याद तुम्हारी
*
याद तुम्हारी नेह नर्मदा
आकर देती है प्रसन्नता
हर लेती है हर विपन्नता
याद तुम्हारी है अखण्डिता
सह न उपेक्षा हो प्रचंडिता
शुचिता है साकार वन्दिता
याद तुम्हारी आदि अमृता
युग युग पुजती हो समर्पिता
अभिनंदित हो आत्म अर्पिता
*
संजीव
७-३-२०२०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें