दोहा सलिला
गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर.
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर.
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत
गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्य
गरज-गरज कर जा रहे, बिन बरसे घन श्याम.
शशि-मुख राधा मानकर, लिपटे क्या घनश्याम.
***
क्षणिका
१. त्यागपत्र
*
पद से त्यागपत्र
पद की प्राप्ति हित
अभूतपूर्व अनुष्ठान।
*
२. जाँच
*
सत्तासीन का
हर झूठ सच।
सताहीन का
हर झूठ सच।
किसी पर न आये आँच
होती है,
हो जाने दो जाँच।
*
३. जय-जय
*
तुम अपना
हम अपना
साधें स्वार्थ।
होकर अभय
साथ-साथ करें
एक-दूसरे की
जय-जय।
४. फिर क्यों?
*
दोनों एक साथ
करें एक सा काम
पायें एक सा अंजाम
फिर क्यों
एक शहीद
दूसरा मारा गया?
*
५. गोष्ठी
श्रोता हैं तो
मित्र को पढ़ाओ
बिन सुने ताली बजाओ।
श्रोता नहीं तो
पढ़ा दो किसी को भी
सफल हो गयी गोष्ठी।
***
क्षणिकाएँ...
*
१. वंदना
*
कर पाता दिल
अगर वंदना
तो न टूटता
यह तय है.
*
२. समाधान
*
निंदा करना
बहुत सरल है.
समाधान ही
मुश्किल है.
*
३. सियासत -१
*
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
४. सियासत -२
तुम्हारा हर झूठ
सच है
हमारा हर सच
झूठ है
यही है आज की
सियासत
दोस्त ही
करता अदावत.
*
५.. शब्द सिपाही
*
मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
*
अंतिम दो देवी नागरानी जी ने सिंधी में अनुवादित कर आमने-सामने काव्य संग्रह में मूल सहित प्रकाशित कीं.
सियासत
तुंहिजो हर हिकु झूठ
सचु आहे
मुंहिंजो हर हिकु सचु
झूठ आहे
इहाई आहे
अजु जी सियासत
दोस्त ई
कन दुश्मनी
*
लफ्ज़न जो सिपाही
*
मां आहियाँ अदनो
लफ्जन जो सिपाही.
अर्थ साणु डियन
लफ्ज़ गवाही.
*
***
क्षणिकायें:
१. आभार
*
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
२. वरदान
*
ज़िन्दगी भरा चाहा
किन्तु न पाया.
अवसर मिला
तो नाहक गँवाया.
मन से किया
कन्यादान.
पर भूल गए
करना वरदान.
*
३. कविता
भाव सलिला से
दर्द की उषा किरण
जब करती है अठखेली
तब जिंदगी
उसे बनाकर सहेली
कर देती है कविता.
***
गीत
पुरुष
*
तुम्हें न देखूँ
तो शिकायत
किया करता हूँ अदेखा
पुरुष हूँ न.
.
तुम्हें देखूँ
तो शिकायत
देखता हूँ
पुरुष हूँ न.
.
काश तुम लो
आँख मुझसे फेर
मुझको कर अदेखा
जी सकूँ मैं चैन से
पुरुष हूँ न.
२७-७-२०१७
***
सामयिक फाग:
दिल्ली के रंग
*
दिल्ली के रंग रँगो गुइयाँ।
जुलुस मिलें दिन-रैन, लगें नारे कई बार सुनो गुइयाँ।।
जे एन यू में बसो कनैया, उगले ज़हर बचो गुइयाँ।
संसद में कालिया कई, चक्कर में नाँय फँसो गुइयाँ।।
मम्मी-पप्पू की बलिहारी, माथा ठोंक हँसो गुइयाँ।।
छप्पन इंची छाती पंचर, सूजा लाओ सियों गुइयाँ।।
पैले आप-आप कर रए रे, छूटी ट्रेन न रो गुइयाँ।।
नेताजी खों दाँव चूक रओ, माया माँय धँसो गुइयाँ।।
थाना फुँका बता रईं ममता, अपराधी छूटो गुइयाँ।।
सुसमा-ईरानी जब बोलें, चुप्पै-चाप भगो गुइयाँ।।
***
२०.३.२०१६
नवगीत
*
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो स्याह सुफेद सरीखो
तुमरो धौला कारो दीखो
पंडज्जी ने नोंचो-खाओ
हेर सनिस्चर भी सरमाओ
घना बाज रओ थोथा दाना
ठोस पका
हिल-मिल खा जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो पाप पुन्न सें बेहतर
तुमरो पुन्न पाप सें बदतर
होते दिख रओ जा जादातर
ऊपर जा रो जो बो कमतर
रोन न दे मारे भी जबरा
खूं कहें आँसू
चुप पी जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
8.2.2016
लोकगीतधारित नवगीत -
भुन्सारे चिरैया
*
नई आई,
बब्बा! नई आई
भुन्सारे चरैया नई आई
*
पीपर पै बैठत थी, काट दओ कैंने?
काट दओ कैंने? रे काट दओ कैंने?
डारी नें पाई तो भरमाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
सैयां! नई आई
*
टला में पीयत ती, घूँट-घूँट पानी
घूँट-घूँट पानी रे घूँट-घूँट पानी
टला खों पूरो तो रिरयाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
गुइयाँ! नई आई
*
फटकन सें टूंगत ती बेर-बेर दाना
बेर-बेर दाना रे बेर-बेर दाना
सूपा खों फेंका तो पछताई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
लल्ला! नई आई
*
८-२-२०१६
नवगीत :
का बिगार दओ?
*
काए फूँक रओ बेदर्दी सें
हो खें भाव बिभोर?
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
हँस खेलत ती
संग पवन खें
पेंग भरत ती खूब।
तेंदू बिरछा
बाँह झुलाउत
रओ खुसी में डूब।
कें की नजर
लग गई दइया!
धर लओ मो खों तोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
काट-सुखा
भर दई तमाखू
डोरा दओ लपेट।
काय नें समझें
महाकाल सें
कर लई तुरतई भेंट।
लत नें लगईयो
बीमारी सौ
दैहें तोय झिंझोर
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
जिओ, जियन दो
बात मान ल्यो
पीओ नें फूकों यार!
बढ़े फेंफडे में
दम तुरतई
गाड़ी हो नें उलार।
चुप्पै-चाप
मान लें बतिया
सुनें न कौनऊ सोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
अपनों नें तो
मेहरारू-टाबर
का करो ख़याल।
गुटखा-पान,
बिड़ी लत छोड़ो
नई तें होय बबाल।
करत नसा नें
कब्बऊ कौनों
पंछी, डंगर, ढोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
बात मान लें
निज हित की जो
बोई कहाउत सयानो।
तेन कैसो
नादाँ है बीरन
साँच नई पहचानो।
भौत करी अंधेर
जगो रे!
टेरे उजरी भोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
२१-११-२०१५
कालिंदी विहार लखनऊ
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