कुल पेज दृश्य

रविवार, 5 अप्रैल 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
संजीव सलिल
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत.
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त..
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर.
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर..
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ.
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ..
*
नयन मिला छवि बंदकर, मूँदे नयना-द्वार.
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार..
*

कोई टिप्पणी नहीं: