ
शूल हाथ में लिये फूल सम यह तो मुस्कायेंगे
भारत-पूत अनोखे हैं क्या भेद-भाव तज पायेंगे ?
कंप्यूटर का यंत्र है यद्यपि अति मति मान
पर डाटा का कोष है ना कवि,लेखक,विद्वान्
तजें विटप अवलम्ब, ठूँठ पर झूमे वल्लरियाँ
अब तो सत-सुर छाँडि, अ-सुर सुर रीझें किन्नरियाँ
कमल
आदरणीय आचार्य जी,
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ.
अच्छी लगीं आपकी कुण्डलियाँ
सादर
अमित
बहुत सुन्दर छंद है
शार्दुला जी, राकेश जी, कमल जी, अमिताभ जी, कमलेश जी,
सादर नमन और आभार.
मैंने प्रथम षट्पदी में अमृतध्वनि छंद रचने का प्रयास किया था, संभवतः सफल न हुआ.
शेष दो कुण्डलिनी ही हैं.
आदरणीय आचार्य जी
सादर प्रणाम
आपने इस बच्चे की प्रार्थना पर गौर फरमाया, उस के लिए मैं आप का आभारी हूँ
मन में एक छोटी सी शंका है, कृपया सुलझाने की कृपा करें
मेरी स्मृति के अनुसार, अमृत ध्वनी छंद की तीसरी से छठी पंक्ति २४ मात्रा की होती है, और हर पंक्ति ८-८ मात्रा वाले तीन भागों में विभक्त होती है| हर ८ वीं मात्रा पर लघु वर्ण के साथ यति का विधान होता है|
यदि यह गलत है, तो बताने की कृपा करें, ताकि मैं अपनी जानकारी को दूरस्त कर सकूँ|
उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी
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2011/4/18 sanjiv verma
छंद पहचानिए:
इस छंद की कुछ रचनाएँ आप पूर्व में भी पढ़ चुके हैं. इसे पहचानिए.
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
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कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.
हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..
कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.
तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..
जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..
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सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.
घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी भी हों प्रलयंकर.
असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
साभार
नवीन सी चतुर्वेदी
मुम्बई
मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति
दूसरे कवि / शायर : वातायन
मेरी रोजी रोटी : http;//vensys.biz
नवीन जी!
आप सही हो सकते हैं किन्तु मुझे पिंगल की पुस्तकों में अमृत् ध्वनि की ३री से छठी पंक्ति में ८ की यति के साथ लघु का विधान देखने नहीं मिला.
छंद प्रभाकर पृष्ठ ९४
अमृत ध्वनि में प्रथम एक दोहा रहता है. प्रतिपद में २४ मात्राएँ होती हैं. आदि-अंत में जो पद हों वे एक से ही हों...छंद की ध्वनि की ओर ध्यान रखो. 'अलिपद भँवरे के ६ पद होते हैं. इसीलिये वह षटपद कहाता है.... यमक को ३ बार झमकाव के साथ (जाम अर्थात याम-मत्त) आठ-आठ मात्रा सहित साजो... इस छंद में प्रायः वीर रस वर्णन किया जाता है.
प्रति भात उद्भट विकट जहँ लरत लच्छ पर लच्छ.
श्री जगतेश नरेश तहँ अच्छच्छ्वि पर्तच्छ..
अच्छच्छ्वि पर्तच्छ च्छटनि विपच्छ्च्छय करि.
स्वच्छच्छिति अति कित्तित्थिर सुअमित्तिम्भय हरि..
उज्झिज्झहरि समुज्झिझ्झहरि विरुज्झिज्झटपट.
कुप्प्प्रगट सु रुप्पप्पगनि विलुप्प्यप्रतिभट..
छंद क्षीरधि पृष्ठ १८:
अमृत ध्वनि में दोहा पहले, फिर प्रतिपद २४ मात्रा, ८-८ यति धर, षट पद, यमक त्रिवार आप झमकाव, दोहा अंतिम पद तृतीय पद के आरंभ में रखो, प्रथम शब्द दोहे का ६ वें पद के अंत में रखो.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
१८ अप्रैल २०११ १:११ अपराह्न को, Navin C. Chaturvedi ने लिखा:
आदरणीय प्रणाम
आप कि आज्ञा के अनुसार इन्हें मैं यथावत छाप दूंगा
2011/4/18 sanjiv verma
छंद पहचानिए:
इस छंद की कुछ रचनाएँ आप पूर्व में भी पढ़ चुके हैं. इसे पहचानिए.
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.
हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..
कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.
तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..
जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..
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सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.
घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी भी हों प्रलयंकर.
असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..
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Acharya Sanjiv Salil
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