कुल पेज दृश्य

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कविता - मांडवी - मो.अहसान

मांडवी
मो. अहसान 
*
तुम समुद्र का ' बैकवाटर ' भी हो
हर नदी सागर में गिरती है
मगर सागर तुम्हारी ओर दौड़ता है ;
मेरी कुछ मुश्किलें हैं
न जाने कितनी शक्लें
कितने चेहरे
चकराते रहते हैं ;
स्मृति की हर सरिता मन के सागर में ही गिरती है,
मन घबरा जाता है,
मन के पास तुम्हारे जैसा कोई बैकवाटर नहीं
जहां कुछ शेष स्मृतियाँ , वह
कुछ दिन संचित कर दे

-नीम का पेड़
गोवा, १७-४-२००३

कोई टिप्पणी नहीं: