छंद सलिला:
कर सोलह सिंगार नवोढ़ा, सजना को तरसाती
दूर-दूर से झलक दिखाती, लेकिन हाथ न आती
जीभ चिढ़ाती कभी दिखाती, ठेंगा प्रिय खिसयाये तरस-तरस कह कह तरसाती, किंचित तरस न खाये 'दाग लगा' यह बोला उसने, 'सलिल'-धार मुँह धोया
'छोड़ो' छोड़ न कसकर थामे, छवि निरखे वह खोया
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बढ़े सैन्य दल एक साथ जब, दुश्मन थर्रा जाता
काँपे भय से निबल कलेजा, उसका मुँह को आता
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salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
सार छंद
संजीव
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(द्विपदिक मात्रिक छंद, मात्रा २८, १६ - १२ पर यति, पदांत २ गुरु मात्राएँ, उपनाम : ललित / दोवै / साकीं मराठी छंद)
सोलह बारह पर यति रखकर, द्विपदिक छंद बनायें
हों पदांत दो गुरु मात्राएँ, सार सुछंद सजायें
साकीं दोवै ललित नाम दे, कविगण रचकर गायें
घनानंद पा कविता प्रेमी, 'सलिल' संग मुस्कायें
*कर सोलह सिंगार नवोढ़ा, सजना को तरसाती
दूर-दूर से झलक दिखाती, लेकिन हाथ न आती
जीभ चिढ़ाती कभी दिखाती, ठेंगा प्रिय खिसयाये तरस-तरस कह कह तरसाती, किंचित तरस न खाये 'दाग लगा' यह बोला उसने, 'सलिल'-धार मुँह धोया
'छोड़ो' छोड़ न कसकर थामे, छवि निरखे वह खोया
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बढ़े सैन्य दल एक साथ जब, दुश्मन थर्रा जाता
काँपे भय से निबल कलेजा, उसका मुँह को आता
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Sanjiv verma 'Salil'salil.sanjiv@gmail.com
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