गीत:
हरसिंगार मुस्काए
*
खिलखिलायीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काए
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाए
परजाता मन भाता
अनकहनी कह जाता
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाए
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाए
परजाता मन भाता
अनकहनी कह जाता
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाए
*
हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, परिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan,
संजीव सलिल
जबलपुर
3 टिप्पणियां:
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
सुंदर नवगीत के लिए सलिल जी को बधाई
प्रत्युत्तर दें
शशि पाधा
"पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाए"
आदरणीय संजीव जी, क्या सुन्दर शब्द चित्रण है , आँखों के सामने पनघट और खलिहान कॉ दृश्य खींच देता है |अनुपम नवगीत के लिए धन्यवाद |
Rachana
परजाता मन भाता
अनकहनी कह जाता
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए
आँखों में चित्र सा सजता आपका नवगीत बहुत सुंदर हैं
बधाई आपको
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