निमाड़ी दोहा:
संजीव 'सलिल'
*
जिनी वाट मंs झाड नी, उनी वांट की छाँव.
नेह मोह ममता लगन, को नारी छे ठाँव..
*
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, सबको इसकी फ़िक्र।। दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
संजीव 'सलिल'
*
जिनी वाट मंs झाड नी, उनी वांट की छाँव.
नेह मोह ममता लगन, को नारी छे ठाँव..
*
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, सबको इसकी फ़िक्र।। दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें