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रविवार, 26 अप्रैल 2020

मुक्तक और मुक्तिका

मुक्तक और मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल
*
हिंदी काव्य में वे समान पदभार के वे छंद जो अपने आप में पूर्ण हों अर्थात जिनका अर्थ उनके पहले या बाद की पंक्तियों से संबद्ध न हो उन्हें मुक्तक छंद कहा गया है। इस अर्थ में दोहा, रोला, सोरठा, उल्लाला, कुण्डलिया, घनाक्षरी, सवैये आदि मुक्तक छंद हैं।
कालांतर में चौपदी या चतुष्पदी (चार पंक्ति की काव्य रचना) को मुक्तक कहने का चलन हो गया। इनके पदान्तता के आधार पर विविध प्रकार हैं।  १. चारों पंक्तियों का समान पदांत -
हर संकट को जीत 
विहँस गाइए गीत
कभी न कम हो प्रीत
बनिए सच्चे मीत   (ग्यारह मात्रिक पद)
२. पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति का समान तुकांत -
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें  (तेरह मात्रिक पद)
३. पहली-दूसरी पंक्ति का एक तुकांत, तीसरी-चौथी पंक्ति का भिन्न तुकांत -
चूं-चूं करती है गौरैया
सबको भाती है गौरैया
चुन-चुनकर दाना खाती है
निकट गए तो उड़ जाती है  (सोलह मात्रिक)
४. पहली-तीसरी-चौथी पंक्ति का समान तुकांत -
भारत की जयकार करें
दुश्मन की छाती दहले
देश एक स्वीकार करें
ऐक्य भाव साकार करें  (चौदह मात्रिक)
५. पहली-दूसरी-तीसरी पंक्ति का समान तुकांत -
भारत माँ के बच्चे 
झूठ न बोलें सच्चे
नहीं अकल के कच्चे
बैरी को मारेंगे         (बारह मात्रिक)
६. दूसरी, तीसरी, चौथी पंक्ति की समान तुक -
नेता जी आश्वासन फेंक
हर चुनाव में जाते जीत 
धोखा देना इनकी रीत
नहीं किसी के हैं ये मीत   (पंद्रह मात्रिक)
७. पहली-चौथी पंक्ति की एक तुक दूसरी-तीसरी पंक्ति की दूसरी तुक -
रात रानी खिली
मोगरा हँस दिया  
बाग़ में ले दिया
आ चमेली मिली   (दस मात्रिक)
८. पहली-तीसरी पंक्ति की एक तुक, दुसरी-चौथी पंक्ति की अन्य तुक -
होली के रंग
कान्हा पे डाल
राधा के संग
गोपियाँ निहाल  (नौ मात्रिक)
*
इनमें से दूसरे प्रकार के मुक्तक अधिक लोकप्रिय हुए हैं ।
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें
यह तेरह मात्रिक मुक्तक है।
इसमें तीसरी-चौथी पंक्ति की तरह पंक्तियाँ जोड़ें -
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें
प्रगति देखकर अन्य की
द्वेष अग्नि में मत दहें
पीर पराई बाँट लें
अपनी चुप होकर सहें
याद प्रीत की ह्रदय में
अपने हरदम ही तहें
*
यह मुक्तिका हो गयी। इस शिल्प की कुछ रचनाओं को ग़ज़ल, गीतिका, सजल, तेवरी आदि भी कहा जाता है।

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