लघुकथा :
कारण
अभियंता अरुण भटनागर, जबलपुर
*
रजनीश एक प्रायवेट इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र था। वह अपने घर से कालेज जा रहा था, अचानक ट्रेफिक जाम हो गया। उस भीड़ में उसने अपने सामने स्कूटी पर एक सरल लड़की को देखा जो सहज भाव से मुस्कुरा कर बार बार पीछे मुड़कर सबको देखती जा रही थी और स्कूटी भी चलाती जा रही थी।
भीड़ छटी तो उस लड़की ने अपनी स्कूटी की गति कुछ तेज कर दी पर बार बार पीछे मुड़कर सबको मुस्कराकर देखने का उसका सिलसिला टूट ही नहीं रहा था। रजनीश को उसकी मुस्कराहट में कुछ खिंचाव सा लगा तो उसने जब उसकी गाड़ी उस लड़की की स्कूटी के बिल्कुल करीब पहुंची तो परिचय बढ़ाने का साहस किया और कुछ पूछा।
लड़की ने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बार बार पीछे पलटकर मुस्कराकर देखने के सिवा और सम्मान्य रूप से अपनी स्कूटी चलाती रही। रजनीश को लगा वह कुछ कहना चाह रही है पर कुछ कह नहीं पा रही है। रजनीश उसके पीछे-पीछे हो लिया, लड़की का पलट-पलटकर मुस्कराकर देखने का क्रम जारी था।
करीब तीन किलोमीटर जाने के बाद लड़की मुस्करा कर एक गेट के भीतर घुस गयी। रजनीश ने गेट पर लगे बोर्ड को ध्यान से पढ़ा। उस पर बड़े बड़े अक्षरों में अंध, मूक, बधिर स्कूल लिखा हुआ था।रजनीश वापिस लौट पड़ा, उसे ज्ञात हो गया था लड़की के असामान्य आचरण का कारण।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें