मुक्तिका:
ढाई आखर
संजीव 'सलिल'
*
ढाई आखर जिंदगी में पायेगा.
दर्द दिल में छिपा गर मुस्कायेगा..
मन न हो बेचैन, जग मत नैन रे.
टेरता कागा कि पाहुन आयेगा.
गाँव तो जड़ छोड़ जा शहरों बसा.
किन्तु सावन झूम कजरी गायेगा..
सारिका-शुक खोजते अमराइयाँ.
भीड़ को क्या नीड़ कोई भायेगा?
लिये खंजर हाथ में दिल मिल रहा.
सियासतदां क्या कभी शरमायेगा?
कौन किसका कब हुआ कोई कहे?
असच को सच देव समझा जाएगा.
'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा.
*****
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 20 जुलाई 2011
मुक्तिका: ढाई आखर संजीव 'सलिल'
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गीत; फिर आओ जा याचक द्वारे? संजीव 'सलिल'
गीत;
फिर आओ जा याचक द्वारे?
संजीव 'सलिल'
*
फिर आओ जा याचक द्वारे?...
कहत छंद कछु रचो-सुनाओ.
दर्द सहो चुप औ' मुस्काओ..
जौन कबीरा बसो हिया मां-
सोन न दो, कर टेर जगाओ.
सावन आओ कजरी गा रे...
जलधर-हलधर भेंटे भुजभर.
बीच हमारे अंतर गजभर.
मंतर फूँको, जंतर फूँको-
बाकी रहे न अंतर रजभर.
बन हरियाली मरु पर छा रे...
मंद छंद खों समझ न पावे.
चंद छन्द खों गले लगावे.
काव्य कामिनी टेर रही चुप-
कौन छंद खों हृदै बसावे.
ढाई आखर डूब-डूबा रे...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
फिर आओ जा याचक द्वारे?
संजीव 'सलिल'
*
फिर आओ जा याचक द्वारे?...
कहत छंद कछु रचो-सुनाओ.
दर्द सहो चुप औ' मुस्काओ..
जौन कबीरा बसो हिया मां-
सोन न दो, कर टेर जगाओ.
सावन आओ कजरी गा रे...
जलधर-हलधर भेंटे भुजभर.
बीच हमारे अंतर गजभर.
मंतर फूँको, जंतर फूँको-
बाकी रहे न अंतर रजभर.
बन हरियाली मरु पर छा रे...
मंद छंद खों समझ न पावे.
चंद छन्द खों गले लगावे.
काव्य कामिनी टेर रही चुप-
कौन छंद खों हृदै बसावे.
ढाई आखर डूब-डूबा रे...
*
Acharya Sanjiv Salil
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POEMS : DR. MAHENDRA BHATNAGAR
POEMS : DR. MAHENDRA BHATNAGAR
[1] TO STARS
Why do the stars shiver in the sky?
Are their feet chained?
Restrained breaths are suffocated,
Do they also face oppression by weapons?
Are they too scorched by the fire of exploitation, every moment?
They look tortured, perturbed, weak.
Some, simply shiver,
Some are shooting, measuring the limit of the sky!
Are the worldly people at guilty?
In life’s dreams — of happiness and sadness,
while the world is sleeping, unconscious,
And is encircled from head to feet
in the cover of night,
Feeling bored in loneliness,
When every particle is sad and heavy-hearted,
Whom they are cursing then?
Is shivering their only life?
Appearing happy down the ages,
Is their youth perpetual?
Falling, hiding continuously
Are they playing hide and seek?
Sowing vine of nectar like affection, and
laughing, stirring together instinctively
in their own world!
Ä
[2] DARKNESS-FELLOW STARS
Stars are the perpetual partners of deep darkness!
When bright new dawn descends
the grimy night departs
They, too, silently go
with their bag and baggage somewhere!
Seeing the fascinating evening near
The eternal indestructible moon rises
They also return; though kept hidden in the sky
throughout the day!
When dense darkness covers the day
These numerous stars come and surround the sky,
They want the extinguishing extinction
of the full moonlight!
The affectionate union of light and darkness
Denotes the cheer and pains of life,
The life becomes happy when
rise with fall and laughter with tears mingle together!
Ä
[3] THE WAKING STARS
The stars awake at midnight!
When all habitants —
humans, trees, animals, birds — of the world sleep!
The stars awake at midnight!
They remain vigilant like watchmen
And say fables to each other, silently
Oh, not feeling drowsy even a moment
They sparkled and flashed!
The stars awake at midnight!
The jingling voice of the cricket and,
Wailing voice of the distressed woman, too,
Become fusioned in the free wind,
reaching the doors of the fickle stars!
The stars awake at midnight!
Slumber comes equipped with its army
and says, “Dear ! take a nap!”
so that I seize all your glamour;
but they don’t surrender to such temptation!
The stars awake at midnight!
All night they twinkle without being dim,
Never closed their eye-doors,
Never attained dreams of life,
Poor helpless!
Remained aloof from pleasures and pain!
The stars awake at midnight!
Ä
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Poems
man ranjan:
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ट्रांसलिटरेशन (लिप्यंतरण) विधि से हिन्दी में टाइप करने का सर्वोत्तम टूल
Posted: 19 Jul 2011 12:49 AM PDT
ट्रांसलिटरेशन (लिप्यंतरण) विधि में यूनिकोड-हिन्दी में लिखने वाले लोगों के लिए एक खुशख़बरी है। माइक्रोसाफ्ट ने आईएलआईटी (इंडिक लैंग्वेज इनपुट टूल) नाम से अपना एक उत्पाद ज़ारी किया है, जिसके वेब (केवल ऑनलाइन इस्तेमाल के लिए) और डेस्टटॉप (माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ में किसी भी अनुप्रयोग में ऑफलाइन तथा ऑनलाइन प्रयोग के लिए) दोनों ही संस्करण उपलब्ध हैं। इस टूल में उन सभी समस्याओं से छूटकारा पा लिया गया है जो गूगल आईएमई टूल में मौज़ूद हैं। इस टूल की मदद से हिन्दी के अलावा बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलगू भाषाओं में टाइपिंग की जा सकती है।
माइक्रोसाफ्ट आईएलआईटी की खूबियाँ-
1) यह डाउनलोड करने में बहुत सरल है और इसके सेट-अप को एक बार डाउनलोड करके कई कम्प्यूटर मशीनों पर संस्थापित किया जा सकता है। (गूगल का सेट-अप यह सुविधा सीधे तौर पर प्रदान नहीं करता। यद्यपि इसका एक जुगाड़ ई-पंडित ने लिखा है)।
2) गूगल आईएमई की भाँति यह टूल भी आपकी पसंदों को याद रखता है और अगली बार निश्चित अक्षरयुग्मों से वहीं परिणाम देता है, जो आप चाहते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप karan टाइप करें तो पहले विकल्प के तौर पर यह आपको ‘कारण’ दिखायेगा, लेकिन मान लीजिए आप अंग्रेजी के इन अक्षरों से ‘कारण’ की जगह ‘करण’ या ‘करन’ लिखना चाहते हैं, तो एरो-की या माउस से अपना वांछित शब्द चुनें, अगली बार आप जब भी आप इस टूल से अपने सिस्टम पर karan टाइप करेंगे, तो यह आपकी पसंद को ध्यान में रखते हुए परिणाम देगा। घबराए नहीं, यदि आप उसके बाद अपनी पसंद में हेर-फेर भी करना चाहें, तो कर सकते हैं।
3) अंतरराष्ट्रीय अंक-प्रणालीः हिन्दी के ज्यादातर टाइपिंग टूलों की एक समस्या यह है कि वे अंकों को हिन्दी अंकों के रूप में प्रदर्शित करते हैं, जबकि भारतीय अंक प्रणाली, जिसे दुनिया भर में इंडो-अरैबिक अंकीय प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है, को अंतरराष्ट्रीय मानक के तौर पर स्वीकार किया जा चुका है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि हिन्दी टाइपिंग टूलों में पुराने स्थानीय अंकीय प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता रहा है। गूगल आईएमई भी हिन्दी अंकों का ही इस्तेमाल करता है। लेकिन माइक्रोसाफ्ट के इस टूल में अंकों के अंतरराष्ट्रीय स्वरूपों को ही पहली प्राथमिकता दी गई है। लेकिन यदि आप पुरानी अंकीय प्रणाली ही पसंद करते हैं तो दूसरे विकल्प के तौर पर वह भी मौज़ूद है। आप अंकों के लिए केवल एक बार अपनी पसंद निर्धारित कर लें तो यह आगे से अंकों को आपकी पसंद के हिसाब से वैयक्तिक करेगा। आप विकल्प में जाकर हमेशा के लिए अंकों को प्रदर्शित करने की अपनी पसंद भी निर्धारित कर सकते हैं।
4) पूर्ण विराम (डंडा या खड़ी पाई) की उपस्थितिः हिन्दी कम्प्यूटिंग के यदि वेब-संसार को देखें तो हिन्दी टाइपिंग की एक नई परम्परा विकसित होती दिखायी पड़ती है। हिन्दी के पूर्ण विराम के स्थान पर अंग्रेजी का डॉट (.) या फुल स्टॉप का प्रयोग बहुतायत हो रहा है। बहुत सी प्रतिष्ठित ई-पत्रिकाएँ भी इस परम्परा की पोषक रही हैं। असल में हिन्दी टाइपिंग में यह चलन इसलिए भी चल पड़ा है, क्योंकि हिन्दी टाइपिंग का अधिकतम प्रचलित टूल गूगल आईएमई हिन्दी पूर्ण विराम (डंडा) टाइप करने का विकल्प प्रदान नहीं करता। जहाँ तक मेरी जानकारी है लगभग सभी ऑनलाइन टाइपिंग टूलों (यूनिनागरी को छोड़कर) में हिन्दी पूर्ण विराम का चिह्न अनुपस्थित है। ऑफलाइन टाइपिग टूलों जैसे- बरह, माइक्रोसॉफ्ट इंडिक आईएमई, हिन्दी टूल किट, कैफेहिन्दी इत्यादि में यह सुविधा उपलब्ध है। माइक्रोसॉफ्ट का यह टूल पूर्ण विराम के चिह्न से लैश है। जैसे ही आप डॉट टाइप करेंगे यह टूल उसे ‘।‘ में बदल देगा। यद्यपि यह . का विकल्प भी देगा।
5) अंग्रेजी शब्द-संक्षेपों को देवनागरी में लिखनाः इस टूल का यह बहुत खास फीचर है। अभी तक सभी लिप्यांतरण टूलों से अंग्रेजी के शब्द-संक्षेपों (संक्षेपाक्षरों) को देवनागरी में लिखने में बहुत अधिक असुविधा होती थी। जैसे मान लें कि आपको WHO, RBI, IIT, IIM इत्यादि को देवनागरी में लिखना है, आप इस टूल से जैसे ही किसी अक्षरयुग्म को पूरा का पूरा कैपिटल लैटर्स में टाइप करेंगे, यह टूल आपको पहले विकल्प के तौर पर उस शब्द-संक्षेप का देवनागरी संस्करण प्रदान करेगा।
अपने सिस्टम में इस टूल को इंस्टॉल कैसे करें
सबसे पहले अपने वेबब्राउजर में http://specials.msn.co.in/ ilit/Hindi.aspx लिंक खोलें। अब आपको यहाँ तीन विकल्प मिलेंगे। पहला रास्ता तो यह है कि आप वहाँ बने टाइपिंग बॉक्स में रोमन में हिन्दी में लिखना शुरू करें और कॉपी-पेस्ट विधि से जहाँ ज़रूरत हो, वहाँ इस्तेमाल करें।
आप चाहें तो इस टूल का मात्र वेब-संस्करण ही इंस्टॉल करके काम चला सकते हैं। इसके लिए आपको कुछ नहीं करना है। उपर्युक्त लिंक-पेज़ पर उपलब्ध ‘Install Web Version’ बटन पर क्लिक करें और निर्देशों का पालन करें। आप लगभग सभी प्रचलित ब्राउजरों में इसे इंस्टॉल कर सकते हैं।
यदि आप इस टूल का प्रयोग विंडोज़ के सभी अनुप्रयोगों में करना चाहते हैं तो ‘Install Desktop Version’ पर क्लिक करें। यह टूल विंडोज़ 7, विडोंज़ विस्टा या विंडोज़ एक्स पी SP2+ (32-bit) में से किसी भी सिस्टम में संस्थापित किया जा सकता है। आपके कम्प्यूटर में कम से कम 512 MB का RAM होना ज़रूरी है, और साथ ही साथ 1 GHz 32-bit (x86) या 64-bit (x64) प्रोसेसर होना चाहिए।
XP प्रयोक्ताओं के लिए
यदि आपके सिस्टम में पहले से Microsoft .Net Framework 2.0 और Mircosoft Windows Installer 3.1 नहीं हैं, तो इस टूल का सेट-अप पहले इन्हें डाउनलोड करके इंस्टॉल करेगा। आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, ये काम यह टूल स्वयं कर लेगा। इन दोनों के इंस्टॉल होने के बाद आपका सिस्टम अपने आप रिस्टार्ट होगा। इसके बाद सेट-अप अपने आप चलेगा और इंस्टॉलेशन पूरा होगा। रिस्टार्ट होने के बाद यदि सेट-अप अपने आप नहीं चालू होता, तो उसे मैनुअली चलाएँ। अतः आपको सलाह दी जाती है कि जब आप इस टूल का सेट-अप डाउनलोड करें, तो सीधे ‘Run’ पर क्लिक करने की बजाय, ‘Save’ पर क्लिक करें।
इंस्टॉलेशन के बाद अलग-अलग मशीनों में इसे किस तरह से संचालित किया जाय, इसका सचित्र विवरण इस टूल की वेबसाइट पर उपलब्ध है। फिर भी यदि आप इस टूल को इंस्टॉल करने में किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव करें तो मुझे लिखें, मैं उस ट्यूटोरिल को सरल भाषा में लिखने का प्रयास करूँगा।


माइक्रोसाफ्ट आईएलआईटी की खूबियाँ-
1) यह डाउनलोड करने में बहुत सरल है और इसके सेट-अप को एक बार डाउनलोड करके कई कम्प्यूटर मशीनों पर संस्थापित किया जा सकता है। (गूगल का सेट-अप यह सुविधा सीधे तौर पर प्रदान नहीं करता। यद्यपि इसका एक जुगाड़ ई-पंडित ने लिखा है)।2) गूगल आईएमई की भाँति यह टूल भी आपकी पसंदों को याद रखता है और अगली बार निश्चित अक्षरयुग्मों से वहीं परिणाम देता है, जो आप चाहते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप karan टाइप करें तो पहले विकल्प के तौर पर यह आपको ‘कारण’ दिखायेगा, लेकिन मान लीजिए आप अंग्रेजी के इन अक्षरों से ‘कारण’ की जगह ‘करण’ या ‘करन’ लिखना चाहते हैं, तो एरो-की या माउस से अपना वांछित शब्द चुनें, अगली बार आप जब भी आप इस टूल से अपने सिस्टम पर karan टाइप करेंगे, तो यह आपकी पसंद को ध्यान में रखते हुए परिणाम देगा। घबराए नहीं, यदि आप उसके बाद अपनी पसंद में हेर-फेर भी करना चाहें, तो कर सकते हैं।
3) अंतरराष्ट्रीय अंक-प्रणालीः हिन्दी के ज्यादातर टाइपिंग टूलों की एक समस्या यह है कि वे अंकों को हिन्दी अंकों के रूप में प्रदर्शित करते हैं, जबकि भारतीय अंक प्रणाली, जिसे दुनिया भर में इंडो-अरैबिक अंकीय प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है, को अंतरराष्ट्रीय मानक के तौर पर स्वीकार किया जा चुका है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि हिन्दी टाइपिंग टूलों में पुराने स्थानीय अंकीय प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता रहा है। गूगल आईएमई भी हिन्दी अंकों का ही इस्तेमाल करता है। लेकिन माइक्रोसाफ्ट के इस टूल में अंकों के अंतरराष्ट्रीय स्वरूपों को ही पहली प्राथमिकता दी गई है। लेकिन यदि आप पुरानी अंकीय प्रणाली ही पसंद करते हैं तो दूसरे विकल्प के तौर पर वह भी मौज़ूद है। आप अंकों के लिए केवल एक बार अपनी पसंद निर्धारित कर लें तो यह आगे से अंकों को आपकी पसंद के हिसाब से वैयक्तिक करेगा। आप विकल्प में जाकर हमेशा के लिए अंकों को प्रदर्शित करने की अपनी पसंद भी निर्धारित कर सकते हैं।
4) पूर्ण विराम (डंडा या खड़ी पाई) की उपस्थितिः हिन्दी कम्प्यूटिंग के यदि वेब-संसार को देखें तो हिन्दी टाइपिंग की एक नई परम्परा विकसित होती दिखायी पड़ती है। हिन्दी के पूर्ण विराम के स्थान पर अंग्रेजी का डॉट (.) या फुल स्टॉप का प्रयोग बहुतायत हो रहा है। बहुत सी प्रतिष्ठित ई-पत्रिकाएँ भी इस परम्परा की पोषक रही हैं। असल में हिन्दी टाइपिंग में यह चलन इसलिए भी चल पड़ा है, क्योंकि हिन्दी टाइपिंग का अधिकतम प्रचलित टूल गूगल आईएमई हिन्दी पूर्ण विराम (डंडा) टाइप करने का विकल्प प्रदान नहीं करता। जहाँ तक मेरी जानकारी है लगभग सभी ऑनलाइन टाइपिंग टूलों (यूनिनागरी को छोड़कर) में हिन्दी पूर्ण विराम का चिह्न अनुपस्थित है। ऑफलाइन टाइपिग टूलों जैसे- बरह, माइक्रोसॉफ्ट इंडिक आईएमई, हिन्दी टूल किट, कैफेहिन्दी इत्यादि में यह सुविधा उपलब्ध है। माइक्रोसॉफ्ट का यह टूल पूर्ण विराम के चिह्न से लैश है। जैसे ही आप डॉट टाइप करेंगे यह टूल उसे ‘।‘ में बदल देगा। यद्यपि यह . का विकल्प भी देगा।
5) अंग्रेजी शब्द-संक्षेपों को देवनागरी में लिखनाः इस टूल का यह बहुत खास फीचर है। अभी तक सभी लिप्यांतरण टूलों से अंग्रेजी के शब्द-संक्षेपों (संक्षेपाक्षरों) को देवनागरी में लिखने में बहुत अधिक असुविधा होती थी। जैसे मान लें कि आपको WHO, RBI, IIT, IIM इत्यादि को देवनागरी में लिखना है, आप इस टूल से जैसे ही किसी अक्षरयुग्म को पूरा का पूरा कैपिटल लैटर्स में टाइप करेंगे, यह टूल आपको पहले विकल्प के तौर पर उस शब्द-संक्षेप का देवनागरी संस्करण प्रदान करेगा। अपने सिस्टम में इस टूल को इंस्टॉल कैसे करें
सबसे पहले अपने वेबब्राउजर में http://specials.msn.co.in/
आप चाहें तो इस टूल का मात्र वेब-संस्करण ही इंस्टॉल करके काम चला सकते हैं। इसके लिए आपको कुछ नहीं करना है। उपर्युक्त लिंक-पेज़ पर उपलब्ध ‘Install Web Version’ बटन पर क्लिक करें और निर्देशों का पालन करें। आप लगभग सभी प्रचलित ब्राउजरों में इसे इंस्टॉल कर सकते हैं।
यदि आप इस टूल का प्रयोग विंडोज़ के सभी अनुप्रयोगों में करना चाहते हैं तो ‘Install Desktop Version’ पर क्लिक करें। यह टूल विंडोज़ 7, विडोंज़ विस्टा या विंडोज़ एक्स पी SP2+ (32-bit) में से किसी भी सिस्टम में संस्थापित किया जा सकता है। आपके कम्प्यूटर में कम से कम 512 MB का RAM होना ज़रूरी है, और साथ ही साथ 1 GHz 32-bit (x86) या 64-bit (x64) प्रोसेसर होना चाहिए।
XP प्रयोक्ताओं के लिए
यदि आपके सिस्टम में पहले से Microsoft .Net Framework 2.0 और Mircosoft Windows Installer 3.1 नहीं हैं, तो इस टूल का सेट-अप पहले इन्हें डाउनलोड करके इंस्टॉल करेगा। आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, ये काम यह टूल स्वयं कर लेगा। इन दोनों के इंस्टॉल होने के बाद आपका सिस्टम अपने आप रिस्टार्ट होगा। इसके बाद सेट-अप अपने आप चलेगा और इंस्टॉलेशन पूरा होगा। रिस्टार्ट होने के बाद यदि सेट-अप अपने आप नहीं चालू होता, तो उसे मैनुअली चलाएँ। अतः आपको सलाह दी जाती है कि जब आप इस टूल का सेट-अप डाउनलोड करें, तो सीधे ‘Run’ पर क्लिक करने की बजाय, ‘Save’ पर क्लिक करें।
इंस्टॉलेशन के बाद अलग-अलग मशीनों में इसे किस तरह से संचालित किया जाय, इसका सचित्र विवरण इस टूल की वेबसाइट पर उपलब्ध है। फिर भी यदि आप इस टूल को इंस्टॉल करने में किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव करें तो मुझे लिखें, मैं उस ट्यूटोरिल को सरल भाषा में लिखने का प्रयास करूँगा।
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मंगलवार, 19 जुलाई 2011
भजन तेरी शरण : प्रभु तेरी शरण --मृदुल कीर्ति
: Mridul Kirti <mridulkirti@gmail.com>,
ॐ!
भजन
मृदुल कीर्ति
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण, तेरी शरण प्रभु तेरी शरण.
सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
संसार महा विष व्याल घना, नहीं दीख रहा कोई अपना.
तुझसे ही पाया अपनापन. सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण
तेरी शरण ------------------------------
----------------
जग मायामय और झूठा है, तेरा सांचा प्यार अनूठा है.
सब तन-मन-धन तेरे अरपन , सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण ------------------------------ -----------------
हरि नाम जपन साँची पूंजी, भव-सिन्धु तरन नहीं विधि दूजी.
करो तारण हार मेरा भी तरन, सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण ------------------------------ ------------------
तू व्यापक ब्रह्म निरंजन है, कण- कण में तेरा स्पंदन है.
रहूँ ध्यान में तेरे प्रति पल क्षण , सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण ------------------------------ -
ॐ!
भजन
मृदुल कीर्ति
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण, तेरी शरण प्रभु तेरी शरण.
सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
संसार महा विष व्याल घना, नहीं दीख रहा कोई अपना.
तुझसे ही पाया अपनापन. सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण
तेरी शरण ------------------------------
जग मायामय और झूठा है, तेरा सांचा प्यार अनूठा है.
सब तन-मन-धन तेरे अरपन , सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण ------------------------------
हरि नाम जपन साँची पूंजी, भव-सिन्धु तरन नहीं विधि दूजी.
करो तारण हार मेरा भी तरन, सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण ------------------------------
तू व्यापक ब्रह्म निरंजन है, कण- कण में तेरा स्पंदन है.
रहूँ ध्यान में तेरे प्रति पल क्षण , सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण ------------------------------
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दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
यमक झमककर मोहता
--संजीव 'सलिल'
*
हँस सहते हम दर्द नित, देते हैं हमदर्द.
अपनेपन ने कर दिए, सब अपने पन सर्द..
पन = संकल्प, प्रण.
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम.
नहीं राम से पूछते, ग्रहण करें आ राम..
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम.
रुक्मिणी-राधा अधर पर, वेणु मधुर घनश्याम..
*
कृष्ण-वेणु के स्वर सुनें, गोप सराहें भाग.
सुन न सके जो वे रहे, श्री के पीछे भाग..
भाग = भाग्य, पीछा करना.
*
हल धरकर हलधर चले, हलधर-कर थे रिक्त.
हल धरकर हर प्रश्न का, हलधर कर रस-सिक्त..
हल धरकर = हल रखकर, किसान के हाथ, उत्तर रखकर, बलराम के हाथ.
*
बरस-बरस घन बरसकर, करें धराको तृप्त.
गगन मगन विस्तार लख, हरदम रहा अतृप्त..
*
असुर न सुर को समझते, सुर से रखते बैर.
ससुरसुता पर मुग्ध हो, मना रहे सुर खैर..
असुर = सुर रहित / राक्षस - श्लेष
सुर = स्वर, देवता. यमक
ससुर = सुर सहित, श्वसुर श्लेष.
*
ससुर-वाद्य संग थिरकते, पग-नूपुर सुन ताल.
तजें नहीं कर ताल को,बजा रहे करताल..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
कर ताल = हाथ द्वारा ताल का पालन, करताल = एक वाद्य
*
ताल-तरंगें पवन सँग, लेतीं विहँस हिलोर.
पत्ते झूमें ताल पर, पर बेताल विभोर..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
पर = ऊपर / के साथ, किन्तु.
*
दिल के रहा न सँग दिल, जो वह है संगदिल.
दिल का बिल देता नहीं, ना काबिल बेदिल..
सँग दिल = देल के साथ, छोटे दिलवाला.
*
यमक झमककर मोहता, खूब सोहता श्लेष.
प्यास बुझा अनुप्रास दे, छोड़े हास अशेष..
*****
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
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यमक झमककर मोहता
--संजीव 'सलिल'
*
हँस सहते हम दर्द नित, देते हैं हमदर्द.
अपनेपन ने कर दिए, सब अपने पन सर्द..
पन = संकल्प, प्रण.
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम.
नहीं राम से पूछते, ग्रहण करें आ राम..
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम.
रुक्मिणी-राधा अधर पर, वेणु मधुर घनश्याम..
*
कृष्ण-वेणु के स्वर सुनें, गोप सराहें भाग.
सुन न सके जो वे रहे, श्री के पीछे भाग..
भाग = भाग्य, पीछा करना.
*
हल धरकर हलधर चले, हलधर-कर थे रिक्त.
हल धरकर हर प्रश्न का, हलधर कर रस-सिक्त..
हल धरकर = हल रखकर, किसान के हाथ, उत्तर रखकर, बलराम के हाथ.
*
बरस-बरस घन बरसकर, करें धराको तृप्त.
गगन मगन विस्तार लख, हरदम रहा अतृप्त..
*
असुर न सुर को समझते, सुर से रखते बैर.
ससुरसुता पर मुग्ध हो, मना रहे सुर खैर..
असुर = सुर रहित / राक्षस - श्लेष
सुर = स्वर, देवता. यमक
ससुर = सुर सहित, श्वसुर श्लेष.
*
ससुर-वाद्य संग थिरकते, पग-नूपुर सुन ताल.
तजें नहीं कर ताल को,बजा रहे करताल..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
कर ताल = हाथ द्वारा ताल का पालन, करताल = एक वाद्य
*
ताल-तरंगें पवन सँग, लेतीं विहँस हिलोर.
पत्ते झूमें ताल पर, पर बेताल विभोर..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
पर = ऊपर / के साथ, किन्तु.
*
दिल के रहा न सँग दिल, जो वह है संगदिल.
दिल का बिल देता नहीं, ना काबिल बेदिल..
सँग दिल = देल के साथ, छोटे दिलवाला.
*
यमक झमककर मोहता, खूब सोहता श्लेष.
प्यास बुझा अनुप्रास दे, छोड़े हास अशेष..
*****
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सोमवार, 18 जुलाई 2011
कविता : -- संजीव 'सलिल'
कविता
संजीव 'सलिल'
*
युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
*
संजीव 'सलिल'
*
युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
*
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गुरुवार, 14 जुलाई 2011
स्वास्थ्य सलिला: अलका मिश्रा
| स्वास्थ्य सलिला: रसोईघर- से स्वास्थ्य सुझाव --------------------------------------------------------------------------------------------अलका मिश्रा | |
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| रसोईघर से- रसोई सुझाव । सौंदर्य सुझाव । स्वास्थ्य सुझाव | |
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नवगीत:
शहर का एकांत...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ढो रहा है
संस्कृति की लाश,
शहर का एकांत...
*
बहुत दुनियादार है यह,
बचो इससे.
दलाली व्यापार है,
सच कहो किससे?
मंडियाँ इंसान के
ज़ज्बात की हैं-
हादसों के लिख रही हैं
नये किस्से.
खो रहा है
ढाई-आखर-पाश
हो दिग्भ्रांत.
शहर का एकांत...
*
नहीं कउनौ है
हियाँ अपना.बिना जड़ का रूख
हर सपना.
बिन कलेवा और
बिन सहरी-
चल पड़े पग,
थाम न दिल कँपना.
हो रहा है
हालात-कर का ताश
बन संभ्रांत?
शहर का एकांत...
*
Acharya Sanjiv Salil
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मैं कविता हूँ... --संजीव 'सलिल'
मैं कविता हूँ...
संजीव 'सलिल'
*
मैं कविता हूँ...
मैं युग का दर्पण हूँ, निर्मल नीर हूँ.
योग-भोग-संयोग, दर्द हूँ, पीर हूँ..
धरा-स्वर्ग, गिरि-जंगल, सुमन-समीर हूँ.
परिवर्तन की बाट जोहती धीर हूँ..
तम पर जय पाता जो, मैं वह सविता हूँ.
मैं कविता हूँ...
जिसने समझा, उसको वीणापाणी हूँ.
जीव-जगत की आराध्या- कल्याणी हूँ..
जो न समझता उसे लगी पाषाणी हूँ.
सत्ताओं की आँख खोलती वाणी हूँ..
सद्गुण की राहों पर अर्पित पविता हूँ..
मैं कविता हूँ...
मैं शोषण को कालकूट विषज्वाल हूँ.
निर्माणों हित स्वेद निमज्जित भाल हूँ..
बलिदानों के लिये सुसज्जित थाल हूँ.
नियम बद्ध सैनिक-गायक की ताल हूँ..
राष्ट्रदेव पर गर्वित निष्ठा नमिता हूँ.
मैं कविता हूँ...
**********
संजीव 'सलिल'
*
मैं कविता हूँ...
मैं युग का दर्पण हूँ, निर्मल नीर हूँ.
योग-भोग-संयोग, दर्द हूँ, पीर हूँ..
धरा-स्वर्ग, गिरि-जंगल, सुमन-समीर हूँ.
परिवर्तन की बाट जोहती धीर हूँ..
तम पर जय पाता जो, मैं वह सविता हूँ.
मैं कविता हूँ...
जिसने समझा, उसको वीणापाणी हूँ.
जीव-जगत की आराध्या- कल्याणी हूँ..
जो न समझता उसे लगी पाषाणी हूँ.
सत्ताओं की आँख खोलती वाणी हूँ..
सद्गुण की राहों पर अर्पित पविता हूँ..
मैं कविता हूँ...
मैं शोषण को कालकूट विषज्वाल हूँ.
निर्माणों हित स्वेद निमज्जित भाल हूँ..
बलिदानों के लिये सुसज्जित थाल हूँ.
नियम बद्ध सैनिक-गायक की ताल हूँ..
राष्ट्रदेव पर गर्वित निष्ठा नमिता हूँ.
मैं कविता हूँ...
**********
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बुधवार, 13 जुलाई 2011
नर्मदाष्टक : २ रीवानरेश श्री रघुराज सिंह : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : २
रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं
गिरींद्र मेकलात्मजे गिरीशरूपशोभिते, गिरीशभावभाविते सुरर्षिसिद्धवंदिते.
अनेकधर्मकर्मदे सदानृणा सदात्मनां, सुरेंद्रहर्षसंप्रदे, नमामि देवी नर्मदे .१.
रसालताल सुप्रियाल, संविशालमालिते, कदंब निंब कुंद वृंद, भृंगजालजालिते.
शरज्जलाभ्रसंप्लवेह्य, घघ्नजीवशर्मदे, विषघ्नभूषसुप्रिये, नमामि देवी नर्मदे .२.
मलात्मनां घनात्मनां, दुरात्मनां शुचात्मनां, मजापिनां प्रतापिनां प्रयापिनां सुरापिनां.
अनिष्टकारिणां वनेविहारिणां प्रहारिणां, सदा सुधर्म वर्मदे, नमामि देवी नर्मदे .३.
वलक्षलक्षलक्षिते सकच्छकच्छपान्विते, सुपक्षपक्षिसच्छ्टे ह्यरक्षरक्षणक्षमे.
मुदक्षदक्षवांक्षिते विपक्षयक्षपक्ष्दे, विचक्षणक्षणक्षमे, नमामि देवी नर्मदे .४.
तरंगसंघसंकुले वराहसिंहगोकुले, हरिन्मणीन्द्रशाद्वले प्रपातधारयाकुले.
मणीन्द्रनिर्मलोदके फणीन्द्रसेंद्रसंस्तुते, हरेस्सुकीर्तिसन्निभे, नमामि देवी नर्मदे .५.
पुराणवेदवर्णिते विरक्तिभक्तिपुण्यदे, सुयागयोग सिद्धिवृद्धिदायिके महाप्रभे.
अनन्तकोटि कल्मशैकवर्तिनां समुद्धटे, समुद्रके सुरुद्रिके, नमामि देवी नर्मदे .६.
महात्मनां सदात्मनां, सुधर्मकर्मवर्तिनां, तपस्विनां यशस्विनां मनस्विनां मन:प्रिये.
मनोहरे सरिद्वरे सुशंकरेभियांहारे,धराधरे जवोद्भरे, नमामि देवी नर्मदे .७.
शिवस्वरूपदयिके, सरिदगणस्यनायिके, सुवान्छितार्थधायिके, ह्यमायिकेसुकायिके.
सुमानसस्य कायिकस्य, वाचिकस्य पाप्मान:, प्रहारिके त्रितापहे, नमामि देवी नर्मदे .८.
रेवाष्टकमिदं दिव्यं, रघुराजविनिर्मितं, अस्य प्रपठान्माता नर्मदा मे प्रसीदतु.
मितेसंवत्सरेपौषे, गुणब्रम्हनिधींदुभि:, सितेसम द्वितीयायां निर्मितां नर्मदाष्टकं... ९.
इति रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
रीवानरेश श्री रघुराज सिंह रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
हे कन्या गिरीन्द्र मेकलकी!, हे गिरीश सौंदर्य सुशोभा!!,
हे नगेश भाव अनुभावित!, सुर-ऋषि-सिद्ध करें नित सेवा.
सदा सदात्मा बनकर नरकी, नाना धर्म-कर्म की कर्ता!!.
हर्ष प्रदाता तुम सुरेंद्रकी, नमन हमारा देवि नर्मदा.१.
मधुर रसभरे वृक्ष आम के, तरुवर हैं सुविशाल ताल के.
नीम, चमेली, कदमकुञ्ज प्रिय, केंद्र भ्रमर-क्रीडित मराल से.
सलिल-शरद सम सदा सुशीतल, निर्मल पावन पाप-विनाशक.
विषपायी शिवशंकर को प्रिय, नमन हमारा देवि नर्मदा.२.
घातक, मलिन, दुष्ट, दुर्जन या, जपी-तपी, पवन-सज्जन हों.
कायर-वीर, अविजित-पराजित, मद्यप या कि प्रताड़ित जन हों.
अनिष्टकारी विपिनबिहारी, प्रबलप्रहारी सब जनगण को.
देतीं सदा सुधर्म कवच तुम, नमन हमारा देवि नर्मदा.३.
अमल-धवल-निर्मल नीरा तव, तट कच्छप यूथों से भूषित.
विहगवृंदमय छटा मनोहर, हुए अरक्षित तुमसे रक्षित.
मंगलहारी दक्षप्रजापति, यक्ष, विपक्षी तव शरणागत.
विद्वज्जन को शांति-प्रदाता, नमन हमारा देवि नर्मदा.४.
जल-तरंगके संग सुशोभित, धेनु वराह सिंहके संकुल.
मरकत मणि सी घास सुकोमल, जलप्रपात जलधार सुशोभित.
मनहर दर्पण उदक समुज्ज्वल, वंदन करें नाग, सुर, अधिपति.
हो श्रीहरिस्तुति सी पावन, नमन हमारा देवि नर्मदा.५.
वेद-पुराणों में यश वर्णित, भक्ति-विरक्ति पुण्य-फलदायिनी.
यज्ञ-योग-फल सिद्धि-समृद्धि, देनेवाली वैभवशालिनी.
अगणित पापकर्मकर्ता हों, शरण- करें उद्धार सर्वदा-
उदधिगामिनी, रूद्रस्वरूपा, नमन हमारा देवि नर्मदा.६.
करें धर्ममय कर्म सदा जो, महा-आत्म जन आत्मरूप में.
तपस्वियों को, यशास्वियों को, मनस्वियों को, प्रिय स्वरूपिणे!.
मनहर पावन, जन-मन-भावन, मंगलकारी भव-भयहारी.
धराधार हे! वेगगामिनी, नमन हमारा देवि नर्मदा.७.
श्रेष्ठ सुसरिता, नदी-नायिका, दात्री सत-शिव-सुंदर की जय.
मायारहित, सुकायाधारिणी,वांछित अर्थ-प्रदाता तव जय!!.
अंतर्मन के, वचन-कर्म के, पापों को करतीं विनष्ट जो-.
तीन ताप की हरणकारिणी, नमन हमारा देवि नर्मदा.८.
रीवा-नृप रघुराज सिंह ने, संवत उन्नीस सौ तेरह में.
पौष शुक्ल दूजा को अर्पित, किया शुभ अष्टक रेवा पद में.
भारत-भाषा हिंदी में, अनुवाद- गुँजाती 'सलिल' लहर हर.
नित्य पाठ सुन देतीं शत वर, नमन हमारा देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
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एक कविता: सीखते संज्ञा रहे... -संजीव 'सलिल'
एक कविता:
सीखते संज्ञा रहे...
संजीव 'सलिल'
*
सीखते संज्ञा रहे हम.
बन गये हैं सर्वनाम.
क्रिया कैसी?
क्या विशेषण?
कहाँ है कर्ता अनाम?
कर न पाये
साधना हम
वंदना ना प्रार्थना.
किरण आशा की लिये
करते रहे शब्द-अर्चना.
साथ सुषमा को लिये
पुष्पा रहे रचना कमल.
प्रेरणा देती रहें
नित भावनाएँ नित नवल.
****
Acharya Sanjiv Salil
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सीखते संज्ञा रहे...
संजीव 'सलिल'
*
सीखते संज्ञा रहे हम.
बन गये हैं सर्वनाम.
क्रिया कैसी?
क्या विशेषण?
कहाँ है कर्ता अनाम?
कर न पाये
साधना हम
वंदना ना प्रार्थना.
किरण आशा की लिये
करते रहे शब्द-अर्चना.
साथ सुषमा को लिये
पुष्पा रहे रचना कमल.
प्रेरणा देती रहें
नित भावनाएँ नित नवल.
****
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एक कविता- याद आती है -- संजीव 'सलिल'
एक कविता-
याद आती है
संजीव 'सलिल'
*
याद आती है रात बचपन की...
कभी छत पर,
कभी आँगन में पड़े
देखते थे कहाँ है सप्तर्षि?
छिपी बैठी कहाँ अरुंधति है?
काश संग खेलने वो आ जाये.
वो परी जो छिपी गगन में है.
सोचते-सोचते आँखें लगतीं.
और तब पड़ोसी गोदी में लिये
रहे पहुँचाते थे हमें घर तक.
सभी अपने थे. कोई गैर न था.
तब भी बातें बड़े किया करते-
किसकी आँखों का तारा कौन यहाँ?
कौन किसको नहीं तनिक भाता?
किसकी किससे लड़ी है आँख कहाँ?
किन्तु बच्चे तो सिर्फ बच्चे थे.
झूठ तालाब, कमल सच्चे थे.
हाय! अब बच्चे ही बच्चे न रहे.
दूरदर्शन ने छीना भोलापन.
अब अपना न कोई लगता है.
हर पराया ठगाया-ठगता है.
तारे अब भी हैं
पर नहीं हैं अब
तारों को गिननेवाले वे बच्चे
.
****
याद आती है
संजीव 'सलिल'
*
याद आती है रात बचपन की...
कभी छत पर,
कभी आँगन में पड़े
देखते थे कहाँ है सप्तर्षि?
छिपी बैठी कहाँ अरुंधति है?
काश संग खेलने वो आ जाये.
वो परी जो छिपी गगन में है.
सोचते-सोचते आँखें लगतीं.
और तब पड़ोसी गोदी में लिये
रहे पहुँचाते थे हमें घर तक.
सभी अपने थे. कोई गैर न था.
तब भी बातें बड़े किया करते-
किसकी आँखों का तारा कौन यहाँ?
कौन किसको नहीं तनिक भाता?
किसकी किससे लड़ी है आँख कहाँ?
किन्तु बच्चे तो सिर्फ बच्चे थे.
झूठ तालाब, कमल सच्चे थे.
हाय! अब बच्चे ही बच्चे न रहे.
दूरदर्शन ने छीना भोलापन.
अब अपना न कोई लगता है.
हर पराया ठगाया-ठगता है.
तारे अब भी हैं
पर नहीं हैं अब
तारों को गिननेवाले वे बच्चे
.
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गुरुवार, 7 जुलाई 2011
दोहा मुक्तिका सलिला: चाँद २ संजीव 'सलिल' *
दोहा मुक्तिका सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
चाँद २
पिता सूर्य का लाड़ पा, मुस्काता है चाँद.
भू माँ की परिक्रमा कर, वर पाता है चाँद....
नभ बब्बा के बाहु का, देख अमित विस्तार.
दिशा दादियों से लिपट, चकराता है चाँद..
सुघड़ बहुरिया चाँदनी, अँगना लीपे रोज.
नभगंगा में स्नान कर, तर जाता है चाँद..
दे प्राची का द्वार जब, थपक अरुणिमा खोल.
रूप अनिर्वचनीय लख. यश गाता है चाँद..
प्रति पल राग-विरागमय, भोगी-योगी संत?
रखकर देह विदेह हो, सिखलाता है चाँद..
निशा, उषा, संध्या पुलक, राखी देतीं बाँध.
बहनों का वात्सल्य पा, तर जाता है चाँद..
छाया साली रंग रही, श्वेत चन्द्र को श्याम.
कोमल कर स्पर्श से, सिहराता है चाँद..
घटे-बढ़े, बढ़कर घटे,रह निस्पृह-निष्काम.
गिर-उठ, बढ़, रुक-चुक नहीं, बतलाता है चाँद..
सुत तारों की दीप्ति लख, वंश-बेल पर मुग्ध.
काल-कथाएँ अकथ कह, बतियाता है चाँद..
बिना लिये परिशामिक, श्रम करता बेदाम.
'सलिल'-धार में ताप तज, हर्षाता है चाँद..
*
संजीव 'सलिल'
*
चाँद २
पिता सूर्य का लाड़ पा, मुस्काता है चाँद.
भू माँ की परिक्रमा कर, वर पाता है चाँद....
नभ बब्बा के बाहु का, देख अमित विस्तार.
दिशा दादियों से लिपट, चकराता है चाँद..
सुघड़ बहुरिया चाँदनी, अँगना लीपे रोज.
नभगंगा में स्नान कर, तर जाता है चाँद..
दे प्राची का द्वार जब, थपक अरुणिमा खोल.
रूप अनिर्वचनीय लख. यश गाता है चाँद..
प्रति पल राग-विरागमय, भोगी-योगी संत?
रखकर देह विदेह हो, सिखलाता है चाँद..
निशा, उषा, संध्या पुलक, राखी देतीं बाँध.
बहनों का वात्सल्य पा, तर जाता है चाँद..
छाया साली रंग रही, श्वेत चन्द्र को श्याम.
कोमल कर स्पर्श से, सिहराता है चाँद..
घटे-बढ़े, बढ़कर घटे,रह निस्पृह-निष्काम.
गिर-उठ, बढ़, रुक-चुक नहीं, बतलाता है चाँद..
सुत तारों की दीप्ति लख, वंश-बेल पर मुग्ध.
काल-कथाएँ अकथ कह, बतियाता है चाँद..
बिना लिये परिशामिक, श्रम करता बेदाम.
'सलिल'-धार में ताप तज, हर्षाता है चाँद..
*
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दोहा मुक्तिका सलिला: चाँद १ संजीव 'सलिल'
दोहा मुक्तिका सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
चाँद १
नीलांगन में खेलता, मन-भाता है चाँद.
संग चन्द्रिका धवल पा, इठलाता है चाँद..
ऊषा,संध्या,निशा को, भरमाता है चाँद.
दिवा स्वप्न मिथ्या दिखा, छल जाता है चाँद..
सूरज थानेदार से, भय खाता है चाँद.
बदली चिलमन में सहम, छिप जाता है चाँद..
अंधों का राजा हुआ, काना करे घमंड.
तारों का सरदार बन, इतराता है चाँद..
वसुधा घास न डालती, चक्कर काटे नित्य.
प्रीत-संदेसा पवन से, भिजवाता है चाँद..
ऊँचा ऊँट पहाड़ के, नीचे आकर मौन.
देख नवग्रह शर्म से, गड़ जाता है चाँद..
संयम तज सुरपति सदृश, करता भोग-विलास.
जर्जर पीला तन लिये, पछताता है चाँद..
सती चाँदनी तप करे, सावित्री सी मौन.
पतिव्रता के पुण्य से, तर जाता है चाँद..
फिर-फिर मर,फिर-फिर जिए, हरदम खाली हाथ.
ज्यों की त्यों चादर 'सलिल', धर जाता है चाँद..
*
संजीव 'सलिल'
*
चाँद १
नीलांगन में खेलता, मन-भाता है चाँद.
संग चन्द्रिका धवल पा, इठलाता है चाँद..
ऊषा,संध्या,निशा को, भरमाता है चाँद.
दिवा स्वप्न मिथ्या दिखा, छल जाता है चाँद..
सूरज थानेदार से, भय खाता है चाँद.
बदली चिलमन में सहम, छिप जाता है चाँद..
अंधों का राजा हुआ, काना करे घमंड.
तारों का सरदार बन, इतराता है चाँद..
वसुधा घास न डालती, चक्कर काटे नित्य.
प्रीत-संदेसा पवन से, भिजवाता है चाँद..
ऊँचा ऊँट पहाड़ के, नीचे आकर मौन.
देख नवग्रह शर्म से, गड़ जाता है चाँद..
संयम तज सुरपति सदृश, करता भोग-विलास.
जर्जर पीला तन लिये, पछताता है चाँद..
सती चाँदनी तप करे, सावित्री सी मौन.
पतिव्रता के पुण्य से, तर जाता है चाँद..
फिर-फिर मर,फिर-फिर जिए, हरदम खाली हाथ.
ज्यों की त्यों चादर 'सलिल', धर जाता है चाँद..
*
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बुधवार, 6 जुलाई 2011
एक गीत: हार चढ़ाने आये... संजीव 'सलिल;
एक गीत:
हार चढ़ाने आये...
संजीव 'सलिल;
*
हार चढ़ाने आये दर पर, बोझिल दिल ले हार कर.
सजल नयन ले देख रहे सब, हमें टँगा दीवार पर...
कर्म-अकर्म किये अगणित मिल, साथ कभी रह दूर भी.
आँखें रहते सत्य न देखा, देख लजाते सूर भी.
निर्दय-सदय काल का बंधन, उठा-गिरा था रहा सिखा-
ले तम का आधार जला करता, दीपक ले नूर भी..
किया अस्वीकारों ने भी, स्वीकार नयन जल ढार कर...
नायक, खलनायक, निर्देशक, दर्शक, आलोचक बनकर.
रहे बजाते ताली झुककर, 'सलिल' कभी अकड़े तनकर.
योग-भोग साकार हमीं में, एक साथ हो जाते थे-
पहनी, फाड़ी, बेची चादर, ज्यों की त्यों आये धरकर..
खिझा, रुला, चुप करा, मनाया, नित जग ने मनुहार कर...
संबंधों के अनुबंधों ने, प्रतिबंधों से बाध्य किया.
साधन कभी बनाया हँसकर, कभी रुलाकर साध्य किया.
जग ने समझा ठगा, सोचते हम थे हमसे ठगा गया-
रहे पूजते जिसे उसी ने, अब हमको आराध्य किया.
सोग जताने आयी तृष्णा फिर सोलह सिंगार कर...
*****************************************
हार चढ़ाने आये...
संजीव 'सलिल;
*
हार चढ़ाने आये दर पर, बोझिल दिल ले हार कर.
सजल नयन ले देख रहे सब, हमें टँगा दीवार पर...
कर्म-अकर्म किये अगणित मिल, साथ कभी रह दूर भी.
आँखें रहते सत्य न देखा, देख लजाते सूर भी.
निर्दय-सदय काल का बंधन, उठा-गिरा था रहा सिखा-
ले तम का आधार जला करता, दीपक ले नूर भी..
किया अस्वीकारों ने भी, स्वीकार नयन जल ढार कर...
नायक, खलनायक, निर्देशक, दर्शक, आलोचक बनकर.
रहे बजाते ताली झुककर, 'सलिल' कभी अकड़े तनकर.
योग-भोग साकार हमीं में, एक साथ हो जाते थे-
पहनी, फाड़ी, बेची चादर, ज्यों की त्यों आये धरकर..
खिझा, रुला, चुप करा, मनाया, नित जग ने मनुहार कर...
संबंधों के अनुबंधों ने, प्रतिबंधों से बाध्य किया.
साधन कभी बनाया हँसकर, कभी रुलाकर साध्य किया.
जग ने समझा ठगा, सोचते हम थे हमसे ठगा गया-
रहे पूजते जिसे उसी ने, अब हमको आराध्य किया.
सोग जताने आयी तृष्णा फिर सोलह सिंगार कर...
*****************************************
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रविवार, 3 जुलाई 2011
हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १ --संजीव 'सलिल'
हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १
भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं
सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१.
त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.
महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३.
गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.
अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६.
अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.
अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.
इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९.
इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.
दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.
मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.
दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.
सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.
दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.
महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.
श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
http://divyanarmada.blogspot.com
भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं
सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१.
त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.
महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३.
गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.
अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६.
अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.
अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.
इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९.
इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.
दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.
मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.
दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.
सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.
दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.
महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.
श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
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टिकट संग्रह
डाकटिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में पलाश
—पूर्णिमा वर्मन
भारतीय साहित्य और संस्कृति में पलाश टेसू या ढाक के पेड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय डाकतार विभाग ने फूलों और पेड़ों पर प्रकाशित अपनी शृंखला में इसको भी सम्मिलित किया है। १ सितंबर १९८१ को प्रकाशित चार डाकटिकटों में से एक पर पलाश का चित्र अंकित किया गया है। ३५ पैसे वाले इस डाकटिक पर ऊपर दाहिनी ओर हिंदी व अँग्रेजी में भारत व इंडिया लिखा गया जबकि नीचे हिंदी में पलाश और अंग्रेजी में फ्लेम आफ द फारेस्ट लिखा गया है। इसके साथ ही प्रकाशनवर्ष भी अंकित किया गया है।
बाँग्लादेश द्वारा २९ अप्रैल १९७८ को फूलों वाली एक सुंदर शृंखला जारी की गई थी। कमल, चंपा, गुलमोहर, अमलतास, और कदंब के साथ, इसमें चार टाका मूल्य के एक डाकटिकट पर पलाश के खिले हुए पेड़ का सुंदर चित्र देखा जा सकता है। इस शृंखला के शिल्पी थे नवाज़श अहमद और एस.एस. बरुआ। इस टिकट के बायीं और बांग्लादेश के नीचे अंग्रेजी में पलाश और ब्यूटिया मोनोस्पर्मा लिखा गया है।
१९७४ में थाईलैंड द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पत्र लेखन सप्ताह के अवसर पर जारी चार टिकटों के एक सेट में अमलतास, चमेली तथा सावनी के फूल के साथ पलाश की एक प्रजाति ब्यूटिया सुपर्बा को प्रदर्शित किया गया था।
डाकटिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में पलाश—पूर्णिमा वर्मन
भारतीय साहित्य और संस्कृति में पलाश टेसू या ढाक के पेड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय डाकतार विभाग ने फूलों और पेड़ों पर प्रकाशित अपनी शृंखला में इसको भी सम्मिलित किया है। १ सितंबर १९८१ को प्रकाशित चार डाकटिकटों में से एक पर पलाश का चित्र अंकित किया गया है। ३५ पैसे वाले इस डाकटिक पर ऊपर दाहिनी ओर हिंदी व अँग्रेजी में भारत व इंडिया लिखा गया जबकि नीचे हिंदी में पलाश और अंग्रेजी में फ्लेम आफ द फारेस्ट लिखा गया है। इसके साथ ही प्रकाशनवर्ष भी अंकित किया गया है।
फूलदार वृक्षों की इस शृंखला में पलाश के साथ प्रकाशित अन्य तीन डाकटिकटों पर जिन पेड़ों के चित्रों को स्थान मिला है वे हैं वरना,
अमलतास और कचनार। इस शृंखला के फोटो वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ शोध अधिकारी के.एम.वैद के थे। इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस से इसकी बीस लाख प्रतियाँ जारी की गई थीं। इसके साथ ही एक प्रथम दिवस आवरण भी जारी किया गया था। इसके बाद ७ फरवरी २००८ को जब दिल्ली राज्य की डाक-टिकट प्रदर्शनी डिकयाना में चार नए टिकट जारी किये गए तब उनके साथ जारी प्रथम दिवस आवरणों में से एक पर पलाश को भी स्थान मिला। ये दोनो प्रथम दिवस आवरण यहाँ देखे जा सकते हैं।
केवल भारत ही नहीं कुछ विदेशी डाकटिकटों में भी पलाश को प्रकाशित किया गया है। कंबोडिया द्वारा २५ अगस्त २००४ को जारी फूलों वालों पाँच डाकटिकटों की एक शृंखला मे इसे स्थान मिला है। ३० मिमि चौड़े और ४६ मि.मि. लंबे इस डाकटिकट नीचे की और दाहिनी तरफ इसका मूल्य ७०० कंबोडियाई राइल और बायीं और फूल का नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा अंग्रेजी में अंकित किया गया है। यही जानकारी ऊपर की ओर कंबोडिया की भाषा कंबुज में अंकित की गई है। बायीं ओर किंगडम आफ कंबोडिया लिखा है और दाहिनी ओर प्रकाशन का वर्ष अंकित किया गया है।
अमलतास और कचनार। इस शृंखला के फोटो वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ शोध अधिकारी के.एम.वैद के थे। इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस से इसकी बीस लाख प्रतियाँ जारी की गई थीं। इसके साथ ही एक प्रथम दिवस आवरण भी जारी किया गया था। इसके बाद ७ फरवरी २००८ को जब दिल्ली राज्य की डाक-टिकट प्रदर्शनी डिकयाना में चार नए टिकट जारी किये गए तब उनके साथ जारी प्रथम दिवस आवरणों में से एक पर पलाश को भी स्थान मिला। ये दोनो प्रथम दिवस आवरण यहाँ देखे जा सकते हैं।केवल भारत ही नहीं कुछ विदेशी डाकटिकटों में भी पलाश को प्रकाशित किया गया है। कंबोडिया द्वारा २५ अगस्त २००४ को जारी फूलों वालों पाँच डाकटिकटों की एक शृंखला मे इसे स्थान मिला है। ३० मिमि चौड़े और ४६ मि.मि. लंबे इस डाकटिकट नीचे की और दाहिनी तरफ इसका मूल्य ७०० कंबोडियाई राइल और बायीं और फूल का नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा अंग्रेजी में अंकित किया गया है। यही जानकारी ऊपर की ओर कंबोडिया की भाषा कंबुज में अंकित की गई है। बायीं ओर किंगडम आफ कंबोडिया लिखा है और दाहिनी ओर प्रकाशन का वर्ष अंकित किया गया है।
बाँग्लादेश द्वारा २९ अप्रैल १९७८ को फूलों वाली एक सुंदर शृंखला जारी की गई थी। कमल, चंपा, गुलमोहर, अमलतास, और कदंब के साथ, इसमें चार टाका मूल्य के एक डाकटिकट पर पलाश के खिले हुए पेड़ का सुंदर चित्र देखा जा सकता है। इस शृंखला के शिल्पी थे नवाज़श अहमद और एस.एस. बरुआ। इस टिकट के बायीं और बांग्लादेश के नीचे अंग्रेजी में पलाश और ब्यूटिया मोनोस्पर्मा लिखा गया है। उत्तराखंड डाक विभाग द्वारा प्रकाशित एक २ रुपये ५० पैसे मूल्य वाला पोस्टकार्ड भी है जिस पर अभय मिश्रा द्वारा खींची गई पलाश के फूलों की एक फोटो प्रकाशित की गई है। इसके प्रकाशन की तिथि का पता नहीं चलता लेकिन इस पर १ सितंबर १९८१ को प्रकाशित फूलों वाली शृंखला का पलाश वाला टिकट लगा हुआ है। इस पोस्टकार्ड को यहाँ देखा जा सकता है।
१९७४ में थाईलैंड द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पत्र लेखन सप्ताह के अवसर पर जारी चार टिकटों के एक सेट में अमलतास, चमेली तथा सावनी के फूल के साथ पलाश की एक प्रजाति ब्यूटिया सुपर्बा को प्रदर्शित किया गया था। इन टिकटों को वहाँ के सुप्रसिद्ध कलाकार श्री प्रवत पिपितपियपकोम ने डिज़ाइन किया था। टिकट पर दाहिनी ओर महीन अक्षरों में अँग्रेज़ी में इंटरनेशनल लेटर राइटिंग वीक १९७४ लिखा हुआ पढ़ा जा सकता है। इसके ऊपर यही वाक्य थाई भाषा में लिखा गया है। नीचे दाहिनी ओर पहले थाई और फिर अँग्रेज़ी में ब्यूटिया सुपर्बा रौक्स्ब लिखा गया है और बाईं ओर टिकट का मूल्य २.७५ बाट अंकित किया गया है।
आभार : अभिव्यक्ति.
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