गीत सलिला;
आज फिर...
संजीव 'सलिल'
*
आज फिर
माँ का प्यार पाया है...
पुष्प कचनार मुस्कुराया है.
रूठती माँ तो मुरझता है गुल,
माँ हँसी तो ये खिलखिलाया है...
*
आज बहिना
दुलार कर बोली:
'भाई! तेरी बलैयाँ लेती हूँ.'
सुन के कचनार ने मुझे देखा
नेह-निर्झर नवल बहाया है....
*
आज भौजी ने
माथा चूम लिया.
हाथ पर बाँध दी मुझे राखी.
भाल पर केसरी तिलक बनकर
साथ कचनार ने निभाया है....
*
आज हमदम ने
नयन से भेजी
नेह पाती नयन ने बाँची है.
हंसा कचनार झूम भू पे गिरा
पल में संशय सभी मिटाया है....
*
आज गोदी में
बेटा-बिटिया ले
मैंने सपने भविष्य के देखे.
दैव के अंश में नवांश निरख
छाँह कचनार साथ लाया है....
******कचनार =
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in
7 टिप्पणियां:
achalkumar44@yahoo.com 8 अप्रैल ekavita
छाँह कचनार साथ लाया है ......
मन मोहक ।
Achal Verma
अचल जी !
नमन.
इतनी त्वरित प्रतिक्रिया ... धन्य हुआ. आभार.
rekha_rajvanshi@yahoo.com.au द्वारा yahoogroups.com
9 अप्रैल ekavita
आ० आचार्य जी
बेहद लुभावनी रचना, बधाई
रेखा
rakesh518@yahoo.com
13 अप्रैल
ekavita
एक कचनार की कली में ही
सारा जग इस तरह समाया है
गीत में शब्द बना गुँथ गुँथ कर
आज कचनार मुस्कुराया है.
सादर
राकेश
shar_j_n ✆ shar_j_n@yahoo.com
ekavita
आदरणीय आचार्य सलिल जी,
आपकी रचनाएँ पढ़ीं:
पुष्प कचनार मुस्कुराया है मन प्रसन्न करने वाली कविता है :)
SEEDHE - SAADE SHABDON MEIN SUNDAR
BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE .
‘आज फिर’ बहुत सुंदर गीत है, बधाई स्वीकारें।
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