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शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

अष्टक मात्रिक छंद

अभिनव प्रयोग:
पदांत बंधन मुक्त अष्ट मात्रिक वासव 
जातीय छंद 
संजीव 
पदादि यगण
विधाता नमन
न हारे कभी
हमारा वतन
सदा हो जयी
सजीला चमन
करें वंदना
दिशाएँ-गगन
*
२. पदादि मगण
जो बोओगे
वो काटोगे
जो बाँटोगे
वो पाओगे
*
चूं-चूं आई
दाना लाई
खाओ खाना
चूजे भाई
चूहों ने भी
रोटी पाई
बिल्ली मौसी
है गुस्साई
*
३. पदादि तगण
जज्बात नए
हैं घाट नए
सौगात नई
आघात नए
ऊगे फिर से
हैं पात नए
चाहें बेटे
हों तात नए
गायें हम भी
नग्मात नए
*
४. पदादि रगण
मीत आइए
गीत गाइए
प्रीत बाँटिए
प्रीत पाइए
नेह नर्मदा
जा नहाइए
जिंदगी कहे
मुस्कुराइए
बन्दगी करें
जीत जाइए
*
५. पदादि जगण
कहें कहानी
सदा सुहानी
बिना रुके ही
कमाल नानी
करें करिश्मा
कहें जुबानी
बुजुर्गियत भी
उम्र लुभानी
हुई किसी की
न राजधानी
*
६. पदादि भगण
हुस्न जहाँ है
इश्क वहाँ है
बोल-बताएँ
आप कहाँ हैं?
*
७. पदादि नगण
सुमन खिला है
गगन हँसा है
प्रभु धरती पर
उतर फँसा है
श्रम करता जो
सुफल मिला है
फतह किया क्या
व्यसन-किला है
८. पदादि सगण
हम हैं जीते
तुम हो बीते
जल क्या देंगे
घट हैं रीते?
सिसके जनता
गम ही पीते
कहता राजा
वन जा सीते
नभ में बादल
रिसते-सीते
***

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