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गुरुवार, 7 नवंबर 2024

नवंबर ७, गजल, मुक्तक, दोहा, गीत, यमक,

सलिल सृजन नवंबर ७
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान : जबलपुर समन्वय प्रकाशन जबलपुर
४०१ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
चंद्र विजय अभियान साझा काव्य संकलन
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हिंदी साहित्येतिहास में पहली बार देश को गौरवान्वित करनेवाली वैज्ञानिक परियोजना पर बहुदेशीय, बहुभाषीय साझा काव्य संकलन 'चंद्र विजय अभियान' मुद्रण हेतु तैयार है। अब तक ४ देश (अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, भारत), १९० कवि, ४२ भाषा/बोलियाँ (अंगिका २, अंग्रेजी ५, अवधी १, असमी १, उर्दू ४, ओड़िया १, कन्नड़ १, कन्नौजी १, कुमायूनी ३, गढ़वाली १, गुजराती १, छत्तीसगढ़ी ४, डोगरी १, तेलुगु १, निमाड़ी १, पंजाबी १, पचेली, पाली १, प्राकृत १, बघेली २, बज्जिका १, ब्रज ३, बांग्ला २, बुंदेली ५, भुआणी १, भोजपुरी ४, मगही १, मराठी १, मारवाड़ी १, मालवी २, मैथिली १, राजस्थानी २, रुहेली १, वागड़ी १, संताली १, संबलपुरी १, संस्कृत २, सरगुजिहा १, सिंधी १, हलबी १, हाड़ौती १, हिंदी), सबसे वरिष्ठ कवि ९४ वर्ष, सबसे कनिष्ठ कवि १२ वर्ष, महिलाएँ १०२, पुरुष ८१ । सम्मिलित विधाएँ: गीत, नवगीत, बाल गीत, कजरी गीत, पद, मुक्तक, गीतिका, मुक्तिका, पूर्णिका, गजल, हाइकु, माहिया, दोहे, सोरठे, कुण्डलिया, कहमुकरी आदि। हमारी मूल संकल्पना से लगभग चार गुना आकार ग्रहण कर चुका यह संकलन। संकलन में ९४ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक की आयु के ३ पीढ़ियों के रचनाकार सम्मिलित हैं। सहभागिता हेतु रचनाकार अपनी रचना, चित्र, परिचय (जन्म तिथि-माह-वर्ष-स्थान, माता-पिता-जीवनसाथी, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित पुस्तकें, डाक पता, ईमेल, चलभाष/वाट्स एप) तथा सहभागिता निधि (१ पृष्ठ ४००/-, २ पृष्ठ ७००/- ३ पृष्ठ १०००/-, ४ पृष्ठ १२००/-) वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४ पर अविलंब भेजें। अंतिम तिथि १० नवंबर २०२४। सस्नेह आमंत्रण जुड़िए और जोड़िए। सभी भाषाओं और पद्य विधाओं का स्वागत है। ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा? 
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ग़ज़ल
चंपई शबाब का दीदार है ग़ज़ल
गुलाबी उद्गार का इज़हार है ग़ज़ल

नफरतों के दौर को देती चुनौतियाँ
प्यार प्यार प्यार सिर्फ प्यार है ग़ज़ल

आदाब कह रही है, आ दाब मत समझ
नेकियों के वास्ते आभार है ग़ज़ल

छुईमुई नहीं रही, लड़ जंग जीतती
राहें न रोक तीर है, तलवार है ग़ज़ल

हाले-दिल, हकीकतें भी कर रही बयां
इंतिजार है, विसाले-यार है गजल

पलक पाँवड़े बिछा सब राह देखते
हैं चाह हर बशर की, इतवार है ग़ज़ल

पूर्णिका या मुक्तिका, सजल या तेवरी
गीतिका साहित्य का सिंगार है ग़ज़ल
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अवधी गीत 
सुनो कथा यह चंदावाली  
भारत सुखी भवा। 
उतरो दक्खिन ध्रुव पै इसरो
जग में प्रथम हुआ। 

राम-बान सम राकिट छोड़िन 
नील गगन चीरन। 
कक्षा पे कक्षाएँ बदलिन
सब दुनिया हेरन।
कूद-फाँद के चंदा की 
कक्षा में पैठि गवा। 
सुनो कथा यह चंदावाली  
भारत सुखी भवा।

छटा देखि चंदा की पप्पू 
हुलस-पुलक नाचब।
सुमिर रह्यो बजरंगबली के 
जिन सागर लाँघव। 
लैंडर बिकरम झट चंदा के 
झुककर नमन किया। 
सुनो कथा यह चंदावाली  
भारत सुखी भवा। 
 
दर्वज्जे से निकरब बहिरे 
रोवर घूमि रहा। 
पद-चिन्हन के फोटू भेजब 
सब जग जाँचि रहा। 
गड्ढा लाँघिब, पानी खोजब 
अघटित घटित हुआ।     
सुनो कथा यह चंदावाली  
भारत सुखी भवा।
७.११.२०२४
•••
मुक्तिका
क्यों चाहते हो खुशी, यश, सुख, प्यार?
क्या पता कितनी हैं श्वास उधार?

तुम कह रहे हो जिसे अपना यार
वह सिर्फ सपना सच करो स्वीकार

अनुबंध हैं; संबंध सचमुच मीत
हैं सत्य पर प्रतिबंध नित्य हजार

बावरी है आस, प्यास अनंत है
संत्रास; जग-उपहास कह उपहार

जग पूजता है मौन रह दिन-रात
प्रभु को; पुजारी कर रहा व्यापार

है श्रेष्ठ कृति; खुद को समझ मत दीन
पुरुषार्थ ही परमार्थ का आगार

नपना न कोई है सनातन सत्य
तपना नियति कर सूर्य अंगीकार
***
मुक्तक
परिंदों ने किया कलरव सुन तुम्हारी हँसी निर्मल
निर्झरों की तरंगों ने की नकल तो हुई कलकल
ज़िन्दगी हँसती रहे कर बंदगी चाहा खुदा से
मिटेगा दुःख का प्रदूषण रहो हँसते 'सलिल' पल-पल
७.११.२०१९
मुक्तक
'समझ लेंगे' मिली धमकी बताओ क्या करें हम?
समर्पण में कुशल है, रहेंगे संबंध कायम
कहो सबला या कि अबला, बला टलती नहीं है
'सलिल' चाहत बिना राहत कभी मिलती नहीं है
७.११.`०१६
***
रसानंद दे छंद नर्मदा :५
दोहा की छवियाँ अमित
- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
*
दोहा की छवियाँ अमित, सभी एक से एक ।
निरख-परख रचिए इन्हें, दोहद सहित विवेक ।।
रम जा दोहे में तनिक, मत कर चित्त उचाट ।
ध्यान अधूरा यदि रहा, भटक जायेगा बाट ।।
दोहा की गति-लय पकड़, कर किंचित अभ्यास ।
या मात्रा गिनकर 'सलिल', कर लेखन-अभ्यास ।।
दोहा छंद है शब्दों की मात्राओं के अनुसार रचा जाता है। इसमें दो पद (पंक्ति) तथा प्रत्येक पद में दो चरण (विषम १३ मात्रा तथा सम) होते हैं. चरणों के अंत में यति (विराम) होती है। दोहा के विषम चरण के आरम्भ में एक शब्द में जगण निषिद्ध है। विषम चरणों में कल-क्रम (मात्रा-बाँट) ३ ३ २ ३ २ या ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों में ३ ३ २ ३ या ४ ४ ३ हो तो लय सहज होती है, किन्तु अन्य निषिद्ध नहीं हैं।संक्षिप्तता, लाक्षणिकता, सार्थकता, मर्मबेधकता तथा सरसता उत्तम दोहे के गुण हैं।
कथ्य, भाव, रस, बिम्ब, लय, अलंकार, लालित्य ।
गति-यति नौ गुण नौलखा, दोहा हो आदित्य ।।
डॉ. श्यामानन्द सरस्वती 'रौशन', खडी हिंदी
दोहे में अनिवार्य हैं, कथ्य-शिल्प-लय-छंद।
ज्यों गुलाब में रूप-रस. गंध और मकरंद ।।
रामनारायण 'बौखल', बुंदेली
गुरु ने दीन्ही चीनगी, शिष्य लेहु सुलगाय ।
चित चकमक लागे नहीं, याते बुझ-बुझ जाय ।।
मृदुल कीर्ति, अवधी
कामधेनु दोहावली, दुहवत ज्ञानी वृन्द ।
सरल, सरस, रुचिकर,गहन, कविवर को वर छंद ।।
सावित्री शर्मा, बृज भाषा
शब्द ब्रम्ह जाना जबहिं, कियो उच्चरित ॐ ।
होने लगे विकार सब, ज्ञान यज्ञ में होम ।।
शास्त्री नित्य गोपाल कटारे, संस्कृत
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान् ।
पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान् ।।
ब्रम्हदेव शास्त्री, मैथिली
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय?
किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय ।।
डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल', पंजाबी
पहलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार।
मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार।।
बाबा शेख फरीद शकरगंज (११७३-१२६५)
कागा करंग ढढोलिया, सगल खाइया मासु ।
ए दुई नैना मत छुहऊ, पिऊ देखन कि आसु ।।
दोहा के २३ प्रकार लघु-गुरु मात्राओं के संयोजन पर निर्भर हैं।
गजाधर कवि, दोहा मंजरी
भ्रमर सुभ्रामर शरभ श्येन मंडूक बखानहु ।
मरकत करभ सु और नरहि हंसहि परिमानहु ।।
गनहु गयंद सु और पयोधर बल अवरेखहु ।
वानर त्रिकल प्रतच्छ, कच्छपहु मच्छ विसेखहु ।।
शार्दूल अहिबरहु व्यालयुत वर विडाल अरु.अश्व्गनि ।
उद्दाम उदर अरु सर्प शुभ तेइस विधि दोहा करनि ।।
*
दोहा के तेईस हैं, ललित-ललाम प्रकार ।
व्यक्त कर सकें भाव हर, कवि विधि के अनुसार ।।
भ्रमर-सुभ्रामर में रहें, गुरु बाइस-इक्कीस ।
शरभ-श्येन में गुरु रहें, बीस और उन्नीस ।।
रखें चार-छ: लघु सदा, भ्रमर सुभ्रामर छाँट ।
आठ और दस लघु सहित, शरभ-श्येन के ठाठ ।।
भ्रमर- २२ गुरु, ४ लघु=४८
बाइस गुरु, लघु चार ले, रचिए दोहा मीत ।
भ्रमर सद्रश गुनगुन करे, बना प्रीत की रीत ।।
सांसें सांसों में समा, दो हो पूरा काज ।
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज ?
सुभ्रामर - २१ गुरु, ६ लघु=४८
इक्किस गुरु छ: लघु सहित, दोहा ले मन मोह ।
कहें सुभ्रामर कवि इसे, सह ना सकें विछोह ।।
पाना-खोना दें भुला, देख रहा अज्ञेय ।
हा-हा,ही-ही ही नहीं, है सांसों का ध्येय ।।
शरभ- २० गुरु, ८ लघु=४८
रहे बीस गुरु आठ लघु का उत्तम संयोग ।
कहलाता दोहा शरभ, हरता है भव-रोग ।।
हँसे अंगिका-बज्जिका, बुन्देली के साथ ।
मिले मराठी-मालवी, उर्दू दोहा-हाथ ।।
श्येन- १९ गुरु, १० लघु=४८
उन्निस गुरु दस लघु रहें, श्येन मिले शुभ नाम ।
कभी भोर का गीत हो, कभी भजन की शाम ।।
ठोंका-पीटा-बजाया, साधा सधा न वाद्य ।
बिना चबाये खा लिया, नहीं पचेगा खाद्य ।।
मंडूक- १८ गुरु, १२ लघु=४८
अट्ठारह-बारह रहें, गुरु-लघु हो मंडूक।
अड़तालीस आखर गिनें, कहे कोकोल कूक।।
दोहा में होता सदा, युग का सच ही व्यक्त ।
देखे दोहाकार हर, सच्चे स्वप्न सशक्त ।।
मरकत- १७ गुरु, १४ लघु=४८
सत्रह-चौदह से बने, मरकत करें न चूक ।।
निराकार-निर्गुण भजै, जी में खोजे राम ।
गुप्त चित्र ओंकार का, चित में रख निष्काम ।।
दोहा के शेष प्रकारों पर फिर कभी विचार करेंगे।
===
***
नवगीत:
*
एक हाथ मा
छुरा छिपा
दूजे से मिले गले
ताहू पे शिकवा
ऊगे से पैले
भोर ढले.
*
केर-बेर खों संग
बिधाता हेरें
मुंडी थाम.
दोउन खों
प्यारी है कुर्सी
भली करेंगे राम.
उंगठा छाप
लुगाई-मोंड़ा
सी एम - दावेदार।
पिछड़ों के
हम भये मसीहा
अगड़े मरें तमाम।
बात नें मानें जो
उनखों जुटे के तले मलें
ताहू पे शिकवा
ऊगे से पैले
भोर ढले.
एक हाथ मा
छुरा छिपा
दूजे से मिले गले
*
सहें न तिल भर
कोसें दिन भर
पीड़ित तबहूँ हम.
अपनी लाठी
अपन ई भैंसा
लैन न देंहें दम.
सहनशीलता
पाठ पढ़ायें
खुद न पढ़ें, लो जान-
लुच्चे-लोफर
फूंके पुतला
रोको तो मातम।
देस-हितों से
का लेना है
कैसउ ताज मिले.
ताहू पे शिकवा
ऊगे से पैले
भोर ढले.
एक हाथ मा
छुरा छिपा
दूजे से मिले गले
*
***
नवगीत:
नौटंकियाँ
*
नित नयी नौटंकियाँ
हो रहीं मंचित
*
पटखनी खाई
हुए चित
दाँव चूके
दिन दहाड़े।
छिन गयी कुर्सी
बहुत गम
पढ़ें उलटे
मिल पहाड़े।
अब कहो कैसे
जियें हम?
बीफ तजकर
खायें चारा?
बना तो सकते
नहीं कुछ
बन सके जो
वह बिगाडें।
न्याय-संटी पड़ी
पर सुधरे न दंभित
*
'सहनशीली
हो नहीं
तुम' दागते
आरोप भारी।
भगतसिंह, आज़ाद को
कब सहा तुमने?
स्वार्थ साधे
चला आरी।
बाँट-रौंदों
नीति अपना
सवर्णों को
कर उपेक्षित-
लगाया आपात
बापू को
भुलाया
ढोंगधारी।
वाममार्गी नाग से
थे रहे दंशित
*
सह सके
सुभाष को क्या?
क्यों छिपाया
सच बताओ?
शास्त्री जी के
निधन को
जाँच बिन
तत्क्षण जलाओ।
कामराजी योजना
जो असहमत
उनको हटाओ।
सिक्ख-हत्या,
पंडितों के पलायन
को भी पचाओ।
सह रहे क्यों नहीं जनगण ने
किया जब तुम्हें दंडित?
७.११.२०१५
***
प्रयोगात्मक यमकीय दोहे:
*
रखें नोटबुक निज नहीं, कलम माँगते रोज
नोट कर रहे नोट पर, क्यों करिये कुछ खोज
*
प्लेट-फॉर्म बिन आ रहे, प्लेटफॉर्म पर लोग
है चुनाव बन जायेगा, इस पर भी आयोग
*
हुई गर्ल्स हड़ताल क्यों?, पूरी कर दो माँग
'माँग भरो' है माँग तो, कौन अड़ाये टाँग?
*
एग्रीगेट कर लीजिये, एग्रीगेट का आप
देयक तब ही बनेगा, जब हो पूरी माप
एग्रीगेट = योग, गिट्टी
*
फेस न करते फेस को, छिपते फिरते नित्य
बुक न करे बुक फुकटिया, पाठक सलिल अनित्य
*
सर! प्राइज़ किसको मिला, अब तो खोलें राज
सरप्राइज़ हो खत्म तो, करें शेष जो काज
*
नवगीत:
*
जो जी चाहे करें
हमारा राज है
.
मंत्री से संत्री तक जो है, अपना है
मनमाफिक कानून-व्यवस्था सपना है
जनता का क्या? वह रौंदी ही जानी है
फाँसी पर लटकाना और लटकना है
बने मियाँ मिट्ठू
सर धारा ताज है
जो जी चाहे करें
हमारा राज है
.
बस से धक्का दें या रौंद-कुचल मारें
अनुग्रहित हो, हम जैसे चाहें-तारें
जान गयी तो रुपये ले मुँह बंद रखो
मुँह खोलें जो वे अपना जीवन हारें
कहीं न कहना
हुआ कोढ़ में खाज है
जो जी चाहे करें
हमारा राज है
.
बादल बरपा करे कहर तो मत बोलो
आप शाप हो तो अपने लब मत खोलो
कमल सदा कीचड़ में खिलते, मौन रहो
पंजा रिश्वत गिने, न लेकिन तुम डोलो
सत्ताधारी सदा
गिराता गाज है
जो जी चाहे करें
हमारा राज है
५.५.२०१५
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