मंदिर क्या है वास्तुशिल्प का, सुन्दर एक नमूना है |
भागीरथी की अँगूठी में, जैसे जड़ा नगीना है ||
माँ की प्रतिमा दुष्ट जनों को, विकट रूप दर्शाती है |
देव प्रयाग का मुख्य मंदिर, मंदिर है रघुनाथ |
स्वर्ण मंडित शिखरवाला, भव्य और विशाल ||
गर्भगृह में सौम्य राम की भव्य प्रतिमा साजे |
श्रृंगार स्वर्णाभूषणयुत, भव्य मुकुट शीश विराजे ||
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25 जुलाई 2021, रविवार को भारत में एक प्राचीन मंदिर, तेलंगाना में स्थित काकतिय “रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर” को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित ‘विश्व धरोहर स्थल’ की सूची में सम्मिलित किए जाने के अवसर पर 'यूनेस्को, “विश्व धरोहर स्थल” की सूची में सम्मिलित तैरते पत्थरों से निर्मित, वरंगल, तेलंगाना का ‘रामप्पा मंदिर’ दक्कन के दुर्गम पठारों की यात्रा' का नेतृत्व करते हुए विश्व वात्सल्य मंच की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती संपत देवी मुरारका ने अपनी सखियों एम.दीपिका,, स्निग्धा योतिकर, पद्मलता जड्डू, सीता अग्रवाल, गीता अग्रवाल आदि के साथ स्थाक का भ्रमण मात्र नहीं किया अपितु स्थल की विशेषताओं को निरखा-परखा। यह संस्मरणात्मक आलेख अनेक बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित है। पाठक वहाँ बिना गए ही स्थल की ऐतिहासिकता, भव्यता और रमणीयता का आनंद ले सकता है।
साहित्यिक निबंधकार सम्पत जी
'सुभद्रा कुमारी चौहान का व्यक्तित्व एवं कृतित्व' शीर्षक लेख में लेखिका संपाद जी का एक भिन्न पहलू उद्घाटित होता है।वे सुभद्रा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व का सम्यक विश्लेषण करते समय प्रामाणिकता का ध्यान रखते हुए सुभद्रा जी द्वारा लिखित काव्य पंक्तियों को उद्धृत कर पाठकों को काव्यानंद-प्रसाद देकर ध्याता की अनुभूति कराती हैं। उक्त से सर्वथा भिन्न रूप में प्रेम चाँद पर लिखित आलेख में लेखिका विपुल प्रेमचंद-साहित्य की सूचि देकर पाठकों को बताती हैं कि वे प्रेमचंद का मूल्याङ्कन सतही न कर, उनके साहित्य का पठन गहराई से करें।
अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के मुखपत्र के फरवरी 2014 अंक के आलेख में संपत जी के समीक्षक मन की जानकारी मिलती है। 'साहित्य समाज का दर्पण है' और 'लेखक तथा सामाजिक चुनौतियाँ' जैसे लेख सम्पत जी के समृद्ध चिंतन के झलक प्रस्तुत करते हैं।
‘नया मीडिया’ और हिंदी के बढ़ते चरण' लेख में सम्पत जी द्वारा दी गयी तकनीकी जानकारी विस्मित करती है। वे लिखती हैं- इसमें शक नहीं कि अभी “न्यू मीडिया” पारंपरिक मीडिया की तरह संगठित नहीं है | लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका हर उपयोगकर्ता स्वयं एक पत्रकार है, स्वयं संपादक है, स्वयं प्रकाशक है | इसमें दी गई सूचना एक क्लिक में ही पुरे विश्व में पहुँच जाती है | न्यू मीडिया या सोशल मीडिया में यह बात आश्चर्यचकित करती है कि उससे जुड़े तरह तरह के लोग अपने मुद्दों को समाज के समक्ष असरदार रूप से रखते हैं | ये लोग अपने आप में एक असंगठित फौज की तरह हैं | वे स्वयं ही फौज के सैनिक हैं और स्वयं ही जनरल भी | जैसा कि नरेंद्र मोदी ने कहा है, अपने निजी स्वार्थ को दरकिनार कर किसी सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए वेब पर इतना ज्यादा समय और ऊर्जा निरंतर देते रहना कोई मामूली बात नहीं |
कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन
कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन बहुरंगी और बहु आयामी है। वे दर्शनीय स्थानों पर त्वरित रचनाएँ करने के साथ-साथ बच्चों के लिए सरस बाल गीत रच कर पाठक को विस्मित करती हैं। उनके बाल गीत सहज बोधगम्य तथा बछ्कों द्वारा याद किए जा सकने वाले हैं एक झलक देखें-
आओ हिल-मिल कर हम गायें,
अपने सपनों को दुलरायें |
चिड़ियाँ चीं-चीं बोल रही है,
बंद पंख अब खोल रही है ||
मन-उपवन में हुआ जागरण,
शांत-सुमीरण डोल रही है |
सोये हैं जो लोग अभी तक,
आओ पहले उन्हें जगायें ||
उत्सव प्रधान भारतीय संस्कृति में रच-बसी संपत जी आलोक पर्व दीपावली पर रचित गीत में त्यौहार की पृष्भूमि, महत्व, पूजन विधि, तथा मौज-मस्ती का संकेत करना नहीं भूलतीं।
लक्ष्मी गणपति पूजा आज |
विष्णु चक्र का जग पर राज ||
दीपावली का है बड़ा त्योंहार |
है घर सजे फूलों का हार ||
कवयित्री संपत जी के लव्य संसार में सात्विक श्रृंगार की मनोरम छवि है -
जगमग कर दो मेरा जीवन,
आनंदित हो जाए तन-मन|
जब-जब मैं अपने को देखूं,
तुम बन जाओ मेरे दर्पण||
तेरे कदमों की आहट पर,
मैं व्याकुल हूँ प्राण बिछाकर|
यह अपने सपनों का घर है,
तेरा-मेरा प्यार अमर है|| - दूर कहीं वंशी बजती है - गीत
अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए विविध प्राकृतिक उपादानों का प्रयोग करने में निपुण संपत जी फूलों के माध्यम से काँटों के बीच भी मुस्कुराते रहने का संदेश देती है -
नये वर्ष की नई कल्पना,
करनी है साकार हमें |
नये वर्ष में नव भारत को
देना है आकार हमें ||
*
धरती माँ तुम क्यूँ न डोली, जब सबने मुँह मोड़ लिया |
इस जग में आने से पहले, निरपराध को काटा, खून किया ||
जब डोलेगी धरती माता, पर्वत भी गुम हो जाएगा |
स्व मूल्यांकन
अपने लेखन पर विचार करते हुए संपत्ति जी लिखती हैं- ''अपनी इन यात्राओं में मैंने राष्ट्रीय एकता और अखंडता का भी दिग्दर्शन किया है और अपनी महान संस्कृति के भी विविध रूपों का दर्शन किया है | अपने पूर्वजों के श्रद्धाभाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, जिसके चलते धार्मिक संरचना के रूप में वास्तु-कला तथा अन्य बहुत सारी कलाओं का विकास हुआ है | इसके अलावा विभिन्न समाजों के बीच लोकाचार की विविधता ने मेरे मन को बहुत आकर्षित किया है | अपनी यात्राओं में मैंने बहुत सूक्ष्मता के साथ लोक मन में स्थापित परंपराओं का अध्ययन करने की कोशिश की है | इन सारी बातों से अलग मुझे प्रकृति के अनेकानेक रूपों में बिखरे सौन्दर्य के अवलोकन की लालसा हमेशा से उद्वेलित कराती रही है | प्रकृति के पल-पल बदलते दृश्य उसके पहाड़, नदियाँ और झरने और यहाँ तक कि घने जंगल और रेगिस्तान भी मुझे अपने सुषमा-सौन्दर्य से विमोहित करते रहे हैं |"
संपत जी अपनी सुरुचिमय, सांस्कृतिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद सुख-सुविधा के स्थान पर सामान्यता का वरण कर विविध पर्यटक स्थलों पर जाकर खुद तो प्रकृति मन की गॉड में आनंदित होती ही हैं, लौटकर पर्यटन वृत्तांत लिखकर पाठकों को भी आनंदित करती हैं। उनकी शख्सियत को गुलज़ार की दो पंक्तियों द्वारा इस तरह बताया जा सकता है -
मुसाफिर हूँ यारों!, न घर है न ठिकाना
मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना
मुसाफिर समता देवी जी के कदमों को प्रभु निरंतर इतनी शक्ति दे वे धरती है नहीं अंतरिक्ष तक भी जा सकें और वहां के आकाशीय अनुभव हमारे साथ बाँट सकें। संपत जी के ये यात्रा वृत्तांत निश्चय ही लोकप्रिय होंगे।
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लेखक परिचय : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' विगत ५ दशकों से अधिक समय से हिंदी गद्य-पद्य तथा तकनीकी साहित्य को समृद्ध करने हेतु समर्पित हैं। आपकी १२ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। १२ राज्यों की विविध साहित्यिक यांत्रिकी संस्थाओं द्वारा ३०० से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके सलिल जी ने ३०० से अधिक नए छंदों का आविष्कार कर हिंदी छंद शास्त्र को समृद्ध किया है। आपके द्वारा लिखित सरस्वती वंदना 'हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अब विमल मति दे' का दैनिक प्रार्थना के रूप में प्रति दिन लाखों बच्चे सरस्वती शिशु मंदिरों में गायन करते हैं। आप शताधिक पुस्तकों की भूमिका तथा ३०० से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर चुके हैं।
संपर्क : सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४, ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com
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