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रविवार, 8 जुलाई 2012

अभिनव आयोजन: चित्र पर काव्य रचना 1:

अभिनव आयोजन:

चित्र पर काव्य रचना - 1 : 

(नीचे एक चित्र प्रस्तुत है जिस पर कविगणों ने अपनी कलम चलाई है। आप भी अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाइए और मनोभावों को पाठकों तक पहुँचाइए। छंद बंधन नहीं किन्तु गद्य को टिप्पणी में ही स्थान मिलेगा-सं.)

  

डॉ.दीप्ति गुप्ता 
*

तुम,

अपनी हरकतों से 
बाज़ नहीं आओगे?   
जब चमेली  से  
बतिया रहे थे 
तब-

भूल गए थे क्या   
कि  
मैं अभी जिंदा  हूँ .....?

*
deepti gupta <drdeepti25@yahoo.co.in>
********

 
एस. एन. शर्मा 'कमल'
* 

मैं यहाँ खडी हूँ लाज नहीं आती उधर ताकते
तुम्हारी खैर नहीं फिर देखा जो उधर झाँकते

सुना नहीं तुमने, बगला भगत बने खड़े हो
अरे शेर की औलाद हो किस फेर में पड़े हो

गुर्राती ही नहीं हूँ न ही गुस्सा पचा पाऊँगी
फिर वह इधर आई तो कच्चा चबा जाऊंगी

कहीं भूले से मानव की औरत न समझ लेना
शेरनी हूँ, आता किसी को पास न फटकने देना

दाढी मूछें सफ़ेद हो गईं इनका तो ख़याल  करो
हया शरम बाकी हो तो व्यर्थ क्यों बवाल करो

 

*

s.n.sharma ahutee@gmail.com
 **********

 
प्रणव भारती
*
अच्छा  ! 
     ये मुंह और मसूर की दाल!
     समझते  हो ऐसी-वैसी 
     जो फिर से  दिया  दाना डाल!
     तुम जैसे लफंगों को 
     खूब समझती हूँ मैं|
     कोतवाल की हूँ  बेटी 
     सबसे सुलटती हूँ  मैं|
     पिताजी तक तो बात 
     जाने की नौबत ही नहीं आएगी 
     ये झांसी की रानी तुम्हारा सिर 
     अपने कदमों में झुकवाएगी|
     भारत की बेटी हूँ, गर्व है मुझे 
     अरे! तुम क्या घास खाकर छेड़ोगे मुझे !
     घसीटकर ले जाऊँगी
     जिन्दगी भर चक्की पिसवाऊंगी .....
     हिम्मत थी तो मांगते 
     अपनी करनी पर माफी 
     पहले जो हो चुका तुमसे तलाक  
     क्या वो नहीं था काफी!
     तुम जैसों ने ही तो 
     नाक कटवाई है,
     कभी पति रहे हो हमारे,
     सोचने में भ़ी शर्म आयी है|
     जा पड़ो किसी खाई में या 
     उसके आंचल में मुंह छिपाकर|
     मैं बहुत मस्त हूँ, 
     अपना सुकून पाकर 
     क्या समझा है मुझे 
     मिट्टी का खिलौना?
     मैं भ़ी लेती हूँ साँस, 
     मेरे भ़ी है 'दिल'का एक कोना 
     दूर हो नजरों से मेरी 
     वर्ना लात खाओगे
     जो रही-सही है इज्जत 
     वह भी गँवाओगे||
     *
      Pranava Bharti  pranavabharti@gmail.com
      **********

संजीव 'सलिल'
*
दोहा ग़ज़ल:
*
तुम्हें भले ही मानता, सकल देश सरदार.
अ-सरदार तुम लग रहे, सत्य कहूँ बेकार..

असर न कुछ मंहगाई पर, बेकाबू व्यापार.
क्या दलाल ही चलाते, भारत की सरकार?

जिसको देखो वही है, घूसखोर गद्दार.
यह संसद तो है नहीं, मैडम हों रखवार..

मुँह लटकाए क्यों खड़े?, सत्य करो स्वीकार.
प्रणव चतुर सीढ़ी चढ़ा, तुम ढोओगे भार..

बौड़म बुद्धूनाथ तुम, डींग रहे थे मार.
भुला संस्कृति को दिया, देश बना बाज़ार..

अर्थशास्त्र की दुहाई, मत देना इसबार.
व्यर्थशास्त्र यह हो रहा, जनगण है बेज़ार..

चलो करो कुछ काम तुम, बाई न आयी यार.
बोलो कैसे सम्हालूँ, मैं अपना घर-द्वार?

चल कपड़ा-बर्तन करो, पहले पोछो कार.
मैं जाती क्लब तुम रखो, घर को 'सलिल' बुहार..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

POEM: CRY --Shakur

poem: friendship

poem:

friendship


friendship,love

कविता स्मृतियों की छायाएँ -- विजय निकोर

                                           कविता
                        स्मृतियों की छायाएँ
                                   -- विजय निकोर

              
            
            सांध्य छायाओं की तिरछी कतारें हिलती हैं जैसे
            झूलते  पेड़ों  के  बीच  से झाँक कर देखती है कोई,
            उभरती स्मृति  ही  है शायद जो कटे पंख-सी पड़ी,
            यहाँ, वहाँ, बैंच पर, सर्वत्र,भीगी घास पर बिछी थी,
            लुढ़की मानो सुनहरी स्याही चाँदनी के आँचल-सी .
          
              
 
            लोटते थे इसी घास पर हम बरगद से बरगद तक
            यही बरगद ही तो थे यहाँ  कोई  पचास  साल पहले,
            व्याकुल  विपदाएँ  जो  नयी नहीं, बस  लगती  हैं  नई,
            हर  परिचित स्पर्श उनका अनछुआ अनपहचाना-सा
            चौंका  देता  है  अन्त:स्थल  को विद्युत् की  धारा-सा ...
 
                
 
 
            उजियारा हो, या  उदास  पड़ा  अंधकार  क्षितिज  तक,
            मुरझाए  चेहरे  की  लकीरों-सा  छिपाए  रखता  है  यह
            वेदनामयी  अनुभूति   धूलभरे   निर्विकार  अतीत  की,
            घुल-घुल आती  हैं गरम आँसुओं में अंगारों-सी यादें,
            सांध्य छायाएँ काँपती हैं इन वृध्द पेड़ों की धड़कन-स.
 
 
                
 
            चले आते हैं कटे पंख समय के उड़ते-सूखे-पत्तों-से     
            कितना  हाथ  बढ़ाएँ, काश  कभी  वह  पकड़  में  आएँ,
            कह देते हैं शेष कहानी संतप्त अभिशप्त यौवन की,
            सांध्य छायाएँ... हवाएँ भटकते मटमैले अरमानों की
            वेगवान रहती हैं निर्विराम तिमिरमय अकुलाती यादों में .   
 
                                            ------
                           vijay <vijay2@comcast.net>
                                                                                                 

कविता:: 'बारिश ' --शिशिर साराभाई

            कविता:: 
            'बारिश '
                  
               शिशिर साराभाई 
    


   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है 
   सौंधी खुशबू के साथ, कभी  अमराई  साथ आती है
   कभी  फूलों  से भरे घर  के बगीचे की याद आती  है 
   कभी तेरे-मेंरे  बीच  की  प्यारी बात  गुनगुनाती  है 
   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है


  


   कभी माँ  की आवाज़ दूर से आती सुनाई  पडती है
  कभी बूढ़े  बाबा   की  मीठी  पुकार  लहरा उठती है
   कभी बहन  की  शहद सी हँसी  खनखना  उठती है 
   कभी   छोटू  की   याद   में  आँखें  भीग उठती   है 
   बारिश  आती  है,तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है
             
              **************
              Shishir Sarabhai <shishirsarabhai@yahoo.com>  

कविता:: आज़ादी के दीवानों जैसा --गुलाम कुन्दनम

कविता::
आज़ादी के दीवानों जैसा
गुलाम कुन्दनम 
आज़ादी के दीवानों जैसा...
हमारे ही प्रतिनिधि
हमें आँख दिखाते हैं.
जनता की एकता देख
अब सांसद भय खाते हैं.

संसद चल रहा हो तो
जनता घर में रहेगी?
भ्रष्टाचार और महंगाई,
घुट घुट कर सहेगी?

भ्रष्टों के भय से
कब तक भागेंगे.
उदासीनता की तन्द्रा
से कब हम जागेंगे.

सबको इस बार सड़क
पर आना होगा.
आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. ........

.... आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. .......

Jai Anna….. Jai Awam..…
Jai Janta.....Jai Janlokpal...
ॐ . ੴ . اللّٰه . † …….
Om.Onkar. Allâh.God…..
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!

(सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन :- दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना , लाभ रहित विशुद्ध समाज सेवा वाली राजनैतिक व्यवस्था, वर्ग विहीन समाज की स्थापना, सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था, गरीबी उन्मूलन कोष की स्थापना [धर्म स्थलों की आमदनी भी इसी कोष में जमा हो], जनलोकपाल, चुनाव सुधार तथा काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने जैसे क़ानून, सभी करों को समाप्त कर एक समान कर प्रणाली ट्रांजेक्सन टैक्स लगाना, सभी तरह के लेन-देन बैंक, चेक या मोबाइल के द्वारा किया जाना सुनिश्चित करना, बड़े नोटों का प्रचलन बंद करना....सरकार के निर्णयों में जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी... ग्राम स्वराज और मोहल्ला स्वराज की स्थापना ... ये सब कुछ नए और विचाराधीन समाधान हैं .....जो भारत और भारत के लोगों को संच्चाई, ईमानदारी और मानवता पर आधारित एक नए युग में ले जायेंगे.)


शनिवार, 7 जुलाई 2012

हाइकू .... विश्वम्भर शुक्ल

हाइकू ....
 
विश्वम्भर शुक्ल
कुछ हाइकू दिल से .......
-------------- 
 
एक~~
*
बंद किताब
कैसे पढ़ें निबंध
सौ अनुबंध !

दो ~~
*
मन आतुर
बांटने कों स्नेह
वे है चतुर !

तीन~~
*
कोई न घर
क्यों है यायावर
मन सुधर !

चार~~
*
सुन के बोल
लो,मुग्ध हुआ मन
आहट है न !

पांच~~
*
मन तो पांखी
उड़ गया फुर्र से
बात ज़रा सी !

छ:~~
*
गौरैय्या उड़ी
निस्सीम है गगन
चुभी अगन !

सात~~
*
रिश्ते हमारे
पुरइन पात से
झरे भू पर !

आठ~~
*
एक जुन्हाई
कितनों कों लुभाए
ताको ही बस !
*
_______________
प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
लखनऊ
09415325246

मुक्तक: एक दिल... संजीव 'सलिल'

मुक्तक:
एक दिल...
संजीव 'सलिल'
*
1336570

*
एक दिल अरमान सौ हैं.
गगन एक उड़ान सौ हैं..
नास्तिकता बढ़ी इतनी-
भक्त कम भगवान सौ हैं..
*
जो दिल के मेहमान बन गये.
हम उनके दरबान बन अगये..
दिल के तार छेड़ने बैठे-
दिल-दिलवर सुर-तान बन गये..
*
दिल-बगिया में दिलवर फूल.
दिवस विरह के चुभते शूल..
महका महुआ मदिर मिलन-
सब दुनिया को जाओ भूल..
*
कभी है सीता, कभी है राम.
कभी है राधा, कभी है श्याम..
दिल की दुनिया का दस्तूर-
भुला नाम दिल वरे अनाम..
*
दर्दे-दिल को मौन हो पीना सीखो.
मरदे-दिल हो दुनिया में जीना सीखो..
जान को जान पर निसार करो-
परदे-दिल होकर 'सलिल' जीना सीखो..
*
दिल में दिलदार को इस तरह बसाया जाए.
दिल को दिलदार का मंदिर ही बनाया जाये..
दिल को दिल दे जो सदा, भूल न पाये दिलवर- 
दिलरुबा दिल का 'सलिल' ऐसे बजाया जाए..
*
दिल लगी चुभती बहुत है, दिल्लगी मत कीजिये.
दिल लगी दिल से लगाकर, बन्दगी हँस कीजिये..
दर्दे-दिल दिल में छिपाकर, हर्षे-दिल करिए बयां-
फख्रे-दिल दिलवर के बनकर, स्वर्ग सा सुख लीजिये..
*

लोकगीत:: बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! अनुपमा त्रिपाठी

लोकगीत::

बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! 

अनुपमा त्रिपाठी

री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे....
हुलसाये ...!!


झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन  बुंदियन सेहरा ...
गले मुतियन बुंदियन हार पहन .....
बनरा मोरा ब्याहन आया ...!


मन उमंग लाया ....
जिया हरषाया ...
सलोना सजन 
धर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!



संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनका अर्थ शाब्दिक न लेकर उनकी अनुभुती से लिया जाता है ............बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....


 

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

पर्यावरण: दुनिया के लिए खतरा है एंटार्कटिक बोटम वाटर का गायब होते जाना? -वीरेंद्र शर्मा 'वीरुभाई'

*
एंटार्कटिका के गिर्द दक्षिणी सागर में आश्चर्यजनक तौर पर जो गहराई पर बेहद ठंडा पानी बहता है गत चंद दशकों में उसके गायब होने की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही रही है. इस जलराशि को 'एंटार्कटिक बोटम वाटर' कहा जाता है. इसके यूं बेतहाशा रफ़्तार विलुप्त होते चले जाने से साइंसदां हतप्रभ हैं.
एंटार्कटिका के गिर्द खुछ ख़ास क्षेत्रों में ही यह राशि बनती है. दरअसल सतह के ऊपर बहती ठंडी हवा इस जल का शीतलीकरण करती रहती है. जब यह हिमराशि में तब्दील हो जाता है इसकी नमकीनियत बढ़ जाती है. यह सतह से नीचे चला आता है भारी होकर. खारा नमकीन जल अपेक्षाकृत भारी होने की वजह से नीचे चला आता रहा है. जब पानी में से हवा ठंडक निकाल देती है तब हिमराशि बनती है तथा आसपास के बिना ज़मे जल के हवाले यह साल्ट हो जाती है. एक कुदरती चक्र के तहत यह सिलसिला चलता रहता है अपनी  रफ़्तार से.
समुन्दर में गहरे पैठा यह अपेक्षाकृत भारी जल उत्तर की तरफ प्रसार करता रहता है, इस प्रकार दुनिया भर के गहरे समुन्दरों को लबालब रखता चलता है और धीरे धीरे अपने ऊपर की अपेक्षाकृत गुनगुनी परतों वाली जल राशि से संयुक्त होता रहता है. उसमे रिलमिल जाता रहा है आहिस्ता आहिस्ता.
गौर   तलब  है दुनिया भर के सागरों  में मौजूद  डीप  ओशन  करेंट्स अन्दर-अन्दर  प्रवाहमान गहरी जल धाराएं आलमी ताप (तापमानों) और कार्बन के परिवहन में एहम  भूमिका  निभाती  आईं  हैं. बतला दें आपको हमारे समुन्दर कार्बन के सबसे बड़े सिंक हैं. पृथ्वी की जलवायु  इन्हीं  के हाथों  विनियमित होती आई है.
पूर्व के अध्ययनों से विदित हुआ था यह गहरे बहती जल धाराएं इनमे मौजूद विशाल जल राशि गरमाने लगी है, साथ ही अपनी नमकीनियत भी खोती रही है. लेकिन हालिया अध्ययन इसके तेज़ी से मात्रात्नक रूप से कम होने की इत्तला दे रहा है. निश्‍चय ही यह भूमंडलीय जलवायु के लिए यह अच्छी खबर नहीं है .

आभार: साइंस ब्लोगेर्स असोसिएशन ओफ इंडिया 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मुक्तक : दिल --संजीव 'सलिल'

मुक्तक :



संजीव 'सलिल'
*
आ के जाने की बात करते हो.
दिल दुखाने की बात करते हो..
छीनकर चैनो-अमन चैन नहीं-
दिल लगाने की बात करते हो..
*



आज हमने भी काम कर डाला.
काम गुपचुप तमाम कर डाला..
दिल सम्हाले से जब नहीं सम्हला-
हँस के दिलवर के नाम कर डाला..
*



चाहतों को मिला है स्वर जबसे..
हौसलों को मिले हैं पर जबसे..
आहटें सुन रहा मुक़द्दर की-
दिल ने दिल में किया है घर जबसे.
*



दिल से दिल को ही चुराऊँ कैसे?
दिल से दिलवर को छिपाऊँ कैसे?
आप मुझसे न गुजारिश करिए-
दिल में दिल को ही बिठाऊँ कैसे??
*



चाहतें जब जवान होती हैं.
ज़िंदगी का निशान होती हैं..
पाँव पड़ते नहीं जमीं पे 'सलिल'-
दिल की धडकन अजान होती है..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



मनहरण कवित्त: - अनिल कुमार वर्मा

मनहरण कवित्त भारतीय रीति लिये जन-गण प्रीति...

6:29pm Jul 5
मनहरण कवित्त
अनिल कुमार वर्मा

भारतीय रीति लिये जन-गण प्रीति लिये,

कुशल प्रतीति युक्त नीति की डगर हो.
कामना को पाँव मिलें भावना को ठाँव मिलें,
कल्पना के गाँव बसी साधना प्रवर हो.
जीवन की नाव बढ़े भव सिंधु में अबाध,
प्रबल प्रवाह हो या भीषण भँवर हो.
प्रार्थना यही है मातु वीणापाणि बारबार,
कालजयी गीत लिखूं कोकिल सा स्वर हो.

नयी खोज: हिग्स बोसॉन सूक्ष्मतम कण????? --संजीव 'सलिल''

imageनयी खोज हिग्स बोसॉन सूक्ष्मतम कण????? 

संजीव 'सलिल''
*

नई दिल्ली। ब्रह्मांड के निर्माण के अनजाने रहस्यों को जानने की दिशा में एक और कदम मानव ने बढ़ाया।आज वह कण खोज निकाला गया जिससे सृष्टि तथा कालांतर में इंसान की रचना हुई। इस कण की अनुभूति विशिष्ट यंत्रों से ही संभव है। यह कण सृष्टि रचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है अतन इसे सृष्टि कण या ब्रम्हांड कण कहा जा सकता है। भारत में 'कण-कण में भगवान्' की मान्यता सनातन है। इसीलिए इसे ईश्वर के नाम से जोड़कर 'ईश्वरीय कण' कहा जा रहा है। 

विश्व को द्रव्यमान प्रदान करनेवाले मूल कणों में से एक हिग्स बोसोन के अस्तित्व की वैज्ञानिकों ने कल्पना की है। ये कण स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं हैं। स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर जमीन से 100 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा श्रम की प्रयोगशाला में इन कणों की जोरदार टक्कर से उत्पन्न असीम ऊर्जा से ऐसे कण बने हैं। लगभग तीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर तलाशे गए इस कण को 100 सालों की सबसे बडी खोज कहा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने सृष्टि की उत्पत्तिवाले बिग-बैंग सिद्धांत जैसी परिस्थितियों का कृत्रिम रूप से सृजन कर इन मूल कणों को खजने का प्रयास किया। लियोन लेडरममैन की कण भौतिकी पर केंद्रित लोकप्रिय विज्ञान पुस्तक 'दि गोड पार्टिकल : इफ द यूनिवर्स इज द आंसर, व्हाट इज द क्वश्चन?' है। हिग्स--बोसों कणों के इस नामकरण से एक एक खोजकर्ता पीटर हिग्स अप्रसन्न हुए पर लेडरमैन के अपने तर्क थे। इन कणों की संरचना और गुणों को आधुनिक भौतिकी के ज्ञात सिद्धांतों द्वारा न समझे जा सकने के कारण लेडरमैन को यह नाम उचित प्रतीत हुआ। पुस्तक को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए प्रकाशक ने पुस्तक का नाम 'गोडडैम पार्टिकल' से 'गोड पार्टिकल' कर दिया। इन कणों  को ईश्वरीय कण या गोड पार्टिकल यह खोज अपने पीछे दो अहम सवाल पीछे छोड़ गईं हैं- पहला- क्या इंसान अब ईश्वर बनने की कोशिश में है? क्या वो कुदरत के साथ खेल रहा है? दूसरा- आखिर इस नई खोज से मानवजाति का क्या फायदा होगा? 

सदी का सबसे बड़ा महाप्रयोग सफल :
 
इंसान कुदरत के सबसे बड़े राज को सुलझाने के करीब पहुँच गया है। इस कण की झलक दिखते ही स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर बनी प्रयोगशाला तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी। वैज्ञानिकों ने उस सर्वशक्तिमान कण को खोज निकाला है जो ब्रह्मांड का रचयिता है।

50 सालों से सिर्फ किताब और वैज्ञानिक फॉर्मूलों में कैद ईश्वरीय कण की मौजूदगी का ऐलान जिनेवा में 21 देशों के समूह- यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च यानि सीईआरएन के हेड ने किया। इस कण की तलाश में सर्न की दो-दो टीमें जुटी थी। उन्हें सभी प्रयोग जमीन के 100 मीटर नीचे बनी 27 किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा लार्ज हेडरॉन कोलाइडर यानि एलएचसी में करना था। 21 देशों के 15 हजार वैज्ञानिक सदी के इस महाप्रयोग में जुटे थे। 2008 से लेकर 2012 तक चार सालों में इस सुरंग के भीतर अनगिनत प्रयोग किए गए। स्विटज़रलैंड के परमाणु शोध संगठन (सर्न ) तथा फ़र्मी नॅशनल एक्सेलेटर लैब के अनुसार इस कण का वज़न 125-126 गीगा इलेक्ट्रोन वोल्ट है।
 
लक्ष्य था इस सुरंग के भीतर वैसा ही वातावरण पैदा करना जैसा 14 अरब साल पहले 'बिग बैंग' के समय था, जब तारों की भयानक टक्कर से हमारी आकाश गंगा बनी थी। उस आकाश गंगा का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है हमारी पृथ्वी। माना जाता है कि उस समय अंतरिक्ष में हुए उस महाविस्फोट के बाद ही पहली बार ईश्वरीय कण या हिग्स  बोसॉन नजर आये थे।
                                                                                                      
उस बिग बैंग को दोबारा प्रयोगशाला में पैदा करने का काम बेहद जटिल था। उसके लिये इस सुरंग के अन्दर प्रोटोन्स कणों को आपस में टकराया गया। प्रोटोन किसी भी पदार्थ के सूक्ष्म कण होते हैं। जिनकी टक्कर से ऊर्जा निकलती है। माना जा रहा है कि ऐसी असंख्य टक्करों के बाद करीब 300 ईश्वरीय कण पैदा हुए। ये ईश्वरीय कण या गॉड पार्टिकल किसी भी अणु या ऐटम को भार यानि मास और स्थायित्व देते हैं। इस पार्टिकल के जरिए ही अणुओं में स्थायित्व आता है और निराकार से साकार रूप धारण करते हैं। कहा जा सकता है यह कण ही रचना करता है- इसीलिए इसे ईश्वर समान कहा गया है किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है की अन्य पूर्व ज्ञात या भविष्य में ज्ञात होनेवाले कण ईश्वरीय नहीं होंगे। 
 
वैज्ञानिकों के दावे को सही मानें तो कह सकते हैं कि  इंसान ने जीवन की सबसे मुश्किल पहेली सुलझा ली है। वैज्ञानिक अब भी कह रहे हैं कि ये गॉड पार्टिकल कैसा है, इसे जानने में समय लगेगा लेकिन यह खोज विज्ञान की मान्यताएँ और सृष्टि के निर्माण की अवधारणाएँ बदल सकती है।    

1969 में ब्रिटेन के रिसर्चर पीटर हिग्स ने सबसे पहले इन कणों  की मौजूदगी की बात कह कर सबको चौंका दिया था। तब यह कण सिर्फ 'पार्टिकल फिजिक्स' की थ्योरी में मौजूद था। आज इतने सालों बाद अपनी उस कल्पना को सच होते देखना हिग्स के लिए बेहद रोमांचक अनुभव था। हिग्स को खास तौर पर सर्न ने इस ऐलान के लिए जिनेवा बुलवाया था। 

इंसान इस ब्रह्मांड का फीसदी हिस्सा ही जानता है, हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल या ईश्वरीय कण, हमारे ज्ञान को नई सीमाएं देगा। इसीलिए इसे सदी की सबसे बड़ी और रोमांचक खोज माना जा रहा है।
सृष्टि संरचना की भारतीय मान्यता::


… परमात्मा परमेश्वर का आदि और अन्त नहीं है, वे ही जगत् को धारण करने वाले अनन्त पुरुषोत्तम हैं। उन्हीं परमेश्वर से अव्यक्त की उत्पत्ति होती है और उन्हीं से आत्मा (पुरुष) भी उत्पन्न होता है। उस अव्यक्त प्रकृति से बुद्धि, बुद्धि से मन, मन से आकाश, आकाश से वायु, वायु से तेज, तेज से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। हे रुद्र! इसके पश्चात् हिरण्मय अण्ड उत्पन्न हुआ। उस अण्ड में वे प्रभु स्वयं प्रविष्ट होकर जगत् की सृष्टि के लिये सर्वप्रथम शरीर धारण करते हैं (निराकार चित्रगुप्त साकार काया ग्रहण कर कायस्थ होते हैं) । तदनन्तर चतुर्मुख ब्रह्मा का रूप धारण कर रजोगुण के आश्रय से उन्हीं देव ने इस चराचर विश्व की सृष्टि की। 

देव, असुर एवं मनुष्यों सहित यह सम्पूर्ण जगत् उसी अण्ड में विद्यमान है। वे ही परमात्मा स्वयं स्रष्टा ( ब्रह्मा) -के रूप में जगत् की संरचना करते हैं, विष्णु रूप में जगत् की रक्षा करते हैं और अन्त में संहर्ता शिव के रूप में वे ही देवसंहार करते हैं। इस प्रकार एकमात्र वे ही परमेश्वर ब्रह्मा केरूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और कल्पान्त के समयरुद्र के रूप में संपूर्ण जगत को विनष्ट करते हैं। सृष्टि के समय वे ही वराह का रूप धारण कर अपने दाँतों से जलमग्न पृथ्वी का उद्धार करते हैं। हे शंकर! संक्षेप में ही मैं देवादि की सृष्टि का वर्णन कर रहा हूं; आप उसको सुनें। 

सबसे पहले उन परमेश्वर से महातत्व की सृष्टि होती है। वह महातत्व उन्हीं ब्रह्म का विकार है। पञ्च तन्मात्राओं (रूप, रस, गण, स्पर्श और शब्द) की उत्पत्ति से युक्त द्वितीय सर्ग है। उसे भूत-सर्ग कहा जाता है। (इन पञ्चतन्मात्राओं से पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश-रूप में महाभूतों की सृष्टि होती है।) यह तीसरा वैकारिक सर्ग है, (इसमें कर्मेन्दिय एवं ज्ञानेन्दियों की सृष्टि आती है इसलिये) इसे ऐन्द्रिक भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति बुद्धिपूर्वक होती है, यह प्राकृत-सर्ग है। चौथा सर्ग मुख-सर्ग है। पर्वत और वक्षादि स्थावरों को मुख्य माना गया है। पाँचवां सर्गतिर्यक् सर्ग कहा जाता है, इसमें तिर्यक्स्रोता (पशु-पक्षी आदि) आते हैं। इसके पश्चात् ऊर्ध्वस्रोतों की सृष्टि होती है। इस छठे सर्ग को देव-सर्ग भी कहा गया है। तदनन्तर सातवाँ सर्ग अर्वाक् स्रोतों का होता है। यही मानुष-सर्ग है।                                               

आठवाँ अनुग्रह नामक सर्ग है। वह सात्विक और तामसिक गुणों से संयुक्त है। इन आठ सर्गों में पाँच वैकृत-सर्ग और तीन प्राकृत-सर्ग कहे गये हैं। कौमार नामक सर्ग नवाँ सर्ग है। इसमें प्राकृत और वैकृत दोनों सृष्टियाँ विद्यमान रहती हैं। 

हे रुद्र! देवों से लेकर स्थावरपर्यन्त चार प्रकार की सृष्टि कही गयी है। सृष्टि करते समय ब्रह्मा से (सबसे पहले) मानस पुत्र उत्पन्न हुए। तदनन्तर देव, असुर, पितृ और मनुष्य-इस सर्ग चतुष्टय का प्रादुर्भाव हुआ। इसके बाद जल-सृष्टि की इच्छा से उन्होंने अपने मन कोसृष्टि-कार्य में संलग्न किया। सृष्टि-कार्य में प्रवृत्त होने पर ..ब्रह्मा से तमोगुण का प्रादुर्भाव हुआ। अतः, सृष्टि की अभिलाषा रखने वाले ब्रह्मा की जंघा से सर्वप्रथम असुर उत्पन्न हुए। हे शंकर! तदनन्तर ब्रह्मा ने उस तमोगुण से युक्त शरीर का परित्याग किया तो उस शरीर से निकली हुई तमोगुण की मात्रा ने स्वयं रात्रि का रूप धारण कर लिया। उस रात्रिरूप सृष्टि को देखकर यक्ष और राक्षस बहुत ही प्रसन्न हुए।        

 
 हे शिव! उसके बाद सत्वगुण की मात्रा के उत्पन्न होने परप्रजापति ब्रह्मा के मुख से देवता उत्पन्न हुए। तदनन्तर जब उन्होंने सत्वगुण-समन्वित अपने उस शरीर का परित्याग किया तो उससे दिन का प्रादुर्भाव हुआ, इसीलिये रात्रि में असुर और दिन में देवता अधिक शक्तिशाली होते हैं। उसके पश्चात ब्रह्मा के उस सात्विक शरीर से पितृगणों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद ब्रह्मा के द्वारा उस सात्विक शरीर का परित्याग करने पर संध्या की उत्पत्ति हुई जो दिन और रात्रि के मध्य अवस्थित रहती है। तदनन्तर ब्रह्मा के रजोमयशरीर से मनुष्यों का प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा ने उसका परित्याग किया तो उससे ज्योत्सना (उषा) उत्पन्न हुई, जो प्राक्सन्ध्या के नाम से जानी जाती है। ज्योत्सना, रात्रि, दिन और संध्या - ये चारों उस ब्रह्मा के ही शरीर हैं।    तत्पश्चात् (ब्रह्मा के

रजोगुणमय शरीर के आश्रय से सुधा और क्रोध का जन्म हुआ। उसके बाद ब्रह्मा से ही भूख-प्यास से आतुर एवं रक्त-मांस पीने खाने वाले राक्षसों तथा यक्षों की उत्पत्ति हुई। राक्षसों से रक्षण के कारण राक्षस कहा गया और भक्षण के कारण यक्षों को यक्ष नाम की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। तदनन्तर ब्रह्मा के केशों से सर्प उत्पन्न हुए। ब्रह्मा के केश उनके सिर से नीचे गिरकर पुन : उनके सिर पर आरूढ़ हो गये- यही सर्पण है। इसी सर्पण (गतिविरोध ) के कारण उन्हें सर्प कहा गया। 

उसके बाद ब्रह्मा के क्रोध से भूतों (इन प्राणियों में क्रोध की मात्रा अधिक होती है) का जन्म हुआ। तदनन्तर ब्रह्मा से गंधर्वों की उत्पत्ति हुई। गायन करते हुए इन सभी का जन्म हुआ था. इसलिये इन्हें गंधर्व और अप्सरा की ख्याति प्राप्त हुई। उसके बाद प्रजापति ब्रह्मा के वक्ष स्थल से स्वर्ग और द्युलोक उत्पन्न हुआ। उनके मुख से अज, उदर- भाग से तथा पार्श्व- भाग से गौ, पैर- भाग से हाथी सहित अश्व, महिष, ऊँट और भेड़ की उत्पत्ति हुई। उनके रोमों से फल -फूल एवं औषधियों का प्रादुर्भाव हुआ। 

गौ, अज, पुरुष- ये मेध्य या अवध्य ( पवित्र ) हैं। घोड़े, खच्चर और गदहे प्राप्य पशु कहे जाते हैं। अब मुझ से वन्य पशुओं का सुनो - इन वन्य जन्तुओं में पहले श्वापद ( हिंसकव्याघ्रादि ) पशु दूसरे दो खुरोंवाले, तीसरे हाथी, चौथे बंदर, पाँचवें पक्षी, छठे कच्छपादि जलचर और सातवें सरीसृप जीव ( उत्पन्न हुए ) हैं।

उन ब्रह्मा के पूर्वादि चारों मुखों से ऋक्, यजुष्, सामतथा अथर्व - इन चार वेदों का प्रादुर्भाव हुआ। उन्हीं के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, ऊरु- भाग से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए। उसके बाद उन्होंने ब्राह्मणों के लिये ब्रह्मलोक, क्षत्रियों के लिये इन्द्रलोक, वैश्यों कै लिये वायुलोक और शूद्रों के लिये गन्धर्व लोक का निर्धारण किया। उन्होंने ही ब्रह्मचारियों के लिये ब्रह्मलोक, स्वधर्मनिरत गहस्थाश्रम का पालन करने वाले लोगों के लिये प्राजापत्यलोक, वानप्रस्थाश्रमियों के लिये सप्तर्षिलोक और संन्यासी तथा इच्छानुकूल सदैव विचरण करने वाले परम तपोनिधियों के लिये अक्षयलोक का निर्धारण किया। 

भारत का योगदान::

इस महत्वपूर्ण अनुसन्धान में भारत के 100 से अधिक वैज्ञानिक विविध स्तरों पर सम्मिलित रहे। भारतीय वैज्ञानिक डॉ. अर्चना शर्मा प्रारंभ से ही इस महाप्रयोग का हिस्सा रही हैं। इस अनुसन्धान में प्रयोग हुए महा चुम्बक एफिल टोवर से अधिक भारी लगभग 800 टन के हैं तथा भारत में बने हैं।

महत्त्व::

इस कण की खोज से परमाणु ऊर्जा, कम्प्यूटर, औषध निर्माण, तथा अन्तरिक्ष के अनुसन्धान में महती मदद मिलेगी। . 

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(साभार - कल्याण संक्षिप्त गरूड़पुराणांक जनवरी - फरवरी 2000)

(आभार:: रचनाकार)

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बुधवार, 4 जुलाई 2012

संस्मरण: मेहनती का अंत ---इन्दिरा प्रताप

संस्मरण:               


मेहनती का अंत 
इन्दिरा प्रताप                                                                                     

बात आज से बीस–तीस साल पुरानी है | तब हम यूनिवर्सिटी कैम्पस में रहा करते थे | बँगलेनुमा घर और आस–पास बहुत सारी खाली जमीन थी जो जितना चाहता उतनी जमीन घेर लेता और उसके चारों ओर बंधान बांध लेता और उसे अपने घर का हिस्सा बना लेता और मनपसंद फूल पौधे लगा लेता पर वहाँ की जमीन लाल मिट्टी से युक्त, पथरीली थी जो बहुत मेहनत माँगती थी | इसके लिए आसपास के गाँव से मजदूर भी मिल ही जाते थे और लोगों में एक दूसरे से बढ़ कर अपने गार्डन को सजाने की होड़ भी लग जाती थी | उन्हीं दिनों कैम्पस में एक हृष्ट-पुष्ट, बेहद काला पर चेहरे पर मृदुता लिये एक मजदूर अकसर नजर आता | मैंने उसे बड़े मनोयोग से लोगों के घर काम करते देखा | बस अपने काम में मस्त | ऐसा लगता था मानों काम ही उसकी पूजा हो | उसको इस तरह काम करते देख कुछ आश्चर्य तो होता पर इससे अधिक उसके बारे में जानने की उत्सुकता मुझे कभी नहीं हुई |
एक दिन मेरे पति को अपने गार्डन में पानी लगाते देख मेरी एक पड़ोसन मेरे पास आई और कहने लगी – ‘आप उस बहरे से काम क्यों नहीं करा लेतीं |’ मैंने कहा –‘कौन बहरा ?’ वह बोलीं –‘वही जो हमारे गार्डन में काम करता है और भी घरों में हमने उसे लगवा दिया है, बोलता – सुनता कुछ नहीं , गूँगा-बहरा है न बेचारा, केवल आठ आने घंटा लेता है जबकि और लोग एक रुपया लेते हैं और फिर वह काम भी और लोगों से दुगना करता है |’
मैनें सुनकर यूँ ही टाल दिया, मन ने एक गूँगे-बहरे का इस तरह शोषण करना स्वीकार नहीं किया| मैंने उसे अपने घर काम करने के लिए कभी नहीं बुलाया | कुछ ही दिनों में वह आस–पास के घरों में काम करता दिखाई देने लगा | कभी–कभी मन में आता कि उसे घर बुलाकर समझाऊँ कि सब उसका फ़ायदा उठा रहे हैं पर समझ नहीं आया कि उसे किस तरह समझाऊँगी, फिर ये भी डर था कि आस–पास के लोग मेरे दुश्मन हो जाएँगे, यह सोचकर मैं चुप रही |
जो उससे काम कराते वे उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते और गर्व से बताते कि कैसे कम पैसों में वो इतना बढ़िया और अधिक काम करवा लेते हैं |
फिर सुना उसकी शादी हो गई पर देखते–देखते ही कुछ वर्षों में उसके काले रंग की चमक समाप्त हो गई | वह थका-हारा सा दिखाई देने लगा | फिर एक बार किसी के घर काम करता दिखाई दिया तो बड़ा क्षीणकाय सा लगा | उसके बाद मैंने फिर उसको बहुत दिनों तक नहीं देखा |
एक दिन ऐसे ही उसकी याद आई तो पड़ोसिन से पूछा– ‘बौहरा अब दिखाई नहीं देता |’ वह बोलीं –‘अरे ! उसे मरे तो बहुत दिन हो गए|’ उसका मेहनत का यह सफ़र लगभग दस सालों का रहा होगा | यह सुनकर मन में लोगों के प्रति वितृष्णा सी उत्पन्न हुई और अपने पर प्रसन्नता कि कम से कम मैंने उसका शोषण नहीं किया |
आज जब मैं अपने जीवन की इस सांध्यवेला में अपनी यादों की पिटारी खोलती हूँ तो उसमें एक चेहरा उसका भी नजर आता है और अपने को मैं उतना ही दोषी पाती हूँ जितना ओरों को जिन्होंने उसकी जिंदगी के न जाने कितने वर्ष उससे छीन लिये और उसे मृत्यु के मुख में असमय ही ढकेल दिया |
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Indira Pratap  pindira77@yahoo.co.in

मुक्तिका: सूना-सूना पनघट हैं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

सूना-सूना पनघट हैं

संजीव 'सलिल'
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सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।

बरगद बब्बा गुजर गए,  पछुआ की सोच विषैली है।
पात झरे पीपल के, पुरखिन पुरवैया पछताई है।।

बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।

कोंवेन्ट जा जुही-चमेली-चंपा के पर उग आये।
अपनापन अंगरेजी से है, हिन्दी  मात पराई है।।

भोजपुरी, अवधी, बृज गुमसुम, बुन्देली के फूटे भाग।
छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी बिसरी, हाडौती  पछताई है।।

मोदक-भोग न अब लग पाए, चौथ आयी है खाओ केक।
दिया जलाना भूले बच्चे, कैंडल हँस  सुलगाई है।।

श्री गणेश से मूषक बोला, गुड मोर्निंग राइम सुन लो।
'सलिल'' आरती करे कौन? कीर्तन करना रुसवाई है।।

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someone cares....



मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बाल कविता - फैशन -सन्तोष कुमार सिंह

बाल कविता - फैशन


-सन्तोष कुमार सिंह, मथुरा
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देख-देख रोजाना टी०वी०,
फैशन का चढ़ गया बुखार।
कपड़े, गहने, सेंडल लेने,
बिल्ली पहुँची बिग बाजार।।
 
स्लीव लैस दो सूट खरीदे,
ऊँची ऐड़ी के सेंडल।
भरि-भरि हाथ खरीदी चूड़ीं,
और गले का इक पेंडल।।
 
पहना सूट, पहन कर सेंडल,
भागी चूहे के पीछे।
सेंडल फिसल गया सीढ़ी पर,
बिल्ली गिरी धम्म नीचे।।
 
फैशन की मारी बिल्ली की,
किस्मत उस दिन फूट गई।
चूहा छूटा, सिर भी फूटा,
एक टाँग भी टूट गई।।
 
कष्ट देख कर उस बिल्ली का,
बात समझ में यह आई।
कभी-कभी ज्यादा फैशन भी,
बच्चो बनती दुःखदाई।।
---।

mathematics of love

bathroom mirror

bathroom mirror



This should probably be taped
to your bathroom mirror
where one could read it every day.
You may not realize it,
but it's 100% true.


1. There are at least two people in this world
that you would die for.


2.. At least 15 people in this world
love you in some way.


3. The only reason anyone would ever hate you
is because they want to
be just like you.


4. A smile from you can bring happiness to anyone,
even if they don't
like you.


5. Every night,
SOMEONE thinks about you
before they go to sleep.


6. You mean the world to someone.


7. You are special and unique.


8. Someone that you don't even know exists loves you.


9. When you make the biggest mistake ever,
something good comes from it.


10. When you think the world
has turned its back on you
take another look.



11. Always remember the compliments you received...
Forget about the rude remarks.