सलिल सृजन अप्रैल ५
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स्मरण युग तुलसी
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युगतुलसी की गहो विरासत,
कर शिव-प्रीति, उमा पग वंदन,
वर जीवन-पथ सत्-सुंदर नित,
राम नाम हो माथे चंदन।
युगतुलसी हैं श्रद्धा अविचल,
सिया-राम-हनुमंत उपासक,
नेह नर्मदा प्रवहित अविरल,
सर-सरयू निर्मलता साधक।
युगतुलसी विश्वास अखंडित,
एक साधते, सब सध जाते,
गुरु-प्रभु को कर महिमा मंडित,
पल-पल राम नाम गुंजाते।
युगतुलसी सम करें आचरण,
सिया-राम को सुमिरें हर क्षण।।
५.४.२०२४
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आज की रचना
जागो माँ
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जागो माँ! जागो माँ!!
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सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं
चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं
नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं
सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं
रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो
मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो
नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो
मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो
राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ
*
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
नवसंवत्सर, ५.४.२०१९
***
नवगीत
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पूज रहे हैं
मूरत
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है आराध्य हमारा जो
वह है अविनाशी
कहते फिर बतलाते कैसा
मनुज विनाशी
पैदा हुआ-मरा कैसे-कब
कहाँ? कह रहे
झगड़े-झंझट खड़े कर रहे
काबा-काशी
शिव वैरागी को अर्पित
करते हैं राशी
कहते कंकर-कंकर शंकर
छिपा-सुप्त है.
.
तुमने उसे बनाया या
वह तुम्हें बनाता?
तुम आते-जाते हो या
वह आता-जाता?
गढ़ते-मढ़ते, तोड़-फाड़ते
बिना विचारे
देख हमारी करनी वह
छिप-छिप मुस्काता
कैसा है यह बुद्धिमान
जो आप ठगाता?
मैंने दिया विवेक, कहाँ वह
हुआ लुप्त है?
५.४.२०१४
...
कार्यशाला काव्यानुवाद
ग़ज़ल - अमीर खुसरो
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काफ़िरे-इश्कम मुसलमानी मरा दरकार नीस्त
हर रगे मन तार गश्ता हाजते जुन्नार नीस्त
अज़ सरे बालिने मन बर खेज ऐ नादाँ तबीब
दर्द मन्द इश्क़ रा दारो- बख़ैर दीदार नीस्त
मा व इश्क़ यार,अगर पर किब्ला ,गर दर बुतकदा
आशिकान दोस्त रा बक़ुफ़्रो- इमां कार नीस्त
ख़ल्क़ मी गोयद के खुसरो बुत परस्ती मी कुनद
आरे -आरे मी कुनम बा ख़लको-दुनिया कार नीस्त।
*
भावानुवाद
नास्तिक हूँ मैं प्रेम पूजता, नहीं चाहिए मुझे सुमिरनी
नस नस तार बन गई मेरी, नहीं जरूरत है जनेऊ की
मेरे सिरहाने से उठ जा, अब तो ऐ नादां हकीम तू
प्रेम-रोग जिसको इलाज है, उसका केवल प्रिय-दर्शन ही
चाह प्रेम प्रेमी की केवल, काबा हो या हो देवालय
काम प्रेमिका से है केवल,कुफ़्र और ईमान से नहीं
कहती है तो कह ले दुनिया, खसरो करता मूरत-पूजन
हाँ हाँ मूरत पूज रहा मैं, परवा नहीं मुझे दुनिया की
५.४.२०१४
***
दोहा
डैड रहें रिच या पुअर, तनिक न पड़ता फर्क।
योग्य बनो आगे बढ़ो, छोड़ी तर्क-वितर्क।।
५-४-२०२३
***
लघुकथा:
अकल के अंधे
*
२ अप्रैल २०२० एक सामान्य दिन और तारीख, बिलकुल अन्य दिनों की तरह।
पोंगा पंडित को बहुत दिनों से अपने लोगों द्वारा अनदेखा किया जा रहा था। चर्चा में न बने रहना उनका शगल तो था ही, राजनीति में बने रहने के लिए चर्चित होना भी जरूरी था। क्या करें कि नाम चर्चा में आ जाए। कुछ सूझ ही नहीं रहा था, तभी प्रधान मंत्री जी ने ५ अप्रैल को रात ९ बजे ९ मिनिट के लिए बिजली बंद कर बालकनी या दरवाजे पर दिया. मोमबत्ती, लालटेन आदि जलाने की अपील जनता जनार्दन से की।
उन्हें लगा यही मौका है, इसे तुरन्त भुनाना चाहिए पर कैसे?
संयोगवश ५ और ४ का योग ९ होने पर उनका ध्यान गया। दिमाग पर जोर दिया तारीख और माह का योग ९, समय ९ बजे, दिया जलने की अवधि ९ मिनिट, बचपन में शिक्षक द्वारा बताये गए ९ के पहाड़े की विशेषताएं याद हो आईं। पोंगा पंडित मुस्कुराये चलो. काम बन गया। तुरंत एक लेख बनाया। महान पंडितों की गणना के आधार पर घोषणा, ९ पूर्णता का प्रतीक...
रात नौ बजे ९ मिनिट ९ x ९ = ८१ = ८ + १ = ९
माह और तारीख का योग ४ + ५ + ९
तीनों को जोड़ें ९ + ९ + ९ = २७ = २ + ७ = ९
तीनों का गुणा करें ९ x ९ x ९ = ७२९ = ७ + २ + ९ = १ + ८ = ९
महापूर्ण योग , महा मंगलकारी, किस राशि पर कैसा प्रभाव? जानने के लिए संपर्क करें और अपना चलभाष क्रमांक, फीस और एटीएम नंबर दे दिया।
अपने अलग-अलग नंबरों से कई वॉट्सऐप समूहों, फेसबुक पटलों, आदि में डालने में जुट गए।
'निठल्लों की तरह क्या मोबाइल से चिपके हो, कुछ करते क्यों नहीं? चलो झाड़ू ही लगा लो, मैं तब तक बर्तन माँज लूँ। नहीं तो चाय-वाय कुछ नहीं मिलेगी' पंडिताइन ने घुड़की दी।
पंडित जी ने सोचा इसे खुश कर दूँ तो दिन भर चैन रहेगा, सो बोले 'डार्लिंग! देखो तो कितनी बढ़िया गणना की है अब चारों तरफ चर्चा तो होगी ही, कुंडली मिलवाने वालों से कमाई भी हो जाएगी। पंडितानी पंडित जी से ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं, तुरंत बोलीं "ये क्या आधा-अधूरा गया बघारते हो? वर्ष २०२० का क्या हुआ? मुहूर्त की बात करते हो चैत्र माह का अंक १ हुआ, विक्रम संवत २०७७ = १६ = ७, तिथि है द्वादशी = ३ सबका योग ११ = २ , सबका गुणा २१ = ३। अब क्या होगा तुम्हारी ९ के फंडे का?"
"ए भागवान! बंद रखो अपनी जबान। भगवान् अक्लमंद पत्नी किसी को न दे। तुम तो मेरी खटिया ही खड़ी करा दोगी। बना बनाया काम बिगाड़ दोगी। तय मानो कमाई तो होंगई ही, नाम भी उछल जायेगा, तुम चाय बनाने का जुगाड़ करों, मैं तुम्हारे हुकुम का पालन करता हूँ। ये भारत है, यहाँ कम नहीं हैं अकल के अंधे।"
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गले मिले दोहा यमक
*
काहे को रोना मचा, जीना किया हराम
कोरोना परदेश से, लाये ख़ास न आम
बिना सिया-सत सियासत, है हर काम सकाम
काम तमाम न काम का, बाकि काम तमाम
हेमा की तस्वीर से, रोज लड़ाते नैन
बीबी दीखते झट कहें हे माँ, मन बेचैन
बौरा-गौरा को नमन, करता बौरा आम.
खास बन सके, आम हर, हे हरि-उमा प्रणाम..
देख रहा चलभाष पर, कल की झलकी आज.
नन्हा पग सपने बड़े, कल हो कल का राज..
५.४.२०२०
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गीत
सबसे पहले देश
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माखन दादा ने सिखलाया
सबसे पहले देश
*
रक्षा करी विदेशी से लड़
शस्त्र हाथ में लेकर
बापू के सत्याग्रह से जुड़
जूझे कमल उठाकर
पत्रकार-कवि तेजस्वी हे!
कसर न छोड़ी लेश
माखन दादा ने सिखलाया
सबसे पहले देश
*
विद्यार्थी जी के पथ पर चल
जान हथेली पर ले
लक्ष्मण सिंह-सुभद्रा को पथ दिखलाया आशिष दे
हिम तरंगिणी, हिम किरीटनी
ने दी कीर्ति अशेष
माखन दादा ने सिखलाया
सबसे पहले देश
*
सत्ता दल पद कभी न चाहा
करी स्वार्थ बिन सेवा
शर्म करें दल नेता चमचे
चाह रहे जो मेवा
नोटा चुने हराओ इनको
जागृत रहो विशेष
माखन दादा ने सिखलाया
सबसे पहले देश
*
करी पुष्प ने अभिलाषा यह
बिछे राह पर जाकर
गुजरें माँ के सेवक पग धर
चाह नहीं प्रभु का सिर
त्यागी-बलिदानी अजरामर
कमी न छोड़ी लेश
माखन दादा ने सिखलाया
सबसे पहले देश
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कृति चर्चा:
मैं हूँ एक भाग हिमालय का : मन मंदाकिनी का काव्य प्रवाह
*
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
(कृति विवरण: मैं हूँ एक भाग हिमालय का, काव्य संग्रह, ममता शर्मा, प्रथम संस्करण २०१८, आईएसबीएन ९७८०४६३६४४९६६, आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ १२०, मूल्य१८५ रु., प्रकाशक वर्जिन साहित्य पीठ दिल्ली)
*
कविता की नहीं जाती, हो जाती है। अनुभूति के शिखर से अभिव्यक्ति सलिला प्रवाहित होकर कलकल निनाद करे तो कविता हो जाती है। मानव जीवन पल-पल परिवर्तन का साक्षी बनता है। भावात्म शब्द-तन मे वास कर परिवर्तनजनित प्रतिक्रिया के प्रागट्य का साक्षी बनता है। यह निर्विवाद सत्य है कि नारी मन पुरुष मन की तुलना में अधिक भाव प्रवण और ममतामय होता है। 'मैं हूँ भाग हिमालय का' की कविताएँ व्यष्टि और समष्टि के अंतर्संबंध की प्रतीति से उद्भूत हैं।
'आज धरा के आँगन में फिर
सूरज ऊषा लेकर आया
देख अचानक संग उन्हें
रजनी-नेत्रों में जल भर आया।
फट ले अपनी काली चूनर
झटपट वो विभावरी भागी
तभी अचानक पाँखें खोले
चिड़िया भी चूँ-चूँ कर जागी।'
प्रकृति के साथ तादात्म्य-स्थापन ब्रह्म-साक्षात का प्रथम चरण है। रंग उड़ा, रंग उड़ा, हर दिशा ही रंग उड़ा' हर दिशा में रंग दिखना लगे तो कबीर सब कुछ लुटा देता है पर लोई को घर में ही ब्रह्म का पारा पाँव पसारे मिल जाता है। उसे मम्मी के भाल, पूजा के थाल, गणपति और हाथी, मोती के बैल और पकवानों का कतारों में अर्थात यत्र-तत्र-सर्वत्र रंग ही रंग दिखता है। निराकुल मीरा कहती हैं 'मैं तो साँवरी के रँग राँची' ममता की प्रतीति भिन्न होना स्वाभाविक है। 'मन को लगाएँ किससे / मैं बतियाऊँ किससे' के गिले-शिकवे भुलाकर 'चंपकवन में एक रूपसी / गर्वीली मतवाली आली' होकर स्वरूप निहारती वह जान ही नहीं पाती 'आया कौन मन के दर्पण में....बिना रोके-टोके' लेकिन आ ही गया तो जाने का द्वार नहीं है। 'यही तो जीवन है अभिराम / यही तो जीवन है सुखधाम।' रंगरसिया साथ हो तो 'पीली-पीली सरसों फैली / फैली चारों ओर' का प्रतीति होनी ही है। यह प्रतीति संकुचन नहीं विस्तार और नव सृजन के पथ पर पग धरती है- 'है बस नियमों थोड़ा सा अहसास जागा / हाँ, मैं भी हूँ हिस्सा धरा का जरा सा', कामना जागती है 'भूमि पा अब बीज जाए / हो उजाला सूर्य का / चंदा का किरणें गुनगुनाएँ'।
सृजनाकांक्षी चेतना 'मुसाफिर हूँ मैं / हर क्षण चलती ही रहती हूँ' कहते हुए भी गंतव्य के प्रति सचेत रहती है-'रहा बचपन जवानी, सब में बेसुध / कुछ खबर ले-ले'।
'काठ का हाँडी चढ़ी तो पल में बात समझ गई'। कौन सी बात? यही कि 'जो करना आज ही कर लो'। क्योंकि 'हम क्या हैं? / केवल सितारों की राख / या हैं हम / संपूर्ण ब्रह्मांड'।
अनुभूतियों का इंद्रधनुषी रंग 'मैं हूँ एक भाग हिमालय का' में सर्वत्र व्याप्त है। गीत-सागर राकेश खंडेलवाल लिखित आमुख से समृद्ध
यह कृति कवयित्री की काव्य-सृजन प्रतिभा की प्रथम पुष्प है जो पूत के पाँव पालने में दिखते हैं कहावत को चरितार्थ करती है।
'ठुमुक चलत रामचंद्र' का पैंजनियों का रुनझुन ले आनंदित होते समय पुष्प-वाटिका, पंचवटी या लंकापुरी में राम की छवि न खोजें तो विवेच्य कृति बालारुणी ऊषा की रम्य छवि-दर्शन का सा आनंद देती है। कवयित्री की प्रतिभा आगामी काव्य संग्रहों में परवान पर चढ़कर विश्ववाणी हिंदी के साहित्य कोष को समृद्ध करेगी, यह विश्वास किया जा सकता है।
५-४-२०१९
***
आनुप्रासिक दोहे
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दया-दफीना दे दिया, दस्तफ्शां को दान
दरा-दमामा दाद दे, दल्कपोश हैरान
(दरा = घंटा-घड़ियाल, दफीना = खज़ाना, दस्तफ्शां = विरक्त, दमामा = नक्कारा, दल्कपोश = भिखारी)
*
दर पर था दरवेश पर, दरपै था दज्जाल
दरहम-बरहम दामनी, दूर देश था दाल
(दर= द्वार, दरवेश = फकीर, दरपै = घात में, दज्जाल = मायावी भावार्थ रावण, दरहम-बरहम = अस्त-व्यस्त, दामनी = आँचल भावार्थ सीता, दाल = पथ प्रदर्शक भावार्थ राम )
*
दिलावरी दिल हारकर, जीत लिया दिलदार
दिलफरेब-दीप्तान्गिनी, दिलाराम करतार
(दिलावरी = वीरता, दिलफरेब = नायिका, दिलदार / दिलाराम = प्रेमपात्र)
५-४-२०१७
***
नवगीत:
.
क्षुब्ध पहाड़ी
विजन झुरमुट
झाँकता शिरीष
.
गगनचुम्बी वृक्ष-शिखर
कब-कहाँ गये बिखर
विमल धार मलिन हुई
रश्मिरथी तप्त-प्रखर
व्यथित झाड़ी
लुप्त वनचर
काँपता शिरीष
.
सभ्य वनचर, जंगली नर
देख दंग शिरीष
कुल्हाड़ी से हारता है
रोज जंग शिरीष
कली सिसके
पुष्प रोये
झुलसता शिरीष
.
कर भला तो हो भला
आदम गया है भूल
कर बुरा पाता बुरा है
जिंदगी है शूल
वन मिटे
बीहड़ बचे हैं
सिमटता शिरीष
.
बीज खोजो और रोपो
सींच दो पानी
उग अंकुर वृक्ष हो
हो छाँव मनमानी
जान पायें
शिशु हमारे
महकता शिरीष
***
नवगीत:
.
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
महाकाव्य बब्बा की मूँछें, उजली पगड़ी
खण्डकाव्य नाना के नाना किस्से रोचक
दादी-नानी बन प्रबंध काव्य करती हैं बतरस
सुन अंग्रेजी-गिटपिट करते बच्चे भौंचक
ईंट कहीं की, रोड़ा आया और कहीं से
अपना
आप विधाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
लक्षाधिक है छंद सरस जो चाहें रचिए
छंदहीन नीरस शब्दों को काव्य न कहिए
कथ्य सरस लययुक्त सारगर्भित मन मोहे
फिर-फिर मुड़कर अलंकार का रूप निरखिए
बिम्ब-प्रतीक सलोने कमसिन सपनों जैसे
निश-दिन
खूब दिखाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
दृश्य-श्रव्य-चंपू काव्यों से भाई-भतीजे
द्विपदी, त्रिपदी, मुक्तक अपनेपन से भीजे
ऊषा, दुपहर, संध्या, निशा करें बरजोरी
पुरवैया-पछुवा कुण्डलि का फल सुन खीजे
बौद्धिकता से बोझिल कविता
पढ़ता
पर बिसराता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
गीत प्रगीत अगीत नाम कितने भी धर लो
रच अनुगीत मुक्तिका युग-पीड़ा को स्वर दो
तेवरी या नवगीत शाख सब एक वृक्ष की
जड़ को सींचों, माँ शारद से रचना-वर लो
खुद से
खुद बतियाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
५-४-२०१५
***
नवगीत:
.
रचनाओं की हर रामायण
अक्षर-अक्षर मिलकर गढ़ते
कथ्य भाव रस बिम्ब बनाते
क्षर शब्दों की सार्थक दुनिया
.
शब्द-शब्द मिल वाक्य बनाते
वाक्य अनुच्छेदों में ढलते
अनुच्छेद मिल कथा-कहानी
बन जाते तो सपने पलते
बनते सपने युग के नपने
लगे पतीले ऊपर ढकने
पुरुषार्थी कोशिश कर हारे
लगे राम की माला जपने
दे जाती है साँझ सलोने
सपने लेकिन ढलते-ढलते
नानी के अधरों पर लाती
हँसी शरारत करती मुनिया
.
किसने जीवन यहाँ बिताया
केवल सुख पा, सहा न दुखड़ा
किसने आँसू नहीं बहाये
किसका सुख से खिला न मुखड़ा
किस अंतर में नहीं अंतरा
इश्क-मुश्क का गूँजा कहिए
सम आकारिक पंक्ति-लहरियाँ
बन नवगीत बह रही गहिए
होते तब जीवंत खिलौने
शिशु-नयनों में पलते-पलते
खेले हास-रास के सँग जब
श्वास-आस की जीवित गुड़िया
.
गीतकार पाठक श्रोता का
नाता होता बहुत अनूठा
पल में खुश हो जाता बच्चा
पल भर पहले था जो रूठा
टटकापन-देशजता रुचती
अधुनातानता भी मन भाती
बन्ना-गारी के सँग डी जे
सुनते-नाचें झूम बराती
दिखे क्षितिज पर देखे चंदा
धवल चाँदनी हँसते-खिलते
घूँघट डाले हनीमून पर
जाती इठलाकर दुलहनिया
४.४.२०१५
...
*
PAN Card explained:-
PAN is a 10 digit alpha numeric number,
where the first 5 characters are letters,
the next 4 numbers and the last one a letter again.
These 10 characters can be divided in five parts as can be seen below.
The meaning of each number has been explained further.
1. First three characters are alphabetic series running from AAA to ZZZ
2. Fourth character of PAN represents the status of the PAN holder. • C — Company • P — Person • H — HUF(Hindu Undivided Family) • F — Firm • A — Association of Persons (AOP) • T — AOP (Trust) • B — Body of Individuals (BOI) • L — Local Authority • J — Artificial Juridical Person • G — Government
3. Fifth character represents first character of the PAN holder’s last name/surname.
4. Next four characters are sequential number running from 0001 to 9999.
5. Last character in the PAN is an alphabetic check digit.
Nowadays, the DOI (Date of Issue) of PAN card is mentioned at the right (vertical) hand side of the photo on the PAN card.
***
दोहा सलिला
०
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत.
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त..
०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.
०
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर.
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर..
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ.
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ..
*
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार.
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार..
५-४-२०१३
***
खबरदार कविता:
खबर: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
*
अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थम जाते हथियार..
*
५-४-२०१०
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