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शनिवार, 20 दिसंबर 2025

दिसंबर २०, सोलह संस्कार, कृष्ण, सॉनेट, यमकीय दोहा, दोहा कहे मुहावरा, कविता, नव वर्ष

सलिल सृजन दिसंबर २०
*
गीत
०००
नव वर्ष!
परिपाटी पुरानी हम न छोड़ेंगे
चुनावी वादे करेंगे और तोड़ेंगे
.
बाड़ हँस खेती चरेगी
पाप की नौका तरेगी
स्वर्ण मृग की चाह पाले
सिया रावण को वरेगी
नव वर्ष!
ईमां की कसम खाकर
रकम रिश्वत की निरंतर लूट जोड़ेंगे
नव वर्ष!
परिपाटी पुरानी हम न छोड़ेंगे
.
विवश जनता क्या करेगी?
बिना मारे ही मरेगी
झेल गाली, लट्ठ, गोली
सिसककर सजदा करेगी
नव वर्ष!
'लोक' होंगे 'तंत्र' के चाकर
गुलामी फिर बिछा - ओढ़ेंगे
नव वर्ष!
परिपाटी पुरानी हम न छोड़ेंगे
.
नफरती खेती बढ़ेगी
बेल दूरी की चढ़ेगी
भाईचारे का दहनकर
द्वार से खिड़की लड़ेगी
नव वर्ष!
काबिल, अकाबिल के हाथ जोड़ेंगे
नव वर्ष!
परिपाटी पुरानी हम न छोड़ेंगे
२० . १२ . २०२५
०००
सॉनेट
नमन
साँवरे कन्हाई को नमन।
शरारत सुहाई को नमन।
बाबा-मताई को नमन।।
बावरी लुनाई को नमन।।
बाँसुरी बजाई को नमन।
प्रीत उर जगाई को नमन।
कर्म की बड़ाई को नमन।।
भक्त से मिताई को नमन।।
जमुना लहराई को नमन।
रास मिल रचाई को नमन।
शक्ति टकराई को नमन।।
भक्ति मुस्कुराई को नमन।।
भयंकर लड़ाई को नमन।
क्रांति, शांति आई को नमन।।
२०-१२-२०२२
जबलपुर, ६•४०
●●●
सॉनेट
बासंती कृष्ण
पीतांबरी बसंत खिलखिल।
ब्रज-रज, गोवर्धन पर छाया।
गोप-गोपियों के मन भाया।।
छटा श्यामली से गल-भुज मिल।।
अमलतास कचनार फूलते।
फाग कहें जमुना की लहरें।
रास रचा पग तनिक न ठहरें।।
नथ-लट-बेंदे झूम झूलते।।
चंचल लहर लहर लहराई।
चपला भँवर भँवर मुस्काई।
श्यामा-श्याम छटा मन भाई।।
जन-मन मोहे बंसी की धुन।
अपने सपने नए रहे बुन।
सँग बसंत आ छाया फागुन।।
संजीव
२०-१२-२०२२
९४२५१८३२४४, ७•२७,
जबलपुर
●●●
सोलह संस्कार
सोलह संस्कारों के नाम और संक्षिप्त परिचय :-
१. गर्भाधानम्
२. पुंसवनम्
३. सीमन्तोन्नयनम्
४. जातकर्मसंस्कारः
५. नामकरणम्
६. निष्क्रमणसंस्कारः
७. अन्नप्राशनसंस्कारः
८. चूडाकर्मसंस्कारः
९. कर्णवेधसंस्कारः
१०. उपनयनसंस्कारः
११. वेदारम्भसंस्कारः
१२. समावर्त्तनसंस्कारः
१३. विवाहसंस्कारः
१४. वानप्रस्थाश्रमसंस्कारः
१५. संन्यासाश्रमसंस्कारः
१६. अन्त्येष्टिकर्मविधिः
★ १. गर्भाधानम् - गर्भाधान उसको कहते हैं कि जो " गर्भस्याऽऽधानं वीर्यस्थापनं स्थिरीकरणं यस्मिन् येन वा कर्मणा , तद् गर्भाधानम् ।" गर्भ का धारण , अर्थात् वीर्य का स्थापन गर्भाशय में स्थिर करना जिससे होता है । उसी को गर्भाधान संस्कार कहते है ।
● २. पुंसवनम् - पुंसवन उसको कहते हैं जो ऋतुदान देकर गर्भस्थिती से दूसरे वा तीसरे महीने में पुंसवन संस्कार किया जाता है ।
अर्थात् गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में जो संस्कार किया जाता है । उसे पुंसवन संस्कार कहते है ।
■ ३. सीमन्तोन्नयनम् - जिससे गर्भिणी स्त्री का मन संतुष्ट आरोग्य गर्भ स्थिर उत्कृष्ट होवे और प्रतिदिन बढ़ता जावे । उसे सीमन्तोन्नयन कहते हैं ।
◆ गर्भमास से चौथे महीने में शुक्लपक्ष में जिस दिन मूल आदि पुरुष नक्षत्रों से युक्त चन्द्रमा हो उसी दिन सीमन्तोन्नयन संस्कार करें और पुंसवन संस्कार के तुल्य छठे आठवें महीने में पूर्वोक्त पक्ष नक्षत्रयुक्त चन्द्रमा के दिन सीमन्तोन्नयन संस्कार करें ।
★ ४. जातकर्मसंस्कारः - संतान के जन्म के तुरंत बाद जो संस्कार किया जाता है । उसे जातकर्म संस्कार कहते हैं ।
★ ५. नामकरणम् - जन्मे हुए बालक का सुन्दर नाम धरे । ( सार्थक नाम रखना )
नामकरण का काल - जिस दिन जन्म हो उस दिन से लेके १० दिन छोड़ ग्यारहवें , वा एक सौ एकवें अथवा
दूसरे वर्ष के आरंभ में जिस दिन जन्म हुआ हो , नाम धरे ।
◆ ६. निष्क्रमणसंस्कारः - निष्क्रमणसंस्कार उसको कहते हैं कि जो बालक को घर से जहाँ का वायुस्थान शुद्ध हो वहाँ भ्रमण कराना होता है । उसका समय जब अच्छा देखें तभी बालक को बाहर घुमावें अथवा चौथे मास में तो अवश्य भ्रमण करावें ।
निष्क्रमण संस्कार के काल के दो भेद हैं - एक बालक के जन्म के पश्चात् तीसरे शुक्लपक्ष की तृतीया , और दूसरा चौथे महीने में जिस तिथि में बालक का जन्म हुआ हो । उस तिथि में यह संस्कार करे ।
★ ७. अन्नप्राशनसंस्कारः - अन्नप्राशन संस्कार तभी करे जब बालक की शक्ति अन्न पचाने योग्य होवे ।
छठे महीने बालक को अन्नप्राशन करावे । जिसको तेजस्वी बालक करना हो , वह घृतयुक्त भात ( चावल ) अथवा दही , शहद और घृत तीनों भात के साथ मिलाके विधि अनुसार संस्कार करें ।
★ ८. चूडाकर्मसंस्कारः ( मुण्डन संस्कार ) - चूडाकर्म को केशछेदन संस्कार भी कहते है । ( सिर को केश व बाल रहित करना )
यह चूडाकर्म अथवा मुण्डन बालक के जन्म के तीसरे वर्ष वा एक वर्ष में करना ।उत्तरायणकाल शुक्लपक्ष में जिस दिन आनन्दमङ्गल हो , उस दिन यह संस्कार करे ।
★ ९. कर्णवेधसंस्कारः - बालक के कर्ण वा नासिका का छेदन करना कर्णवेधसंस्कार है ।
बालक के कर्ण वा नासिका के वेध का समय जन्म से तीसरे वा पांचवें वर्ष का उचित है ।
■ १०. उपनयनसंस्कारः ( यज्ञोपवीत , जनेऊ ) -
जिस दिन जन्म हुआ हो अथवा जिस दिन गर्भ रहा हो । उससे आठवें वर्ष में ब्राह्मण के ,जन्म वा गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में क्षत्रिय के और जन्म वा गर्भ से बारहवें वर्ष में वैश्य के बालक का यज्ञोपवीत करें तथा ब्राह्मण के १६ सोलह , क्षत्रिय के २२ बाईस और वैश्य का बालक का २४ चौबीसवें वर्ष से पूर्व - पूर्व यज्ञोपवीत होना चाहिये । यदि पूर्वोक्त काल में यज्ञोपवीत व जनेऊ न हो वे पतित माने जावें ।
● जिसको शीघ्र विद्या , बल और व्यवहार करने की इच्छा हो और बालक भी पढ़ने समर्थ हो तो ब्राह्मण के लड़के का जन्म वा गर्भ से पांचवें , क्षत्रिय के लड़के का जन्म वा गर्भ से छठे और वैश्य के लड़के का जन्म वा गर्भ से आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत करें ।
★ ११. वेदारम्भसंस्कारः - वेदारम्भ उसको कहते हैं जो गायत्री मन्त्र से लेके साङ्गोपाङ्ग ( अङ्ग - शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छन्द , ज्योतिष । उपाङ्ग - पूर्वमीमांसा , वैशेषिक , न्याय , योग , सांख्य और वेदांत । उपवेद - आयुर्वेद , धनुर्वेद , गान्धर्ववेद और अर्थवेद अर्थात् शिल्पशास्त्र । ब्राह्मण - ऐतरेय , शतपथ , साम और गोपथ । वेद - ऋक् , यजुः , साम और अथर्व इन सबको क्रम से पढ़े । ) चारों वेदों के अध्ययन करने के लिये नियम धारण करना ।
समय - जो दिन उपनयनसंस्कार का है , वही वेदारम्भ का है । यदि उस दिवस में न हो सके , अथवा करने की इच्छा न हो तो दूसरे दिन करे । यदि दूसरा दिन भी अनुकूल न हो तो एक वर्ष के भीतर किसी दिन करे ।
★ १२. समावर्त्तनसंस्कारः - समावर्त्तनसंस्कार उसको कहते हैं जिसमें ब्रह्मचर्यव्रत साङ्गोपाङ्ग वेदविद्या , उत्तमशिक्षा और पदार्थविज्ञान को पूर्ण रीति से प्राप्त होके विवाह विधानपूर्वक गृहाश्रम को ग्रहण करने के लिए घर की ओर आना ।
तीन प्रकार के स्नातक होते है ।
१. विद्यास्नातक - जो केवल विद्या को समाप्त तथा ब्रह्मचर्य व्रत को न समाप्त करके स्नान करता है वह विद्यास्नातक है ।
२. व्रतस्नातक - जो ब्रह्मचर्य व्रत को समाप्त तथा विद्या को न समाप्त करके स्नान करता है वह व्रतस्नातक है ।
३. विद्याव्रतस्नातक - जो विद्या और ब्रह्मचर्य व्रत दोनों को समाप्त करके स्नान करता है वह विद्यव्रतस्नातक कहाता है ।
इस कारण ४८ अड़तालीस वर्ष का ब्रह्मचर्य समाप्त करके ब्रह्मचारी विद्या व्रत स्नान करे ।
★ १३. विवाहसंस्कारः - विवाह उसको कहते हैं कि जो पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत से विद्या बल को प्राप्त तथा सब प्रकार से शुभ गुण , कर्म , स्वभावों और अपने - अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने के लिये स्त्री और पुरुष का जो संबंध होता है ।
* उत्तरायण शुक्लपक्ष अच्छे दिन अर्थात् जिस दिन प्रसन्नता हो उस दिन विवाह करना चाहिये ।
* कितने आचार्यों का मत है कि सब काल में विवाह करना चाहिए ।
* जिस अग्नि का स्थापन विवाह में होता है , उस को आवसथ्य नाम है ।
* प्रसन्नता के दिन स्त्री का पाणिग्रहण , जो कि स्त्री सर्वथा शुभ गुणादि से उत्तम हो , करना चाहिए ।
■ विवाह - जब दो प्राणी प्रेमपूर्वक आकर्षित होकर अपने आत्मा , हृदय और शरीर को एक - दूसरे को अर्पित कर देते हैं , तब हम सांसारिक भाषा में उसे विवाह कहते है ।
★ १४. वानप्रस्थाश्रमसंस्कारः - वानप्रस्थसंस्कार उसको कहते हैं , जो विवाह से सन्तानोत्पत्ति करके पूर्ण ब्रह्मचर्य से पुत्र का भी विवाह करे , और पुत्र का भी एक संतान हो जाए । अर्थात् जब पुत्र का भी पुत्र हो जाए तब पुरुष वानप्रस्थाश्रम अर्थात् वन में जाकर वानप्रस्थाश्रम के कर्तव्य का निर्वहन करें।
★ १५.संन्यासाश्रमसंस्कारः - संन्यास संस्कार उसको कहते हैं कि जो मोहादि आवरण पक्षपात छोड़के विरक्त होकर सब पृथिवी में परोपकार्थ विचरे ।
★ १६ . अन्त्येष्टिकर्म - अन्त्येष्टि कर्म उसको कहते हैं कि जो शरीर के अंत का संस्कार है , जिसके आगे शरीर के लिए कोई भी अन्य संस्कार नहीं हैं । इसी को नरमेध , पुरुषमेध , नरयाग , पुरुषयाग भी कहते हैं ।
* भस्मान्त ँ् शरीरम् । ( यजुर्वेद ४०.१५ )
इस शरीर का संस्कार ( भस्मान्तम् ) अर्थात् भस्म करने पर्यंत है ।
***
नवगीत
अपना अपना सच
*
सबका अपना अपना सच है
*
निज सच को
मत थोप अन्य पर,
सत्य और का
झूठ न मानो।
क्या-क्यों कहता?
यह भी जानो।
आत्म मुग्ध हो
पोथे लिखकर
बने मसीहा निज मुख खुद ही
अन्य न माने।
नहीं मुखापेक्षी अब कच है
सबका अपना अपना सच है
*
शहर-गाँव
दोनों परेशां,
तंत्र हावी है,
उपेक्षित है लोक।
अधर पर मुस्कान झूठी
छिपा मन में शोक।
दो दुहाई तुम
विधान की
मनमानी कर
गीत न जाने।
लिखी भुखमरी, तुम्हें अपच है
सबका अपना अपना सच है
*
२०-१२-२०२०
***
गीत -
एक दिन ही नया
*
एक दिन ही नया
बाकी दिन पुराना।
मन सनातन सत्य
निश-दिन गुनगुनाना।
*
समय कब रुकता?
निरंतर चला करता।
स्वर्ण मृग
संयम सिया को
छला करता।
लक्ष्मण-रेखा कहे
मत पार जाना।
एक दिन ही नया
बाकी दिन पुराना।
*
निठुर है बाज़ार
क्रय-विक्रय न भूले।
गाल पिचका
आम के
हैं ख़ास फूले।
रोकड़़ा पाए अधिक जो
वह सयाना।
एक दिन ही नया
बाकी दिन पुराना।
*
सबल की मनमानियाँ
वैश्वीकरण है।
विवश जन को
दे नहीं
सत्ता शरण है।
तंत्र शोषक साधता
जन पर निशाना।
एक दिन ही नया
बाकी दिन पुराना।
*
२०. १२.२०१५
नवगीत
भीड़ में
*
भीड़ में भी
है अकेला आदमी
*
नाम के रिश्ते कई हैं
काम का कोई नहीं
भोर के चाहक अनेकों
शाम का कोई नहीं
पुरातन है
हर नवेला आदमी
भीड़ में भी
है अकेला आदमी
*
गलत को कहते सही
पर सही है कोई नहीं
कौन सी है आँख जो
मिल-बिछुड़कर कोई नहीं
पालता फिर भी
झमेला आदमी
भीड़ में भी
है अकेला आदमी
*
जागती है आँख जो
केवल वही सोई नहीं
उगाती फसलें सपन की
जो कभी बोईं नहीं
कौन सा संकट
न झेला आदमी
भीड़ में भी
है अकेला आदमी
२०-१२-२०१५
***
यमकीय दोहा:
नाहक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग
ना ज्यादा अनुराग रख, ना हो अधिक विराग
*
मन उन्मन मत हो पुलक, चल चिलमन के गाँव
चिलम न भर चिल रह 'सलिल', तभी मिले सुख-छाँव
*
गए दवाखाना तभी, पाया यह संदेश
भूल दवा खाना गए, खा लें था निर्देश
*
ठाकुर को सिर झुकाकर, ठाकुर करें प्रणाम
ठकुराइन मुस्का रहीं, आज पड़ा फिर काम
*
नम न हुए कर नमन तो, समझो होती भूल
न मन न तन हो समन्वित, तो चुभता है शूल
*
बख्शी को बख्शी गयी, जैसे ही जागीर
थे फकीर कहला रहे, पुरखे रहे अमीर
*
घट ना फूटे सम्हल जा, घट ना जाए मूल
घटना यदि घट जाए तो, व्यर्थ नहीं दें तूल
*
चमक कैमरे ले रहे, जहाँ-तहाँ तस्वीर
दुर्घटना में कै मरे,जानो कर तदबीर
*
तिल-तिल कर जलता रहा, तिल भर किया न त्याग
तिल-घृत की चिंताग्नि की, सहे सुयोधन आग
*
'माँग भरें' वर माँगकर, गौरी हुईं प्रसन्न
वर बन बौरा माँग भर, हुए अधीन- न खिन्न
२०-१२-२०१४
***
कविता क्या???
लगभग ३००० साल प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र के अनुसार कविता ऐसी रचना है जिसके शब्दों-अर्थों में दोष कदापि न हों, गुण अवश्य हों चाहे अलंकार कहीं-कहीं पर भी न हों१। दिग्गज काव्याचार्यों ने काव्य को रमणीय अर्थमय२ चित्त को लोकोत्तर आनंद देने में समर्थ३, रसमय वाक्य४, काव्य को शोभा तथा धर्म को अलंकार५, रीति (गुणानुकूल शब्द विन्यास/ छंद) को काव्य की आत्मा६, वक्रोक्ति को काव्य का जीवन७, ध्वनि को काव्य की आत्मा८, औचित्यपूर्ण रस-ध्वनिमय९, कहा है। काव्य (ग्रन्थ} या कविता (पद्य रचना) श्रोता या पाठक को अलौकिक भावलोक में ले जाकर जिस काव्यानंद की प्रतीति कराती हैं वह वस्तुतः शब्द, अर्थ, रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, वाग्वैदग्ध्य, तथा औचित्य की समन्वित-सम्मिलित अभिव्यक्ति है।
सन्दर्भ :
१. तद्दोशौ शब्दार्थो सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि -- मम्मट, काव्य प्रकाश,
२. रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम -- पं. जगन्नाथ,
३. लोकोत्तरानंददाता प्रबंधः काव्यनामभाक -- अम्बिकादत्त व्यास,
४. रसात्मकं वाक्यं काव्यं -- महापात्र विश्वनाथ,
५. काव्यशोभाकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते -- डंडी, काव्यादर्श,
६. रीतिरात्मा काव्यस्य -- वामन, ९०० ई., काव्यालंकार सूत्र,
७. वक्रोक्तिः काव्य जीवितं -- कुंतक, १००० ई., वक्रोक्ति जीवित,
८. काव्यस्यात्मा ध्वनिरितिः, आनंदवर्धन, ध्वन्यालोक,
९. औचित्यम रस सिद्धस्य स्थिरं काव्यं जीवितं -- क्षेमेन्द्र, ११०० ई., औचित्य विचार चर्चा,
०००
हाइकु गीत:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
आँख का पानी,
मर गया तो कैसे
धरा हो धानी?...
*
तोड़ बंधन
आँख का पानी बहा.
रोके न रुका.
आसमान भी
हौसलों की ऊँचाई
के आगे झुका.
कहती नानी
सूखने मत देना
आँख का पानी....
*
रोक न पाये
जनक जैसे ज्ञानी
आँसू अपने.
मिट्टी में मिला
रावण जैसा ध्यानी
टूटे सपने.
आँख से पानी
न बहे, पर रहे
आँख का पानी...
*
पल में मरे
हजारों बेनुगाह
गैस में घिरे.
गुनहगार
हैं नेता-अधिकारी
झूठे-मक्कार.
आँख में पानी
देखकर रो पड़ा
आँख का पानी...
***
हाइकु मुक्तक :
जापानी छंद / पाँच सात औ' पाँच / देता आनंद
तजिए द्वंद / सदा कहिए साँच / तजिए गंद
तोड़िए फंद / साँच को नहीं आँच / सूर्य अमंद
आनंदकंद / मन दर्पण काँच / परमानंद
२० . १२ . २०१४
०००
दोहा सलिला:
दोहा कहे मुहावरा...
*
दोहा कहे मुहावरा, सुन-गुन समझो मीत.
कम कहिये समझें अधिक, जन-जीवन की रीत.१.
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.२.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिल, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.12.
*
'पानी-पानी हो गये', साहस बल मति धीर.
जब संयम के पल हुए, पानी की प्राचीर.13.
*
चीन्ह-चीन्ह कर दे रहे, नित अपनों को लाभ.
धृतराष्ट्री नेता हुए, इसीलिये निर-आभ.14.
*
पंथ वाद दल भूलकर, साध रहे निज स्वार्थ.
संसद में बगुला भगत, तज जनहित-परमार्थ.15.
*
छुरा पीठ में भौंकना, नेता जी का शौक.
लोकतंत्र का श्वान क्यों, काट न लेता भौंक?16.
*
राजनीति में संत भी, बदल रहे हैं रंग.
मैली नाले सँग हुई, जैसे पावन गंग.17.
*
दरिया दिल हैं बात के, लेकिन दिल के तंग.
पशोपेश उनको कहें, हम अनंग या नंग?18.
*
मिला हाथ से हाथ वे, चला रहे सरकार.
भुला-भुना आदर्श को, पाल रहे सहकार.19.
*
लिये हाथ में हाथ हैं, खरहा शेर सियार.
मिलते गले चुनाव में, कल झगड़ेंगे यार.20.
*
गाल बजाते फिर रहे, गली-गली सरकार.
गाल फुलाये जो उन्हें, करें नमन सौ बार.21.
*
राम नाप जपते रहे,गैरों का खा माल.
राम नाम सत राम बिन, करते राम कमाल.22.
*
'राम भरोसे' हो रहे, पूज्य निरक्षर संत.
'मुँह में राम बगल लिये, छुरियाँ' मिले महंत.२३.
*
'नाच न जानें' कह रहे, 'आंगन टेढ़ा' लोग.
'सच से आँखें मूंदकर', 'सलिल' न मिटता रोग.२४.
*
'दिन दूना'और 'रात को, चौगुन' कर व्यापार.
कंगाली दिखला रहे, स्याने साहूकार.२५.
*
'साढ़े साती लग गये', चल शिंगनापुर धाम.
'पैरों का चक्कर' मिटे, दुःख हो दूर तमाम.२६.
*
'तार-तार कर' रहे हैं, लोकतंत्र का चीर.
लोभतंत्र ने रच दिया, शोकतंत्र दे पीर.२७.
*
'बात बनाना' ही रहा, नेताओं का काम.
'बात करें बेबात' ही, संसद सत्र तमाम.२८.
*
'गोल-मोल बातें करें', 'करते टालमटोल'.
असफलता को सफलता, कहकर 'पीटें ढोल'.२९.
*
'नौ दिन' चलकर भी नहीं, 'चले अढ़ाई कोस'.
किया परिश्रम स्वल्प पर, रहे 'भाग्य को कोस'.३०.
२०-१२-२०१३
***

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