मुक्तक:
संजीव
*
हम एक हों, हम नेक हों, बल दो हमें जगदंबिके!
नित प्रात हो; हम साथ हों नत माथ हो जगवंदिते!!
नित भोर भारत-भारती वर दें हमें सब हों सुखी
असहाय के प्रति हों सहायक हो न कोई भी दुखी
*
मत राज्य दो मत स्वर्ग दो मत जन्म दो हमको पुन:
मत नाम दो मत दाम दो मत काम दो हमको पुन:
यदि दो हमें बलिदान का यश दो, न हों जिन्दा रहें
कुछ काम मातु! न आ सके नर हो, न शर्मिंदा रहें
*
तज दे सभी अभिमान को हर आदमी गुणवान हो
हँस दे लुटा निज ज्ञान को हर लेखनी मतिमान हो
तरु हों हरे वसुधा हँसे नदियाँ सदा बहती रहें-
कर आरती माँ भारती! हम हों सुखी रसखान हों
*
फहरा ध्वजा हम शीश को अपने रखें नत हो उठा
मतभेद को मनभेद को पग के तले कुचलें बिठा
कर दो कृपा वर दो जया! हम काम भी कुछ आ सकें
तव आरती माँ भारती! हम एक होकर गा सकें
*
[छंद: हरिगीतिका, सूत्र: प्रति पंक्ति ११२१२ X ४]
***
२२-४-२०१५
संजीव
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हम एक हों, हम नेक हों, बल दो हमें जगदंबिके!
नित प्रात हो; हम साथ हों नत माथ हो जगवंदिते!!
नित भोर भारत-भारती वर दें हमें सब हों सुखी
असहाय के प्रति हों सहायक हो न कोई भी दुखी
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मत राज्य दो मत स्वर्ग दो मत जन्म दो हमको पुन:
मत नाम दो मत दाम दो मत काम दो हमको पुन:
यदि दो हमें बलिदान का यश दो, न हों जिन्दा रहें
कुछ काम मातु! न आ सके नर हो, न शर्मिंदा रहें
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तज दे सभी अभिमान को हर आदमी गुणवान हो
हँस दे लुटा निज ज्ञान को हर लेखनी मतिमान हो
तरु हों हरे वसुधा हँसे नदियाँ सदा बहती रहें-
कर आरती माँ भारती! हम हों सुखी रसखान हों
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फहरा ध्वजा हम शीश को अपने रखें नत हो उठा
मतभेद को मनभेद को पग के तले कुचलें बिठा
कर दो कृपा वर दो जया! हम काम भी कुछ आ सकें
तव आरती माँ भारती! हम एक होकर गा सकें
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[छंद: हरिगीतिका, सूत्र: प्रति पंक्ति ११२१२ X ४]
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२२-४-२०१५
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