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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

बुंदेली कहानी सुमनलता श्रीवास्तव

बुंदेली कहानी
मस्त रओ मस्ती में
सुमनलता श्रीवास्तव
*
मुतके दिना की बात है। कहूँ दूर-दराज एक गाँव में एक ठो धुनका हतो।
का कई ? धुनका का होत है, नई मालुम?
कैंसें मालूम हुउहै? तुम औरें तो बजार सें बनें-बनायें गद्दा, तकिया ले लेत हो।
मनो पुराने समै में जे गद्दा-तकिया कारखानों में नें बनत हते।
किसान खेत में कपास के पौधे लगात ते।
बे बड़े होंय तो बिनमें बोंड़ी निकरत हतीं।
फेर बोंड़ी खिलत तीं तो फूल बनत तीं।
बिनमें सें बगुला के पर घाईं सुफेद-सुफेद कपास झाँकत ती।
तब खेतान की सोभा बहुतई नीकी हो जात ती।
का बताएँ, जैसे आसमान मा तारे बगर जात हैं अमावास की रात में, बिलकुल ऊंसई।
घरवाली मुतियन को हार पैंने हो और हार टूट जाए तो बगरते भए मोती जैसें लगत हैं, ऊंसई।
जा बी कै सकत हों जब घरवाली खुस हो खें खिलखिला देय तो मोतिन कैसें दांत झिलमिलात हैं, ऊंसई।
नें मानो तो कबू कौनऊ समै हमरे लिंगे चलियो जब खेत मा कपास हो।
देख खें खुदई मान जैहो के हम गलत नईं कहत हते।
तो जा कपास खेत सें चुन लई जात ती।
मेहरारू इकट्ठी होखें रुई चुनत जाबें और गीत सोई गात जात तीं।
बे पुरानी धुतिया फाड़ खें एक छोर कान्धा के ऊपर सें और दूसर छोर कान्धा के नीचें से निकार कर गठिया लेत तीं।
ऐंसे में पीठ पे थैलिया घाईं बन जात ती।
बे दोऊ हातन सें रुई चुनत जात तीं और पीठ पे थैलिया में रखत जात तीं।
हरे-हरे खेतन में लाल-पीरी धुतियाँ में मेहरारुओं के संगे सुफेद-सुफेद कपास बहुतई सुहात ती।
बाड़ी में रंग-बिरंगे फूलन घाईं नीकी-नीकी।
बिन खों हेर खें तबियत सोई खिल जात ती।
तुम पूछत ते धुनका को कहात ते?
जे रुई इकट्ठी कर खें जुलाहे खों दै दई जात ती।
जुलाहा धुनक-धुनक खें रुई से बिनौला निकार देत तो।
अब तुम औरें पूछिहो जा बिनौला का होत है?
जाई तो मुसकिल है तुम औरों के सँग।
कैत हो अंग्रेजी इस्कूल जात हो।
जातई भरे हो, कें कच्छू लिखत-पढ़त हो।
ऐंसी कैंसी पढ़ाई के तुमें कछू पतई नईया।
चलो, बता देत हैं, बिनौला कैत हैं रुई के बीजा खों।
बिनौला करिया-करिया, गोल-गोल होत है।
बिनौला ढोर-बछेरन खों खबाओ जात है।
गैया-भैंसिया बिनोरा खा खें मुताको दूद देत हैं, सो बी एकदम्म गाढ़ा-गाढ़ा।
हाँ तो का कहत हते?... हाँ याद आ गओ धुनका
रुई सें बिनौला निकार खें धुनका ओ खें धुनक-धुनक खें एक सार करत तो।
फेर दरजी सें पलंगा खे नाप को खोल सिला खें, जमीन पे बिछा देत तो।
जे खोल के ऊपर रुई बिछाई जात ती।
पीछे सें धीरे-धीरे एक कोंने से खोल पलटा दौ जात तो।
आखर में रुई पूरे खोल कें अंदर बिछ जात ती।
फिर बड़े-बड़े सूजा में मोटा तागा पिरो खें थोड़ी-थोड़ी दूर पै टाँके लगाए जात ते।
टंकाई खें बाद गद्दा भौत गुलगुला हो जात तो।
तुम सहरबारे का जानो ऐंसें गद्दा पे लोट-पॉपोट होबे में कित्तो मजा आउत है?
हाँ तो, हम कैत हते कि गाँव में धुनका रैत तो।
बा धुनका बहुतई ज्यादा मिहनती और खुसमिजाज हतो।
काम सें काम, नईं तो राम-राम।
ना तीन में, ना तेरा में। ना लगाबे में, ना बुझाबे में।
गाँव के लोग बाकी खूब प्रसंसा करत ते।
मनो कछू निठल्ले, मुस्टंडे बासे खूबई खिझात ते।
काय के बिन्खे बऊ - दद्दा धुनिया ना नांव लै-लै के ठुबैना देत ते।
कछू सीखो बा धुनिया सें, कैसो सुबे सें संझा लौ जुतो रैत है अपनें काम में।
जे मुस्टंडे कोसिस कर-कर हार गए मनो धुनिया खों ओ के काम सें नई डिंगा पाए।
आखिर में बे सब धुनिया खों 'चिट्टा कुक्कड़' कह खें चिढ़ान लगे।
का भओ? धुनिया अपने काम में भिड़ो रैत तो।
रुई धुनकत-धुनकत, रुई के रेसे ओके पूरे बदन पे जमत जात ते।
संझा लौ बा धुनिया भूत घाईं चित्तो सुफेद दिखन लगत तो।
रुई निकारत समाई ओखे तांत से मुर्गे की कुकड़ कूँ घाईं आवाज निकारत हती।
कछू दिना तो धुनिया नेब चिढ़ाबेबारों को हडकाबे की कोसिस करी।
मनो बा समज गओ के जे सब ऑखों ध्यान काम सें हटाबें की जुगत है।
सो ओनें इन औरन पे ध्यान देना बंद कर दौ।
ओ हे हमेसा खुस देख कें लोग-बाग़ पूछत हते के बाकी कुसी को राज का आय?
पैले तो बो सुन खें भी अनसुना कर देत तो।
कौनऊ भौत पीछे पारो तो कए तुमई कओ मैं काए काजे दुःख करों?
राम की सौं मो खों कछू कमी नईया।
दो टैम रोटी, पहनबे-रहबे खों कपरा और छत।
करबे को काम और लेबे को को राम नाम।
एक दिना कोऊ परदेसी उतई सें निकरो।
बा कपड़ा-लत्ता सें अमीर दिखत तो मनो खूबी दुखी हतो।
कौनऊ नें उसें धुनिया के बारे में कै दई।
बा नें आव देखो नें ताव धुनिया कें पास डेरा जमा दओ।
भैया! आज तो अपनी खुसी का राज बाताये का परी।
मरता का न करता? दुनिया कैन लगो एक दिना मोरी तांत का धनुस टूट गओ।
मैं जंगल में एक झाड खों काटन लगो के लडकिया सें तांत बना लैहों।
तबई कछू आवाज सुनाई दई 'मतई काटो'।
इतै-उतै देखो कौनऊ नें हतो।
सोची भरम हो गाओ, फिर कुल्हाड़ी हाथ में लै लई।
जैसेई कुल्हाड़ी चलाई फिर आवाज़ आई।
तब समझ परी के जे तो वृच्छ देवता कछू कै रए हैं।
ध्यान सें सुनी बे कैत ते मोए मत काट, मोए मात काट।
मैंने कई महाराज नै काटों तो घर भर खों पेट कैसें भरहों।
बे बोले मो सें कछू बरदान ले लेओ।
मोए तो कछू ने सूझी के का ले लेऊँ?
तुरतई बता दई के मोहे कछू नें सुझात।
बिननें कई कौनऊ बात नैया, घरबारी सें पूछ आ।
मैं चल परो, रस्ते में एक परोसी मिल गओ।
काए, का हो गओ? ऐंसी हदबद में किते भागो जा रओ।
मो सें झूठ कैत नें बनी सो सच्ची बात बता दई।
बाने मो सें कई जा राज-पाट माँग ले।
मनो घरवारी नें राज-पाट काजे मनाही कर दई।
बा बोली राज-पाट मिल जैहे तो तैं चला लेहे का?
तोहे तो रुई धुननें के सिवाय कछू काम नई आत।
ऐसो कर दुगानो काम हो खें दुगनो धन आये ऐसो बर माँग।
मोखों घरवारी की बात जाँच गई।
मैंने वृच्छ देवता सें कई तो बिनने मेरे चार हात कर दए।
मैं खुस होखें घर आओ तो बाल-बच्चन नें मोहे भूत समज लओ।
पुरा-परोसी सबी देख खें डरान लगे।
मोहे जो देखे बई किवार लगा ले।
मैं भौतई दुखी हतो, इतै-उतै बागत रओ, मनो कोई नें पानी को नई पूछो।
तब मोखों समज परी के जिनगानी में खुसी सबसे बरी चीज है।
खुसी नें हो तो धन-दौलत को कोनऊ मानें नईयाँ।
बस मैनें तुरतई वृच्छ देवता की सरन लई। १०१
बिनखें हाथ जोरे देवता किरपा करो, चार हात बापस कर लेओ।
मोए कछू ने चाईए, मैं पुराणी तांत के मरम्मत कर लेंहों।
आसिरबाद दो राजी-खुसी से जिनगानी बीत जाए।
वृच्छ देबता ने मोसें दो हात बापस ले लए।
कई जा तोहे कौनऊ चीज की कमी न हुईहै।
कौनऊ सें ईर्ष्या नें करियो, अपनें काम सें काम रखियो।
तबई सें महाराज मैं जित्तो कमात हूँ, उत्तई में खुस रहत हूँ।
कौनऊ सें कबऊ कछू नई मांगू।
कौऊ खें कछू तकलीफ नई देऊँ।
कौनऊ खें ज्यादा मिल जाए तो ऊ तरफी से आँख फेर लेत हूँ।
आप जी चाहो सो समझ लेओ, मैं वृच्छ देवता से मिले मन्त्र को कबऊँ नई भूलो।
आप भी समज लेओ और अपना लेओ 'मस्त रओ मस्ती में '
***

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