एक गीत:
हरसिंगार मुस्काये...
संजीव 'सलिल'
*
खिलखिलायीं पल भर
शत हरसिंगार मुस्काये...
*
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात.
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात.
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाये.
खिलखिलायीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काये...
*
परजाता मन भाता.
अनकहनी कह जाता.
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता.
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाये.
खिलखिलाये पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काये...
*
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ.
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाये.
खिलखिलायीं पल भर हम
हरसिंगार मुस्काये...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
हरसिंगार मुस्काये...
संजीव 'सलिल'
*
खिलखिलायीं पल भर
शत हरसिंगार मुस्काये...
*
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात.
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात.
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाये.
खिलखिलायीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काये...
*
परजाता मन भाता.
अनकहनी कह जाता.
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता.
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाये.
खिलखिलाये पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काये...
*
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ.
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाये.
खिलखिलायीं पल भर हम
हरसिंगार मुस्काये...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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