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शनिवार, 14 जुलाई 2012

मुक्तिका: बात अंतःकरण की शेष धर तिवारी

मुक्तिका:

बात अंतःकरण की

शेष धर तिवारी


*
 बात अंतःकरण की स्वीकार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

कौन जाने कल मुझे तुम भूल जाओ 
आज तो जी भर तुम्हे मैं प्यार कर लूं

बुद्धि मेरी, जो समझ पायी न तुमको
आज उसके साथ दुर्व्यवहार कर लूं

मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं

आँसुओं को व्यर्थ मैं कब तक बहाऊँ
क्यूँ न पीकर मैं उन्हें अब हार कर लूं

शब्द जिह्वा पर युगों से हैं तड़पते
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं

एक शाश्वत  सत्य को समझा न पाया
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं

"प्यार तो बस आत्मघाती रोग सा है"
मैं इसे ही अब सफल हथियार कर लूं

दण्ड अपने आपको मैं दे सकूं तो
आत्मा को सत्य के अनुसार कर लूं

सत्य जागा नीद से अंगडाइयां ले
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं

और सह सकता नही मैं, सोचता हूँ
रेशमी आगोश का आसार कर लूं

********

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

लघु कथा: short story: सच्चा प्रेम true love

लघु कथा: सच्चा प्रेम 

एक गरीब आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। 

 एक दिन पत्नी ने अपने लिए एक कंघे की फरमाइश की ताकि वह अपने लम्बे बालों की देखभाल ठीक से कर सके। पति ने बहुत दुखी मन से मना करते हुई बताया कि पैसे न होने के कारण वह अपनी घड़ी का टूटा हुआ पट्टा भी नहीं सुधरवा पा रहा है। पत्नी ने अपनी बात पर जोर नहीं दिया। 

पति काम पर जाते समय एक घड़ी-दुकान के सामने से गुजरा, उसने अपनी टूटी घड़ी कम दाम पर बेचकर एक कंघा खरीद लिया। 

शाम घर आते समय वह खुश था कि अपनी पत्नी को नया कंघा दे सकेगा किन्तु अपनी पत्नी के छोटे-छोटे बाल देखकर चकित रह गया। उसकी पत्नी अपने बाल बेचकर घड़ी का नया पट्टा हाथ में लेकर खड़ी थी। 

यह देखकर दोनों की आँखों से एक साथ आँसू बहने लगे। यह अश्रुपात अपना प्रयास के विफल होने के कारण न होकर एक दूसरे के प्रति पारस्परिक प्रेम के आधिक्य के कारण था। 

वास्तव में प्यार करना कुछ नहीं है, प्यार पाना कुछ उपलब्धि है किन्तु प्यार करने के साथ-साथ प्रेमपत्र का प्यार पाना ही सच्ची उपलब्धि है। प्यार को अपने आप मिली वास्तु न मानें, प्यार पाने के लिए प्यार दें।



short story:

true love  

A very poor man lived with his wife. One day, his wife, who had very long hair asked him to buy her a comb for her hair to grow well and to be well-groomed. The man felt very sorry and said no.

He explained that he did not even have enough money to fix the strap of his watch he had just broken. She did not insist on her request. The man went to work and passed by a watch shop, sold his damaged watch at a low price and went to buy a comb for his wife. 

He came home in the evening with the comb in his hand ready to give to his wife. He was surprised when he saw his wife with a very short hair cut. She had sold her hair and was holding a new watch band. 

Tears flowed simultaneously from their eyes, not for the futility of their actions, but for the reciprocity of their love.

MORAL: To love is nothing, to be loved is
something but to love and to be loved by the one you love, that is EVERYTHING. Never take love for granted.:)

दोहा सलिला: --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: 

संजीव 'सलिल'

*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..

ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..

पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..

मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत..

पौधों का रोपण करे, तरु का करे बचाव.
भू गिरि नद से खेलता, ऋषि रख बालक-भाव..

मुनि-मन कलरव सुन रचे, कलकल ध्वनिमय मंत्र.
सुन-गा किलकिल दूर हो, विहँसे प्रकृति-तंत्र..

पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..

तरु गिरि नद भू बैल के, बौरा-गौरा प्राण .
अमृत-गरल समभाव से, पचा हुए सम्प्राण..

सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..

नाद-थाप राधा-किशन, ग्वाल-बाल स्वर-राग.
नंद छंद, रस देवकी, जसुदा लय सुन जाग..

वृक्ष काट, गिरि खोदकर, पाट रहे तालाब.
भू कब्जाकर बेचते, दानव-दैत्य ख़राब..

पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..

कलकल जिनका प्राण है, कलरव जिनकी जान.
वे किन्नर गुणवान हैं, गा-नाचें रस-खान..

वृक्षमित्र वानर करें, उछल-कूद दिन-रात.
हरा-भरा रख प्रकृति को, पूजें कह पितु-मात..

ऋक्ष वृक्ष-वन में बसें, करें मस्त मधुपान.
जो उलूक वे तिमिर में, देख सकें सच मान..

रहते भू की कोख में, नाग न छेड़ें आप.
क्रुद्ध हुए तो शांति तज, गरल उगल दें शाप..

***********************************

व्यंग्य चित्र :




व्यंग्य चित्र :
पावर स्विच मिल  तो कृपया चालू कर दें।

आज का विचार : thought of the day

आज का  विचार : thought of the day



संजीव सलिल'
*
जीवन पथ पर 
नहीं अकारण मिलता कोई .
परखे, शोषण करे, 
प्यार कर कोई सीख दे..
श्रेष्ठ वही जो- 
छिपे हुए गुण खोज निकाले.
प्यार करे, स्वीकार करे 
तुम जैसे भी हो.
रहे निकट,
तुम रखो निकट 
उनको निज उर के..
*****



wish for week


बुधवार, 11 जुलाई 2012

त्रिपदियाँ /तसलीस : सूरज संजीव 'सलिल'

त्रिपदियाँ /तसलीस :
सूरज

1328479

संजीव 'सलिल'



बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
 

सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
 

भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
 

जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
 

उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ  सबकी ले रहा सूरज।



आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी 
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।





काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।




 

रविवार, 8 जुलाई 2012

आज का विचार: THOUGHT OF THE DAY:

आज का विचार: THOUGHT OF THE DAY:
*

अपने लिए जिए, तो क्या जिए
ऐ दिल! तू जी ज़माने के लिए .....  हिंदी चित्रपटीय गीत
*
सुख पा खुश होना न ध्येय हो, खुशियाँ-सुख देना श्रेयस्कर.
अपने हित सब जीते जीवन, सबके हित जीना श्रेयस्कर..
 *

Being happy is nothing but making others happy is everything because everyone live for themselves but live for others is REAL LIFE.
*

अभिनव आयोजन: चित्र पर काव्य रचना 1:

अभिनव आयोजन:

चित्र पर काव्य रचना - 1 : 

(नीचे एक चित्र प्रस्तुत है जिस पर कविगणों ने अपनी कलम चलाई है। आप भी अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाइए और मनोभावों को पाठकों तक पहुँचाइए। छंद बंधन नहीं किन्तु गद्य को टिप्पणी में ही स्थान मिलेगा-सं.)

  

डॉ.दीप्ति गुप्ता 
*

तुम,

अपनी हरकतों से 
बाज़ नहीं आओगे?   
जब चमेली  से  
बतिया रहे थे 
तब-

भूल गए थे क्या   
कि  
मैं अभी जिंदा  हूँ .....?

*
deepti gupta <drdeepti25@yahoo.co.in>
********

 
एस. एन. शर्मा 'कमल'
* 

मैं यहाँ खडी हूँ लाज नहीं आती उधर ताकते
तुम्हारी खैर नहीं फिर देखा जो उधर झाँकते

सुना नहीं तुमने, बगला भगत बने खड़े हो
अरे शेर की औलाद हो किस फेर में पड़े हो

गुर्राती ही नहीं हूँ न ही गुस्सा पचा पाऊँगी
फिर वह इधर आई तो कच्चा चबा जाऊंगी

कहीं भूले से मानव की औरत न समझ लेना
शेरनी हूँ, आता किसी को पास न फटकने देना

दाढी मूछें सफ़ेद हो गईं इनका तो ख़याल  करो
हया शरम बाकी हो तो व्यर्थ क्यों बवाल करो

 

*

s.n.sharma ahutee@gmail.com
 **********

 
प्रणव भारती
*
अच्छा  ! 
     ये मुंह और मसूर की दाल!
     समझते  हो ऐसी-वैसी 
     जो फिर से  दिया  दाना डाल!
     तुम जैसे लफंगों को 
     खूब समझती हूँ मैं|
     कोतवाल की हूँ  बेटी 
     सबसे सुलटती हूँ  मैं|
     पिताजी तक तो बात 
     जाने की नौबत ही नहीं आएगी 
     ये झांसी की रानी तुम्हारा सिर 
     अपने कदमों में झुकवाएगी|
     भारत की बेटी हूँ, गर्व है मुझे 
     अरे! तुम क्या घास खाकर छेड़ोगे मुझे !
     घसीटकर ले जाऊँगी
     जिन्दगी भर चक्की पिसवाऊंगी .....
     हिम्मत थी तो मांगते 
     अपनी करनी पर माफी 
     पहले जो हो चुका तुमसे तलाक  
     क्या वो नहीं था काफी!
     तुम जैसों ने ही तो 
     नाक कटवाई है,
     कभी पति रहे हो हमारे,
     सोचने में भ़ी शर्म आयी है|
     जा पड़ो किसी खाई में या 
     उसके आंचल में मुंह छिपाकर|
     मैं बहुत मस्त हूँ, 
     अपना सुकून पाकर 
     क्या समझा है मुझे 
     मिट्टी का खिलौना?
     मैं भ़ी लेती हूँ साँस, 
     मेरे भ़ी है 'दिल'का एक कोना 
     दूर हो नजरों से मेरी 
     वर्ना लात खाओगे
     जो रही-सही है इज्जत 
     वह भी गँवाओगे||
     *
      Pranava Bharti  pranavabharti@gmail.com
      **********

संजीव 'सलिल'
*
दोहा ग़ज़ल:
*
तुम्हें भले ही मानता, सकल देश सरदार.
अ-सरदार तुम लग रहे, सत्य कहूँ बेकार..

असर न कुछ मंहगाई पर, बेकाबू व्यापार.
क्या दलाल ही चलाते, भारत की सरकार?

जिसको देखो वही है, घूसखोर गद्दार.
यह संसद तो है नहीं, मैडम हों रखवार..

मुँह लटकाए क्यों खड़े?, सत्य करो स्वीकार.
प्रणव चतुर सीढ़ी चढ़ा, तुम ढोओगे भार..

बौड़म बुद्धूनाथ तुम, डींग रहे थे मार.
भुला संस्कृति को दिया, देश बना बाज़ार..

अर्थशास्त्र की दुहाई, मत देना इसबार.
व्यर्थशास्त्र यह हो रहा, जनगण है बेज़ार..

चलो करो कुछ काम तुम, बाई न आयी यार.
बोलो कैसे सम्हालूँ, मैं अपना घर-द्वार?

चल कपड़ा-बर्तन करो, पहले पोछो कार.
मैं जाती क्लब तुम रखो, घर को 'सलिल' बुहार..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

POEM: CRY --Shakur

poem: friendship

poem:

friendship


friendship,love

कविता स्मृतियों की छायाएँ -- विजय निकोर

                                           कविता
                        स्मृतियों की छायाएँ
                                   -- विजय निकोर

              
            
            सांध्य छायाओं की तिरछी कतारें हिलती हैं जैसे
            झूलते  पेड़ों  के  बीच  से झाँक कर देखती है कोई,
            उभरती स्मृति  ही  है शायद जो कटे पंख-सी पड़ी,
            यहाँ, वहाँ, बैंच पर, सर्वत्र,भीगी घास पर बिछी थी,
            लुढ़की मानो सुनहरी स्याही चाँदनी के आँचल-सी .
          
              
 
            लोटते थे इसी घास पर हम बरगद से बरगद तक
            यही बरगद ही तो थे यहाँ  कोई  पचास  साल पहले,
            व्याकुल  विपदाएँ  जो  नयी नहीं, बस  लगती  हैं  नई,
            हर  परिचित स्पर्श उनका अनछुआ अनपहचाना-सा
            चौंका  देता  है  अन्त:स्थल  को विद्युत् की  धारा-सा ...
 
                
 
 
            उजियारा हो, या  उदास  पड़ा  अंधकार  क्षितिज  तक,
            मुरझाए  चेहरे  की  लकीरों-सा  छिपाए  रखता  है  यह
            वेदनामयी  अनुभूति   धूलभरे   निर्विकार  अतीत  की,
            घुल-घुल आती  हैं गरम आँसुओं में अंगारों-सी यादें,
            सांध्य छायाएँ काँपती हैं इन वृध्द पेड़ों की धड़कन-स.
 
 
                
 
            चले आते हैं कटे पंख समय के उड़ते-सूखे-पत्तों-से     
            कितना  हाथ  बढ़ाएँ, काश  कभी  वह  पकड़  में  आएँ,
            कह देते हैं शेष कहानी संतप्त अभिशप्त यौवन की,
            सांध्य छायाएँ... हवाएँ भटकते मटमैले अरमानों की
            वेगवान रहती हैं निर्विराम तिमिरमय अकुलाती यादों में .   
 
                                            ------
                           vijay <vijay2@comcast.net>
                                                                                                 

कविता:: 'बारिश ' --शिशिर साराभाई

            कविता:: 
            'बारिश '
                  
               शिशिर साराभाई 
    


   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है 
   सौंधी खुशबू के साथ, कभी  अमराई  साथ आती है
   कभी  फूलों  से भरे घर  के बगीचे की याद आती  है 
   कभी तेरे-मेंरे  बीच  की  प्यारी बात  गुनगुनाती  है 
   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है


  


   कभी माँ  की आवाज़ दूर से आती सुनाई  पडती है
  कभी बूढ़े  बाबा   की  मीठी  पुकार  लहरा उठती है
   कभी बहन  की  शहद सी हँसी  खनखना  उठती है 
   कभी   छोटू  की   याद   में  आँखें  भीग उठती   है 
   बारिश  आती  है,तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है
             
              **************
              Shishir Sarabhai <shishirsarabhai@yahoo.com>  

कविता:: आज़ादी के दीवानों जैसा --गुलाम कुन्दनम

कविता::
आज़ादी के दीवानों जैसा
गुलाम कुन्दनम 
आज़ादी के दीवानों जैसा...
हमारे ही प्रतिनिधि
हमें आँख दिखाते हैं.
जनता की एकता देख
अब सांसद भय खाते हैं.

संसद चल रहा हो तो
जनता घर में रहेगी?
भ्रष्टाचार और महंगाई,
घुट घुट कर सहेगी?

भ्रष्टों के भय से
कब तक भागेंगे.
उदासीनता की तन्द्रा
से कब हम जागेंगे.

सबको इस बार सड़क
पर आना होगा.
आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. ........

.... आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. .......

Jai Anna….. Jai Awam..…
Jai Janta.....Jai Janlokpal...
ॐ . ੴ . اللّٰه . † …….
Om.Onkar. Allâh.God…..
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!

(सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन :- दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना , लाभ रहित विशुद्ध समाज सेवा वाली राजनैतिक व्यवस्था, वर्ग विहीन समाज की स्थापना, सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था, गरीबी उन्मूलन कोष की स्थापना [धर्म स्थलों की आमदनी भी इसी कोष में जमा हो], जनलोकपाल, चुनाव सुधार तथा काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने जैसे क़ानून, सभी करों को समाप्त कर एक समान कर प्रणाली ट्रांजेक्सन टैक्स लगाना, सभी तरह के लेन-देन बैंक, चेक या मोबाइल के द्वारा किया जाना सुनिश्चित करना, बड़े नोटों का प्रचलन बंद करना....सरकार के निर्णयों में जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी... ग्राम स्वराज और मोहल्ला स्वराज की स्थापना ... ये सब कुछ नए और विचाराधीन समाधान हैं .....जो भारत और भारत के लोगों को संच्चाई, ईमानदारी और मानवता पर आधारित एक नए युग में ले जायेंगे.)


शनिवार, 7 जुलाई 2012

हाइकू .... विश्वम्भर शुक्ल

हाइकू ....
 
विश्वम्भर शुक्ल
कुछ हाइकू दिल से .......
-------------- 
 
एक~~
*
बंद किताब
कैसे पढ़ें निबंध
सौ अनुबंध !

दो ~~
*
मन आतुर
बांटने कों स्नेह
वे है चतुर !

तीन~~
*
कोई न घर
क्यों है यायावर
मन सुधर !

चार~~
*
सुन के बोल
लो,मुग्ध हुआ मन
आहट है न !

पांच~~
*
मन तो पांखी
उड़ गया फुर्र से
बात ज़रा सी !

छ:~~
*
गौरैय्या उड़ी
निस्सीम है गगन
चुभी अगन !

सात~~
*
रिश्ते हमारे
पुरइन पात से
झरे भू पर !

आठ~~
*
एक जुन्हाई
कितनों कों लुभाए
ताको ही बस !
*
_______________
प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
लखनऊ
09415325246

मुक्तक: एक दिल... संजीव 'सलिल'

मुक्तक:
एक दिल...
संजीव 'सलिल'
*
1336570

*
एक दिल अरमान सौ हैं.
गगन एक उड़ान सौ हैं..
नास्तिकता बढ़ी इतनी-
भक्त कम भगवान सौ हैं..
*
जो दिल के मेहमान बन गये.
हम उनके दरबान बन अगये..
दिल के तार छेड़ने बैठे-
दिल-दिलवर सुर-तान बन गये..
*
दिल-बगिया में दिलवर फूल.
दिवस विरह के चुभते शूल..
महका महुआ मदिर मिलन-
सब दुनिया को जाओ भूल..
*
कभी है सीता, कभी है राम.
कभी है राधा, कभी है श्याम..
दिल की दुनिया का दस्तूर-
भुला नाम दिल वरे अनाम..
*
दर्दे-दिल को मौन हो पीना सीखो.
मरदे-दिल हो दुनिया में जीना सीखो..
जान को जान पर निसार करो-
परदे-दिल होकर 'सलिल' जीना सीखो..
*
दिल में दिलदार को इस तरह बसाया जाए.
दिल को दिलदार का मंदिर ही बनाया जाये..
दिल को दिल दे जो सदा, भूल न पाये दिलवर- 
दिलरुबा दिल का 'सलिल' ऐसे बजाया जाए..
*
दिल लगी चुभती बहुत है, दिल्लगी मत कीजिये.
दिल लगी दिल से लगाकर, बन्दगी हँस कीजिये..
दर्दे-दिल दिल में छिपाकर, हर्षे-दिल करिए बयां-
फख्रे-दिल दिलवर के बनकर, स्वर्ग सा सुख लीजिये..
*

लोकगीत:: बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! अनुपमा त्रिपाठी

लोकगीत::

बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! 

अनुपमा त्रिपाठी

री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे....
हुलसाये ...!!


झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन  बुंदियन सेहरा ...
गले मुतियन बुंदियन हार पहन .....
बनरा मोरा ब्याहन आया ...!


मन उमंग लाया ....
जिया हरषाया ...
सलोना सजन 
धर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!



संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनका अर्थ शाब्दिक न लेकर उनकी अनुभुती से लिया जाता है ............बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....


 

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

पर्यावरण: दुनिया के लिए खतरा है एंटार्कटिक बोटम वाटर का गायब होते जाना? -वीरेंद्र शर्मा 'वीरुभाई'

*
एंटार्कटिका के गिर्द दक्षिणी सागर में आश्चर्यजनक तौर पर जो गहराई पर बेहद ठंडा पानी बहता है गत चंद दशकों में उसके गायब होने की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही रही है. इस जलराशि को 'एंटार्कटिक बोटम वाटर' कहा जाता है. इसके यूं बेतहाशा रफ़्तार विलुप्त होते चले जाने से साइंसदां हतप्रभ हैं.
एंटार्कटिका के गिर्द खुछ ख़ास क्षेत्रों में ही यह राशि बनती है. दरअसल सतह के ऊपर बहती ठंडी हवा इस जल का शीतलीकरण करती रहती है. जब यह हिमराशि में तब्दील हो जाता है इसकी नमकीनियत बढ़ जाती है. यह सतह से नीचे चला आता है भारी होकर. खारा नमकीन जल अपेक्षाकृत भारी होने की वजह से नीचे चला आता रहा है. जब पानी में से हवा ठंडक निकाल देती है तब हिमराशि बनती है तथा आसपास के बिना ज़मे जल के हवाले यह साल्ट हो जाती है. एक कुदरती चक्र के तहत यह सिलसिला चलता रहता है अपनी  रफ़्तार से.
समुन्दर में गहरे पैठा यह अपेक्षाकृत भारी जल उत्तर की तरफ प्रसार करता रहता है, इस प्रकार दुनिया भर के गहरे समुन्दरों को लबालब रखता चलता है और धीरे धीरे अपने ऊपर की अपेक्षाकृत गुनगुनी परतों वाली जल राशि से संयुक्त होता रहता है. उसमे रिलमिल जाता रहा है आहिस्ता आहिस्ता.
गौर   तलब  है दुनिया भर के सागरों  में मौजूद  डीप  ओशन  करेंट्स अन्दर-अन्दर  प्रवाहमान गहरी जल धाराएं आलमी ताप (तापमानों) और कार्बन के परिवहन में एहम  भूमिका  निभाती  आईं  हैं. बतला दें आपको हमारे समुन्दर कार्बन के सबसे बड़े सिंक हैं. पृथ्वी की जलवायु  इन्हीं  के हाथों  विनियमित होती आई है.
पूर्व के अध्ययनों से विदित हुआ था यह गहरे बहती जल धाराएं इनमे मौजूद विशाल जल राशि गरमाने लगी है, साथ ही अपनी नमकीनियत भी खोती रही है. लेकिन हालिया अध्ययन इसके तेज़ी से मात्रात्नक रूप से कम होने की इत्तला दे रहा है. निश्‍चय ही यह भूमंडलीय जलवायु के लिए यह अच्छी खबर नहीं है .

आभार: साइंस ब्लोगेर्स असोसिएशन ओफ इंडिया 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मुक्तक : दिल --संजीव 'सलिल'

मुक्तक :



संजीव 'सलिल'
*
आ के जाने की बात करते हो.
दिल दुखाने की बात करते हो..
छीनकर चैनो-अमन चैन नहीं-
दिल लगाने की बात करते हो..
*



आज हमने भी काम कर डाला.
काम गुपचुप तमाम कर डाला..
दिल सम्हाले से जब नहीं सम्हला-
हँस के दिलवर के नाम कर डाला..
*



चाहतों को मिला है स्वर जबसे..
हौसलों को मिले हैं पर जबसे..
आहटें सुन रहा मुक़द्दर की-
दिल ने दिल में किया है घर जबसे.
*



दिल से दिल को ही चुराऊँ कैसे?
दिल से दिलवर को छिपाऊँ कैसे?
आप मुझसे न गुजारिश करिए-
दिल में दिल को ही बिठाऊँ कैसे??
*



चाहतें जब जवान होती हैं.
ज़िंदगी का निशान होती हैं..
पाँव पड़ते नहीं जमीं पे 'सलिल'-
दिल की धडकन अजान होती है..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



मनहरण कवित्त: - अनिल कुमार वर्मा

मनहरण कवित्त भारतीय रीति लिये जन-गण प्रीति...

6:29pm Jul 5
मनहरण कवित्त
अनिल कुमार वर्मा

भारतीय रीति लिये जन-गण प्रीति लिये,

कुशल प्रतीति युक्त नीति की डगर हो.
कामना को पाँव मिलें भावना को ठाँव मिलें,
कल्पना के गाँव बसी साधना प्रवर हो.
जीवन की नाव बढ़े भव सिंधु में अबाध,
प्रबल प्रवाह हो या भीषण भँवर हो.
प्रार्थना यही है मातु वीणापाणि बारबार,
कालजयी गीत लिखूं कोकिल सा स्वर हो.