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शनिवार, 14 दिसंबर 2024

दिसंबर १४, व्यंग्य गीत, हाइकु, मुक्तिका, श्री राधे, Poem, सॉनेट, नर्मदा, व्यंग्य मुक्तिका,नाक्षत्रिक छंद

सलिल सृजन दिसंबर १४
*
नवोन्वेषित नाक्षत्रिक छंद
विधान- दो पद, चार चरण, पदभार २७, यति १४-१३, तुकांत गुरु-लघु।

भय की नाम-पट्टिका पर, लिख दें साहस का नाम।
कोशिश कभी न हारेगी, बाधा को दें पैगाम।।
*
नक्षत्र

भारतीय ज्योतिष के अनुसार चंद्र पथ से जुड़े तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। सूर्य मेष से लेकर मीन तक भ्रमण करता है जबकि चंद्रमा अश्विनी से रेवती तक भ्रमण करता है। नक्षत्र सूची अथर्ववेदतैत्तिरीय संहिताशतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं। एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज है उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा रहेगा। ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति से सबको पहचान सकते हैं। पहचान के लिये तारों के मिलने से बने आकार के आधार पर तारकपुंज का नाम रखा गया है। 

चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर 'नक्षत्र चक्र' कहलाता है। २७ नक्षत्रों की संख्या, नाम, स्वामी और आकृति इस प्रकार  हैं-

नक्षत्रतारासंख्याआकृति और पहचान
०१. अश्विनीघोड़ा
०२. भरणीत्रिकोण
०३. कृत्तिकाअग्निशिखा
०४. रोहिणीगाड़ी
०५. मृगशिराहरिणमस्तक वा विडालपद
०६. आर्द्राउज्वल
०७. पुनर्वसु५ या ६धनुष या धर
०८. पुष्य१ वा ३माणिक्य वर्ण
०९, अश्लेषाकुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
१०. मघाहल
११. पूर्वाफाल्गुनीखट्वाकार X उत्तर दक्षिण
१२. उत्तराफाल्गुनीशय्याकारX उत्तर दक्षिण
१३. हस्तहाथ का पंजा
१४. चित्रामुक्तावत् उज्वल
१५. स्वातीकुंकुं वर्ण
१६. विशाखा५ व ६तोरण या माला
१७. अनुराधासूप या जलधारा
१८. ज्येष्ठासर्प या कुंडल
१९. मूल९ या ११शंख या सिंह की पूँछ
२०. पूर्वाषाढ़ासूप या हाथी का दाँत
२१. उत्तरषाढ़ासूप
२२. श्रवणबाण या त्रिशूल
२३. धनिष्ठा प्रवेशमर्दल बाजा
२४. शतभिषा१००मंडलाकार
२५. पूर्वभाद्रपदभारवत् या घंटाकार
२६. उत्तरभाद्रपददो मस्तक
२७. रेवती३२मछली या मृदंग

इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त 'अभिजित्' नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है। इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।

२७ नक्षत्र हैं- अश्विन, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती। 

नक्षत्रों की चार श्रेणियाँ अंध लोचन, मंद लोचन, मध्य लोचन और सुलोचन हैं। पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा। पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, रेवती तथा रोहिणी अंध लोचन नक्षत्र है। मंद लोचन नक्षत्र आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, अश्विनी तथा मृगशिरा है। मध्य लोचन नक्षत्र मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, पूर्व भाद्रपद, भरणी एवं आर्द्रा हैं। पूर्वा फाल्गुनी, स्वाति, मूल, भरण, उत्तरा भाद्रपद, कृतिका व  पुनर्वसु सुलोचन नक्षत्र हैं। 

इन २७ नक्षत्रों के ९ गृह स्वामी हैं।  १. केतु- आश्विन मघा  मूल, २. भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा ३. रवि- कार्तिक, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा षाढ़ा ४. चंद्र- रोहिणी, हस्त, श्रवण ५. मंगल- मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा ६. राहु- आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा ७. बृहस्पति- पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद ८. 

शनि- पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद ९. बुध- आश्लेषा, ज्येष्ठा रेवती।

***

भाषा और शब्द

        भाषा के शब्द प्रतीक हैं। इस कारण अर्थवान उच्चरित खंडों का अपने वाच्य से प्राकृत सम्बन्ध न होकर याद्दच्छिक सम्बन्ध होता है।यादृच्छिकता का अर्थ है अपनी इच्छा से माना हुआ सम्बन्ध। शब्द द्वारा हमें उस पदार्थ या भाव का बोध होता है जिससे वह सम्बद्ध हो चुका होता है।

        शब्द स्वयं पदार्थ नहीं है। हम किसी वस्तु को उसके जिस नाम से पुकारते हैं उस नाम एवं वस्तु में परस्पर कोई प्राकृत एवं समवाय सम्बन्ध नहीं होता। उनका सम्बन्ध स्वेच्छाकृत मान्य होता है। इसी कारण भाषा का शब्द स्वतः स्फूर्त नहीं होता। हम समाज में रहकर भाषा को सीखते हैं। कोई समाज किसी वस्तु के लिए जिस नाम की स्वीकृति दे देता हैं वही नाम उस समाज में उस वस्तु के लिए प्रयुक्त होने लगता है। यही कारण है कि एक ही वस्तु के अलग-अलग भाषाओं में प्रायःभिन्न वाचक मिलते हैं। 

        यदि शब्द एवं वस्तु का प्राकृत एवं समवाय सम्बन्ध होता तो संसार भर की भाषाओं में एक वस्तु का एक ही वाचक होता किंतु ऐसा नहीं है। एक ही वस्तु को अनेक नामों से पुकारा जाता है। यथा - ' हिन्दी में, जिसे कुत्ता कहते हैं उसको अंग्रेजी में ‘डॉग' (dog) ; चीनी में ‘गोऊ’(gou) ; इटैलियन में ‘कैने’(cane) ; स्पेनिश में ‘पेरो’ (perro) ; जर्मन में ‘हुण्ड’(Hund) ; तथा रूसी में सुबाका(sobaka) कहते हैं।

        भारतीय भाषाओं मे भी एक ही पदार्थ के अनेक वाचक मिल जाते हैं-हिन्दी के गेहूँ को पंजाबी में कणक, गुजराती में धउँ, बंगला एवं असमियों में गम अथवा गाम कहते हैं। हिन्दी की आँख मराठी में डोला, तमिल में कणमणि , कन्नड़ में पापे बोली जाती है। गर्दन को पंजाबी में धौण, मराठी में मानू, असमिया में दिङि, उडि़या में बेक तथा तमिल एवं मलयालम में कलुत्तुँ कहते हैं। हिन्दी में भोजन करते हैं, मराठी गुजराती में जेवण या जमण करते हैं। इसके विपरीत एक ही शब्द विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न अर्थों में भी प्रयुक्त होता है।
***
सॉनेट
चंद्र मणि

गगन अँगूठी रत्न चंद्र मणि जगमग चमके,
अवलोके जो दाँतों में अँगुलियाँ दबाए,
धरती मैया सुता निहारे बलि बलि जाए,
तारक दीप्ति मंद हो कहिए कैसे दमके?
गड़ गड़ मेघा रूठे क्रोधित गरजे-बमके
पवन वेग से दौड़े-भागे खून जलाए,
मिले चंद्र मणि नहीं; इंद्र बरसात कराए,
सूरज कर दीदार न पाए दिन भए तमके।
भोले भण्डारी हँस लेते सजा शीश पर,
नाग कंठ में लटकाकर हर करें सुरक्षा,
अमिय-जहर का साथ अनूठा जग जग हेरे।
जैसा भाव दिखे वैसा ही कवि कहते अक्सर,
दे प्रज्ञान चित्र, विक्रम को भाए कक्षा,
निरख चंद्र मणि रूप सलिल साथी को टेरे।
१४.१२.२०२३
•••
सॉनेट
रश्मि
रश्मि कौंधती प्राची में तब पौ फटती है,
रश्मिरथी नीलाभ गगन को रँगें सुनहरा,
पंछी करते कलरव झूमे पवन मसखरा,
आलस की कुहराई रजाई भी हटती है।
आँखें खुलें मनुजता भू पर पग धरती है,
गिरि चढ़, नापे समुद, गगन में भी वह विचरा,
रश्मि सूर्य शशि की मोहे पग वहाँ भी धरा,
ग्रह-उपग्रह जय करने की कोशिश करती है।
रश्मि ज्ञान की दे विवेक सत-सुंदर-शिव भी,
नश्वर माया की छाया से मुक्त हो सकें,
काया साधन पा साधें जन-गण के हित को।
रहने योग्य रहे यह धरती, मिले विभव भी,
क्रोध घृणा विद्वेष सके हर मानव मन खो,
रश्मि प्रकाशित करें निरंतर जीवन-पथ को।
१४.१२.२०२३
•••
व्यंग्य मुक्तिका
घना कोहरा, घुप्प अँधेरा मुँह मत खोलो।
अंध भक्त हो नेता जी की जय जय बोलो।।
संविधान की गारंटी का मोल नहीं है।
नेता जी की गारंटी सुन मटको-डोलो।।
करो विभाजित नित समाज को, मेल मिटाओ।
सद्भावों के शर्बत में नफ़रत विष घोलो।।
जो बीता सो बीता कह आगे मत बढ़ना।
खोद विवादों के मुर्दे जीवन को तोलो।।
मार कुल्हाड़ी आप पैर पर आप हाथ से।
हँस लेना लेकिन पहले थोड़ा तो रो लो।।
१४.१२.२०२३
•••
सॉनेट
नर्मदा
नर्मदा सलिला सनातन,
करोड़ों वर्षों पुरानी,
हर लहर कहती कहानी।
रहो बनकर पतित पावन।।
शिशु सदृश यह खूब मचले,
बालिका चंचल-चपल है,
किशोरी रूपा नवल है।
युवा दौड़े कूद फिसले।।
सलिल अमृत पिलाती है,
शिवांगी मोहे जगत को।
भीति भव की मिटाती है।।
स्वाभिमानी अब्याहा है,
जगज्जननी सुमाता है।
शीश सुर-नर नवाता है।।
१४-१२-२०२२
जबलपुर,७•४७
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***
Poem:Again and again
Sanjiv
*
Why do I wish to swim
Against the river flow?
I know well
I will have to struggle
More and more.
I know that
Flowing downstream
Is an easy task
As compared to upstream.
I also know that
Well wishers standing
On both the banks
Will clap and laugh.
If I win,
They will say:
Their encouragement
Is responsible for the success.
If unfortunately
I lose,
They will not wait a second
To say that
They tried their best
To stop me
By laughing at me.
In both the cases
I will lose and
They will win.
Even then
I will swim
Against the river flow
Again and again.
***
अभिनव प्रयोग
मुक्तिका
श्री राधे
*
अनहद-अक्षर अजर-अमर हो श्री राधे
आत्मा आकारित आखर हो श्री राधे
इला इडा इसरार इजा हो श्री राधे
ईक्षवाकु ईश्वर ईक्षित हो श्री राधे
उदधि उबार उठा उन्नत हो श्री राधे
ऊब न ऊसर उपजाऊ हो श्री राधे
एक एक मिल एक रंग हो श्री राधे
ऐंचातानी जग में क्यों हो श्री राधे?
और न औसर और लुभाओ श्री राधे
थके खोजकर क्यों ओझल हो श्री राधे
अंत न अंतिम 'सलिल' कंत हो श्री राधे
अ: अ: आहा छवि अब हो श्री राधे
(प्रथमाक्षर स्वर)
१४-१२-२०१९
***
नव गीत :
क्यों करे?
*
चर्चा में
चर्चित होने की चाह बहुत
कुछ करें?
क्यों करे?
*
तुम्हें कठघरे में आरोपों के
बेड़ा हमने।
हमें अगर तुम घेरो तो
भू-धरा लगे फटने।
तुमसे मुक्त कराना भारत
ठान लिया हमने।
'गले लगे' तुम,
'गले पड़े' कह वार किया हमने।
हम हैं
नफरत के सौदागर, डाह बहुत
कम करें?
क्यों करे?
*
हम चुनाव लड़ बने बड़े दल
तुम सत्ता झपटो।
नहीं मिले तो धमकाते हो
सड़कों पर निबटो।
अंग हमारे, छल से छीने
बतलाते अपने।
वादों को जुमला कहते हो
नकली हैं नपने।
माँगो अगर बताओ खुद भी,
जाँच कमेटी गठित
मिल करें?
क्यों करे?
*
चोर-चोर मौसेरे भाई
संगा-मित्ती है।
धूल आँख में झोंक रहे मिल
यारी पक्की है।
नूराकुश्ती कर, भत्ते तो
बढ़वा लेते हो।
भूखा कृषक, अँगूठी सुख की
गढ़वा लेते हो।
नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि
निज करे।
क्यों करे?
संजीव
१४-१२-२०१८
***
जो बूझे सो ज्ञानी
छन्नी से छानने पर जो पदार्थ ऊपर रह जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो नीचे गिर जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो उपयोगी पदार्थ हो उसे क्या कहते हैं?, जो निरुपयोगी पदार्थ हो उसे क्या कहते हैं?
अनाज या रेत छानने पर नीचे गिरा पदार्थ उपयोगी होता है जबकि मेवा आदि छानने पर ऊपर रह गए बड़े दाने अधिक कीमती होते हैं।
छानन का क्या मतलब है?
क्या जलज और जलद की तरह छानने के लाए गए पदार्थ को छानज, छानने के बाद मिले पदार्थ को छानद और शेष पदार्थ को छानन कहना उचित होगा?
*
नवगीत
संसद-थाना
जा पछताना।
जागा चोर, सिपाही सोया
पाया थोड़ा, ज्यादा खोया
आजादी है
कर मनमाना।
जो कुर्सी पर बैठा-ऐंठा
ताश समझ जनता को फेंटा
मत झूठों को
सच बतलाना।
न्याय तराजू थामे अंधा
काले कोट कर रहे धंधा
हो अन्याय
न तू चिल्लाना।
बदमाशों के साथ प्रशासन
लोकतंत्र है महज दु:शासन
चूहा बन
मनमाना खाना।
पंडा-डंडा, झंडी-झण्डा
शाकाहारी है खा अंडा
प्रभु को दिखा
भोग खुद खाना।
14.12.2016
***
एक दोहा-
चीका, बळी, फेदड़ी, तेली, खिजरा, खाओ खूब
भारत की हर भाषा बोलो, अपनेपन में डूब
***
उत्तर प्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ की स्मारिका १९८८ में प्रकाशित मेरे हाइकु
१.
ईंट रेट का
मन्दिर मनहर
देव लापता
*
२.
क्या दूँ मीता?
भौतिक सारा जग
क्षणभंगुर
*
गोली या तीर
सी चुभन गंभीर
लिए हाइकु
*
स्वेद-गंग है
पावन सचमुच
गंगा जल से
*
पर पीड़ा से
अगर न पिघला
तो मानव क्या?
*
मैले मन को
उजला तन क्यों
देते हो प्रभु?
*
चाह नहीं है
सुख की दुःख
साथी हैं सच्चे
*
मद-मदिरा
मत मुझे पिला, दे
नम्र भावना
*
इंजीनियर
लगा रहा है चूना
क्यों खुद को ही?
***
नवगीत
*
शब्दों की भी मर्यादा है
*
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा
क्यों उल्लास-ख़ुशी हुडदंगा?
शब्दों का मत दुरूपयोग कर.
शब्द चाहता यह वादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
शब्द नाद है, शब्द ताल है.
गत-अब-आगत, यही काल है
पल-पल का हँस सदुपयोग कर
उत्तम वह है जो सादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
सुर, सरगम, धुन, लय, गति-यति है
समझ-साध सदबुद्धि-सुमति है
कर उपयोग न किन्तु भोग कर
बोझ अहं का नयों लादा है?
शब्दों की भी मर्यादा है
१४-१२-२०१६
***
व्यंग्य गीत
*
बंदर मामा
चीन्ह -चीन्ह कर
न्याय करे
*
जो सियार वह भोगे दण्ड
शेर हुआ है अति उद्दण्ड
अपना-तेरा मनमानी
ओह रचे वानर पाखण्ड
जय जय जय
करता समर्थ की
वाह करे
*
जो दुर्बल वह पिटना है
सच न तनिक भी पचना है
पाटों बीच फँसे घुन को
गेहूं के सँग पिसना है
सत्य पिट रहा
सुने न कोई
हाय करे
*
निर्धन का धन राम हुआ
अँधा गिरता खोद कुँआ
दोष छिपा लेता है धन
सच पिंजरे में कैद सुआ
करते आप
गुनाह रहे, भरता कोई
विवश मरे
१२.१२. १५
***
नवगीत:
नवगीतात्मक खंडकाव्य रच
महाकाव्य की ओर चला मैं
.
कैसा मुखड़ा?
लगता दुखड़ा
कवि-नेता ज्यों
असफल उखड़ा
दीर्घ अंतरा क्लिष्ट शब्द रच
अपनी जय खुद कह जाता बच
बहुत हुआ सम्भाव्य मित्रवर!
असम्भाव्य की ओर चला मैं
.
मिथक-बिम्ब दूँ
कई विरलतम
निकल समझने
में जाए दम
कई-कई पृष्ठों की नवता
भारी भरकम संग्रह बनता
लिखूं नहीं परिभाष्य अन्य सा
अपरिभाष्य की ओर चला मैं
.
नवगीतों का
मठाधीश हूँ
अपने मुँह मिट्ठू
कपीश हूँ
वहं अहं का पाल लिया है
दोष थोपना जान लिया है
मानक मान्य न जँचते मुझको
तज अमान्य की ओर चला मैं
***
नवगीत:
निज छवि हेरूँ
तुझको पाऊँ
.
मन मंदिर में कौन छिपा है?
गहन तिमिर में कौन दिपा है?
मौन बैठकर
किसको गाऊँ?
.
हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?
गूँज रहे हैं किसके किस्से??
कौन जानता
किसको ध्याऊँ?
.
कौन बसा मन में अनजाने?
बरबस पड़ते नयन चुराने?
उसका भी मन
चैन चुराऊँ?
***
दोहा
हहर हहर कर हर रही, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-कहर चुप प्राण-मन, आप्लावित हैं नैन
१४-१२-२०१४

***       


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