कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 26 मार्च 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
सुधियाँ तुम्हारी जब तहें
अमृत-कलश तब हम गहें
श्रम दीप मंज़िल ज्योति हो
कोशिश शलभ हम मत दहें
बन स्नेह सलिला बिन रुके
नफरत मिटा बहते रहें
लें चूम सुमुखि कपोल जब
संयम किले पल में ढहें
कर काम सब निष्काम हम
गीता न कहकर भी कहें
*
संजीव
२६-३-२०२०
९४२५१८३२४४

कोई टिप्पणी नहीं: