ॐ
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल
छंद सलिला:
प्लवंगम् छंद
संजीव
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छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ८-१३।
लक्षण छंद:
प्लवंगम् में / रगण हो सदा अन्त में
आठ - तेरह न / भूलें यति हो अन्त में
आरम्भ करे / गुरु- लय न कभी छोड़िये
जीत लें सभी / मुश्किलें मुँह न मोड़िए
उदाहरण:
१. मुग्ध उषा का / सूरज करे सिंगार है
भाल सिंदूरी / हुआ लाल अंगार है
माँ वसुधा नभ / पिता-ह्रदय बलिहार है
बंधु नाचता / पवन लुटाता प्यार है
२. राधा-राधा / जपते प्रति पल श्याम ज़ू
सीता को उर / धरते प्रति पल राम ज़ू
शंकरजी के / उर में उमा विराजतीं
ब्रम्ह - शारदा / भव सागर से तारतीं
३. दादी -नानी / कथा-कहानी गुमे कहाँ?
नाती-पोतों / बिन बूढ़ा मन रमें कहाँ?
चंदा मामा / गुमा- शेष अब मून है
चैट-ऐप में फँसा बाल-मन सून है
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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