कुल पेज दृश्य

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

कवि और कविता : कवियत्री पूर्णिमा वर्मन

कवि और कविता : कवियत्री पूर्णिमा वर्मन

पूर्णिमा वर्मन 

पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) के मनोरम प्राकतिक वातावरण में जनमी (जन्म तिथि २७ जून १९५५) और पली-बढीं पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती। बाद में आप यूं ए ई में प्रवास करने लगी । आपने संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि सहित पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। आपके जीवन का मुख्य उद्देश्य रहा- जीव मात्र से प्रेम और उसके कल्याण के लिए निरंतर कार्य करते रहना, पत्रिकारिता के माध्यम से। साथ ही भारतीय संस्कृति और हिन्दी की पहचान और सम्मान को बनाये रखने के लिए भी आपका अवदान सराहनीय है।

पिछले पचीस सालों में लेखन, संपादन, फ्रीलांसर, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त। साथ ही आप न केवल एक अच्छी नवगीतकार है, बल्कि आपने हिन्दी गीत और नवगीत के क्षेत्र में भी नवगीत की पाठशाला और अनुभूति के माध्यम से उल्लेखनीय कार्य किया है। आपकी प्रकाशित कृतियां : वक्त के साथ (कविता संग्रह) और वतन से दूर (संपादित कहानी संग्रह)। चिट्ठा : चोंच में आकाश, एक आँगन धूप, नवगीत की पाठशाला,शुक्रवार चौपाल, अभिव्यक्ति अनुभूति। आपकी कई रचनाओं का अनुवाद हो चुका है- फुलकारी (पंजाबी में), मेरा पता (डैनिश में), चायखाना (रूसी में) आदि। 

वेब पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने के अपने प्रयत्नों के लिए आपको २००६ में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान[3], २००८ में रायपुर छत्तीसगढ़ की संस्था सृजन सम्मान द्वारा हिंदी गौरव सम्मान[4], दिल्ली की संस्था जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार [5]से विभूषित किया जा चुका है।[6] संप्रति: शारजाह, संयुक्त अरब इमारात में निवास करने वाली पूर्णिमा वर्मन हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय विकास के अनेक कार्यों से जुड़ी होने के साथ साथ हिंदी विकिपीडिया के प्रबंधकों में से भी एक हैं।[8] संपर्क : abhi_vyakti@hotmail.com

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
१. दर्द हरा है

टुकड़े टुकड़े 

टूट जाएँगे
मन के मनके
दर्द हरा है

ताड़ों पर 

सीटी देती हैं
गर्म हवाएँ
जली दूब-सी 

तलवों में चुभती
यात्राएँ
पुनर्जन्म ले कर आती हैं
दुर्घटनाएँ
धीरे-धीरे ढल जाएगा
वक्त आज तक
कब ठहरा है?

गुलमोहर-सी जलती है
बागी़ ज्वालाएँ
देख-देख कर 

हँसती हैं
ऊँची आशाएँ
विरह-विरह-सी 

भटक रहीं सब
प्रेम कथाएँ
आज सँभाले नहीं सँभलता
जख़्म हृदय का
कुछ गहरा है
। 

२. 
सच में बौनापन 

जीवन की आपाधापी में
खोया खोया मन लगता है
बड़ा अकेलापन
लगता है

दौड़ बड़ी है 

समय बहुत कम
हार जीत के सारे मौसम
कहाँ ढूंढ पाएँगे उसको
जिसमें -
अपनापन लगता है

चैन कहाँ 

अब नींद कहाँ है
बेचैनी की यह दुनिया है
मर खप कर के-
जितना जोड़ा
कितना भी हो 

कम लगता है

सफलताओं का 

नया नियम है
न्यायमूर्ति की जेब गरम है
झूठ बढ़ रहा-
ऐसा हर पल
सच में 

बौनापन लगता है

खून-ख़राबा 

मारा-मारी
कहाँ जाए 
जनता बेचारी
आतंकों में-
शांति खोजना
केवल पागलपन 

लगता है। 

३. राजतंत्र की हुई ठिठोली


सडकों पर हो रही सभाएँ
राजा को-
धुन रही व्यथाएँ

प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों-
में छपी कथाएँ

दुनिया भर में
आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को-
मथ रही हवाएँ

जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ
। 

४. माया में मन

दिन भर गठरी 
कौन रखाए
माया में मन कौन रमाए

दुनिया ये आनी जानी है
ज्ञानी कहते हैं फ़ानी है
चलाचली का-
खेला है तो
जग में डेरा कौन बनाए
माया में मन कौन रमाए

कुछ ना जोड़े संत फ़कीरा
बेघर फिरती रानी मीरा
जिस समरिधि में-
इतनी पीड़ा
उसका बोझा कौन उठाए
माया में मन कौन रमाए

***
आभार : पूर्वाभास 

कोई टिप्पणी नहीं: