गीत
हे समय के देवता!
संजीव 'सलिल'
*
हे समय के देवता!
गर दे सको वरदान दो तुम...
*
श्वास जब तक चल रही है,
आस जब तक पल रही है
अमावस का चीरकर तम-
प्राण-बाती जल रही है.
तब तलक रवि-शशि सदृश हम
रौशनी दें तनिक जग को.
ठोकरों से पग न हारें-
करें ज्योतित नित्य मग को.
दे सको हारे मनुज को,
विजय का अरमान दो तुम.
हे समय के देवता!
गर दे सको वरदान दो तुम...
*
नयन में आँसू न आये,
हुलसकर हर कंठ गाये.
कंटकों से भरे पथ पर-
चरण पग धर भेंट आये.
समर्पण विश्वास निष्ठा
सिर उठाकर जी सके अब.
मनुज हँसकर गरल लेकर-
शम्भु-शिववत पी सकें अब.
दे सको हर अधर को
मुस्कान दो, मधुगान दो तुम..
हे समय के देवता!
गर दे सको वरदान दो तुम...
*
सत्य-शिव को पा सकें हम
गीत सुन्दर गा सकें हम.
सत-चित-आनंद घन बन-
दर्द-दुःख पर छा सकें हम.
काल का कुछ भय न व्यापे,
अभय दो प्रभु!, सब वयों को.
प्रलय में भी जयी हों-
संकल्प दो हम मृण्मयों को.
दे सको पुरुषार्थ को
परमार्थ की पहचान दो तुम.
हे समय के देवता!
गर दे सको वरदान दो तुम...
१९८४
*
संजीव
९४२५१८३२४४
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