दोहा सलिला:
शब्दों से खिलवाड़- १
संजीव 'सलिल'
*
शब्दों से खिलवाड़ का, लाइलाज है रोग..
कहें 'स्टेशन' आ गया, आते-जाते लोग.
*
'पौधारोपण' कर कहें, 'वृक्षारोपण' आप.
गलत शब्द उपयोग कर, करते भाषिक पाप..
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'ट्रेन' चल रही किन्तु हम, चला रहें हैं 'रेल'.
हिंदी माता है दुखी, देख शब्द से खेल..
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कहते 'हैडेक' पेट में, किंतु नहीं 'सिरदर्द'.
बने हँसी के पात्र तो, मुख-मंडल है ज़र्द..
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'फ्रीडमता' 'लेडियों' को, मिले दे रहे तर्क.
'कार्य' करें तो शर्म है, गर्व करें यदि 'वर्क'..
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'नेता' 'लीडर' हो हुए, आम जनों से दूर.
खून चूसते देश का, मिल अफसर मगरूर..
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'तिथि' आने की ज्ञात तो, 'अतिथि' रहे क्यों बोल?
शर्म न गलती पर करें, पीट रहे हैं ढोल..
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क्यों 'बस' को 'मोटर' कहें, मोटर बस का यंत्र.
सही-गलत के फर्क का, सिर्फ अध्ययन मंत्र..
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'नृत्य' न करना भूलकर, डांस इंडिया डांस.
पूजा पेशा हो गयी, शाकाहारी मांस..
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'सर्व' न कर 'सर्विस' करें, कहलायें 'सर्वेंट'.
'नौकर' कहिये तो लगे, हिंदी इनडीसेंट..
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'ममी-डैड' माँ-बाप को, कहें उठाकर शीश.
बने लँगूरा कूदते, हँसते देख कपीश..
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18 टिप्पणियां:
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० आचार्य जी,
इतने पैने व्यंग को दोहों में उतरना आपके ही बस की बात है | आपकी क्षमता को नमन |
सादर
कमल
आपका लिखा मुझे बहुत रुचता है। कही भी कोई रचना आपकी मिले तो जरूर पढ़ता हुँ।
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comkavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
आपके दोहों के तंज सार्थक बन पड़े हैं ! चिंतनशील दोहों के लिए ढेर साधुवाद !]
सादर,
दीप्ति
आदरणीय आचार्य जी ,
आपके दोहों को नमन !!बहुत सुंदर और तीखे
सादर
संतोष भाऊवाला
शब्दों से खिलवाड़ का, लाइलाज है रोग..
कहें 'स्टेशन' आ गया, आते-जाते लोग.
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'पौधारोपण' कर कहें, 'वृक्षारोपण' आप.............................................. बहुत खूब कहा
manu :
। कही भी कोई रचना आपकी मिले तो जरूर पढ़ता हुँ।
main bhi..
:)
"पौधारोपण' कर कहें, 'वृक्षारोपण' आप.
गलत शब्द उपयोग कर, करते भाषिक पाप.."
----आचार्य जी गलत आप कह रहे हैं....रोपण किया जारहा है लगाया नहीं जारहा ...अतः पौधा लगाने का अर्थ वृक्ष का रोपण ही है..वृक्षारोपण. शब्द ही सही है...
---इसी प्रकार..
शब्दों से खिलवाड़ का, लाइलाज है रोग..
कहें 'स्टेशन' आ गया, आते-जाते लोग.
.........सही कथन है...हर उतरने वाले के लिये वह स्टेशन(रुकने का स्थान) ही होता है...
---और...
"ट्रेन' चल रही किन्तु हम, चला रहें हैं 'रेल'.
हिंदी माता है दुखी, देख शब्द से खेल.."
...... पूरा शब्द रेलगाडी है..जो एकदम सही शब्द है रेल पर चलने वाली गाडी..अर्ध-हिन्दी....ट्रेन तो पूरा ही अन्ग्रेज़ी शब्द है.... हिन्दी माता तो फ़िर भी रोयेगी ही और अधिक..
sahmat
माननीय !
आपकी विद्वता को नमन.
-- मेरी बालकोचित जानकारी के अनुसार वृक्ष, पेड़, रूख या झाड़ का रोपण (लगाया जाना) नहीं होता, रोपण बीज, कलम या पौधे का होता है.
-- आना-जाना क्रिया का संबंध स्थान परिवर्तन से है. स्टेशन का स्थान नहीं बदलता, यात्री का बदलता है.
-- रेल का अर्थ पटरी होता है, दोहे में केवल यह इंगित किया गया है कि रेल कहना गलत है. न तो रेलगाड़ी कहने पर आपत्ति की गयी है, न ही ट्रेन कहने पर बल दिया गया है.
अस्तु... मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना...
Dr.M.C. Gupta ✆ mcgupta44@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
8:17 am (1 मिनट पहले)
ekavita
संजीव जी,
बहुत सुंदर लिखा है.
सुझाव:
'नौकर' कहिये तो लगे, हिंदी अनडीसेंट..
>>> इनडीसेंट कर दीजिए.
--ख़लिश
सहमत. आभार.
Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
आदरणीया आचार्य जी
अच्छे लगे आपके दोहे!
सादर
अमित
- shyamalsuman@yahoo.co.in
ब्युटीफुल रचना सलिल, डीप इमोशन बात।
भाषा मिक्सचर है सुमन, यूज करे दिन रात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
श्रद्धेय सलिल जी, बहुत सुन्दर दोहे हैं । मारक व्यंग्य और विमर्श के साथ । आपको प्रणाम ।
आपके स्नेह का अभिलाषी
AAPKE DOHON NE MAN MOH LIYAA HAI.
SHUBH KAMNAAYEN .
Nemichand Puniya 29 अप्रैल 14:33
sundar abhivykti ke liye Aapka bahut Aabhar,
Poonam Srivastava
Bahut samayik dohe sir.....
अंग्रेजी बोले गलत पर पढे-लिखे हैं आप,
हिदी बोले शुध्द तो भी देहाती हैं आप ।
बहुत सुंदर व्यंगात्मक दोहे ।
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