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शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

नवंबर ८, संदेह अलंकार, हरियाणवी हाइकु, हाइकु गीत, सॉनेट, मुखपोथी, दीपक

सलिल सृजन नवंबर ८
*
मुखपोथी
हर मुख पोथी पढ़ो पढ़ सको।
पढ़कर मुखड़ा गढ़ो गढ़ सको।।

विमुख सृजन से मत होना रे!
शब्द-चित्र नव मढ़ो मढ़ सको।।

सम्मुख आए बाधा-पर्वत
आमुख पग रख चढ़ो चढ़ सको।।

लहर-लहर सुख-दुख का संगम
अनगढ़ से कुछ गढ़ो गढ़ सको।।
८.११.२०२४
•••
सॉनेट
दीपक
जलते बाती-तेल उजाला करते,
दीपक पाता श्रेय, छिपाता तम को,
जैसे नेता ठगता है जन-गण को,
दोषी जन-गण भी न सत्य जो वरते।
औरों की सूखी पर नजरें धरते,
चलें न अपने घर की हरियाली को,
जोड़, न खाते, छोड़ यहीं सब मरते।
कुछ अतिभोगी कर्जा ले घृत पीते,
भोग भोगते, भोग भोगता उनको,
दोनों अति से बचो, चतुर जन कहते।
रखें समन्वय जो जीवन-रण जीते,
सत्य समझ आया है यह दीपक को,
जले न रवि सम और नहीं तम तहते।
८.११.२०२३
•••
कार्यशाला- ७-११-१६
आज का विषय- पथ का चुनाव
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*
हाइकु
सहज नहीं
है 'पथ का चुनाव'
​विकल्प कई.
(जापानी त्रिपदिक वार्णिक छंद, ध्वनि ५-७-५)
*
मुक्तक
पथ का चुनाव आप करें देख-भालकर
सारे अभाव मौन सहें, लोभ टालकर
​पालें लगाव तो न तजें, शूल देखकर
भुलाइये 'सलिल' को न संबंध पालकर ​
​(२२ मात्रिक चतुष्पदिक मुक्तक छंद, टुकनर गुरु-लघु, पदांत गुरु-लघु-लघु-लघु) ​
*
***
त्रिपदिक गीत:
करो मुनादी...
*
करो मुनादी
गोडसे ने पहनी
उजली खादी.....
*
सवेरे कहा:
जय भोले भंडारी
फिर चढ़ा ली..
*
तोड़े कानून
ढहाया ढाँचा, और
सत्ता भी पाली..
*
बेचा ईमान
नेता हैं बेईमान
निष्ठा भुला दी.....
*
एक ने खोला
मंदिर का ताला तो -
दूसरा डोला..
*
रखीं मूर्तियाँ
करवाया पूजन
न्याय को तौला..
*
मत समझो
जनगण नादान
बात भुला दी.....
*
क्यों भ्रष्टाचार
नस-नस में भारी?
करें विचार..
*
आख़िरी पल
करें किला फतह
क्यों हिन्दुस्तानी?
*
लगाया भोग
बाँट-खाया प्रसाद.
सजा ली गादी.....
*
​***
हरियाणवी हाइकु
*
घणा कड़वा
आक करेला नीम
भला हकीम।१।
*
​गोरी गाम की
घाघरा-चुनरिया
नम अँखियाँ।२।
*
बैरी बुढ़ापा
छाती तान के आग्या
अकड़ कोन्या।३।
*
जवानी-नशा
पोरी पोरी मटकै
जोबन-बम।४।
*
कोरा कागज
हरियाणवी हाइकु
लिक्खण बैठ्या।५।
*
'हरि' का 'यान'
देस प्रेम मैं आग्गै
'बहु धान्यक'।६।
*
पीछै पड़ गे
टाबर चिलम के
होश उड़ गे।७।
*
मानुष एक
छुआछूत कर्‌या
रै बेइमान।८।
*
हैं भारतीय
आपस म्हं विरोध
भूल भी जाओ।९।
*
चिन्ता नै चाट्टी
म्हारी हाण कचोट
रंज नै खाई।१०।
*
ना है बाज का
चिडिय़ा नै खतरा
है चिड़वा का।११।
*
गुरू का दर्जा
शिक्षा के मन्दिर मैं
सबतै ऊँच्चा।१२।
*
कली नै माली
मसलण लाग्या हे
बची ना आस। १३।
*
माणस-बीज
मरणा हे लड़कै
नहीं झुककै।१४।
*
लड़ी लड़ाई
जमीन छुड़वाई
नेता लौटाई।१५।
*
भुख्खा किसाण
कर्ज से कर्ज तारै
माटी भा दाणे।१६।
*
बाग म्हं कूकै
बिरहण कोयल
दिल सौ टूक।१७।
*
चिट्ठी आई सै
आंख्या पाणी भरग्या
फौजी हरख्या।१८।
*
सब नै दंग
करती चूड़ी-बिंदी
मैडल ल्याई।१९।
*
लाडो आ तूं
किलकारी मारकै
सुपणा मेरा।२०।
८.११.२०१६
***
अलंकार सलिला: २९
संदेह अलंकार
*
किसी एक में जब दिखें, संभव वस्तु अनेक।
अलंकार संदेह तब, पहिचानें सविवेक।।
निश्चय करना कठिन हो, लख गुण-धर्म समान ।
अलंकार संदेह की, यह या वह पहचान ।।
गुरुदत्त जी, वहीदा जी, रहमान जी तथा जॉनी वाकर जी के जीवंत अभिनय, निर्देषम, कथा और मधुर गीतों के लिये
स्मरणीय हिंदी सिनेमा की कालजयी कृति 'चौदहवीं का चाँद' को हम याद कर रहे हैं शीर्षक गीत के लिये...
चौदहवीं का चाँद हो / या आफताब हो?
जो भी हो तुम / खुदा की कसम / लाजवाब हो।
नायिका के अनिंद्य रूप पर मुग्ध नायक यह तय नहीं कर पा रहा कि उसे चाँद माने या सूर्य? एक अन्य पुराना फिल्मी गीत है-
ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत / कौन हो तुम बतलाओ?
देर से इतनी दूर खड़ी हो / और करीब आ जाओ।
यह तो आप सबने समझ ही लिया है कि नायक नायिका को देखकर सपना है या सच है? का निश्चय नहीं कर पा रहा है
और यह तय करने के लिये उसे निकट बुला रहा है। एक और फिल्मी गीत को लें-
मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाए
बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए?
आप सोच रहे होंगे अलंकार चर्चा के इच्छुक काव्य रसिकों से यह कैसा सलूक कि अलंकार छोड़कर सिनेमाई गीत वो भी
पुराने दोहराये जाएँ? धैर्य रखिये, यह अकारण नहीं है।
घबराइये मत, हम आपसे न तो गीत सुनाने को कह रहे हैं, न गीतकार, गायक या संगीतकार का नाम ही पूछ रहे हैं।
बताइए सिर्फ यह कि इन गीतों में कौन सी समानता है?
क्या?.. पर्दे पर नायक ने गाया है... यह तो पूछने जैसी बात ही नहीं है असल में ...समानता यह है कि तीनों गीतों में
नायक दुविधा का शिकार है- चाँद या सूरज?, सपना या सच?, मारे या छोड़े ?
यह दुविधा, अनिर्णय, संशय, शक या संदेह की मनःस्थिति जिस अलंकार की जननी है, उसका नाम है संदेह अलंकार।
रूप, रंग आदि की समानता होने के कारण उपमेय में उपमान का संशय होने पर संदेह अलंकार होता है।
जहाँ रूप, रंग और गुण की समानता के कारण किसी वस्तु को देखकर यह निश्चचय न हो सके कि यह वही वस्तु है या
नहीं? वहाँ संदेह अलंकार होता है।
यह अलंकार तब होता है जब एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का संदेह तो हो पर निश्चय न हो। इसके वाचक शब्द कि,
किधौं, धौं, अथवा, या आदि हैं।
यह-वह का संशय बने, अलंकार संदेह।
निश्चय बिन हिलता लगे, विश्वासों का गेह।।
इस-उस के निश्चय बिना हो मन हो डाँवाडोल।
अलंकार संदेह को, ऊहापोह से तोल।।
उदाहरण:
१. कौन बताये / वीर कहूँ या धीर / पितामह को?
२. नग, जुगनू या तारे? / बूझ न पाये हारे
३. नर्मदा हो, वर्मदा हो / शर्मदा हो धर्मदा
जानता माँ मात्र इतना / तुम सनातन मर्मदा
४. सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही कि नारी है कि नारी ही कि सारी है।।
यहाँ द्रौपदी के चीरहरण की घटना के समय का चित्रण है कि द्रौपदी के चारों और चीर के ढेर देखकर दर्शकों को संदेह
हुआ कि साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है?
५. को तुम तीन देव मँह कोऊ, नर नारायण की तुम दोऊ।
यहाँ संदेह है कि सामने कौन उपस्थित है ? नर, नारायण या त्रिदेव (ब्रम्हा-विष्णु-महेश)।
६ . परत चंद्र प्रतिबिम्ब कहुँ जलनिधि चमकायो।
कै तरंग कर मुकुर लिए शोभित छवि छायो।।
कै रास रमन में हरि मुकुट आभा जल बिखरात है।
कै जल-उर हरि मूरति बसत ना प्रतिबिम्ब लखात है।।
पानी में पड़ रही चंद्रमा की छवि को देखकर कवि संशय में है कि यह पानी में चन्द्र की छवि है या लहर हाथ में दर्पण लिये
है? यह रास लीला में निमग्न श्री कृष्ण के मुकुट की परछाईं है या सलिल के ह्रदय में बसी प्रभु की प्रतिमा है?
७. तारे आसमान के हैं आये मेहमान बनि,
केशों में निशा ने मुक्तावलि सजायी है।
बिखर गयी है चूर-चूर है के चंद कैधों,
कैधों घर-घर दीपमालिका सुहाई है।।
इस प्रकृति चित्रण में संशय है कि आसमान में तारे अतिथि बनकर आये हैं, अथवा रजनी ने मुक्तावलि सजायी है,
चंद्रमा चूर होकर बिखर गया है या घर -घर में दिवाली मनाई जा रही है.
८. कज्जल के तट पर दीपशिखा सोती है कि,
श्याम घन मंडल में दामिनी की धारा है?
यामिनी के अंचल में कलाधर की कोर है कि,
राहू के कबंध पै कराल केतु तारा है?
'शंकर' कसौटी पर कंचन की लीक है कि,
तेज ने तिमिर के हिए में तीर मारा है?
काली पाटियों के बीच मोहिनी की मांग है कि,
ढाल पर खांडा कामदेव का दुधारा है.?
इस छंद में संदेह अलंकार की ४ बार आवृत्ति है. संदेह है कि- काजल के किनारे दिये की बाती है या काले बादलों के बीच बिजली?, रात के आँचल में चंद्रमा की कोर है या राहू के कंधे पर केतु?, कसौटी के पत्थर पर परखे जा रहे सोने की रेखा है या अँधेरे के दिल में उजाले का तीर?, काले बालों के बीच सुन्दरी की माँग है या ढाल पर कामदेव का दुधारा रखा है?
९. नित सुनहली साँझ के पद से लिपट आता अँधेरा,
पुलक पंखी विरह पर उड़ आ रहा है मिलन मेरा।
कौन जाने बसा है उस पार
तम या रागमय दिन? - महादेवी वर्मा
१०. जननायक हो जनशोषक
पोषक अत्याचारों के?
धनपति हो या धन-गुलाम तुम
दोषी लाचारों के? -सलिल
११. भूखे नर को भूलकर, हर को देते भोग।
पाप हुआ या पुण्य यह?, करुँ हर्ष या सोग?.. -सलिल
१२. राधा मुख आली! किधौं, कैधौं उग्यो मयंक?
१३. कहहिं सप्रेम एक-इक पाहीं। राम-लखन सखि! होब कि नाहीं।।
१४. संसद या मंडी कहूँ?
हल्ला-गुल्ला हो रहा
आम आदमी रो रहा।
१५. जीत हुई या हार
भाँज रहे तलवार
जन हित होता उपेक्षित।
संदेह अलंकार का प्रयोग सामाजिक विसंगतियों और त्रासदियों के चित्रण में भी किया जा सकता है।
८-११-२०१५
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