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शनिवार, 6 सितंबर 2025

सितंबर ५, फुलबगिया, शिक्षक, दोहा, सॉनेट, पुनरुक्ति अलंकार, प्रातस्मरण स्तोत्र, नवगीत

 फुलबगिया विमोचित

रामबोड़ा श्रीलंका, ३० अगस्त २०२५। संस्कारधानी की भजनीक स्व. शांति देवी वर्मा की कृति राम नाम सुखदाई', भजन गायक दुर्गेश ब्यौहार लिखित 'रामायण भजनावली' तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित १२१ फूलों पर ७७ ओं की २७० रचनाओं का साझा संकलन 'फुलबगिया' का लोकार्पण, 'अशोक वाटिका' में, हनुमान जी के पवित्र पगचिन्ह के निकट, सीता नदी के पवित्र सलिल प्रवाह के मध्य हिंदीविद प्रोफेसर अर्जुन चव्हाण की अध्यक्षता, मुख्य अतिथि प्रो. प्रदीप सिंह के मुख्यातिथ्य, आचार्य इं. संजीव वर्मा 'सलिल', इं. दुर्गेश ब्योहार 'दर्शन', प्रो. वीणा सिंह, प्रो. सतीश कनौजिया की विशेष उपस्थिति में संपन्न हुआ। सांस्कृतिक शोध संस्थान मुंबई तथा विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस अंतर्राष्ट्रीय सारस्वत अनुष्ठान में मारिशस से पधारे दंपत्ति डॉ. ज्ञान धनुक चंद-डॉ. मिला धनुकचंद, डॉ. शीरीन कुरेशी इंदौर, हुस्न तबस्सुम 'निहां' मुंबई, प्रो. ऊषा शाह कोलकाता, ललित सिंह ठाकुर भाटापारा, डॉ. सुरेन्द्र साहू-श्रीमती साधना साहू जबलपुर, आनंद श्रीवास्तव-श्रीमती पूनम श्रीवास्तव प्रयागराज, प्रो. गोविंद 'निर्मल' मुंबई, श्री कालिका प्रसाद सेमवाल-श्रीमती बसंती सेमवाल गढ़वाल की सहभागिता उल्लेखनीय रही।

सलिल सृजन सितंबर ५
*
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया.
चक्षुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरूवे नम:
.
अज्ञान के तिमिर में ले ज्ञान की शलाका
जो आँख खोल देता उस गुरु को नमन है
*
सलिल दोहावली
शिक्षक
शिक्षक का वंदन करें, श्रद्धा सहित हमेश।
सीख सीख आगे बढ़ें, नर से बनें नरेश।।
शिक्षक ने शिक्षित किया, सबको एक समान।
हंस-काग दोनों पढ़े, किंतु रहे असमान।।
शिक्षक को सम्मान दे, सम्मानित हो छात्र।
वह गुड़ यह शक्कर बने, रहे न छाया मात्र।।
शिक्षक जो सिखला रहा, सीख सका क्या आप?
खुद से खुद ही प्रश्न कर, ले गहराई नाप।।
शिक्षक गुरु हो सके तो, शिष्य बनें भगवान।
गहते चरण सुरेश भी, भू पर बन इंसान।।
शिक्षक टीचर है नहीं, करता सिर्फ न टीच।
प्रीचर मत कहिए उसे, करे न केवल प्रीच।।
शिक्षक देता शिष्य को, सत्य सनातन सीख।
सबके जैसा है मगर, सबसे बेहतर दीख।।
शिक्षक भी इंसान हैं, यह सच कभी न भूल।
शोषित हो तो शिष्य का, कर भविष्य दे धूल।।
अति उत्तम आचार कर, शिक्षक हो आचार्य।
चीरे तम प्राचीर बन, रवि तो हो प्राचार्य।।
करे अध्ययन आप फिर, अध्यापन में लीन।
जो हो अध्यापक वही, दे दे हो नहिं दीन।।
शिक्षक से जो सीख ली, सिखलाएँ भी आप।
साथ न लेकर जाइए, ज्ञान सके जग व्याप।।
५.९.२०२४
•••
मुक्तक
तिमिर हरकर भोर करती है अरुणिमा।
शांत रहती, शोर नहिं करती अरुणिमा।।
जागरण संदेश देकर नित जगाती-
सकल जग को मुदित करती है अरुणिमा।।
•••
कुंडलिया
शक-सेना का अंत कर, वर श्रद्धा-विश्वास।
सक्सेस सक्सेना वरें, तम हर करें उजास।।
तम हर करें उजास, सुसंतति चित्रगुप्त की।
करते कठिन प्रयास, साधना ज्ञान लुप्त की।।
कहें सलिल कविराय, नियति से कभी डरे ना।
सक्सेना थे वीर, पराजित की शक सेना।।
५.९.२०२४
सॉनेट
नेता
*
मन की बात करे हर नेता,
जन की बात न उसको भाती,
वादे कर जुमला कह देता,
अच्छी लगती ठकुरसुहाती।
खुद विपक्ष से नफरत करता,
कहता 'वे नफरत करते हैं',
मिलने आएँ गले; न मिलता,
कहता ठठा 'गले पड़ते हैं'।
अंधभक्त जयकार गुँजाते,
चमचे चारण विरुद सुनाते,
'हुआ; न होगा' कह उकसाते,
अपनी छवि पर आप लुभाते।
खोई सत्ता क्रय कर लेता।
हारे तो भी बने विजेता।।
५-९-२०२३
***
सॉनेट
शिक्षक दिवस
नित्य नया सीखिए,
नित्य नव सिखाइए,
अग्रगण्य दीखिए,
राह नव दिखाइए।
अंधकार को गले,
दीप बन लगाइए,
दें प्रकाश गर ढले,
भोर रवि उगाइए।
बने क्षर अक्षर सभी,
शब्द नित सिखाइए,
भाव बिंब रस नदी,
नर्मदा बहाइए।
जीवन को जिताइए।
सजीवित बनाइए।।
५-९-२०२३
शिक्षक दिवस
•••
सॉनेट
शिक्षक
शिक्षक सब कुछ रहे सिखाते
हम ही सीख नहीं कुछ पाए
खोटे सिक्के रहे भुनाते
धन दे निज वंदन करवाए
मितभाषी गुरु स्वेद बहाते
कंकर से शंकर गढ़ पाए
हम ढपोरशंखी पछताते
आपन मुख आपन जस गाए
गुरु नेकी कर रहे भुलाते
हमने कर अहसान जताए
गुरु बन दीपक तिमिर मिटाते
हमने नाते-नेह भुनाए
गुरु पग-रज यदि शीश चढ़ाते
आदम हैं इंसान कहाते
५-९-२०२२
***
अलंकार सलिला
पुनरुक्ति अलंकार
*
पुनरुक्ति अथवा वीप्सा अलङ्कार में काव्य अथवा वाक्य में एक ही शब्द किसी भाव को पुष्ट करने के लिए उसी अर्थ में बार-बार प्रयोग किया जाता है। यथा इस अलङ्कार को परिभाषित करते हुए मेरा 'बार-बार' का उसी अर्थ में प्रयोग पुनरुक्ति है।
यह संस्कृत श्लोक वीप्सा अलङ्कार का सुन्दर उदाहरण है :
शैले-शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे-गजे।
साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने-वने ॥
इस अलङ्कार के तीन भेद हैं, और उन भेदों में भी सूक्ष्म विभेद हैं।
१. पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार - पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार में एक ही शब्द उसी रूप में दोबारा प्रयोग किया जाता है। इसके ७ भेद हैं :
१.१ सञ्ज्ञा पूर्ण पुनरुक्ति - जिसमें सञ्ज्ञा शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। साहिर लुधियानवी का लिखा, रवि का संगीतबद्ध किया और आशा भोंसले का गाया नीलकमल का यह गीत जिसमें रोम शब्द की पुनरुक्ति हुई है :
हे रोम रोम में बसने वाले राम
हे रोम रोम में बसने वाले राम
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी
मै तुझसे क्या माँगू?
१.२ सर्वनाम पूर्ण पुनरुक्ति — जिसमें सर्वनाम शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। जैसे, जी एम दुर्रानी के गाए कमर जलालाबादी के लिखे पण्डित अमरनाथ तथा हुस्नलाल-भगतराम के संगीत निर्देशन में मिर्जा-साहिबान (१९४७) का यह गीत जिसमें सर्वनाम शब्द 'कहाँ-कहाँ' पूर्ण पुनरुक्ति हुई है।
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ -२
बदनाम होगी मेरी कहानी कहाँ-कहाँ -२
ओ रोने वाले अब तेरा दामन भी फट गया -२
पहुँचेगी आँसुओँ की रवानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ
जिस बाग़ पर निगाह पड़ी वो उजड़ गया -२
बरसाऊँ अपनी आँख का पानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ
१.३ विशेषण पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'जाने-अनजाने' (१९७१) के लता मंगेशकर और मुहम्मद रफी के गाए, शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में हसरत जयपुरी के लिखे इस गीत में 'नीली नीली' शब्द का आँखों के विशेषण के रूप में प्रयोग
तेरी नीली नीली आँखों के
दिल पे तीर चल गए
चल गए चल गए चल गए
ये देख के दुनियावालों के
दिल जल गए
जल गए जल गए जल गए
१.४ क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति अलङ्कार - क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति प्रयोग 'झूम झूम' के रूप में 'अंदाज़' में नौशाद के संगीत निर्देशन में मुकेश के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। इस गीत में सञ्ज्ञा 'आज' तथा क्रिया 'नाचो' की भी पुनरुक्ति है। यह गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है।
झूम झूम के नाचो आज नाचो आज
गाओ खुशी के गीत हो
गाओ खुशी के गीत
आज किसी की हार हुई है,
आज किसी की जीत हो
गाओ खुशी के गीत हो
१.५ विस्मयादिबोधक पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'रामा रामा' के अनूठे प्रयोग से 'नया जमाना' (१९७१) लता मंगेशकर के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा गीतकार आनन्द बख्शी हैं।
हाय राम
रामा रामा गजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे
हाल हमारा अजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे
१.६ विभक्ति सहित पुनरुक्ति, इसमें पुनरुक्त शब्दों के मध्य में विभक्ति शब्द होता है। जैसे कि 'सन्त ज्ञानेश्वर' (१९६४) फिल्म के लिए मुकेश तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में शब्दों की पुनरावृत्ति के बीच विभक्ति सूचक शब्द 'से' का प्रयोग हुआ है। गीतकार भरत व्यास हैं तथा संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का है।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये जो दीन दुखी,
राह में आये जो दीन दुखी
सब को गले से लगते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
१.७ क्रिया पुनरुक्ति का प्रयोग भी कुछ गीतों में देखा जा सकता है। जैसे कि हेमन्त कुमार तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में क्रिया और क्रिया-विशेषण दोनों ही की पुनरावृत्ति होती है। पायल(१९५७) के इस गीत के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण तथा संगीतकार हेमन्त कुमार स्वयं ही हैं
चलो चले रे सजन धीरे धीरे
बलम धीरे धीरे सफर है प्यार का
खोई खोई है यह रात रंगीली
नजर है नशीली समां इकरार का
२. अपूर्ण पुनरुक्ति - इसके ३ प्रकार हैं।
२.१ दो सार्थक सानुप्रास शब्दों का मेल, यह शब्द सञ्ज्ञा, क्रिया, विशेषण, क्रिया-विशेषण कुछ भी हो सकते हैं। 'मिस इण्डिया' फिल्म के इस गीत में विभक्ति सहित सानुप्रास सञ्ज्ञा तथा सर्वनाम शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। राजेन्द्र कृष्ण के गीत को सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में शमशाद बेगम ने यह गीत गाया है।
है जैसे को तैसा
नहले पे दहला
दुनिया का प्यारे
असूल है ये पहला
जैसे को तैसा
नहले पे दहला
२.२ दो निरर्थक शब्दों की पुनरुक्ति से, जैसे खटा खट, झटा झट, फटाफट, फट फट, लाटू बाकू आदि इसका उदाहरण नीचे दिया गया है। जैसे किशोर कुमार और शमशाद बेगम के गाए इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का बहुतायत से प्रयोग हुआ है, और अनेक स्थानों पर सार्थक अथवा निरर्थक शब्दों का मेल दिखता है। प्रेम धवन के लिखे गीत को मदनमोहन ने संगीत दिया है फिल्म है 'अदा' (१९५१)।
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं उँचे सुरों में गाऊँ
मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
होय मैं उँचे सुरों में गाऊँ
अजि मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
सा रे गा
रे गा मा
गा मा पा
मा पा धा
पा धा नि
धा नि पा
नि सा रे ए ए ए
सा रे गा रे गा मा गा मा पा
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट फट झट फट
फट फट फट फट ट्र्र्रर्र्र
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
आओ दिल की बात करें
आप हमसे दूर रहें
हम तुम पे मरते हैं
हम तुमसे डरते हैं
हम जान लुटाते हैं
हम जान छुडाते हैं
हम दिल के
तुम दिल के खोटे हो
बेपेंदी के लोटे हो
डबल रोटे हो
तुम बहुत ही मोटे हो
ओएँऽऽऽऽ
आँऽऽऽऽ
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ
जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
तेरा इंतेज़ार है
जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
बालम आए बसो मोरे मन मै बा आ आ आऽऽऽऽ
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के बढ चढ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
बढ चढ के बढ चढ के
२.३ एक सार्थक और एक निरर्थक शब्द की पुनरुक्ति से, उदाहरणार्थ गोल-माल, गोल-मोल-झोल आदि। 'हाफ-टिकट' में किशोर कुमार के गाए, सलिल चौधरी के संगीत में सजे इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार के सभी रूपों का आनन्द लिया जा सकता है।
या या या ब ग या युं या ब ग उन
आ रहे थे इस्कूल से रास्ते में हमने देखा
एक खेल सस्ते में
क्या बेटा क्या आन मान
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुप-छुप-छुप तोता-मैना का मेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
थोड़ा नून, थोड़ी मिर्च, थोड़ी सूँठ, थोड़ा तेल
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह बोल
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए अरे वाह रे बेटा
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
तोंद में छुपाए हैं चिराग़-ए-अलादीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
ज़रा नाप, ज़रा तोल, इसे लूट, उससे छीन
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
किसपे यक़ीन करूँ मुश्किल सवाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
कहीं ढोल, कहीं पोल, सीधी बात टेढ़ी चाल
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह
उन बाबा मन की आँखें खोल
३. अनुकरणात्मक पुनरुक्ति अलङ्कार, इसमें किसी वस्तु की कल्पित ध्वनि को आधारित कर बने शब्दों का प्रयोग करते हैं। जैसे, रेल के लिए 'छुक छुक' (पिछले गीत में), बरसात के लिए 'रिमझिम', 'झमाझम', मेंढक की 'टर्र-टर्र', घोड़े की 'हिनहिन' आदि। इसमें सार्थक-निरर्थक किसी भी प्रकार के शब्द हो सकते हैं। जैसे मनोज कुमार की फिल्म 'यादगार' (१९७०) के इस गीत का मुखड़ा, वर्मा मलिक के इस गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने सुरों में सजाया है और महेन्द्र कपूर ने गाया है।
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
बात है लम्बी मतलब गोल
खोल न दे ये सबकी पोल
तो फिर उसके बाद
एक तारा बोले
तुन तुन सुन सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन
और अन्त में इस गीत में भी अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का पूर्ण आनन्द लें
ईना मीना डीका, डाइ, डामोनिका
माका नाका नाका, चीका पीका रीका
ईना मीना डीका डीका डे डाइ डामोनिका
माकानाका माकानाका चीका पीका रोला रीका
रम्पम्पोश रम्पम्पोश
विशेष टिप्पणी - वीप्सा अलङ्कार के समान ही यमक अलङ्कार में शब्दों की पुनरावृत्ति होती है, किन्तु इनमें अन्तर यह है कि वीप्सा / पुनरुक्ति अलङ्कार में शब्द का अर्थ एक ही होता है, किन्तु यमक अलङ्कार में स्थान के अनुसार शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। जैसे आशा भोंसले के गाए 'सौदागर' (१९७३) के इस गीत में सजना दो अर्थों में प्रयोग किया गया है, यह यमक अलङ्कार का उत्तम उदाहरण है। गीत और संगीत दोनों रवीन्द्र जैन के हैं।
सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
ज़रा उलझी लटें सँवार लूँ
हर अंग का रंग निखार लूँ
के सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
*
***
सरस्वती वंदना
लेखनी ही साध मेरी,लेखनी ही साधना हो।
तार झंकृत हो हृदय के,मात! तेरी वंदना हो।
शक्ति ऐसी दो हमें माँ,सत्य लिख संसार का दूँ।
सार समझा दूँ जगत का,ज्ञान बस परिहार का दूँ।
आन बैठो नित्य जिह्वा,कंठ में मृदु राग भर दो-
नाद अनहद बज उठे उर,प्राण निर्मल भावना हो।
काव्य हो अभिमान मेरा,तूलिका पहचान मेरी।
छंद रंगित पृष्ठ शोभित,वंद्य कूची शान मेरी।
छिन भले लो साज सारे,पर कलम को धार दो माँ-
मसि धवल शुचि नीर लेकर,अम्ब!तेरी अर्चना हो।
लिख सकूँ अरमान सारे,रच सकूँ इतिहास स्वर्णिम।
ठूँठ पतझर के हृदय पर,रख सकूँ मधुमास स्वर्णिम।
शब्द अभिधा अर्थ अभिनव,रक्त कणिका में घुला दो-
शारदे! निज कर बढ़ा दो,शुभ चरण आराधना हो।
लेखनी ही साध मेरी,लेखनी ही साधना हो।
तार झंकृत हो हृदय के,मात! तेरी वंदना हो।
५-९-२०१९
***
नव गीत
*
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का
पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर-
निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर
कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी
कहाँ सुधारी हैं?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
भाँग कुएँ में
घोल, हुए मदहोश सभी,
किसके मन में
किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे
पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें
मति गई मारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
एक अँगुली जब
तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं
आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे
थी भरमाई।
सोचें क्या-कब
हमने दशा सुधारी है?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
जैसा भी है
तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है
बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन,
सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी
जिसमें कुछ खुद्दारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
कौन सुधारे किसको?
आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी,
न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला,
सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी
सारे जग से न्यारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
११-८-२०१६
***
आदरणीय श्री संजीव सलिल जी के सम्मान में सादर समीक्षाधीन एक मुक्तक ।
= = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = =
कभी उसके मुकदमों में, वकालत हो नहीें सकती ।
कहे कोई भले उसकी, खिलाफत हो नहीें सकती ।
भले हो देर ही लेकिन, सदा वह न्याय करता है,
बड़ी उससे जमाने में, अदालत हो नहीें सकती ।
४-९-२०१६
गीतकार राजवीर सिंह
सबलगढ़ ( मुरैना ) म.प्र
फोन - 9827856799
***
प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) -संजीव 'सलिल'
II ॐ श्री गणधिपतये नमः II
*
प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यं
*
प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..
*
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
*
ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..
*
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
*
जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..
*
जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..
*
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..
*
नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..
***
***
नवगीत:
*
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
गड्ढों की
गिनती मत कर
मत खोज सड़क.
रुपया माँगे
अगर सिपाही
नहीं भड़क.
पैडल घुमा
न थकना-रुकना
बढ़ना है.
खड़ी चढ़ैया
दम-ख़म साधे
चढ़ना है.
बहा पसीना
गमछा लेकर
पोंछ, न रुक.
रामभरोसे!
बढ़ता चल
सुन सूरज की
बात: 'कीमती
है हर पल.'
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
बचुवा की
लेना किताब,
पैसे हैं कम.
खाँस-खाँस
अम्मा की आँखें
होतीं नम.
चाब न पाते
रोटी, डुकर
दाँत टूटे.
धुतिया फ़टी
पहन घरनी
चुप, सुख लूटे.
टायर-ट्यूब
बदल, खालिस
सपने मत बुन.
चाय-समोसे
गटक,
सवारी बैठा,
खाली हाथ
न मल.
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
डिजिटल-फिजिटल
काम न कुछ भी
आना है.
बिटिया को
लोटा लेकर ही
जाना है.
मुई सियासत
अपनेपन में
आग लगा.
दगा दे गयी
नहीं किसी का
कोई सगा.
खाली खाता
ठेंगा दिखा
चिढ़ाता है.
अच्छा मन
कब काम
कभी कुछ
आता है?
अच्छे दिन,
खा खैनी,
रिक्सा खींच
सम्हाल रे!
नहीं फिसल।
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
***
शुभकामनायें
रचना-रचनाकार को, नित कर नम्र प्रणाम
'सलिल' काम निष्काम कर, भला करेंगे राम
ईश्वर तथा प्रकृति को नमन कर निस्वार्थ भाव से कार्य करने से प्रभु कृपा करते हैं.
परमात्मा धारण करे, काया होकर आत्म
कहलाये कायस्थ तब, तजे मिले परमात्म
निराकार परब्रम्ह अंश रूप में काया में रहता है तो कायस्थ कहलाता है. जब वह काया का त्याग करता है तो पुन: परमात्मा में मिल जाता है.
श्री वास्तव में मिले जब, खरे रहें व्यवहार
शक-सेना हँस जय करें, भट-नागर आचार
वास्तव में समृद्धि तब ही मिलती है जब जुझारू सज्जन अपने आचरण से संदेहों को ख़ुशी-ख़ुशी जीत लेते हैं।
संजय दृष्टि तटस्थ रख, देखे विधि का लेख
वर्मा रक्षक सत्य का, देख सके तो देख
महाभारत युद्ध में संजय निष्पक्ष रहकर होनी को घटते हुए देखते रहे. अपनी देश और प्रजा के रक्षक नरेश (वर्मा = अन्यों की रक्षा करनेवाला) परिणाम की चिंता किये बिना अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार युद्ध कर शहीद हुए।
शांत रखे तन-मन सदा, शांतनु तजे न धैर्य
हो न यादवी युद्ध अब, जीवन हो निर्वैर्य
देश के शासक हर स्थिति में तन-मन शांत रखें, धीरज न तजें. आपसी टकराव (कृष्ण के अवसान के तुरंत बाद यदुवंश आपस में लड़कर समाप्त हुआ) कभी न हो. हम बिना शत्रुता के जीवन जी सकें।
सिंह सदृश कर गर्जना, मेघ बरस हर ताप
जगती को शीतल करे, भले शेष हो आप
परोपकारी बदल शेर की तरह गरजता है किन्तु धरती की गर्मी मिटाने के लिये खुद मिट जाने तक बरसता है।
***
पर्व नव सद्भाव के
*
हैं आ गये राखी कजलियाँ, पर्व नव सद्भाव के.
सन्देश देते हैं न पकड़ें, पंथ हम अलगाव के..
भाई-बहिन सा नेह-निर्मल, पालकर आगे बढ़ें.
सत-शिव करें मांगल्य सुंदर, लक्ष्य सीढ़ी पर चढ़ें..
शुभ सनातन थाती पुरातन, हमें इस पर गर्व है.
हैं जानते वह व्याप्त सबमें, प्रिय उसे जग सर्व है..
शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली, रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित, हो रही बहिना मगन..
धारे वसन हरितिमा के भू, लग रही है षोडशी.
सलिला नवोढ़ा नारियों सी, कथा है नव मोद की..
शालीनता तट में रहें सब, भंग ना मर्याद हो.
स्वातंत्र्य उच्छ्रंखल न हो यह, मर्म सबको याद हो..
बंधन रहे कुछ तभी तो हम, गति-दिशा गह पायेंगे.
निर्बंध होकर गति-दिशा बिन, शून्य में खो जायेंगे..
बंधन अप्रिय लगता हमेशा, अशुभ हो हरदम नहीं.
रक्षा करे बंधन 'सलिल' तो, त्याज्य होगा क्यों कहीं?
यह दृष्टि भारत पा सका तब, जगद्गुरु कहला सका.
रिपुओं का दिल संयम-नियम से, विजय कर दहला सका..
इतिहास से ले सबक बंधन, में बंधें हम एक हों.
संकल्पकर इतिहास रच दें, कोशिशें शुभ नेक हों..
***
कविता:
आत्मालाप:
*
क्यों खोते?, क्या खोते?,औ' कब?
कौन किसे बतलाए?
मन की मात्र यही जिज्ञासा
हम क्या थे संग लाए?
आए खाली हाथ
गँवाने को कुछ कभी नहीं था.
पाने को थी सकल सृष्टि
हम ही कुछ पचा न पाए .
ऋषि-मुनि, वेद-पुराण,
हमें सच बता-बताकर हारे
कोई न अपना, नहीं पराया
हम ही समझ न पाए.
माया में भरमाये हैं हम
वहम अहम् का पाले.
इसीलिए तो होते हैं
सारे गड़बड़ घोटाले.
जाना खाली हाथ सभी को
सभी जानते हैं सच.
धन, भू, पद, यश चाहें नित नव
कौन सका इनसे बच?
जब, जो, जैसा जहाँ घटे
हम साक्ष्य भाव से देखें.
कर्ता कभी न खुद को मानें
प्रभु को कर्ता लेखें.
हम हैं मात्र निमित्त,
वही है रचने-करनेवाला.
जिससे जो चाहे करवा ले
कोई न बचनेवाला.
ठकुरसुहाती उसे न भाती
लोभ, न लालच घेरे.
भोग लगा खाते हम खुद ही
मन से उसे न टेरें.
कंकर-कंकर में वह है तो
हम किससे टकराते?
किसके दोष दिखाते हरदम?
किससे हैं भय खाते?
द्वैत मिटा, अद्वैत वर सकें
तभी मिल सके दृष्टि.
तिनका-तिनका अपना लागे
अपनी ही सब सृष्टि.
कर अमान्य मान्यता अन्य की
उसका हृदय दुखाएँ.
कहें संकुचित सदा अन्य को
फिर हम हँसी उड़ाएँ..
कितना है यह उचित?,
स्वयं सोचें, विचार कर देखें.
अपने लक्ष्य-प्रयास विवेचें,
व्यर्थ अन्य को लेखें..
जिनके जैसे पंख,
वहीं तक वे पंछी उड़ पाएँ.
ऊँचा उड़ें,न नीचा
उड़नेवाले को ठुकराएँ..
जैसा चाहें रचें,
करे तारीफ जिसे भाएगा..
क्या कटाक्ष-आक्षेप तनिक भी
नेह-प्रीत लाएगा??..
सृजन नहीं मसखरी,न लेखन
द्वेष-भाव का जरिया.
सद्भावों की सतत साधना
रचनाओं की बगिया..
शत-शत पुष्प विकसते देखे
सबकी अलग सुगंध.
कभी न भँवरा कहे: 'मिटे यह,
उस पर हो प्रतिबन्ध.'
कभी न एक पुष्प को देखा
दे दूजे को टीस,
व्यंग्य-भाव से खीस निपोरे
जो वह दिखे कपीश..
नेह नर्मदा रहे प्रवाहित
चार दिनों का साथ.
जीते-जी दें कष्ट
बिछुड़ने पर करते नत माथ?
माया है यह, वहम अहम् का
इससे यदि बच पाये.
शब्द-सुतों का पग-प्रक्षालन
करे 'सलिल' तर जाये.
५-९-२०१०
***

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