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शनिवार, 6 अप्रैल 2024

अप्रैल ६ , सोरठा, सॉनेट, दोहा गजल, हाइकु गजल, Saraswati Prayer, शिव, लघुकथा, नवगीत

सलिल सृजन अप्रैल ६

*
सोरठा सलिला
बही रसों की धार, कवियों की महफ़िल जमी।
कविता का श्रृंगार, अलंकार लालित्यमय।।
सुमिरे जिसको रोज, रैन रहे बेचैन मन।
कभी हमारी खोज, चैन गँवा वह भी करे।।
बंदी कर चितचोर, आँख रैन जगती रहे।
जा न सके बरजोर, बंदी ले बंदी बना।।
नित सुधियों का कोष, रैन सहेजे मौन रह।
जब कर ले संतोष, शाहों की शाह तब।।
पाकर कंत बसंत, रैन महकती चहकती।
पालें चाह अनंत, नैन कथा कह अनकही।।
६-४-२०१३
•••
सॉनेट
तन-मन
तन में मन है, सुमन सुरभि सम।
माटी हो जाता, तन बिन मन।
लचक अधिक रख नाहक मत तन।।
खुश रह, खुश रख, मिट जाए गम।।
तन्मय मन हो, हो मन्मय तन।
चादर बुनकर ओढ़, स्वच्छ रख।
प्रभुको दे आखिर में फल चख।।
ज्यों की त्यों धर सके कर जतन।।
अनगिन जन फिर भी जग निर्जन।
इकतारा बन बज तुन तिन तिन।
तान न ढीला छोड़, कर जतन।।
कर धन संचय, हो मत निर्धन।
जोड़ बावरे! हँस मन से मन।
एक-नेक, दो रहें न तन-मन।।
६-४-२०२२
•••
***
दोहा मुक्तिका
ताल दे लता याद वह, आ ले बाँहें थाम
लाडो कह कह लिपटता, अपना बन बेदाम
*
अश्क बहा मत रोक ले, हो अशोक भूधाम
सुधा बरस हर श्वास में, रहे कृष्ण का नाम
*
रेखा खींच सरोज की, बीच सलिल ले नाम
मन मंदिर में शारदा, लख आए घनश्याम
*
तुलसी जब तुल सी गई, कैक्टस जा ब्रजधाम
कुंज करीब मिटा रहा, घायल गोप गुलाम
***
एक दोहा
करे जीव संजीव वह, करे वही निष्प्राण
माटी से मूर्त गढ़े, कर चेतन संप्राण
६-४-२०२१
दोहा-दोहा खेलिए
नियम
१. आखिरी दोहे के अंतिम शब्द/अक्षर से अगला दोहा आरंभ करें।
२. दोहा खुद का लिखा न हो तो दोहे के साथ दोहाकार का नाम अवश्य दें।
३. किसी अन्य के दोहे पर टीका-टिप्पणी न करें।
४. दोहे के कथ्य की पूरी जवाबदारी प्रस्तुतकर्ता की होगी।
५. प्रबंधक का आदेश / निर्णय सब पर बंधनकारी होगा।
६. एक शब्द या अक्षर पर एक से अधिक दोहे आने पर जो दोहा सबसे पहले आया हो, उसे आधार मानकर आगे बढ़ा जाए।
७. बीच के किसी दोहे पर टिप्पणी या उससे जुड़ा दोहा, मूल दोहे के साथ ही जवाब में दें ताकि संदर्भ सहित पढ़ा जा सके।
*
सदय रहें माँ शारदा, ऋिद्धि सिद्धि गणराज
हिंदी के सिर सज सके, जगवाणी का ताज
अगला दोहा ज से आरंभ करें
*
समय बिताने के लिए यह एक रोचक क्रीड़ा है। इसमें कितने भी प्रतिभागी भाग ले सकते हैं। आरंभक एक दोहा प्रस्तुत करे जिसका प्रथम चरण गुरु लघु से आरम्भ हो। दोहे के अंतिम शब्द से आरंभ कर अगला प्रतिभागी दोहा प्रस्तुत करे। यह क्रम चलता रहेगा। खेल के दो प्रकार हैं - १. प्रतिभागियों का क्रम तय हो, जिसकी बारी हो वही दोहा प्रस्तुत करे। २. क्रम अनिश्चित हो, जो पहले दोहा बना ले प्रस्तुत कर दे। किसी दोहे के अंत में पहले दोहे का पहला शब्द आने पर खेल ख़त्म हो जाएगा। इसे निरंतर कई दिनों तक खेला जा सकता है।
उदाहरण
दोहा-सलिला
बोल रहे सब सगा पर, सगा न पाया एक
हैं अनेक पर एक भी, मिला न अब तक नेक
नेक नेकियत है कहाँ, खोज खोज हैरान
अपने भीतर झाँक ले, बोल पड़ा मतिमान
मान न मान मगर करे, मन ही मन तू गान
मौन न रह पाए भले, मन में ले तू ठान
ठान अगर ले छू सके, हाथों से आकाश
पैर जमकर धरा पर, तोड़ मोह का पाश
पाश न कोई है जिसे, मनुज न सकता खोल
कर ले दृढ़ संकल्प यदि, मन ही मन में बोल
६-४-२०२०
***

Saraswati Prayer

Acharya Sanjiv Verma 'Salil'

*

O the Origin of Knowledge, Art and wisdom.
We welcome, bless us, please do come.

ज्ञान कला मति की उद्गम हे!
स्वागत दो आशीष हमें आ।

You are the root of love and affection.
You are the key of all creative action.

तुम्हीं मूल हो स्नेह-प्यार की
कुंजी हो तुम सृजन कार्य की।

O lotus eyed, lotus faced, lotus seated mother.
Inspire us all to live joyfully with each other.

हे कमलाक्षी! पद्ममुखी!, कमलासनी मैया
प्रेरित कर सानंद रह सकें साथ-साथ हम।

We worship your divinity, bow our heads.
O Mother! help us to keep high heads.

हम पूजें दिव्यता तुम्हारी, शीश नवाए
हे माँ! रहो सहायक; हों हम शीश उठाए।

Fill our hearts with all good feelings.
Let us be honest in all our dealings.

भरो हमारे ह्रदयों में भावना मधुर माँ।
हम हों निष्ठावान सभी अपने कार्यों में।
***
शिव परमात्मा !
* शिव निराकार है, ज्योतिर्लिंगम् अर्थात ज्योति पुंज हैं।
* शिव सूक्ष्म से सूक्ष्म हैं, हर किसी की आत्मा में उनका निवास है।
* शिव-मंदिरों में विराजित अंडाकार लिंग ब्रह्माण्ड का प्रतीक है जिसके अंदर सकल सृष्टि समायी है।
* शिव का नाम बिना लिए गीता में कहा गया है कि वह (परमात्मा) सूक्ष्म से अधिक सूक्ष्म, विशाल से अधिक विशाल हैं।
* शिव का एकाक्षरी नाम ॐ कभी समाप्त नहीं होगा, इसमें समस्त स्वरों का संगम है. पृथ्वी या अन्य ग्रहों के घूर्णन से जो ध्वन्यात्मक नाद उत्पन्न होता है वो ॐ है। सूर्य से निसृत धावनि तरंगों का रेखांकन करने पर वैज्ञानिकों को ॐ की तरह आकृति मिली है।
* शिव (ॐ) परमेश्वर सकल सृष्टि के अध्यात्म का केंद्र बिंदु है, सर्वज्ञ OMNICIEN , सर्वशक्तिशाली OMNIPOTENT,
सर्व व्यापी OMNIPRESEN, प्रभु की ख़ुशी OMEGA , भोला OMAR आदि शब्द ॐ की विश्व व्यापकता बताते हैं।
* सिख धर्म कहता है- एक ओंकार ही सत्य है
एको जपो एको सालाहि। एको सिमरि एको मन आहि॥
ऐकस के गन गाऊ अनंत। मनि तनि जापि एक भगवंत।।
जैन धर्म का महामंत्र कहता है -"ओमणमो " उस निराकार ओम को नमन।
* मक्का में मुसलमान संगे अस्वद की उसी प्रकार परिक्रमा करते हैं जैसे हम शिव की करते हैं।
* ॐ को ९० अंश घड़ी की दिशा में घुमाने पर इसको अल्लाह भी पढ़ा जा सकता है।
* शिव अर्थात ॐ निराकार परमात्मा ही सत्य है। इस सत्य को मानने से पूरी मानवजाति ईश्वर के नाम पर एक होगी, यही सत्य पूरी मानव जाति को एक करने की शक्ति रखता है।
* ऋग्वेद के अनुसार ॐ ही "देवनामधा" अर्थात समस्त देवताओं के नाम को धारण करते हैं। एक परमात्मा ही समस्त देवताओं फरिश्तों की शक्तियों को धारण करते हैं।
* शिव निराकार परमात्मा है, निराकार ब्रह्म हैं। साकार ब्रह्म के रूप में शिव ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर आदि हैं।
* विश्व शांति का सूत्र है "सत्य शिवम सुंदरम्"
६.४.२०१९
***
चार लघुकथाएँ
१. एकलव्य
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
२. खाँसी
*
कभी माँ खाँसती, कभी पिता. उसकी नींद टूट जाती, फिर घंटों न आती। सोचता काश, खाँसी बंद हो जाए तो चैन की नींद ले पाए।
पहले माँ, कुछ माह पश्चात पिता चल बसे। उसने इसकी कल्पना भी न की थी.
अब करवटें बदलते हुए रात बीत जाती है, माँ-पिता के बिना सूनापन असहनीय हो जाता है। जब-तब लगता है अब माँ खाँसी, अब पिता जी खाँसे।
तब खाँसी सुनकर नींद नहीं आती थी, अब नींद नहीं आती है कि सुनाई दे खाँसी।
***
३. साँसों का कैदी
*
जब पहली बार डायलिसिस हुआ था तो समाचार मिलते ही देश में तहलका मच गया था। अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति और अनगिनत जनता अहर्निश चिकित्सालय परिसर में एकत्र रहते, डॉक्टर और अधिकारी खबरचियों और जिज्ञासुओं को उत्तर देते-देते हलाकान हो गए थे।
गज़ब तो तब हुआ जब प्रधान मंत्री ने संसद में उनके देहावसान की खबर दे दी, जबकि वे मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे। वस्तुस्थिति जानते ही अस्पताल में उमड़ती भीड़ और जनाक्रोश सम्हालना कठिन हो गया। प्रशासन को अपनी भूल विदित हुई तो उसके हाथ-पाँव ठन्डे हो गए। गनीमत हुई कि उनके एक अनुयायी जो स्वयं भी प्रभावी नेता थे, वहां उपस्थित थे, उन्होंने तत्काल स्थिति को सम्हाला, प्रधान मंत्री से बात की, संसद में गलत सूचना हेतु प्रधानमंत्री ने क्षमायाचना की।
धीरे-धीरे संकट टला.… आंशिक स्वास्थ्य लाभ होते ही वे फिर सक्रिय हो गए, सम्पूर्ण क्रांति और जनकल्याण के कार्यों में। बार-बार डायलिसिस की पीड़ा सहता तन शिथिल होता गया पर उनकी अदम्य जिजीविषा उन्हें सक्रिय किये रही। तन बाधक बनता पर मन कहता मैं नहीं हो सकता साँसों का कैदी।
***
४. गुरु जी
*
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है, क्या आप मुझे शिष्य बना नहीं सिखायेंगे?
बार-बार अनुरोध होने पर न स्वीकारने की अशिष्टता से बचने के लिए सहमति दे दी। रचनाओं की प्रशंसा, विधा के विधान आदि की जानकारी लेने तक तो सब कुछ ठीक रहा।
एक दिन रचनाओं में कुछ त्रुटियाँ इंगित करने पर उत्तर मिला- 'खुद को क्या समझते हैं? हिम्मत कैसे की रचनाओं में गलतियाँ निकालने की? मुझे इतने पुरस्कार मिल चुके हैं। फेस बुक पर जो भी लिखती हूँ सैंकड़ों लाइक मिलते हैं। मेरी लिखे में गलती हो ही नहीं सकती। आइंदा ऐसा किया तो...'
आगे पढ़ने में समय ख़राब करने के स्थान पर शिष्या को ब्लोक कर चैन की सांस लेते कान पकड़े कि अब नहीं बनेंगे किसी के गुरु। ऐसों को गुरु नहीं गुरुघंटाल ही मिलने चाहिए।
***
त्वरित प्रतिक्रिया
कृष्ण-मृग हत्याकांड
*
मुग्ध हुई वे हिरन पर, किया न मति ने काम।
हरण हुआ बंदी रहीं, कहा विधाता वाम ।।
*
मुग्ध हुए ये हिरन पर, मिले गोश्त का स्वाद।
सजा हुई बंदी बने, क्यों करते फ़रियाद?
*
देर हुई है अत्यधिक, नहीं हुआ अंधेर।
सल्लू भैया सुधरिए, अब न कीजिए देर।।
*
हिरणों की हत्या करी, चला न कोई दाँव।
सजा मिली तो टिक नहीं, रहे जमीं पर पाँव।।
*
नर-हत्या से बचे पर, मृग-हत्या का दोष।
नहीं छिप सका भर गया, पापों का घट-कोष।।
*
आहों का होता असर, आज हुआ फिर सिद्ध।
औरों की परवा करें, नर हो बनें न गिद्ध।।
*
हीरो-हीरोइन नहीं, ख़ास नागरिक आम।
सजा सख्त हो तो मिले, सबक भोग अंजाम ।।
*
अब तक बचते रहे पर, न्याय हुआ इस बार।
जो छूटे उन पर करे, ऊँची कोर्ट विचार।।
*
फिर अपील हो सभी को, सख्त मिल सके दंड।
लाभ न दें संदेह का, तब सुधरेंगे बंड।।
*
न्यायपालिका से विनय करें न इतनी देर।
आम आदमी को लगे, होता है अंधेर।।
*
सरकारें जागें न दें, सुविधा कोई विशेष।
जेल जेल जैसी रहे, तनहा समय अशेष।।
६.४.२०१८
***
एक गीत-
अपने सपने कहाँ खो गये?
*
तुमने देखे,
मैंने देखे,
हमने देखे।
मिल प्रयास कर
कभी रुदन कर
कभी हास कर।
जाने-अनजाने, मन ही मन, चुप रह लेखे।
परती धरती में भी
आशा बीज बो गये।
*
तुमने खोया,
मैंने खोया ,
हमने खोया।
कभी मिलन का,
कभी विरह का,
कभी सुलह का।
धूप-छाँव में, नगर-गाँव में पाया मौक़ा।
अंकुर-पल्लव ऊगे
बढ़कर वृक्ष हो गये।
*
तुमने पाया,
मैंने पाया,
हमने पाया।
एक दूजे में,
एक दूजे कोको,
गले लगाया।
हर बाधा-संकट को, जीता साथ-साथ रह।
पुष्पित-फलित हुए तो
हम ही विवश हो गये।
***
हाइकु मुक्तिका-
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी
मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलक,र एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी
गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन मन,-रञ्जनकारी
भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी
भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी
पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
(वार्णिक हाइकु छन्द ५-७-५)
६.४.२०१६
***
नवगीत:
.
मत बंदी नवगीत को करो
.
आम आदमी समझ न पाए
ऐसे शब्द न जन को भाये.
सरल-सहज भाषा-शैली हो
अलंकार मन-चित्त रमाये.
बिम्ब-प्रतीक यथा आवश्यक,
लय-रस-छंद साधना दुष्कर
जिन्हें न साध्य हो सका संयम
औरों को अक्षम बतलाये.
कानी अपनी टेंट न देखे
रहे और पर दृष्टि गड़ाये.
दम्भ कुएँ का मेंढक पाले
जहँ-तहँ कूद छलांग लगाये
मत 'जड़ है', नवगीत को कहो
.
बहता पानी रहे निर्मला
जो रुकता वह सड़ता जाए.
पाँच दशक पहले की भाषा
कैद न नवगीतों को भाये.
स्वागत रचनाकार नए का
अदा पुरानी मत दुहराये.
अपना कथ्य भाव अनुभूति
निज शब्दों-शैली में गाये.
शिशु घुटनों-बल चलना सीखे
ऊँची कूद न उसको भाये.
लंबी कूद लगानेवाले
गिरी-शिखरों पर कब चढ़ पाये.
निज मुँह मिट्ठू आप मत बनो
.
दावा मठाधीश होने का
बार-बार नाहक दोहराये.
व्यर्थ श्रेष्ठता- नवोदितों की
भूल न यदि मिल ठीक कराये.
तुकबन्दी अपने गीतों में
रख, औरों को हीन बताये
ऐसे दोहरे आचरणों को
नवता का प्रतिमान बनाये
फल तजकर नवगीत, गजल की
जय-जय नयी कलम नित गाये
गजलकार को गीतकार का
पुरस्कार-सम्मान दिलाये
नवगीतों में नवता से इंकार मत करो
६.४.२०१५
...
एक दोहा
सगा कह रहे सब मगर, सगा न पाया एक
हैं अनेक पर एक भी, अब तक मिल न नेक
६.४.२०१०

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