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गुरुवार, 14 नवंबर 2013

 छंद सलिला:
अग्र / सर्वगामी छंद
संजीव
*
(छंद विधान : ७ तगण + २ गुरु, द्विपदिक मात्रिक छंद)
*
ओ शारदे माँ!, हमें तार दे माँ!, दिखा बिम्ब सारे, सिखा छंद प्यारे।
ओ भारती माँ!, करें आरती माँ!, अलंकार धारे, लिखा गीत न्यारे।।
*
शब्दाक्षरों में, लिखा माँ भवानी!, युगों की कहानी, न देखी न जानी।
ओ मातु अंबे!, न कोरी कहानी, धरा-ज़िंदगानी, बना दे सुहानी।।
*
भावानुभावों, रसों भावनाओं, हसीं कल्पनाओं, सदा मुस्कुराओ।
खोओ न- पाओ, गुमा पा बचाओ, लुटाओ-भुलाओ, हँसो गीत गाओ।।
फूलों न भूलो, खिलो और झूमो, बसंती फ़िज़ाओं, न पर्दा गिराओ।
​घाटों न नावों, न बाज़ार भावों, ​उतारों-चढ़ावों,​ सदा संग पाओ।।
*​

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

8 टिप्‍पणियां:

Shriprakash Shukla yahoogroups.com ने कहा…

Shriprakash Shukla yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी,

अति सुंदर।
कृपया, छंद विधान विस्तार से समझाइये।

सादर

श्री

sanjiv ने कहा…

​यह द्विपदिक अर्थात दो पंक्तियों का छंद है. यह मात्रिक छंद है, इसकी रचना अथवा जाँच मात्राओं के आधार पर होती है. इसकी हर पंक्ति में ७ तगण (७ बार गुरु गुरु लघु ) + २ गुरु मात्राएँ होती हैं. पदांत में २ गुरु मात्राएँ हैं. हिंदी छंदों में गुरु को २ लघु से अथवा २ लघु को गुरु से बदलने का नियम नहीं है.

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'sa

Shriprakash Shukla ने कहा…

धन्यवाद आचार्यजी ।

sanjiv ने कहा…

आपका सदा स्वागत है आदरणीय

Kusum Vir ने कहा…

Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com

अति सुन्दर, आचार्य जीl
आपकी काव्य शक्ति को सादर नमनl
कुसुम वीर

- shyamalsuman@yahoo.co.in ने कहा…

- shyamalsuman@yahoo.co.in

छन्द बीच में सलिल या, सलिल स्वयं ही छन्द।
कला सीख ले गर सुमन, खुद आए मकरन्द।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

sn Sharma ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

आ० आचार्य जी ,
मुग्ध हूँ आपके द्वारा प्रस्तुत नए मात्रिक छन्द-विधान पर।
गा कर आनंद आ गया। संकोच के साथ जानना चाहता हूँ कि यदि "ओ मातु अंबे" के स्थान पर "ओ माँ भवानी" लिखा जाय तो प्रवाह में, गति-लय में कुछ अधिक खिले और
मात्राएँ सामान हैं। यह मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार जिज्ञासु विद्यार्थी की भाँति जानना चाहता हूँ।
प्रस्तुत दो पंक्तियों पर आपकी प्रतिक्रया और सम्भावित सुधार हेतु सुझाव अपेक्षित है। मात्राएँ मैंने गिनी नहीं बस प्रवाह में जैसा लगा लिख डाला।
वरद-हस्त पायें, करें कल्पनाएँ, रचें कविताएं, जो सभी गायें
मन में समायें, रूचि को बढ़ाएं, दुःख भूल जायें, चिरानन्द लायें
सादर
कमल

sanjiv ने कहा…



​कमल कुसुम श्री शुभ त्रयी, श्यामल छवि अनमोल ​
​सलिल निरख कर धन्य है, यश गाये बिन मोल ​
यश गाये बिन मोल, शारदा मातु सदय हों
श्वास-श्वास अक्षर पूजाकर, धन्य विलय हो
छंददेव कर कृपा दें सुमन सुमन-सुरभि भी
​पूर्वजन्म के सुकृत मिले हैं कमल कुसुम श्री ​


" ओ मातु अंबे " के स्थान पर " ओ माँ भवानी " लिखा जा सकता है चूँकि गण समान है.
गण सूत्र : 'यमाताराजभानसलगा' के प्रथम ८ अक्षरों के आधार पर ८ गण हैं जिन्हें उस अक्षर के साथ अगले दो अक्षर मिलाकर लघु-गुरु मात्राएँ निर्धारित होती हैं. तदनुसार यगण = यमाता = १२२, मगण = मातारा = २२२, तगण = ताराज = २२१, रगण = राजभा = २१२, जगण = जभान = १२१, भगण = भानस = २११, नगण = नसल = १११, सगण = सलगा = ११२ हैं.

अग्र / सर्वगामी छंद कि हर पंक्ति में ७ तगण (७ बार गुरु गुरु लघु ) + २ गुरु होना अनिवार्य है.
ओ मातु अंबे!, न कोरी कहानी, धरा-ज़िंदगानी, बना दे सुहानी।।
२ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २२
ओ माँ भवानी!, न कोरी कहानी, धरा-ज़िंदगानी, बना दे सुहानी।।
२ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २२

वरद-हस्त पायें, करें कल्पनाएँ, रचें कविताएं, जो सभी गायें
१११ २१ २२ १२ २१२२ १२ ११२२ २ १२ २२
मन में समायें, रूचि को बढ़ाएं, दुःख भूल जायें, चिरानन्द लायें
११ २ १२२ ११ २ १२२ ११ २१ २२ १२२१ २२
यहाँ तगण (ताराज = २२१) का ७ बार दुहराव नहीं हैं. आरम्भ में ही तगण नहीं है. प्रायः समान लय होने पर भी यह अग्र छंद नहीं है. निम्न की तरह चंद परिवर्तन करने से यह शुद्ध अगर छंद में लाया जा सकता है.

जो चाह पायें, करें कल्पनाएँ, रचें गीत गायें, सभी को लुभायें
२ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २२

गोदी समायें, सुखों को बढ़ायें, ग़मों को भुलायें, चिरानन्द पायें
२ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २ १ २ २
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
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