भाषा की तकनीक और तकनीक की भाषा
इं. संजीव वर्मा 'सलिल'
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'भा' अर्थात् प्रकाशित करना। भाना, भामिनी, भाव, भावुक, भाषित, भास्कर आदि में 'भा' की विविध छवियाँ दृष्टव्य हैं। 'भारत' अर्थात वह देश, वह व्यक्ति जो प्रकाश पाने में रत है। 'भाषा' मानव-मन को ज्ञान-भाव और रस के प्रकाश से प्रकाशित करती है।
ज्ञान का व्यवस्थित रूप ही विज्ञान है। विज्ञान 'ज्ञान' की एक शाखा है जो तथ्यों को इकट्ठा करके, उनका वर्गीकरण करके और सामान्य नियमों की स्थापना करके व्यवस्थित की जाती है। यह एक खोजी प्रक्रिया है जिसका लक्ष्य ब्रह्मांड के बारे में सच्चाई को उजागर करने के लिए एक व्यवस्थित और तार्किक दृष्टिकोण (वैज्ञानिक विधि) अपनाते हुए परिकल्पना करना, परीक्षण करना और निष्कर्ष निकालकर मानव-जीवन को सुखकर बनाना है।
विज्ञान जिस व्यवस्थित कार्य-पद्धति का अनुसरण करता है, उसे तकनीक कहते हैं। तकनीक में वैज्ञानिक ज्ञान, प्रक्रियाएँ, विधियाँ, उपकरण, संगठनात्मक प्रणालियाँ, कौशल, प्रक्रियाएँ और दक्षता वृद्धि आदि सम्मिलित होती हैं। तकनीक का अर्थ किसी विशिष्ट परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रक्रियाओं या विधियों को लागू करना अथवा काम को पूरा करने का सुचारु-व्यवस्थित तरीका है। तकनीक जीवन के हर क्षेत्र और विज्ञान की हर शाखा में काम आती है।
अभियांत्रिकी विज्ञान के उपयोग कार मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यावहारिक समाधान खोजने की कला और विज्ञान है।इसमें विभिन्न प्रणालियों, संरचनाओं, उपकरणों, और प्रक्रियाओं का डिज़ाइन, निर्माण और रखरखाव शामिल है। अभियांत्रिकी औद्योगिक प्रक्रियाओं को विकसित-नियंत्रित और प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग कर जीवन को बेहतर बनाती है। अभियांत्रिकी जटिल चुनौतियों के लिए रचनात्मक और प्रभावी समाधान बनाने हेतु ज्ञान को कार्रवाई में बदलने की कला और विज्ञान है।
भाषा मानवीय अनुभूतियों को ध्वनियों, प्रतीकों एवं व्याकरण की व्यवस्थित प्रणाली द्वारा अभिव्यक्त कर अन्यों तक पहुँचाने का सशक्त और समर्थ माध्यम है। भाषा मौखिक, लिखित या सांकेतिक रूप में हो सकती है। भाषा विचारों को बोल या लिखकर व्यक्त करती है।
भाषा ध्वनियों से निर्मित अक्षरों व शब्दों का प्रयोग कर विचारों को संप्रेषित करती है। भाषा के माध्यम से व्यवस्थित विचाराभिव्यक्ति के नियम 'व्याकरण' कहे जाते हैं। विचारों की लयबद्ध अभिव्यक्ति छंद करते हैं। भाषा निरंतर विकसित होती-बदलती रहती है। समय, संदर्भ और प्रसंग के अनुसार शब्दों के अर्थ भी बदलते हैं।
सामान्य जनों द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग की जाती ग्राम्य भाषा को 'लोक भाषा' कहा जाता है। लोकभाषा व्याकरण के बंधनों से मुक्त होती है। विद्वानों द्वारा प्रयोग की जाती व्याकरण सम्मत भाषा को 'साहित्यिक भाषा' कहा जाता है। साहित्यिक भाषा के लक्ष्य पाठक वर्ग के अनुसार विविध रूप होते हैं। शिशु-शिक्षा और शोध-शिक्षा की भाषा का भिन्न रूप स्वाभाविक है। विज्ञान और अभियांत्रिकी में शब्दों के लोक और साहित्य में प्रचलित शब्दकोषीय अर्थ, भावार्थ, व्यंजनार्थ की लीक से हटकर शब्दों को विशिष्ट विज्ञान सम्मत अर्थ में प्रयोग कर अर्थ विशेष की अभिव्यक्ति अपरिहार्य होती है। इसलिए विषय, संदर्भ और प्रसंग के अनुसार विज्ञान में प्रयुक्त भाषा, शब्दावली और शब्दों के अर्थ साहित्य में प्रयुक्त भाषा, शब्दावली और शब्दों के अर्थ से भिन्न हो सकते और बहुधा होते भी हैं।
'आँसू न बहा फरियाद न कर /दिल जलता है तो जलने दे' जैसी अभिव्यक्ति साहित्य में मूल्यवान होते हुए भी विज्ञान के क्षेत्र में तथ्य दोष से युक्त कही जाएगी। विज्ञान जानता है कि दिल (हार्ट) के दुखने का कारण 'विरह' नहीं दिल की बीमारी है। सामान्य बोलचाल में 'रेल आ रही है' कहना दोषपूर्ण नहीं माना जाता है जबकि 'रेल' का अर्थ 'पटरी' होता है जिस पर रेलगाड़ी (ट्रेन) चलती है। इसी तरह जबलपुर आ गया कहना भी गलत है। जबलपुर एक स्थान है जो अपनी जगह स्थिर है, आना-जाना वाहन या सवारी का कार्य है।
'तस्वीर तेरी दिल में बसा रखी है' कहकर प्रेमी और सुनकर प्रेमिका भले खुश हो लें, विज्ञान जानता है कि प्राणी बसता-उजड़ता है, निष्प्राण तस्वीर बस-उजड़ नहीं सकती। दिल तस्वीर बसाने का मकान नहीं शरीर को रक्त प्रदाय करने का पंप है। आशय यह नहीं है कि साहित्यिक अभिव्यक्ति निरर्थक या त्याज्य हैं। कहना यह है कि शिक्षा पाने के साथ शब्दों को सही अर्थ में प्रयोग करना भी आवश्यक है, विशेषकर तकनीकी विषयों पर लिखने के लिए भाषा और शब्द-प्रयोग के प्रति सजगता आवश्यक है।
'साइज' और 'शेप' दोनों के लिए 'आकार' या 'आकृति' का प्रयोग सामान्यत: किया जाता रहा है किंतु विज्ञानपरक लेखन में ऐसा करना गंभीर त्रुटि है। साइज के लिए सही शब्द 'परिमाप' है।
सामान्य बोलचाल में 'गेंद' और 'रोटी' दोनों को 'गोल' कह दिया जाता है जबकि गेंद गोल (स्फेरिकल) तथा रोटी वृत्ताकार (सर्कुलर) है। विज्ञान में वृत्तीय परिपथ को गोल या गोल पिंड को वृत्तीय कदापि नहीं कहा जा सकता।
'कला' के अंतर्गत अर्थशास्त्र या समाज शास्त्र आदि को रखा जाना भी भाषिक चूक है। ये सभी विषय सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के अंग हैं। अर्थशास्त्र का कर रहे व्यक्ति के लिए 'कलाकारी कर रहा है' नहीं कहा जा सकता किंतु चित्र बन रहे व्यक्ति के लिए ऐसा कहा जा सकता है। शुद्धता की दृष्टि से चित्र बनाना 'चित्रकारी, मूर्ति बनाना 'मूर्तिकारी है इसी तरह 'संगीतकार, नृत्यकार और गायक भी सर्वथा भिन्न आयाम में कार्य करते हैं किंतु जन सामान्य इन सभी को 'कलाकार' कह लेता है।।
शब्दकोशीय समानार्थी शब्द विज्ञान में भिन्नार्थों में प्रयुक्त होते हैं। भाप (वाटर वेपर) और वाष्प (स्टीम) सामान्यत: समानार्थी होते हुए भी यांत्रिकी की दृष्टि से भिन्न हैं। भाप की सघनता कम और वाष्प की अधिक होती है। भाप-चालित एंजिन को 'स्टीम एंजिन कहें तो सही है किंतु 'वाटर वेपर एंजिन' कहें तो सर्वथा गलत होगा।
अणु 'एटम' है, परमाणु 'मॉलिक्यूल' पर हम 'परमाणु बम' को 'एटम बम' कह देते हैं। हम सब यह जानते हैं कि पौधा लगाया जाता है वृक्ष नहीं, फिर भी 'पौधारोपण' की जगह 'वृक्षारोपण' कहते हैं। बल (फोर्स) और शक्ति (स्ट्रैंग्थ) को सामान्य जन समानार्थी मानकर प्रयोग करता है पर भौतिकी का विद्यार्थी इनका अंतर जानता है।
कोई भाषा रातों-रात नहीं बनती। ध्वनि विज्ञान और भाषा शास्त्र की दृष्टि से हिंदी सर्वाधिक समर्थ भाषा है। हमारे सामने यह चुनौती है कि श्रेष्ठ साहित्यिक विरासत संपन्न हिंदी को विज्ञान और तकनीक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बनाएँ। इसके लिए यह जानना आवश्यक कि भाषा 'शब्द' किस तरह और कितने प्रकार से ग्रहण करती है। यह एक स्वतंत्र लेख का विषय है।
वर्तमान समय में अभियांत्रिकी, आयुर्विज्ञान तथा अन्य विज्ञान संबंधी विषयों के पाठ्यक्रमों में हिंदी भाषा का प्रयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है किंतु लेखक गण शब्दों की एकरूपता के विषय में सजग नहीं हैं। रसायन शास्त्र की पुस्तकों में 'कॉन्सेंट्रेटेड' के लिए गाढ़ा व सांद्र तथा 'डाइल्यूटेड' के लिए हल्का, पतला व तनु का प्रयोग विद्यार्थियों विशेषकर अहिन्दीभाषी छात्रों को भ्रमित करता है।
एक ही शब्द के विविध अर्थ विज्ञान की विविध शाखाओं में होते हैं। 'सेतु' का अर्थ सिविल इंजीनियरिंग में पुल है जो निर्माण सामग्री से बनाया जाता है किंतु इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में तो बिंदुओं को जोड़नेवाले तार से है।
विडंबना है कि नव रचनाकार उच्च शिक्षित होने के बाद भी भाषा की शुद्धता के प्रति प्रायः सजग नहीं हैं। कोई भी साहित्य या साहित्यकार शब्दों का गलत प्रयोग कर यश नहीं पा सकता। अत:, रचना प्रकाशित करने के पूर्व एक-एक शब्द की उपयुक्तता परखना आवश्यक है। हो सके तो साहित्यिक लेखन में विज्ञान सम्मत अर्थों में शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। विहीय विषयक लेखन में तो विशेष सतर्कता अनिवार्य है।
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संपर्क- सभापति विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष- ९४२५१८३२४४
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