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बुधवार, 9 सितंबर 2020

अशिक्षित सर्जन

केप टाउन के अशिक्षित सर्जन श्री हैमिल्टन, 
जिन्हें मास्टर ऑफ मेडिसिन की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था. 

वो न तो पढ़ सकते थे और न ही लिख सकते थे.

यह कैसे संभव हुआ ?

केपटाउन मेडिकल यूनिवर्सिटी का चिकित्सा जगत में अग्रणी स्थान है. दुनिया का पहला बाईपास ऑपरेशन भी इसी विश्वविद्यालय में हुआ था.
इस विश्वविद्यालय ने मास्टर ऑफ मेडिसिन की मानद उपाधि से, एक ऐसे व्यक्ति को सम्मानित किया जिसने अपने जीवन में कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा! जो न तो अंग्रेजी पढ़ सकता था और न ही लिख सकता था, लेकिन 2003 में एक सुबह, विश्व प्रसिद्ध सर्जन प्रोफेसर डेविड डेंट ने विश्वविद्यालय के सभागार में घोषणा की: 

"आज हम एक ऐसे आदमी को चिकित्सा में मानद उपाधि प्रदान कर रहे हैं, जिसने दुनिया में सबसे अधिक डाक्टरों को सर्जन बनने में मदद दी है; जो न सिर्फ एक असाधारण शिक्षक हैं बल्कि एक कमाल के सर्जन भी हैं. इन्होंने चिकित्सा विज्ञान को जिस तरह समझा वह बहुत आश्चर्य जनक है!"
 ...
इस घोषणा के साथ, प्रोफेसर ने जब  "हैमिल्टन" नाम लिया, तो पूरा सभागार खड़ा हो गया और तालियों से अभिनंदन किया. यह इस विश्वविद्यालय के इतिहास का सबसे बड़ा स्वागत समारोह था.

हैमिल्टन का जन्म केपटाउन के एक सुदूर गाँव 'सैनिटानी' में हुआ था. उनके माता-पिता भेड़ बकरियाँ चराते थे. बचपन में हैमिल्टन नंगे पैर पहाड़ों में घूमता था. बाद में वे केपटाउन चले गए. 

उन दिनों केपटाउन विश्वविद्यालय में निर्माण कार्य चल रहा था. हेमिल्टन ने एक मजदूर के रूप में वहां काम शुरू किया. जितना पैसा मिलता, वह घर भेज देता था और खुद चने... खाकर जहां तहां खुले में सो जाता था.
निर्माण पूरा होने तक कई वर्षों तक एक मजदूर के रूप में काम किया। 

अब उसे टेनिस कोर्ट में घास काटने का काम  मिला.
अगले तीन साल तक ऐसे ही चलता रहा.

फिर उनकी जिंदगी में एक अजीब मोड़ आया और वह चिकित्सा विज्ञान में वहां पहुँच गए जहाँ उन जैसा और कोई कभी नहीं पहुंचा.

प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस, जिराफों पर शोध कर रहे थे कि 
 जब कोई जिराफ़ पानी पीने के लिए अपनी गर्दन झुकाता है, तो उसके दिमाग में खून का दौरा कम क्यों नही होता ? उन्होंने ऑपरेटिंग टेबल पर एक जिराफ को लिटा कर  बेहोश कर दिया, लेकिन जैसे ही ऑपरेशन शुरू हुआ, जिराफ ने अपना सिर हिलाना शुरू कर दिया. इसलिए ऑपरेशन के दौरान, जिराफ की गर्दन को मजबूती से थामने के लिए उन्हें एक मजबूत आदमी की जरूरत पड़ गयी.

प्रोफेसर थिएटर से बाहर आए तो बाहर लान में हैमिल्टन घास काट रहा था. प्रोफेसर ने देखा कि वह मजबूत कद काठी का स्वस्थ युवक था. उन्होंने उसे बुलाया और जिराफ की गर्दन पकड़ने को कहा. हैमिल्टन ने जिराफ की गर्दन थाम ली.

ऑपरेशन आठ घंटे तक चला. आपरेशन के दौरान, डॉक्टर लोग चाय और कॉफ़ी ब्रेक लेते रहे जबकि हैमिल्टन चुपचाप जिराफ़ की गर्दन पकड़ कर खड़े रहे. 

जब ऑपरेशन समाप्त हो गया, तो वह चुपचाप बाहर चला गया और वापस घास काटने लगा.

अगले दिन प्रोफेसर ने उसे फिर से बुलाया, वह आया और जिराफ की गर्दन थाम ली. इसके बाद यह उसकी दिनचर्या बन गई. उन्होंने कई महीनों तक इसी तरह दुगना काम किया, और इसके लिए न तो अतिरिक्त मुआवजे की मांग की और न ही कोई शिकायत की!

प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस उनकी दृढ़ता और ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए और हैमिल्ट को टेनिस कोर्ट से "लैब असिस्टेंट" के रूप में पदोन्नत कर दिया गया. अब वह रोज विश्वविद्यालय में आते, ऑपरेटिंग थियेटर में जाते और सर्जनों की मदद करते.
यह सिलसिला सालों चलता रहा.

1958 में उनके जीवन में फिर एक और मोड़ आया. इस वर्ष डॉ क्रिश्चियन बर्नार्ड ने विश्वविद्यालय में हार्ट सर्जरी के ऑपरेशन शुरू किये और  हैमिल्टन उनके सहायक बन गए. डॉक्टर ऑपरेशन करते और ऑपरेशन के बाद उन्हें टांके का काम दे देते. वह बेहतरीन टांके लगाते. उनके हाथों और उंगलियों में बहुत शफ़ा और सफाई थी. कई बार एक  दिन में पचास लोगों तक को भी टांके लगाने पड़े. 

ऑपरेशन थियेटर में काम करने के दौरान, वह सर्जनों से मानव शरीर को समझने लगे. अब वरिष्ठ डॉक्टरों ने उन्हें जूनियर डॉक्टरों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी दे दी.

उन्होंने अब जूनियर डॉक्टरों को सर्जरी की तकनीक सिखाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे विश्वविद्यालय में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गये. वह चिकित्सा विज्ञान की औपचारिक शब्दावली से अपरिचित थे पर वह दुनिया के सबसे अच्छे सर्जनों में से एक थे.

उनके जीवन में तीसरा महत्वपूर्ण मोड़ 1970 में आया, जब इस साल जिगर पर शोध शुरू हुआ. उन्होंने सर्जरी के दौरान जिगर की एक विशिष्ट धमनी की पहचान की,  जिससे लिवर प्रत्यारोपण पहले से आसान और सफल होना शुरू हो गया.

उनके निष्कर्षों और टिप्पणियों ने चिकित्सा विज्ञान के बड़े बड़े  लोगों  को चकित कर दिया!

आज, जब किसी व्यक्ति का दुनिया के किसी भी कोने में लिवर का सफल ऑपरेशन होता है तो इसका श्रेय सीधे हैमिल्टन को जाता है.

हैमिल्टन ने ईमानदारी और दृढ़ता के साथ यह मुकाम हासिल किया. 

वह 50 वर्षों तक केपटाउन विश्वविद्यालय से जुड़े रहे, उन 50 वर्षों में उन्होंने एक भी  छुट्टी नहीं ली. वह अल सुबह चार बजे घर से निकलते, 14 मील पैदल चलकर विश्वविद्यालय जाते, और सुबह ठीक छह बजे थिएटर में प्रवेश करते थे. लोग उनके आने के समय के साथ अपनी घड़ियों का मिलान कर सकते थे.

उन्हें जो सम्मान मिला वह चिकित्सा विज्ञान में किसी को भी नहीं मिला है.

 वे चिकित्सा इतिहास के पहले अनपढ़ शिक्षक थे और अपने जीवनकाल में 30,000 सर्जनों को प्रशिक्षित करने वाले पहले निरक्षर सर्जन. 

2005 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें विश्वविद्यालय में ही दफनाया गया. नए शिक्षित सर्जनों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वे विश्वविद्यालय से पास होने के बाद अपनी डिग्री को उनकी कब्र पर ले जाएं, एक तस्वीर लें और फिर चिकित्सा व्यवसाय  में उतरे.

आप जानते हैं कि उनहे यह पद कैसे मिला ?

केवल एक "हाँ" से.

जिस दिन उन्हें जिराफ की गर्दन पकड़ने के लिए ऑपरेटिंग थियेटर में बुलाया गया, अगर उन्होंने उस दिन मना कर दिया होता, अगर उस दिन उन्होंने कहा होता, मैं ग्राउंड मेंटेनेंस वर्कर हूं और मेरा काम जिराफ की गर्दन को पकड़ना नहीं है, 

यह एक हाँ और अतिरिक्त आठ घंटे की कड़ी मेहनत थी,  जिसने उनके लिए सफलता के द्वार खोल दिये और वह सर्जन बन गये.

हममें से ज्यादातर लोग जीवन भर नौकरी की तलाश में रहते हैं कि हमें काम मिलना ही चाहिए. दुनिया में हर काम का एक मानदंड होता है और नौकरी केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध होती है जो मानदंडों को पूरा करते हैं जबकि अगर आप काम करना चाहते हैं, तो आप दुनिया में कोई भी काम कुछ ही मिनटों में शुरू कर सकते हैं और दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं पाएगी.

 "हैमिल्टन" ने इस सूत्र को पाया था. उन्होंने नौकरी के बजाय काम करने को  महत्व दिया. 

इस प्रकार उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के इतिहास को बदल दिया.

सोचिए अगर उन्होंने सर्जन की नौकरी के लिए आवेदन किया होता तो क्या वह सर्जन बन सकते ?  कभी नहीं, लेकिन उन्होंने घास छोड़ कर जिराफ की गर्दन पकड़ ली और सर्जन बन गए.

बेरोजगार लोग असफल होते हैं क्योंकि वे सिर्फ नौकरी की तलाश करते हैं, काम की  नहीं. 

जिस दिन आपने "हैमिल्टन" की तरह काम करना शुरू कर दिया, आप सम्मान  पुरस्कार जीतेंगे और महान और सफल इंसान भी बनेंगे!
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