कवि और कविता १. : प्रो. वीणा तिवारी
प्रस्तुतकर्ता :
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कवि परिचय:
३०-०७-१९४४, एम्. ए., एम्,. एड.
प्रकाशित कृतियाँ - सुख पाहुना सा (काव्य संग्रह), पोशम्पा (बाल गीत संग्रह), छोटा सा कोना (कविता संग्रह} .
सम्मान - विदुषी रत्न तथा शताधिक अन्य.
संपर्क - १०५५ प्रेम नगर, नागपुर मार्ग, जबलपुर ४८२००३.
*
बकौल लीलाधर मंडलोई --
'' वे जीवन के रहस्य, मूल्य, संस्कार, संबंध आदि पर अधिक केंद्रित रही हैं. मृत्यु के प्रश्न भी कविताओं में इसी बीच मूर्त होते दीखते हैं. कविताओं में अवकाश और मौन की जगहें कहीं ज्यादा ठोस हैं. ...मुख्य धातुओं को अबेरें तो हमारा साक्षात्कार होता है भय, उदासी, दुःख, कसक, धुआं, अँधेरा, सन्नाटा, प्रार्थना, कोना, एकांत, परायापन, दया, नैराश्य, बुढापा, सहानुभूति, सजा, पूजा आदि से. इन बार-बार घेरती अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए पैबंद, कथरी, झूलता पंखा, हाशिया, बेहद वन, धुन्धुआती गीली लकड़ी, चटकती धरती, धुक्धुकाती छाती, बोलती हड्डियाँ, रूखी-खुरदुरी मिट्टी, पीले पत्ते, मुरझाये पौधे, जैसे बिम्बों की श्रंखला है.
कवि परिचय:
३०-०७-१९४४, एम्. ए., एम्,. एड.
प्रकाशित कृतियाँ - सुख पाहुना सा (काव्य संग्रह), पोशम्पा (बाल गीत संग्रह), छोटा सा कोना (कविता संग्रह} .
सम्मान - विदुषी रत्न तथा शताधिक अन्य.
संपर्क - १०५५ प्रेम नगर, नागपुर मार्ग, जबलपुर ४८२००३.
*
बकौल लीलाधर मंडलोई --
'' वे जीवन के रहस्य, मूल्य, संस्कार, संबंध आदि पर अधिक केंद्रित रही हैं. मृत्यु के प्रश्न भी कविताओं में इसी बीच मूर्त होते दीखते हैं. कविताओं में अवकाश और मौन की जगहें कहीं ज्यादा ठोस हैं. ...मुख्य धातुओं को अबेरें तो हमारा साक्षात्कार होता है भय, उदासी, दुःख, कसक, धुआं, अँधेरा, सन्नाटा, प्रार्थना, कोना, एकांत, परायापन, दया, नैराश्य, बुढापा, सहानुभूति, सजा, पूजा आदि से. इन बार-बार घेरती अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए पैबंद, कथरी, झूलता पंखा, हाशिया, बेहद वन, धुन्धुआती गीली लकड़ी, चटकती धरती, धुक्धुकाती छाती, बोलती हड्डियाँ, रूखी-खुरदुरी मिट्टी, पीले पत्ते, मुरझाये पौधे, जैसे बिम्बों की श्रंखला है.
देखा जाए तो यह कविता मन
में अधिक न बोलकर बिम्बों के माध्यम से अपनी बात कहने की अधिक प्रभावी
प्रविधि है. वीणा तिवारी सामुदायिक शिल्प के घर-परिवार में भरोसा करनेवाली
मनुष्य हैं इसलिए पति, बेटी, बेटे, बहु और अन्य नातेदारियों को लेकर वे
काफी गंभीर हैं. उनकी काव्य प्रकृति भावः-केंद्रित है किंतु वे तर्क का
सहारा नहीं छोड़तीं इसलिए वहाँ स्त्री की मुक्ति व आज़ादी को लेकर पारदर्शी
विमर्श है.''
वीणा तिवारी की कवितायें आत्मीय पथ की मांग करती हैं. इन कविताओं के रहस्य कहीं अधिक उजागर होते हैं जब आप धैर्य के साथ इनके सफर में शामिल होते हैं. इस सफर में एक बड़ी दुनिया से आपका साक्षात्कार होता है. ऐसी दुनिया जो अत्यन्त परिचित होने के बाद हम सबके लिए अपरिचय की गन्ध में डूबी हैं.
वीणा तिवारी की कवितायें आत्मीय पथ की मांग करती हैं. इन कविताओं के रहस्य कहीं अधिक उजागर होते हैं जब आप धैर्य के साथ इनके सफर में शामिल होते हैं. इस सफर में एक बड़ी दुनिया से आपका साक्षात्कार होता है. ऐसी दुनिया जो अत्यन्त परिचित होने के बाद हम सबके लिए अपरिचय की गन्ध में डूबी हैं.
समकालीन काव्य परिदृश्य में वीणा तिवारी की कवितायें गंभीरता
से स्वीकारी जाती हैं. विचारविमर्श के पाठकों के लिये प्रस्तुत हैं वीणा
जी की लेखनी से झंकृत कुछ कवितायेँ...
प्रतीक्षा है आपकी प्रतिक्रियाओं
की--- सलिल
घरौंदा
रेत के घरौंदे बनाना
जितना मुदित करता है
उसे ख़ुद तोड़ना
उतना उदास नहीं करता.
बूँद
बूँद पडी
टप
जब पडी
झट
चल-चल
घर के भीतर
तुझको नदी दिखाऊँगा
मैं
बहती है जो
कल-कल.
चेहरा
जब आदमकद आइना
तुम्हारी आँख बन जाता है
तो उम्र के बोझिल पड़ाव पर
थक कर बैठे यात्री के दो पंख उग आते हैं।
तुम्हारी दृष्टि उदासी को परत दर परत
उतरती जाती है
तब प्रेम में भीगा ये चेहरा
क्या मेरा ही रहता है?
चाँदनी
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
क्या करें सुनती है न कुछ बोलती है
शाख पर सहमे पखेरू
लरजती डरती हवाएं
क्या करें जब चातकी भ्रम तोड़ती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है।
चाहना फ़ैली दिशा बन
आस का सिमटा गगन
क्या करें सूनी डगर मुख मोडती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
उम्र मात्र सी गिनी
सामने पतझड़ खड़ा
क्या करें बहकी लहर तट तोड़ती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
मन
उतरती साँझ में बेकल मन
सूनी पगडंडी पर दो चरण
देहरी पर ठिठकी पदचाप
सांकल की परिचित खटखटाहट
दरारों से आती धीमी उच्छ्वास ही
क्यों सुनना चाहता है मन?
सगे वाला
सुबह आकाश पर छाई रक्तिम आभा
विदेशियों के बीच परदेस में
अपने गाँव-घर की बोली बोलता अपरिचित
दोनों ही उस पल सगे वाले से ज्यादा
सगे वाले लगते हैं।
शायद वे हमारे अपनों से
हमें जोड़ते हैं या हम उस पल
उनकी ऊँगली पकड़ अपने आपसे जुड़ जाते हैं
*******************
घरौंदा
रेत के घरौंदे बनाना
जितना मुदित करता है
उसे ख़ुद तोड़ना
उतना उदास नहीं करता.
बूँद
बूँद पडी
टप
जब पडी
झट
चल-चल
घर के भीतर
तुझको नदी दिखाऊँगा
मैं
बहती है जो
कल-कल.
चेहरा
जब आदमकद आइना
तुम्हारी आँख बन जाता है
तो उम्र के बोझिल पड़ाव पर
थक कर बैठे यात्री के दो पंख उग आते हैं।
तुम्हारी दृष्टि उदासी को परत दर परत
उतरती जाती है
तब प्रेम में भीगा ये चेहरा
क्या मेरा ही रहता है?
चाँदनी
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
क्या करें सुनती है न कुछ बोलती है
शाख पर सहमे पखेरू
लरजती डरती हवाएं
क्या करें जब चातकी भ्रम तोड़ती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है।
चाहना फ़ैली दिशा बन
आस का सिमटा गगन
क्या करें सूनी डगर मुख मोडती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
उम्र मात्र सी गिनी
सामने पतझड़ खड़ा
क्या करें बहकी लहर तट तोड़ती है
चाँदनी गुमसुम अकेले डोलती है
मन
उतरती साँझ में बेकल मन
सूनी पगडंडी पर दो चरण
देहरी पर ठिठकी पदचाप
सांकल की परिचित खटखटाहट
दरारों से आती धीमी उच्छ्वास ही
क्यों सुनना चाहता है मन?
सगे वाला
सुबह आकाश पर छाई रक्तिम आभा
विदेशियों के बीच परदेस में
अपने गाँव-घर की बोली बोलता अपरिचित
दोनों ही उस पल सगे वाले से ज्यादा
सगे वाले लगते हैं।
शायद वे हमारे अपनों से
हमें जोड़ते हैं या हम उस पल
उनकी ऊँगली पकड़ अपने आपसे जुड़ जाते हैं
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3 टिप्पणियां:
vicharvimarsh
आदरणीय संजीव जी,
आपका आभार कि आप 'वीना तिवारी ' जैसे प्रतिभा को उनकी कविताओं के माध्यम से मंच पर लाए और इसकी गरिमा बढ़ाई ! उनकी सभी कवितायेँ बहुत उच्चकोटि की और सारपूर्ण हैं ! फिर भी इनमें से चेहरा, मन और सगेवाला, इतना कुछ अपने में समेटे हुए है कि उन्हें बारम्बार पढ़ा और जितनी बार पढ़ा अनेक बिम्ब आँखों के आगे नए-नए रूप लेकर तैरते रहे ! उनकी लेखनी को नमन ! हमारी अमित सराहना उन तक पहुंचाएगें तो आप को बहुत दुआएं मिलेगी !
सादर,
दीप्ति
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com vicharvimarsh
आ० आचार्य जी,
प्रो० वीणा तिवारी जी की कविताओं की कुछ बानगी हमारे साथ साझा करने
के लिये हम आपके आभारी हैं | सच कहूं तो प्यास मिटी नहीं | और कुछ और की
साधास बनी है | जबलपुर आप और उन जैसे रचनाकारों को पा कर धन्य है |
प्रस्तुति में उनका इमेल-पता नहीं मिला | हम आभारी होंगे यदि वे हमारे मंच पर भी
अपनी रचनाओं से हमें अनुग्रहीत करें | आशा है आप उन्हें काव्यधारा पर लाने
का अनुरोध स्वीकार करेंगे | उनकी लघु कवितायें निश्चित रूप से गागर में सागर
समान हैं |
अनोखी कल्पना कैसे सुन्दर बिम्ब के साथ प्रस्तुत हुई है -
" तो उम्र के बोझिल पड़ाव पर
थक कर बैठे यात्री के दो पंख उग आते हैं। "
वाह कितना अनूठा भाव है | उनकी लेखनी को नमन !
सादर,
कमल
Ganesh Jee "Bagi" आदरणीया वीणा तिवारी जी की रचनाओं में सार निहित है, कथ्य को बहुत ही करीने से अपनी रचनाओं में पिरोई है, उदाहरण स्वरुप राखी गईं रचनाएँ , उनके साहित्यिक कद को व्यक्त करने में सामर्थ्य हैं , बहुत बहुत आभार आदरणीय आचार्य जी, आपने एक साहित्य सेवी से परिचय कराया |
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