मुक्तिका:
संजीव
.
चल रहे पर अचल हैं हम
गीत भी हैं, गजल हैं हम
संजीव
.
चल रहे पर अचल हैं हम
गीत भी हैं, गजल हैं हम
आप चाहें कहें मुक्तक
नकल मत कह, असल हैं हम
नकल मत कह, असल हैं हम
हैं सनातन, चिर पुरातन
सत्य कहते नवल हैं हम
सत्य कहते नवल हैं हम
कभी हैं बंजर अहल्या
कभी बढ़ती फसल हैं हम
कभी बढ़ती फसल हैं हम
मन-मलिनता दूर करती
काव्य सलिला धवल हैं हम
काव्य सलिला धवल हैं हम
जो न सुधरी आज तक वो
आदमी की नसल हैं हम
आदमी की नसल हैं हम
गिर पड़े तो यह न सोचो
उठ न सकते निबल हैं हम
उठ न सकते निबल हैं हम
ठान लें तो नियति बदलें
धरा के सुत सबल हैं हम
धरा के सुत सबल हैं हम
'सलिल' कहती हमें दुनिया
जानते 'संजीव' हैं हम
२३-४-२०१५
***
जानते 'संजीव' हैं हम
२३-४-२०१५
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें