बाङ्ग्ला-हिंदी भाषा सेतु:
पूजा गीत
रवीन्द्रनाथ ठाकुर
*
जीवन जखन छिल फूलेर मतो
पापडि ताहार छिल शत शत।
बसन्ते से हत जखन दाता
रिए दित दु-चारटि तार पाता,
तबउ जे तार बाकि रइत कत
आज बुझि तार फल धरेछे,
ताइ हाते ताहार अधिक किछु नाइ।
हेमन्ते तार समय हल एबे
पूर्ण करे आपनाके से देबे
रसेर भारे ताइ से अवनत।
*
पूजा गीत: रवीन्द्रनाथ ठाकुर
हिंदी काव्यानुवाद : संजीव
*
फूलों सा खिलता जब जीवन
पंखुरियां सौ-सौ झरतीं।
यह बसंत भी बनकर दाता
रहा झराता कुछ पत्ती।
संभवतः वह आज फला है
इसीलिये खाली हैं हाथ।
अपना सब रस करो निछावर
हे हेमंत! झुककर माथ।
*
८-५-२०१४
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 8 मई 2021
बाङ्ग्ला-हिंदी भाषा सेतु: पूजा गीत रवीन्द्रनाथ ठाकुर
चिप्पियाँ Labels:
पूजा गीत,
बाङ्ग्ला-हिंदी,
रवीन्द्रनाथ ठाकुर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें