-: गोंड़ दुर्ग मदन महल : एक अध्ययन :-
संजीव वर्मा 'सलिल', अभियंता
मयंक वर्मा, वास्तुविद
* प्रस्तावना
मदन महल पहुँच पथ, निर्माण काल, निर्माणकर्ता आदि।
भारत के हृदयप्रदेश मध्य प्रदेश के मध्य में सनातन सलिला नर्मदा के समीप बसे पुरातन नगर संस्कारधानी जबलपुर में जबलपुर-नागपुर मार्ग पर से लगभग ४.५ किलोमीटर दूर, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के सामने, तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ तक्नोलोजी की और जा रहे पथ पर मदन महल दुर्ग के ध्वंसावशेष हैं। इसके पूर्व प्रकृति का चमत्कार 'कौआडोल चट्टान' (संतुलित शिला,बैलेंस्ड रॉक) के रूप में है। यहाँ ग्रेनाइट पत्थर की विशाल श्याम शिला पर दूसरी श्याम शिला सूक्ष्म आधार पर स्थित है। देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि एक कौआ भी आकर बैठे तो चट्टान पलट जाएगी पर १९९३ में आया भयानक भूकंप भी इसका बाल-बाँका न कर सका।
मदन महल दुर्ग सन १११६ ईसवी में गोंड़ नरेश मदन शाह द्वारा बनवाया गया।१ गोंड़ साम्राज्य की राजधानी गढ़ा जो स्वयं विशाल दुर्ग था, के निकट मदन महल दुर्ग निर्माण का कारण, राज-काज से श्रांत-क्लांत राजा के मनोरंजन हेतु सुरक्षित स्थान सुलभ करने के साथ-साथ आपदा की स्थिति में छिपने अथवा अन्य सुरक्षित किलों की ओर जा सकने की वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराना रह होगा। गढ़ा का गोंड़ साम्राज्य प्राकृतिक संपत्ति से समृद्ध था।
* गोंड़
भारत भूमि का 'गोंडवाना लैंड्स' नामकरण दर्शाता है कि गोंड़ भारत के मूल निवासी हैं। गोंड़ प्राकृतिक संपदा से संपन्न, सुसंस्कृत, पराक्रमी, धर्मभीरु वनवासी प्रजाति हैं जिनसे अन्य आदिवासी प्रजातियों, कुलों, कुनबों, वंशों आदि का उद्भव हुआ। गोंड़ संस्कृति प्रकृति को 'माता' मानकर उसका संवर्धन कर पोषित होती थी। गोंड़ अपनी आवश्यकता से अधिक न जोड़ते थे, न प्रकृति को क्षति पहुँचाते थे। प्रकृति माँ, प्राकृतिक उपादान पेड़-पौधे, नदी-तालाब, पशु-पक्षी आदि कुल देव। अकारण हत्या नहीं, अत्यधिक संचय नहीं, वैवाहिक संबंध पारस्परिक सहमति व सामाजिक स्वीकृति के आधार पर, आहार प्राकृतिक, तैलीय पदार्थों का उपयोग न्यून, भून कर खाने को वरीयता, वनस्पतियों के औषधीय प्रयोग के जानकार। गोंड़ लोगों ने १३ वीं और १९ वीं शताब्दी ईस्वी के बीच गोंडवाना में शासन किया था। गोंडवाना वर्तमान में मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग और ओडिशा के पश्चिमी भाग के अंतर्गत आता है। भारत के कटि प्रदेश - विंध्यपर्वत,सिवान, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम - में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहनेवाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति, जो संभवत: पाँचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। आज भी मोदियाल गोंड़ जैसे समूह गोंडों की जातीय भाषा गोंड़ी बोलते हैं जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है। आस्ट्रोलायड नस्ल की जनजातियों की भाँति विवाह संबंध के लिये गोंड भी सर्वत्र दो या अधिक बड़े समूहों में बँटे रहते हैं। एक समूह के अंदर की सभी शांखाओं के लोग 'भाई बंद' कहलाते हैं और सब शाखाएँ मिलकर एक बहिर्विवाही समूह बनाती हैं। विवाह के लिये लड़के द्वारा लड़की को भगाए जाने की प्रथा है। भीतरी भागों में विवाह पूरे ग्राम समुदाय द्वारा सम्पन्न होता है और वही सब विवाह संबंधी कार्यो के लिये जिम्मेदार होता है। ऐसे अवसर पर कई दिन तक सामूहिक भोज और सामूहिक नृत्यगान चलता है। हर त्यौहार तथा उत्सव का मद्यपान आवश्यक अंग है। वधूमूल्य की प्रथा है और इसके लिए बैल तथा कपड़े दिए जाते हैं।
युवकों की मनोरंजन संस्था - गोटुल का गोंड़ों के जीवन पर बहुत प्रभाव है। बस्ती से दूर गाँव के अविवाहित युवक एक बड़ा घर बनाते हैं। जहाँ वे रात्रि में नाचते, गाते और सोते हैं; एक ऐसा ही घर अविवाहित युवतियाँ भी तैयार करती हैं। बस्तर के मारिया गोंड़ों में अविवाहित युवक और युवतियों का एक ही कक्ष होता है जहाँ वे मिलकर नाच-गान करते हैं।
गोंड खेतिहर हैं और परंपरा से दहिया खेती करते हैं जो जंगल को जलाकर उसकी राख में की जाती है और जब एक स्थान की उर्वरता तथा जंगल समाप्त हो जाता है तब वहाँ से हटकर दूसरे स्थान को चुन लेते हैं। सरकारी निषेध के कारण यह प्रथा समाप्तप्राय है। गाँव की भूमि समुदाय की सपत्ति होती है, खेती के लिये परिवारों को आवश्यकतानुसार दी जाती है। दहिया खेती पर रोक लगने से और आबादी के दबाव के कारण अनेक समूहों को बाहरी क्षेत्रों तथा मैदानों की ओर आना पड़ा। वनप्रिय होने के कारण गोंड समूह खेती की उपजाऊ जमीन की ओर आकृष्ट न हो सके। धीरे-धीरे बाहरी लोगों ने इनके इलाकों की कृषियोग्य भूमि पर सहमतिपूर्ण अधिकार कर लिया। गोंड़ों की कुछ उपजातियां रघुवल, डडवे और तुल्या गोंड आदि सामान्य किसान और भूमिधर हो गए हैंअन्य खेत मजदूरों, भाड़ झोंकने, पशु चराने और पालकी ढोने जैसे सेवक जातियों के काम करते हैं।
गोंडों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से भी प्रसिद्ध है जहाँ १५ वीं तथा १७ वीं शताब्दी राजगौंड राजवंशों के शासन स्थापित थे। अब यह मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में है। उड़ीसा, आंध्र और बिहार राज्यों में से प्रत्येक में दो से लेकर चार लाख तक गोंड हैं।
किला/दुर्ग :
राजपरिवार के निवास तथा सुरक्षा के लिए महल बनाए जाते थे। महल के समीप बड़ी संख्या में दास-दासी, सैनिक, सवारी हेतु प्रयुक्त पशु, दूध हेतु गाय-भैंस, मनोरंजन हेतु पशु-पक्षी तथा उनके लिए आवश्यक आहार, अस्त्र-शस्त्रादि के भंडारण, पाकशाला आदि की सुरक्षा था प्राकृतिक आपदा या शत्रु आक्रमण से बचाव के लिए किले, दुर्ग, गढ़ आदि का निर्माण किया जाता था।
* किला 'कोट' (अरबी किला) चौड़ी-मजबूत दीवालों से घिरा स्थान होता था। इसमें प्रजा भी रह सकती थी। 'गढ़' (पुर-ऋग्वेद) छोटे किले होते थे। 'दुर्ग' सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य, अजेय होता था। दुर्ग की तरह अजेय देवी 'दुर्गा' शक्ति के रूप में पूज्य हैं। दुर्ग कई प्रकार के होते थे जिनमें से प्रमुख हैं -
अ. धन्व दुर्ग - धन्व दुर्ग थल दुर्ग होते हैं जिनके चतुर्दिक खाली ढलवां जमीन, बंजर मैदान या मरुस्थली रेतीली भूमि होती थी जिसे पार कर किले की ओर आता शत्रु देखा जाकर उस पर वार किया जा सके।
आ. जल दुर्ग - इनका निर्माण समुद्र, झील या नदी में पाने के बीच टापू या द्वीप पर किया जाता है। इन पर आक्रमण करना बहुत कठिन होता है। लंका समुद्र के बीच होने के कारण ही दुर्ग की तरह सुरक्षित थी। ये किले समतल होते हैं। टापू के किनारे-किनारे प्राचीर, बुर्ज तथा दीप-स्तंभ व द्वार बनाकर शत्रु का प्रवेश निषिद्ध कर दिया जाता है।
गिरि दुर्ग, गुहा दुर्ग, वन दुर्ग, नर दुर्ग।
* मदन महल स्थल चयन:
१. प्राकृतिक सुरक्षा-निगरानी, २. मजबूत जमीनी आधार, ३. ऊँचाई, ४. निर्माण सामग्री की सुलभता, ५. पहुँच एवं निकासी मार्ग, ६. अदृश्यता, ७. पेय जल की उपलब्धता, ८. परिवेश : पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, पशु-पक्षी, ९. छिपने-छिपाने के स्थल (गुफाएँ)।
* मदन महल निर्माण की आवश्यकताएँ :
राज्य विस्तार, सुरक्षा, प्रतिष्ठा, बसाहट, भण्डारण, रोजगार, शिल्प कौशल का विकास, सैन्य प्रशिक्षण।
* मदन महल का रूपांकन :
किले का आकार और विस्तार, विभिन्न भवनों की स्थिति, जल स्रोत, राज निवास, सैन्य दल, पाक शाला, पशु शाला, जन सामान्य आदि।
* मदन महल का शिल्प और वास्तु :
ईकाइयों का निर्धारण, परिमाप तथा आकार, दिशावेध, लंबाई-चौड़ाई-ऊँचाई, द्वार-वातायन, कक्ष, प्रकाश तथा वायु संचरण, दीवालें और प्राचीरें, स्तंभ, छत, मेहराब, गुंबद, आले, मुँडेर, प्रतीक चिन्ह आदि।
* मदन महल की निर्माण सामग्री और तकनीक : मिट्टी, मुरम, पत्थर, ईंटें, गारा, लकड़ी, लोहा।
* मदन महल भावी विकास :
पर्यटन स्थल, उद्यान, फुहारे, जैव पर्यटन, पक्षी संरक्षण, मत्स्य संरक्षण, सर्प संग्रहालय, गोंड़ संग्रहालय, निकटवर्ती पर्यटन स्थल आदि।
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संदर्भ
१. सिंह ब्योहार राजेंद्र, त्रिपुरी का इतिहास, पृष्ठ १८३।
मदन महल किले के बारे में एक कहानी यह भी प्रचलित है कि यहां दो सोने की ईटें गड़ी हुई हैं। जिसे अब तक कोई खोज नहीं सका है। दरअसल, यह कहानी "मदन महल की छाँव में, दो टोंगों के बीच। जमा गड़ी नौं लाख की, दो सोने की ईंट।" कहावत के कारण मशहूर होने की बात बताई जाती है।
- यह किला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है फिर भी यहां आप शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा सा तालाब और अस्तबल देख सकते हैं।
- प्रचलित कहानियों के मुताबिक, गोंड राज्य पर लगातार मुगलों द्वारा हमले किए जा रहे थे, जिस कारण इस किले को उस वक्त वॉच टावर के रूप में तब्दील कर दिया गया।
- बताया जाता है कि ये सुरंग मंडला जाकर खुलती थी। इस सुरंग के रास्ते रानी दुर्गावती मंडला से इस किले तक आती थीं।
- वहीं किले का एक रास्ता यहां से पास शारदा मंदिर तक जाता है। कहा जाता है कि रानी दुर्गावती इस मंदिर में पूजा करती थी।
- जो एक पहाड़ी पर जमीन से लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर है।
- किले की चोटी पर पहुंचने पर आपको जबलपुर शहर का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देगा।
इसके अलावा नागपुर, भोपाल, रायपुर से भी जबलपुर तक पहुंचा जा सकता है।
जिस पहाड़ी पर मदन महल किला बना हुवा हैं, एक समय पहाड़ी खूबसूरत वृक्षों से आच्छादित थी। यहां सीता फल के बगीचे थे, जो पूरे देश में प्रसिद्ध थे। यहां जंगल में चीते, शेर और जंगली जानवर भी थे। हालांकि सैनिक छावनी होने की वजह से यहां सख्त पहरा होता था। और परिंदे को भी यहां पर मारने की इजाजत नहीं थी।
यह किला आज खंडहर में तब्दील हो चुका है फिर भी यहां आप शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा सा तालाब और अस्तबल देख सकते हैं। किले में रानी की यादें अब भी बसी हुई हैं। वह पत्थर आज भी यहां देखने मिलता है जिस पर दुर्गावती अपने घोड़े पर बैठकर किले के नीचे छलांग लगाकर युद्ध का अभ्यास करती थीं।
मदन महल किला एक बड़ी ग्रेनाईट चट्टान को तराशकर बनाया गया है। जो एक पहाड़ी पर जमीन से लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर है। किले की चोटी पर पहुंचने पर आपको जबलपुर शहर का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देगा।
प्रचलित कहानियों के मुताबिक, गोंड राज्य पर लगातार मुगलों द्वारा हमले किए जा रहे थे, जिस कारण इस किले को उस वक्त वॉच टावर के रूप में तब्दील कर दिया गया।
ज़मीन से लगभग ५०० मीटर की ऊँचाई पर बने इस मदन महल की पहाड़ी काफी पुरानी मानी जाती है। इसी पहाड़ी पर गौंड़ राजा मदन शाह[1] द्वारा एक चौकी बनवायी गई। इस किले की ईमारत को सेना अवलोकन पोस्ट के रूप में भी इस्तमाल किया जाता रहा होगा।[2] [3] इस इमारत की बनावट में अनेक छोटे-छोटे कमरों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ रहने वाले शासक के साथ सेना भी रहती होगी। शायद इस भवन में दो खण्ड थे। इसमें एक आंगन था और अब आंगन के केवल दो ओर कमरे बचे हैं। छत की छपाई में सुन्दर चित्रकारी है। यह छत फलक युक्त वर्गाकार स्तम्भों पर आश्रित है। माना जाता है, इस महल में कई गुप्त सुरंगे भी हैं जो जबलपुर के 1000 AD में बने '६४ योगिनी 'मंदिर से जोड़ती हैं।
यह दसवें गोंड राजा मदन शाह का आराम गृह भी माना जाता है। यह अत्यन्त साधारण भवन है। परन्तु उस समय इस राज्य कि वैभवता बहुत थी। खजाना मुग़ल शासकों ने लूट लिया था।
गढ़ा-मंडला में आज भी एक दोहा प्रचलित है - मदन महल की छाँव में, दो टोंगों के बीच। जमा गड़ी नौं लाख की, दो सोने की ईंट।
यह भवन अब भारतीय पुरातत्व संस्थान की देख रेख में है।
मदन महल किला अतीत के स्थापत्य वैभव का एक शानदार उदाहरण है। मदन महल किले को दुर्गावती किले के नाम से भी जाना जाता है यह किला राजा की माता रानी दुर्गवती से भी जुड़ा है। जो की एक बहादुर गोंड रानी के रूप में जानी जाती है इसे दुर्गावती के वाच टॉवर या सैनिक छावनी के नाम से भी जाना जाता है। मदन महल किला, मध्य भारत के किलों में से एक है। मध्य प्रदेश राज्य को विभिन्न भौगोलिक स्थलों के लिए जाना जाता है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों में अधिकांश धरोहरें जैसे महलों, किलों, cenotaphs और प्राचीन मंदिर आदि पाए जाते हैं क्योंकि ऐसे क्षेत्र चट्टानी और सूखे हैं। इसलिए, इस क्षेत्र में निर्माण के लिए कच्चे माल तक पहुंचना आसान है।यह 1116 में था जब राजा मदन शाह नाम के गोंड शासक ने इस किले का निर्माण किया था। यह किला जबलपुर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है। एक प्रहरीदुर्ग है जो आज भी इस किले पर पाया जाता है। यह मुख्य रूप से गोंडवाना शासन के दौरान प्रहरीदुर्ग के रूप में इस्तेमाल किया गया था। शासक इस टॉवर से हमलावरों या दुश्मनों पर अच्छी नजर रखते थे। यह काफी ऊंचा है और यह दूर से हमलावरों के मूवमेंट को आसानी से ट्रेस कर सकता है। यदि आप किले के ऊपरी हिस्से में जाते हैं, तो आपको पूरे जबलपुर शहर का मनोरम दृश्य देखने को मिलेगा। मदन महल किला मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर नगर में स्थित है। यह उन शासकों के अस्तित्व का साक्षी है, जिन्होंने यहाँ 11वीं शताब्दी में काफ़ी समय के लिए शासन किया था। राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया यह किला शहर से क़रीब दो किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह किला राजा की माँ रानी दुर्गावती से भी जुड़ा हुआ है, जो कि एक बहादुर गोंड रानी के रूप के जानी जाती है। फिलहाल खंडहर में तब्दील हो चुका यह किला रानी दुर्गावती और उनकी पूरी तरह से सुसज्जित प्रशासन व सेना के बारे में काफ़ी कुछ बयान करता है। शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा सा जलाशय और अस्तबल को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह पर्यटन के लिए कितनी सही जगह है। इस किले से प्राचीन काल के लोगों के रहन-सहन का भी पता चलता है। साथ ही इससे उस समय के रॉयल्टी का भी अंदाजा हो जाता है। बेशक, मदन मोहन किला भारत के आकर्षक प्राचीन स्मारकों में से एक है, जिसे जबलपुर जाने पर अवश्य घूमना चाहिए।[१]
इतिहास
कलचुरी काल के बाद जबलपुर मे गोंड शासकों का दौर आया। उस समय गढ़ा गोन्ड राज्य की राजधानी हुआ करता था। जो की गोंड शासक मदन शाह के द्वारा स्थापित की गयी थी, उसके बाद राजा संग्राम शाह ने 52 गढ़ स्थापित किये। मदन महल की स्थापना गोंड शासक मदन शाह ने की थी। फिर राजा दलपत शाह और रानी दुर्गावती ने राजधानी गढ़ा की कमान सम्भाली। आज भी यह किला रानी दुर्गावती के किले के नाम से ही जाना जाता है। यह भवन अब भारतीय पुरातत्व संस्थान की देख रेख में है।मदन महल किला उन शासकों के अस्तित्व का साक्षी है, जिन्होंने यहां 11वीं शताब्दी में काफी समय के लिए शासन किया था। राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया यह किला शहर से करीब दो किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह किला राजा की मां रानी दुर्गावती से भी जुड़ा हुआ है, जो कि एक बहादुर गोंड रानी के रूप के जानी जाती है। फिलहाल खंडहर में तब्दील हो चुका यह किला रानी दुर्गावती और उनकी पूरी तरह से सुसज्जित प्रशासन व सेना के बारे में काफी कुछ बयान करता है। शाही परिवार का मुख्य कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा सा जलाशय और अस्तबल को देखकर आप इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकेंगे। इस किले से प्रचीन काल के लोगों के रहन-सहन का भी पता चलता है। साथ ही इससे उस समय के रॉयल्टी का भी अंदाजा हो जाता है।
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मदन महल किले का इतिहास गोंडवाना राजाओं के शासनकाल में जाता है कि इस किले को दसवें गोंड राजा मदन सिंह का सुख महल कहा जाता था। वह रानी दुर्गावती के पुत्रों में से एक थे। वर्तमान में, यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बनाए रखा गया है। उन्होंने इस किले को बेहतरीन तरीके से बनाए रखा है। हालांकि, किले के अंदर एक तालाब है, जिसका रखरखाव नहीं किया जाता है। कई काले बंदर किले के अंदर और बाहर घूमते हैं। इस किले में आने वाले पर्यटकों को उनके बारे में पता होना चाहिए क्योंकि वे कई स्थितियों में आक्रामक भी हो सकते हैं।मदन महल किले का निर्माण 11 वीं शताब्दी में गोंड शासक मदन सिंह के अधीन किया गया था। जब आप मदन महल का दौरा करेंगे, तो आप कमरे, गुप्त मार्ग को एक भागने के मार्ग, छोटे जलाशय प्राचीन लिपियों आदि के रूप में देख सकते हैं। जब आप किले की छत पर पहुँचेंगे तो आप जबलपुर का हवाई दृश्य देख सकते हैं, यही कारण है कि इस स्थान का उपयोग किया गया था एक सैन्य पद के रूप में। यह भी कहा गया था कि इस किले में गोंड रानी रानी दुर्गावती (गोंड वंश का सोना) का सोना या खजाना था। मदन महल अपनी संरचना और स्थापत्य कला के कारण सबसे पेचीदा प्राचीन स्मारकों में से एक रहा है, जो एक तरह से आपको किले की यात्रा करने के लिए मजबूर करेगा।
- वार रूम
- शासकों के मुख्य सुख चैम्बर्स
- छोटा तालाब
- तस्वीरें लेना
- पिसनहरि की माजिया
- भगवान शिव की प्रतिमा
- बैलेंसिंग रॉक्स
- डुमना नेचर रिजर्व
- भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानें
- धुआंधार फाल्स
शारदा देवी मंदिर
मुख्य लेख : शारदा देवी मंदिरमदन महल किले की पूर्वी पहाड़ी पर स्थित है शारदा देवी का प्राचीन मन्दिर, जिसके बारे मे कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गोंड शासकों ने ही करवाया था। यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रति सोमवार को एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसी मंदिर के कारण मदन महल मुख्य सड़क पर स्थित द्वार का नाम शारदा चौक पड़ा है |
सन्तुलित चट्टान
शारदा देवी मन्दिर से नीचे उतरते ही है संतुलित चट्टान, जिसे "Balance Rock" कहा जाता है, इस चट्टान का संतुलन देखते ही बनता है। जबलपुर मे 22 मई 1997 को आए भूकंप मे भी ये चट्टान टस से मस नहीं हुई है।
झिरिया वाले बाबा
संतुलित चट्टान से कुछ ही आगे है झिरिया वाले बाबा की मज़ार। मज़ार के समीप ही एक छोटा सा कुआँ है, जिसके पानी को स्थानीय लोग चमत्कारिक मानते हैं। मान्यता है कि इस पानी से सारी शारीरिक एवं मानसिक व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
जिन्नाती मस्ज़िद
मदन महल किले के समीप ही है जिन्नाती मस्ज़िद, पहाड़ी के ऊपर बनी ये मस्ज़िद बहुत ही सुंदर है। मस्ज़िद बहुत ही पुरानी है।
दरगाह
किले के पश्चिमी छोर पर है दरगाह जो बहुत ही पवित्र स्थान है। सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र है।
गोंड समुदाय के गोत्र नाम विशेष रुप से पशु ,पक्षी ,पेड, पौधे, वेली, लता ,फूल ,पत्ते किटक और अन्य जीवों के नामों पर संरचित है .
कुछ गोत्र नामों के अंत्य पद और प्रतिक निम्ननुसार है
अंत्य पद — प्रतिक म = पेड ,पौंधे
याम = प्राणी
पा = दूध
मी = मछली
वी = वेली
ची = पत्ती
ती = किटक
का = पंजा
मेन्ता = चरAdvertisementsREPORT THIS ADआदी होते है.
इस तरह ;
म = याने मडा (पेड )
याम = याने प्राणी
पा = याने पाल (दुध )
मी = याने मीन (मछली )
वी = याने वेली ( लता)
ची = याने आची (पत्ती)
ती = याने तीली (किटक)
का = याने काल (पंजा )
मेन्ता =याने मेईन्ता(विचरणा)
ऐसा अर्थ अभीप्रेत है .1) अंगाम = अंगा मडा(आंजन पेड )
2) अक्काम = अक्का मडा(अकोला पेड )
3) अर्राम = अर्रा मडा(हरदा पेड )
4) अग्राम = अग्रा मडा(रोहणी पेड )
5) अतराम = अतरा मडा(अमरुद पेड )
6) अचलाम = अचला मडा( गराडी पेड )
7) अडमें = अडमी(भैस )
8) आडाम = अडा मडा(सुपारी पेड )
9) आडे = अडेजाल(रीछ)
10) आलाम = अला मडा(अदरक पौदा )
11) अट्टामी = अट्टा मीन(काटवा मछली )
12) अर्काम = अर्का मडा(खारक पेड )
13) अडियाम = अडी याम(ऐडका )
14) अहाका = अहा काल(कस्तुरी पंजा )
15) ओयाम = ओय मडा(कटुंबर पेड )
16) अरमो = अरमी(भैस )
17) ओट्टी = ओत्ती( लावा)
18) अडमाची = अडमा आची (धावडा पत्र)
19) अरावी = अरवीली (किडा)
20) अक्राम = अक्रा मडा( धना पेड )
21) अलनाका = अलना काल ( चूहे का पंजा )
22) अचाम = अच मडा(गवार पौदा )
23) अडोपा = अडो पाल(भेड का दुध )
24) अस्टाम = अस्टा मडा(अनार पेड )
25) अक्कामी = अक्का मीन( बोमील मछली )
26) अर्राका = अर्रा काल(घडीयाल )
27) ओलांडी = ओल आंडी( लोमडी )
28) इंदराम = इंदरा मडा(चंदर जोती )
29) इडगाम = इडगा मडा(पिस्ता पेड )
30) इरपाची = इर पाची(महुआ पत्र)
31) इनवाती = इन वाती( हाथी सुंड )
32) इलगाम = इलगा मडा(हिउर पेड )
33) इरुकाम =इरुक मडा(महुआ पेड )
34) इरुपा = इरुक पाल(महुआ दुध )
35) इरुपुंगाम = इरुक पुंगार(महुआ फूल )
36) उंदराम = उंदरा मडा(लोखंडी पेड )
37) उईका = उई काल(शेर का नख )
38) उर्सेंडी = उर्से येंडी(कुरमुडा )
39) उरेती = उती(पखरंज)
40) उर्रामी = उरा मीन(वागुर मछ्ली )
41) उर्पाम = उर्पा मडा(रुई पौंदा )
42) एडाम = एडा मडा(कराई पेड )
43) एलाम = एला मडा(इलायची पेड )
44) एलनाका = एलना जाल ( मछली चिन्ह )
45) कटराम = कटरा मडा(ककई पेड )
46) केडाम = केडा मडा(बनफूल पौंदा )
47) किडगाम = किडगा मडा ( खरासली पेड )
48) कीरकाटा = कीर काटा( सुरे काटा )
49) कुचाम = कुचा मडा(बबूल पेड)
50) कुडगाम =कुडगा मडा(माहुर पौंदा )
51) किट्टामी = किट्टा मीन(छोटी मछली )
52) कोगाम = कोगा मडा( तंबाकू पौदा )
53) कोडापा = कोडा पाल( घोडे का दुध )
54) कोराम = कोरा मडा( अखरोट पेड )
55) कठोताम = काठोता मडा ( जाय फल )
56) कोर्काटा = कोर काटा(मुरगा कात्ती )
57) कडीयामी = कडीया मीन ( काली मछली )
58) कातलामी = कातला मीन ( कतला मछली )
59) कीराम = कीरा मडा( खिरनी पेड )
60) कुसराम = कुसरा मडा(तुवल पौदा )
61) कुल मेन्ता = कुलमेईन्ता ( कुल चर )
62) कुमराम = कुमरा मडा( सिंधी पेड )
63) केराम = केरा मेडा(केली का पौदा )
65) कोटनाका = कोटना काल ( हिरण पंजा )
66) कोहचाडा =कोहचाडाल( कोहला पौदा )
67) कंगाली = कंगा वेली( करवंद बेल )
68) कन्नाका = कन्ना काल ( मधुमख्खी )
69) कवरती = कवर तीली(भौरा )
70) काटींगा = काटीं गाल( काटींगा बेल )
71) किरंगा = कीरं गाल(किरंग बेल )
72) कुंजाम = कुंजा मडा(करंजी पेड )
73) कोडवाती = कोडवाती(धान हरा )
74) कोरवती = कोरवती( मुर्गी पंख )
75) कोरची = कोरचीवाल(मुर्गी बच्चा )
76)कोकिडीया=कोकोडीयाल(बकरा पालक)
77) कोवाची = कोवा आची (बंदर पत्ती )
78) कोवा = कोवाल(बंदर )
79) कोवासी = कोवा सीर(बंदर सीरी )
80) कोरेटी = कोर एटी( मुरगी बकरी )
81) कुरसेंगा कुर सेंगा(मुंगना फल्ली )
82) कण्डाता = कण्डा ताहे( तलवार बाज )
83) खण्डाता = खण्डा ताहे(तलवार धारक )
84) गेडाम = गेडा मडा(जंगली पेड)
85) गजाम = गजा मडा( गज निंबू )
86) गट्टामी = गट्टा मीन(बोटरा मछली )
87) गोटामी = गोटा मीन(गोता मछली )
88) गोरंगा = गोर अंगाल( गन्ना वाला )
89) घोडाम = घोडा मडा(कुछला मडा )
90) चिलाम = चीला मडा( पानी का पौदा )
91) चिंगाम = चिंगा मडा(चंदरो पेड )
92) चिटराम = चिटरा मडा(भेरा पेड )
93) चिडगाम = चिडगा मडा(बदाम पेड )
94) चिचाम = चिचा मडा(इमली पेड )
95) चिडाम = चिडा मडा(बैचंदी पौदा )
96) जुमनाका = जुमना काल ( बीबट पंजा )
97) चितकामी = चितका मीन ( चाचडी मछली )
98) जिंगामी = जींगा मीन(झिंगा मछली )
99) जोडाम = जोडा मडा(साथी पेड )
100) टेकाम = टेका मडा( साग पेड )
101) टक्कामी = टक्का मीन ( टक्का मछली )
102) टंगाम = टंगा मडा(बचरा पेड )
103) टोप्पा = टोप्पाल(उंबर दुध )
104) तुम्माली = तुम्मा वेली( कद्दु वेल )
105) तुमराम = तुमरी मडा( तेंदु पेड )
106) तुमराची = तुमरा आची(तेंदु पत्ता )
107) तोराम = तोरा मडा(बिजा पेड )
108) तोयाम = तोया मडा(उंबर पेड )
109) तोपा = तोया पाल( उंबर दुध )
110) तोडसाम = तोडसा मडा ( तुलसी पेड )
111) तोडासा = तोडा साल(सर्प )
112) तीडाम = तीडा मडा(तीवडी पौदा )
113) तिलगाम = तीलगा मडा ( तुर्रा पेड )
114) तुलावी = तुल वेली(चाचेर बेल )
115) तलांडी = तला अण्डी(सीर चंदी )
115) ताडाम = ताडा मडा(ताड पेड )
116) ताराम = ताडाम का रुप है
117) दर्रो = दर्रो वेली(चल वेली )
118) दुर्याम = दुर्या मडा(सालूम पेड )
119) धुर्वा = धुर्वाल(अग्र वाहक )
120) दुर्राम = दुर्रा पेड( भेरा पेड )
121) नवरती = नवर तीली( धान किटक )
122) नायका = नाय काल( कुत्ता पंजा )
123) नेलाम = नेला मडा( जवार पौदा )
124) नयताम = नय ताम (कुत्ता)
125) नईताम = नई ताम(कुत्ता )
126) नेताम = ने ताम(कुत्ता )
127) परतेते = परते तीली(चीटी )
128) पुराम = पुरा मडा(सुर्य फूल )
129) पदाम = पदा मडा(रसई पेड )
130) पाटावी = पाटा वेली(पान वेली )
131) पुर्काम = पुर्का मडा(भोपडा पौदा )
132) परचाकी = पर चाकी
( परास पत्ती )
133) पंदाम = पंदा मडा( देव पेड )
134) पेंदाम = पेंदा मडा(देव पेड )
135) पेंडाम = पेंडा मडा( पेंडा मडा )
136) पुसाम = पुसा मडा( पोस्ता पेड )
137) पोरेटी = पोर माटी( कमल पौदा )
138) पुर्रे = पुरये(तीतली)
139) पंदरोम = पेंडरा मडा( फेटरी पेड )
140) पंदराम = पेंडरा मडा (फेटरी पेड )
141) पोयाम = पोय मडा( अमुडा पेड )
142) बगाम = बगा मडा( धोबनी पेड )
143) बुदराम = बुदरा मडा( बास पौदा )
144) बिकराम = बिकरा मडा ( बुकारा पेड )
145) बोगा = बोगा मीन( बोद मछली )
146) बोगामी = बोगा मीन( बोद मछली )
147) भलावी = भल वेली( सिंगाडा वेल )
148) भोजाम = भोजा मडा( भोज पेड )
149) बीजाम = बिजा मडा( बीजा पेड )
150) बिलाम = बिला मडा(बेल पेड )
151) बेलाम = बेला मडा( बेल पेड )
152) बेलाची = बेला आंची( बैल पत्री )
153) भीराम = भीरा मडा( भिर्या पेड )
154) मंगाम = मंगी मडा( आंजन पेड )
155) मुरापा = मुरा पाल( गाय का दुध)
156) मरापा = मरा पाल(पेड का दुध)
157) मराई = मरा इली(पेड बेला )
158) मरावी = मडा वीली( पेड बेला )
159) मंडावी = मडा वीली( पेड बेला )
160) मडावी = मडा वीली(पेड बेला )
161) मसराम = मसरा मडा( सेलवट पेड )
162) मेसराम = मसरा मडा( सेलवट पेड )
163) मसरे = मसरा मडा( सेलवट )
164) मलगाम = मलगा मडा( मोर पेड )
165) मुरपाची = मुर पाची( पलस पत्ती )
166) मुराम = मुरा मडा( पलस पेड )
167) मुरपुंगाम = मुर पुंगार( पलस फुल )
168) मरकाम = मरका मडा ( आम पेड )
169) मरसकोला = मरस कोला ( केसला मडा )
170) मर्स कोला = मर्स कोला ( कुलाडी दांडा )
171) राय मेन्ता = राय मेईता ( अधर बेल )
172) रायसीराम = राय सीरा मडा ( सेर पेड )
173) वेलादी = वेलयादी( नाग का प्रकार )
174) वेडका = वेड काल( बिल्ली पंजा )
175) वरकडा = वरकाड( जंगली बिल्ली )
176) वेलाम = वेला मडा( उडद पौदा )
177) वलका = वल काल( चीता का पंजा )
178) वट्टी = वट माटी( सुरन कंद )
179) सरीयाम = सरी याम( सर्री किटक )
180) सई याम = सई याम(सेई प्राणी )
181) सय्याम = सई याम( सेई प्राणी )
182) सराटी = सरी माटी (सक्कर कंद )
183) सरुता = सरु ताल(जरु किडा )
184) सरोता = सरु ताल( जरु किडा )
185) सिरसाम = सिरसा मडा ( सिरस पेड )
186) सिंदराम = सिंदरा मडा( सींदी पेड )
187) सीराम = सीर मडा( तीवस पेड )
188) सीडाम = सीर मडा( तीवस पेड )
189) सिंगराम = सिंगरा मडा ( सिंगा पेड )
190) सल्लाम = सल्ला मडा( सालई पेड )
191) सल्लामी = सल्ला मीन( बोध मछली )
192) सुरपांडा = सूर पांडा( घोडा स्वार )
193) सेरमाका = सेरमा काल (सियार पंजा )
194) सेडमाके = सेरमा काल ( सियार पंजा )
195) सडमाका = सेरमा काल ( सियार पंजा )
196) हल्लामी = सल्लामी का रुप
197) हिडाम = सिडाम का रुप
198) हिचामी = हिच्चा मीन( बाम मछली )
199) तुर्राम = तुर्रा मडा( केकती पौदा )
200) घडीयाम = घडी मडा( मौवई पौदा )
201) रेलकाया = रेल काय( मुंगना फल )
202) येन्नाम = येन मडा(साजा पेड )
203) कारीयाम = कारय मडा ( कारय पेड )
204) सर्याम = सरय मड( शाल वृक्ष)
205) कोहकाम = कोहका मडा ( बिलवा पेड )
206) टहकाम = टहका मडा(बेहडा पेड )
207) घोराम = घोरा मडा(कुछला पेड )
208) नल्लाम = नली मडा( आवला पेड )
209) सरेकाम = सरेका मडा( अचार पेड )
210) हित्ताम = हित्तुम मडा( कौउ पेड )
211) लेंडराम = लेंडरा मडा(लोखंडी पेड )
212) लेंडीयाम = लेंडी मडा( जामुन पेड )
213) अल्लीयाम = अल्ली याम ( चुहा )
214) मूरयाम = मुरा याम(गाय )
215) सीरीयाम = सीडी याम( मिठ्ठ्यु )
216) तुम्माम = तुम्मा मडा(कद्दु पौदा )
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