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शनिवार, 6 अप्रैल 2024

संगीता भारद्वाज "मैत्री"

लेख
डॉ. संगीता भारद्वाज "मैत्री"
गीतिका श्री वर्मा
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            महाकवि नीरज के अनुसार 'मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य'। तीन पीढ़ियों तक कवि होना और साथ में साहित्य और संगीत का सम्मिलन हो तो इसे 'सौ भाग्य' नहीं, 'हजार भाग्य कहना होगा। डॉ. संगीता भारद्वाज 'मैत्री' ऐसी ही 'हजार भाग्य' की धनी हैं। संगीता अपनी गौरवशाली पारिवारिक विरासत को पाकर ही संतुष्ट नहीं हुईं, उन्होंने इसे सतत श्रम, प्रयास और संघर्ष से सँवारा और निखारा है। संगीता के पितामह स्वतंत्रता सत्याग्रही माणिकलाल चौरसिया 'मुसाफिर' एक कृषक और पान व्यवसायी थे। उन्होंने महात्मा गांधी जी के आह्वान पर प्राणप्रण से सत्याग्रहों में भाग लिया और कारावास भी झेला। उनके परिवार को अंग्रेज पुलिस और प्रशासन द्वारा निरंतर परेशान किया जाता रहा किंतु मुसाफिर जी का मनोबल कभी नहीं डिगा। वे श्रेष्ठ कवि और गायक भी थे। मुसाफिर जी के तीनों बेटे जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण' (हिंदी प्राध्यापक, प्राचार्य), कृष्ण कुमार चौरसिया 'पथिक' (शिक्षक) तथा गोपाल कृष्ण चौरसिया 'मधुर' (सहायक अभियंता जल संसाधन विभाग) तथा बेटी कमलेश चौरसिया (शिक्षिका) हिंदी काव्य के सशक्त हस्ताक्षर हुए। साहित्य प्रेम और काव्य रचना की यह विरासत २० अगस्त १९६८ को जबलपुर में जन्मी संगीता तथा उनकी बहिनों नवनीता और अस्मिता ने भी पाई। तरुण जी की धर्मपत्नी श्रीमती हेमलता ने अपेक्षाकृत कम शिक्षित चौरसिया समाज और ग्रामीण परिवेश में व्याप्त विसंगतियों से जूझते हुए भी बेटियों को बेटों की तरह न केवल पढ़ाया-लिखाया अपितु उनके व्यक्तित्व को तराशने में महती भूमिका निभाई। संगीता ने एम. ए. हिंदी साहित्य प्रथम स्थान तथा स्वर्णपदक सहित मानकुँवर बाई महिला महाविद्यालय जबलपुर से प्राप्त किया तथा  'जबलपुर परिक्षेत्र की राष्ट्रीय काव्य धारा' (वर्ष १८५७ से १९५७ तक) पर अथक परिश्रम कर शोध कार्य किया और पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की।  

            सोने में सुहागा यह कि संगीता को जीवन साथी के रूप में श्री जयंत भारद्वाज (सहायक महाप्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक) मिले जो उत्तम चित्रकार, रंगकर्मी तथा मिमिक्री, दूरदर्शन, फिल्म कलाकार भी हैं।संगीता जी तथा जयंत जी दोनों युग पुरुष सत्य साई बाबा के अनन्य भक्त तथा समर्पित सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं। आपके निवास पर साई के चित्र से भभूत भी निकलती है, जिससे पीड़ित श्रद्धालुओं की पीड़ा काम करने का उपकार वे निरंतर करते हैं। संगीता भिलाई से प्रकाशित साप्ताहिक साईं किरण अखबार का संपादन चर्चित रही हैं। वे श्री सत्य साईं सेवा अंतर्राष्ट्रीय संगठन के मध्य प्रदेश चैप्टर द्वारा नामित 'ज्योति ध्यान अधिकारी' हैं। अपनी कृतियों 'डॉ. प्रो. जवाहरलाल तरूण जी के साहित्यिक योगदान-अवदान' हेतु काव्य श्री अलंकरण, 'यात्राओं की तलाश' यात्रा वृत्तान्त हेतु मध्य प्रदेश लेखिका संघ भोपाल द्वारा श्री अरुण भार्गव २०२४ पुरस्कार, काव्य संग्रह 'यादों के पलाश' हेतु काव्य अलंकरण सम्मान, विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर, अंतरराष्ट्रीय संस्था कादंबरी आदि द्वारा अलंकृत-सम्मानित की जा चुकी हैं संगीता जी। आपकी प्रकाशाधीन कृतियाँ मैत्री मुक्तक, मैत्री दोहा सलिला, साकार होते स्वप्न, यायावर मन, प्रत्यूषा की किरण आदि हैं।

            संगीता अपने साहित्यिक गुरु आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के मार्गदर्शन में वाट्स ऐप तथा फ़ेसबुक पर 'संत समागम' जीवंत कार्यक्रम का समीचीन संचालन कर चर्चित हुई हैं। अब तक ५० से अधिक संतों के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विमर्श हो चुके हैं तथा रामचरित मानस के सर्वोत्तम मीमांसक पद्मभूषण रामकिंकर उपाध्याय जी के जन्म शती वर्ष में किंकर जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर ११ रविवार तक विमर्श जारी है। 

 








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