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रविवार, 11 जनवरी 2015

laghukatha: anand pathak

लघुकथा:
गोली
आनंद पाठक
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" तुम ’राम’ को मानते हो ?-एक सिरफिरे ने पूछा
-"नहीं"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योकि मै उसकी सोच का हमसफ़ीर नहीं था और उसे स्वर्ग चाहिए था
"तुम ’रहीम’  को मानते हो ?"-दूसरे सिरफिरे ने पूछा
-"नही"- मैने कहा
उसने मुझे गोली मार दी क्योंकि मैं काफ़िर था और उसे जन्नत चाहिए थी।
" तुम ’इन्सान’ को मानते हो"- दोनो सिरफिरों ने पूछा
-हाँ- मैने कहा
फिर दोनों ने बारी बारी से मुझे गोली मार दी क्योंकि उन्हें ख़तरा था कि यह इन्सानियत का बन्दा कहीं  जन्नत या स्वर्ग न हासिल कर ले
 xx                       xxx                           xxx                      xxx

बाहर गोलियाँ चल रही हैं। मैं घर में दुबका बैठा हूँ ।घर से बाहर नहीं निकलता ।
 अब मेरी ’अन्तरात्मा’ ने मुझे गोली मार दी
मैं घर में ही मर गया ।

-आनन्द.पाठक-
09413395592

2 टिप्‍पणियां:

sanjiv ने कहा…

waah.. waah.. sashakt laghukatha. badhaaee.

आनन्द पाठक ने कहा…

आप का आभा्र ्शत शत