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सोमवार, 16 अगस्त 2010

हास्य कविता: जन्म दिन संजीव 'सलिल'

हास्य कविता:

जन्म दिन

संजीव 'सलिल'

*
















*
पत्नी जी के जन्म दिवस पर, पति जी थे चुप-मौन.
जैसे उन्हें न मालूम है कुछ, आज पधारा कौन?

सोचा तंग करूँ कुछ, समझीं पत्नी: 'इन्हें न याद.
पल में मजा चखाती हूँ,भूलेंगे सारा स्वाद'..

बोलीं: 'मैके जाती हूँ मैं, लेना पका रसोई.
बर्तन करना साफ़, लगाना झाड़ू, मदद न कोई..'

पति मुस्काते रहे, तमककर की पूरी तैयारी.
बाहर लगीं निकलने तब पति जी की आयी बारी..

बोले: 'प्रिय! मैके जाओ तुम, मैं जाता ससुराल.
साली-सासू जी के हाथों, भोजन मिले कमाल..'

पत्नी बमकीं: 'नहीं ज़रुरत तुम्हें वहाँ जाने की.
मुझे राह मालूम है, छोडो आदत भरमाने की..'

पति बोले: 'ले जाओ हथौड़ी, तोड़ो जाकर ताला.'
पत्नी गुस्साईं: 'ताला क्या अकल पे तुमने डाला?'

पति बोले : 'बेअकल तभी तो तुमको किया पसंद.'
अकलवान तुम तभी बनाया है मुझको खाविंद..''

पत्नी गुस्सा हो जैसे ही घर से बाहर  निकलीं.
द्वार खड़े पीहरवालों को देख तबीयत पिघली..

लौटीं सबको ले, जो देखा तबियत थी चकराई.
पति जी केक सजा टेबिल पर रहे परोस मिठाई..

'हम भी अगर बच्चे होते', बजा रहे थे गाना.
मुस्काकर पत्नी से बोले: 'कैसा रहा फ़साना?'

पत्नी झेंपीं-मुस्काईं, बोलीं: 'तुम तो हो मक्कार.'
पति बोले:'अपनी मलिका पर खादिम है बलिहार.'

साली चहकीं: 'जीजी! जीजाजी ने मारा छक्का.
पत्नी बोलीं: 'जीजा की चमची! यह तो है तुक्का..'

पति बोले: 'चल दिए जलाओ, खाओ-खिलाओ केक.
गले मिलो मुस्काकर, आओ पास इरादा नेक..

पत्नी ने घुड़का: 'कैसे हो बेशर्म? न तुमको लाज.
जाने दो अम्मा को फिर मैं पहनाती हूँ ताज'..

पति ने जोड़े हाथ कहा:'लो पकड़ रहा मैं कान.
ग्रहण करो उपहार सुमुखी हे! आये जान में जान..'

***

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

एक कविता; होता था घर एक.' संजीव 'सलिल'

एक कविता;
होता था घर एक.'
संजीव 'सलिल'
*

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*
शायद बच्चे पढेंगे
'होता था घर एक.'
शब्द चित्र अंकित किया
मित्र कार्य यह नेक.
अब नगरों में फ्लैट हैं,
बंगले औ' डुप्लेक्स.
फार्म हाउस का समय है
मिलते मल्टीप्लेक्स.
बेघर खुद को कर रहे
तोड़-तोड़ घर आज.
इसीलिये गायब खुशी
हर कोई नाराज़.
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
भारत ही घर की बने
अद्भुत 'सलिल' मिसाल.
नाते नव बनते रहें
देखें आप कमाल.
बिना मिले भी मन मिले,
होती जब तकरार.
दूजे पल ही बिखरता
निर्मल-निश्छल प्यार.
मतभेदों को हम नहीं
बना रहे मन-भेद.
लगे किसी को ठेस तो
सबको होता खेद.
नेह नर्मदा निरंतर
रहे प्रवाहित मित्र.
 भारत ही घर का बने
 'सलिल' सनातन चित्र..
 *
+++++++++++ + ++++

LALOO'S LEELA !!! ---vijay kaushal

 LALOO'S  LEELA !!!



1) Laloo enters a shop and shouts,   
Where's my free gift with this oil?
Shopkeeper: “Iske Saath koi Gift nahin hai, Lalooji
Laloo : Ispe likha hai CHOLESTROL FREE


2) Saddam Hussain visits God and asks him:
God, When shall
I see The defeat of Bush? “
God replies:” Son, you will not see it in your lifetime.”
Hearing this, Saddam Hussain starts crying and goes away. Gen Parvez
Musharaff visits God and asks him:
” God, when shall I see the Capture of Kashmir by Pakistan . “
God replies:” Son, you will not see it in lifetime”.
Hearing this, Gen Parvez Musharaff starts crying and goes away.
Laloo Yadav visits God and asks him:
” God when shall I see Bihar Becoming a prosperous and happy state ?
” Hearing this, God starts crying. Laaloo is astounded and asks:”
God, why are you crying?
” God replies: Son, I will not see it in my lifetime.”

3) Once Laloo was coming out of the Airport. As there was a Huge
rush, the security guard told Laloo WAIT PLEASE, for which Laloo
replied 85 Kgs and moved on

4) Laloo's family planning policy : DON'T HAVE MORE THAN TWO
CHILDREN IN ONE YEAR

5) At a bar in New York , the man to Laloo's left tells the
bartender, JOHNNIE WALKER, SINGLE. And the man's companion
says, JACK DANIELS, SINGLE. The bartender approaches Laloo and
asks, AND U sir? Laloo replies: LALOO YADAV, MARRIED.


6) After having resigned as the CM of Bihar, Laloo decides to go
modelling. He steps into a herd of buffaloes and rests his
elbows on a buffalo and poses for the photo.

Laloo, third from left!

7) A reporter asked Laloo
What is the main reason for divorce?
Read the box, it says 5-7 years.

NASA was interviewing professionals to be sent to Mars.
Only one person could go, and he will not return to Earth. 
The first applicant, an American engineer, was asked  how much he wanted to be paid for going.

"A million dollars", he answered, "because I wish to donate it to M.I.T."

The next applicant, a Russian doctor, was asked the same question.

He asked for two million dollars. "I wish to give a million to my family,he explained, "and leave the other million for the advancement of medical research."

The last applicant was a Indian politician (Lallu Yadav). When asked how much money he wanted, he whispered in the interviewer' s ear, "Three million dollars."

"Why so much more than the others?" the interviewer asked.

The Indian Politician replied, $1 million is for you, I'll keep $1 million,
and we'll give the American engineer $1million and send him to Mars !

रविवार, 15 अगस्त 2010

सामयिक व्यंग्य कविता: मौसमी बुखार संजीव 'सलिल'

सामयिक व्यंग्य कविता:

मौसमी बुखार

संजीव 'सलिल'                                                   
*
*
अमरीकनों ने डटकर खाए
सूअर मांस के व्यंजन
और सारी दुनिया को निर्यात किया
शूकर ज्वर अर्थात स्वाइन फ़्लू
ग्लोबलाइजेशन अर्थात
वैश्वीकरण का सुदृढ़ क्लू..
*
'वसुधैव कुटुम्बकम'
भारत की सभ्यता का अंग है
हमारी संवेदना और सहानुभूति से
सारी दुनिया दंग है.
हमने पश्चिम की अन्य अनेक
बुराइयों की तरह स्वाइन फ़्लू को भी
गले से लगा लिया.
और फिर शिकार हुए मरीजों को
कुत्तों की मौत मरने से बचा लिया
अर्थात डॉक्टरों की देख-रेख में
मौत के मुँह में जाने का सौभाग्य (?) दिलाकर
विकसित होने का तमगा पा लिया.
*
प्रभु ने शूकर ज्वर का
भारतीयकरण कर दिया
उससे भी अधिक खतरनाक
मौसमी ज्वर ने
नेताओं और कवियों की
खाल में घर कर लिया.
स्वाधीनता दिवस निकट आते ही
घडियाली देश-प्रेम का कीटाणु,
पर्यवरण दिवस निकट आते ही
प्रकृति-प्रेम का विषाणु,
हिन्दी दिवस निकट आते ही
हिन्दी प्रेम का रोगाणु,
मित्रता दिवस निकट आते ही
भाई-चारे का बैक्टीरिया और
वैलेंटाइन दिवस निकट आते ही
प्रेम-प्रदर्शन का लवेरिया
हमारी रगों में दौड़ने लगता है.
*
'एकोहम बहुस्याम' और
'विश्वैकनीडं' के सिद्धांत के अनुसार
विदेशों की 'डे' परंपरा के
समर्थन और विरोध में 
सड़कों पर हुल्लड़कामी हुड़दंगों में
आशातीत वृद्धि हो जाती है.
लाखों टन कागज़ पर
विज्ञप्तियाँ छपाकर वक्तव्यवीरों की
आत्मा गदगदायमान होकर
अगले अवसर की तलाश में जुट जाती है.
मौसमी बुखार की हर फसल
दूरदर्शनी कार्यक्रमों,
संसद व् विधायिका के सत्रों का
कत्ले-आम कर देती है
और जनता जाने-अनजाने
अपने खून-पसीने की कमाई का
खून होते देख आँसू बहाती है.
*******
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

शनिवार, 14 अगस्त 2010

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

गीत

भारत माँ को नमन करें....

संजीव 'सलिल'
*












*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर

 राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मारें मंतर

सद्भावों की करें साधना
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से

'जन-गण-मन' गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचायें
नदियाँ-झरने गान सुनायें
पंछी कलरव कर इठलायें

भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे

सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
'सलिल' समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*******

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

भारत की कुंडली...एक विवेचना...!!! वैभवनाथ शर्मा

भारत की कुंडली...एक विवेचना...!!!

वैभवनाथ शर्मा

हमारे भारत वर्ष को स्वत्रंत हुए आज ६४ वर्ष हो गए हैं | अगर भारत की कुंडली पर चर्चा करे तो भारत की कुंडली उसके स्वत्रंत्रता दिवस से बनाई जाती है | कुंडली विवरण - तिथि १५ अगस्त १९४७, समय रात्रि ००:००, स्थान दिल्ली | इससे वृषभ लग्न तथा कर्क राशि की कुंडली बनती है |

यदि शास्त्रानुसार वृषभ लग्न की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की वृषभ लग्न का स्वाभाव बड़ा ही शर्मिला, शांति प्रिय, तमाम प्रकार के कष्ट सहने वाला, समझोता करने वाला, दबाव झेल कर भी कुछ ना बोलने वाला, मेहनती व संघर्षरत, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित, सहज ही मित्र बनाने वाला, किसी के भी विश्वास में आ जाने वाला, भोले स्वाभाव वाला, शोषित व चुप रह कर समाज को ढोने वाला होता है, और यही सब गुण भारत की प्रक्रति व स्वाभाव को दर्शाते है | इसी प्रकार शास्त्रानुसार कर्क राशी की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की यह एक कुटिल व सफल राजनितिक, बात का धनि , चतुर स्वाभाव वाला होता है |

यदि वर्तमान गोचर से चर्चा करे तो, शनि - मंगल की पंचम भाव में कन्या राशी में युति स्थिति को भयावह व विस्फ्टक बनाती है | पंचम भाव ज्ञान व सुख का भाव होता है, अर्थात ज्ञान व सुख का कारक होता है | इन दोनों क्रूर व अति शत्रु ग्रहों की पंचम भाव में युति देश की गरीब, लचर, असहाय जनता के सुख में और भी कमी दर्शाती है | यदि मंगल निकट भविष्य में तुला राशि में जाता भी है तो परिस्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आने वाला | साथ ही साथ भारत की कुंडली कालसर्प दोष से भी ग्रसित है | जिसके कारण विकास की गति या तो धीमी व अवरुद्ध है, और भ्रष्टाचार, आराजकता, चोरी, बईमानी पुरे चरम पर है |

वक्री वृहस्पति की एकादश भाव में अर्थात आय भाव में स्थिति आय में कमी, आर्थिक नुकसान, धन का नाश व क्षय दर्शाता है | यदि वर्तमान दशा की चर्च करे तो सूर्य की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा घरेलु हिंसा, धार्मिक उन्माद, आन्तरिक सुरक्षा में कमी व खतरा, पडोसी राष्ट्रों से तनाव व कष्ट और राजनितिक उथल पुथल को दर्शाता है | कुल मिला कर यह कहा जा सकता है की आने वाला वर्ष भारत व भारत की जनता के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण, अस्थिरता से परिपूर्ण व आर्थिक अनिश्चितता से भरा होगा | wahi यह भी कहा जा सकता है की भारत के युवा वर्ग को अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर तो मिलेगा परन्तु सफलता हेतु कठिन परिश्रम की आवश्यकता होगी | साथ ही साथ यह भी अवश्य कहा जा सकता है की भारत की नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर समर्थन अवश्य प्राप्त होगा | परन्तु ठोस कदम व उचित सहयोग की कमी रहेगी | पिछले कई वर्ष की भांति कम वर्षा, लचर खेती से किसान बदहाल रहेगा | देश की गरीब जनता पर कर का बोझ और बढेगा | अभी भारत व भारत की जनता को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर उचित सामान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा |

तृतीय भाव में पञ्च ग्रहा योग कदम कदम पर भारत व भारतीयों के संघर्ष को दर्शाता है | भारत व भारतीयों की व्यापारिक स्थिति दवादोल व संघर्षपूर्ण रहनेवाली है | इस काल में चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, नीच कर्म करने वाले, दलाली करने वाले लोगो की भरमार होगी व उन्हें ही सफलता प्राप्त होगी | विद्याथियो को कठिन परिश्रम व एकाग्रता से अध्यन में जुटने की सलाह दी जाती है, क्योकि आने वाला समय भारत व भारतीयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर और भी चुनोती पूर्ण व कठिन रहने वाला है |


                                                                                                                                         (आभार: फेसबुक )

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

Open heart vessel ---Vijay kaushal

Subject: Blocked Blood Vessel... Very Informative

-- VIJAY KAUSHAL

Natural therapy for heart vessel opening,

Please pass it to your colleagues or friends.

For Heart Vessels opening  
1) Lemon juice         01 cup
2) Ginger juice        01 cup
3) Garlic  juice       01 cup
4) Apple vinegar       01 cup

Mix all above and boil in light flame approximately half hour,
when it becomes 3 cups, take it out and keep it for cooling.

After cooling, mix 3 cups of natural honey and keep it in glass bottle.

Every morning before breakfast use one Table spoon regularly.

Your blockage of Vessels will open (No need any Angiography or By pass)

बुधवार, 11 अगस्त 2010

दोहा सलिला : संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला :

संजीव 'सलिल'
*
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*
सूर्य कृष्ण दो गोपियाँ, ऊषा-संध्या नाम.
एक कराती काम औ', दूजी दे आराम.

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छाया-पीछे दौड़ता, सूरज सके न थाम.
यह आया तो वह गयी, हुआ विधाता वाम.

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मन सूरज का मोहता, है वसुधा का रूप.
याचक बनकर घूमता, नित त्रिभुवन का भूप..

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आता खाली हाथ है, जाता खाली हाथ.
दिन भर बाँटे उजाला, पर न झुकाए माथ..

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देख मनुज की हरकतें, सूरज करता क्रोध.
कब त्यागेगा स्वार्थ यह?, कब जागेगा बोध..

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निलज मनुज को देखकर, करे धुंध की आड़.
बनी रहे मर्याद की, कभी न टूटे बाड़..

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पाप मनुज के बढ़ाते, जब धरती का ताप.
रवि बरसाता अश्रु तब, वर्षा कहते आप..

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सूर्य घूमता केंद्र पर, होता निकट न दूर.
चंचल धरती नाचती, ज्यों सुर-पुर में हूर..

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दाह-ताप दे पाप औ', अकर्मण्यता शीत.
दुःख हरकर सुख दे 'सलिल', 'विधि-हरि-हर' से प्रीत..

*************
विधि-हरि-हर = ब्रम्हा-विष्णु-महेश.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

अनुभव प्रवण वृद्धजनाः विद्गोषा महत्वपूर्ण तेषां सेवा ,पुण्यप्रदा आयु वृद्धसुश्रूषा उपचार तेषां शुभ पुण्य कर्मः।..प्रो.सी बी श्रीवास्तव -'विदग्ध'

डा. बी. एन. श्रीवास्तव द्वारा अपनी सहधर्मिणी स्वर्गीया श्रीमती श्रीमती शरणदुलारी श्रीवास्तव की पुण्य स्मृति में संस्कारधानी में वृद्धजनो हेतु ''निशुल्क जेरियोट्रिक क्लीनिक'' का शुभारम्भ




अनुभव प्रवण वृद्धजनाः विद्गोषा महत्वपूर्ण तेषां सेवा

पुण्यप्रदा आयु वृद्धसुश्रूषा उपचार तेषां शुभ पुण्य कर्मः।

प्रो.सी बी श्रीवास्तव -'विदग्ध'





हमारी संस्कृति में सदा से बुजुर्गों का विशेष महत्व रहा है . वानप्रस्थ व सन्यास आश्रमो की व्यवस्था भारतीय समाज का हिस्सा रही है . किन्तु भौतिकवादी , आत्मकेंद्रित , पाश्चात्य , आपाधापी के वर्तमान सामाजिक ताने बाने में वृद्धजन समाज की मूलधारा से कटते जा रहे हैं , व स्वयं को उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं . वृद्धावस्था जीवन का ऐसा हिस्सा है जब हम जिंदगी के विविध अनुभवों से तो सराबोर होते हैं , किन्तु शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत अशक्त हो जाते हैं .यह समझते हुये भी कि ऐसा एक दिन सबके साथ होना ही है , युवा पीढ़ी शायद चाहकर भी बुजुर्गों को अपेक्षित समय नही दे पा रही है . मनुष्य सदा से अमरत्व की खोज में लगा रहा है . जिस तरह से आज कृत्रिम खून के निर्माण , मानव अंगो के प्रत्यारोपण आदि क्षेत्रों में चिकित्सा जगत को आशातीत सफलता मिली है , निश्चित है कि आने वाले समय में दिन पर दिन और भी बेहतर स्वास्थ्य सेवायें सुलभ होंगी . डा. बी एन. श्रीवास्तव जबलपुर मेडिकल कालेज के मेडिसिन विभाग के सेवानिवृत डीन हैं . चिकित्सा जगत के लगातार बदलते परिवेश में विभिन्न स्वयं को सतत सक्रिय बनाये रखते हुये वे लगातार जन सेवा की मूल भावना के साथ लायंस क्लब जैसी अनेक सामाजिक संस्थाओ से जुड़े हुये हैं . उन्होने नर्मदा तट पर स्थित गीता धाम में भी भवन निर्माण करवा कर जनहित हेतु लोकार्पित किया है . उनकी पत्नी स्वर्गीया श्रीमती श्रीमती शरणदुलारी श्रीवास्तव सदैव विभिन्न चिकित्सकीय सेमीनार आदि यात्राओ में उनके साथ रहती थीं , वे न केवल उनकी जीवन संगिनी थीं वरन सच्चे अर्थों में सहधर्मिणी , उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा स्त्रोत , व यथार्थ में मित्र थीं . विगत वर्ष एक चिकित्सकीय सेमीनार से डाक्टर साहब के साथ ही लौटते हुये ट्रेन में ही उनका दुखद देहावसान हृदयाघात से हो गया . डा. बी. एन. श्रीवास्तव ने उनकी स्मृति में जेरियोट्रिक सोसायटी ऑफ इंण्डिया द्वारा मान्यता प्राप्त सर्व सुविधा संपन्न अस्पताल वृद्धजनो हेतु स्थापित करने का निर्णय लिया है , और संस्कारधानी में इस तरह का यह पहला चिकित्सालय १० अगस्त २०१० को , डा. बी. एन. श्रीवास्तव के निवास के उपर प्रथम तल पर गुलाटी पैत्रोल पंप के निकट , प्रेमनगर , मदनमहल जबलपुर में किया गया. उद्घाटन स्वामी श्यामदास जी महाराज के कर कमलों से हुआ . कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ट शिक्षाविद व साहित्यकार प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव जी ने की . . कार्यक्रम का संचालन श्रीमती प्रार्थना अर्गल ने किया . उल्लेखनीय है कि जेरियाट्रिक सोसायटी आफ इण्डिया के सचिव डा. ओम प्रकाश शर्मा ने नगर के वरिष्ठतम चिकित्सक डा. बी एन. श्रीवास्तव को भीष्म पितामह निरूपित करते हुये उन्हें जेरियाट्रिक सोसायटी आफ इण्डिया के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया है .इस अवसर पर स्वामी श्यामदास जी महाराज जी ने कहा कि रोगियो के रूप में परमात्मा की सेवा का ही अवसर इस वृद्ध चिकित्सालय में मिलेगा .



जेरियोट्रिक मेडीसिन चिकित्सा जगत की वह शाखा है जो वरिष्ठ नागरिकों (६० वर्ष के ऊपर आयु के स्त्री पुरूष) की विभिन्न बीमारियों के उपचार से संबंधित है। हमारे देश में सन्‌ २००१ में वृद्धों की संख्या कुल जनसंखया का ६.८ प्रतिशत थी जो अगले २५ वर्षो में १२ प्रतिशत हो जाने की संभावना है। १९६१ से आने वाले १०० वर्षो में जहॉं हमारे देश की जनसंख्या पांचगुना हो जाना अनुमानित है वहीं वृद्धों की संख्या भी १३ गुना बढ जाने की संभावना है।



जेरियोट्रिक मेडीसिन जनरल मेडीसिन से भिन्न है क्योकि वृद्धो की समस्यायें युवाजन की समस्याओं से भिन्न होती है। आयु की वृद्धि के साथ शरीर के अंग शिथिल होते है और उनकी क्रियाओं में भी शिथिलता आ जाती है। इससे बुजुर्गो हेतु सामान्य से भिन्न दवाओं की आवश्यकता होती है। वृद्धो के स्वास्थ्य के लिये नियमित परीक्षण डाक्टरी सलाह और उपचार आवश्यक होता है। पति या पत्नि में से किसी एक की मृत्यु से वियोग का दुख होना और सूनापन आने से मानसिक निर्बलता की समस्यायें भी वृद्धजनो में होती है , जिसके निदान हेतु आध्यात्मिक संबल की आवश्यकता होती है . ।

वास्तव में वृद्धावस्था अभिशाप नहीं है ,यह तो जीवन का वह पडाव है जब आदमी अपने अनुभवों से परिपक्व होकर नई पीढ़ी को सही राह दिखा सकता है। समाज को कुछ सिखा सकता है और समाज सेवा कर सकता है पर इसके लिये मनोबल बनाये रखे जाने की जरूरत होती है ।इस दृष्टि से जेरियोट्रिक चिकित्सालय बुजुर्गो हेतु महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है .

बाल गीत अपनी माँ का मुखड़ा..... संजीव वर्मा 'सलिल'

बाल गीत अपनी माँ का मुखड़ा..... संजीव वर्मा 'सलिल'


 
           मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा.....   सुबह उठाती गले लगाकर, फिर नहलाती है बहलाकर.आँख मूँद, कर जोड़ पूजती प्रभु को सबकी कुशल मनाकर.देती है ज्यादा प्रसाद फिर सबकी नजर बचाकर.   आंचल में छिप जाता मैं ज्यों रहे गाय सँग बछड़ा.मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा.....      बारिश में छतरी आँचल की. ठंडी में गर्मी दामन की..  गर्मी  में धोती का पंखा, पल्लू में छाया बादल की.कभी दिठौना, कभी आँख में  कोर बने काजल की..   दूध पिलाती है गिलास भर -
कहे बनूँ मैं तगड़ा. ,
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*****

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

माँ को अर्पित चौपदे: संजीव 'सलिल'


         माँ को अर्पित चौपदे: संजीव 'सलिल'

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बारिश में आँचल को छतरी, बना बचाती थी मुझको माँ.
जाड़े में दुबका गोदी में, मुझे सुलाती थी गाकर माँ..
गर्मी में आँचल का पंखा, झलती कहती नयी कहानी-
मेरी गलती छिपा पिता से, बिसराती थी मुस्काकर माँ..
*
मंजन स्नान आरती थी माँ, ब्यारी दूध कलेवा थी माँ.
खेल-कूद शाला नटख़टपन, पर्व मिठाई मेवा थी माँ..
व्रत-उपवास दिवाली-होली, चौक अल्पना राँगोली भी-
संकट में घर भर की हिम्मत, दीन-दुखी की सेवा थी माँ..


खाने की थाली में पानी, जैसे सबमें रहती थी माँ.
कभी न बारिश की नदिया सी कूल तोड़कर बहती थी माँ..
आने-जाने को हरि इच्छा मान, सहज अपना लेती थी-
सुख-दुःख धूप-छाँव दे-लेकर, हर दिन हँसती रहती थी माँ..
*
गृह मंदिर की अगरु-धूप थी, भजन प्रार्थना कीर्तन थी माँ.
वही द्वार थी, वातायन थी, कमरा परछी आँगन थी माँ..
चौका बासन झाड़ू पोंछा, कैसे बतलाऊँ क्या-क्या थी?-
शारद-रमा-शक्ति थी भू पर, हम सबका जीवन धन थी माँ..
*
कविता दोहा गीत गजल थी, रात्रि-जागरण चैया थी माँ.
हाथों की राखी बहिना थी, सुलह-लड़ाई भैया थी माँ.
रूठे मन की मान-मनौअल, कभी पिता का अनुशासन थी-
'सलिल'-लहर थी, कमल-भँवर थी, चप्पू छैंया नैया थी माँ..
*
आशा आँगन, पुष्पा उपवन, भोर किरण की सुषमा है माँ.
है संजीव आस्था का बल, सच राजीव अनुपमा है माँ..
राज बहादुर का पूनम जब, सत्य सहाय 'सलिल' होता तब-
सतत साधना, विनत वन्दना, पुण्य प्रार्थना-संध्या है माँ..
*
माँ निहारिका माँ निशिता है, तुहिना और अर्पिता है माँ
अंशुमान है, आशुतोष है, है अभिषेक मेघना है माँ..
मन्वंतर अंचित प्रियंक है, माँ मयंक सोनल सीढ़ी है-
ॐ कृष्ण हनुमान शौर्य अर्णव सिद्धार्थ गर्विता है माँ

************************************************* 


 

गीत: चुनौतियों के आँधी-तूफां..... संजीव 'सलिल'

गीत:

चुनौतियों के आँधी-तूफां.....

संजीव 'सलिल'
*
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चुनौतियों के आँधी-तूफां मुझको किंचित डिगा न पाये.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
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संबंधों की मृग-मरीचिका, अनुबंधों के मिले भुलावे.
स्नेह-प्रेम का ओढ़ आवरण, पग-पग पर छल गए छलावे..
अनजाने लगते अपने हैं, अपने अपनापन सपने हैं.
छेद हुआ पेंदी में जिनके, बेढब दुनियावी नपने हैं..
अपनी-अपनी कहें बेसुरे, कोई किसी की नहीं सुन रहा.
हाय! इमारत का हर पत्थर, अलग-अलग निज शीश धुन रहा..
सत्ता-सियासती मौसम में, बिन मारे सद्भाव मर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
अपने मत को सत्य मानना, मीता! बहुत सहज होता है.
केवल अपना सच ही सच है, जो कहता सच को खोता है..
अलग-अलग सुर-ताल मिलें जब, राग-रागिनी तब बन पाती.
रंग-बिरंगे तरह-तरह के, फूलों से बगिया सज पाती..
अपनी सीमा निर्धारित कर, कैद कर रहे खुद ही खुद को.
मन्दिर में भगवान समाता, कैसे? पूज रहे हैं बुत को..
पूर्वाग्रह की सुदृढ़ बेड़ियाँ, जेवर कहकर पहन घर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
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बड़े-बड़े घावों पर मलहम, समय स्वयं ही रहा लगता.
भूली-बिसरी याद दिला मन, चोटों पर कर चोट दुखाता..
निर्माणों की पूर्व पीठिका, ध्वंस-नाश में ही होती है.
हर सिकता-कण, हर चिनगारी, जीवन की वाहक होती है..
कंकर-कंकर को शंकर कर, प्रलयंकर अभ्यंकर होता.
विधि-शारद, हरि-श्री शक्तित हों, तब जागृत मन्वन्तर होता.
रतिपति मति-गति अभिमंत्रित कर, क्षार हुए, साहचर्य वर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

मुक्तिका ......... बात करें संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

......... बात करें

संजीव 'सलिल'

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बात न मरने की अब होगी, जीने की हम बात करें.
हम जी ही लेंगे जी भरकर, अरि मरने की बात करें.

जो कहने की हो वह करने की भी परंपरा डालें.
बात भले बेबात करें पर मौन न हों कुछ बात करें..

नहीं सियासत हमको करनी, हमें न कोई चिंता है.
फर्क न कुछ, सुनिए मत सुनिए, केवल सच्ची बात करें..

मन से मन पहुँच सके जो, बस ऐसा ही गीत रचें.
कहें मुक्तिका मुक्त हृदय से, कुछ करने की बात करें..

बात निकलती हैं बातों से, बात बात तक जाती है.
बात-बात में बात बनायें, बात न करके बात करें..

मात-घात की बात न हो अब, जात-पांत की बात न हो.
रात मौन की बीत गयी है, तात प्रात की बात करें..

पतियाते तो डर जाते हैं, बतियाते जी जाते हैं.
'सलिल' बात से बात निकालें, मत मतलब की बात करें..
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

हास्य मुक्तिका: बसाई याद जिसकी दिल में संजीव 'सलिल'

हास्य मुक्तिका:

बसाई याद जिसकी दिल में

संजीव 'सलिल'
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बसाई याद जिसकी दिल में हमने वह कसाई है.
धँसे दिल में मिली हमको, हँसी चुप्पी रुलाई है..

उसे चूमा गुंजाया गीत, लिपटाया मिला दोहा.
बिछुड़कर ग़ज़ल कह दी, फिर मिले पाई रुबाई है..

न लेने चैन ही देती, न कुछ आराम करने दे.
जो मूंदूं आँख तो देखूं वो पलकों में समाई है..

नहीं है सिर्फ मेरा प्यार, वह है स्वप्न लाखों का.
मुझे है फख्र उससे ज़माने की महबूबाई है.

न उसका पिंड छोड़ेंगे, न लेने चैन ही देंगे.
नहीं है गैर, कविता से 'सलिल' की आशनाई है.
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

सोमवार, 9 अगस्त 2010

नवगीत: घर के रहे न घाट के संजीव 'सलिल'

नवगीत:
घर के रहे न घाट के
संजीव 'सलिल'

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घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
आदमखोर बुराईयाँ
लीलें कब किस व्याज...
*
धरती को लीलता मनुष्य.
जीव-जन्तु हो रहे हविष्य.
अपने ही पाँव कुल्हाड़ी-
मारता, मिटा रहा भविष्य.
नियति नटी मौन क्यों रहे?
दंड निठुर मिलेगा अवश्य.

अमन चैन ही खो गया

बना सुराज कुराज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*
काट दिए जंगल सब ओर.
सुना नहीं आर्तनाद घोर.
पर्वत को खोद ताल पूर-
कानफाडू करता है शोर.
पशु-पक्षी मूक पूछते
इन्सां तू क्यों हुआ है ढोर?

चरणकमल पर कर कमल

वार करें तज लाज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*

दोहा सलिला: दिल के संग दोहा के रँग: संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दिल के संग दोहा के रँग:
संजीव 'सलिल'
*










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दिल ने दिल में झाँककर, दिल का कर दीदार.
दिलवर से हँसकर कहा- 'मैं कुरबां सरकार'.

दिल ने दिल को दिल दिया, दिल में दिल को देख.
दिल ही दिल में दिल करे, दिल दिलवर का लेख.

दिल से दिल मिल गया तो, बढ़ी दिलों में  प्रीत.
बिल देखा दिल फट गया, लगती प्रीत कुरीत..

बेदिल से दिल कहा रहा, खुशनसीब हैं आप.
दिल का दर्द न पालते, लगे न दिल को शाप..

दिल तोड़ा दिल फेंककर, लगा लिया दिल व्यर्थ.
सार्थक दिल मिलना तभी, जेब भरे जब अर्थ..

दिल में बस, दिल में बसा, देख जरा संसार.
तब असार में सार लख, जीवन बने बहार..

दिल की दिल में रह गयी, क्यों बतलाये कौन?
दिल ने दिल में झाँककर, 'सलिल' रख लिया मौन..

दिल से दिल ने बात की, अक्सर पर बेबात.
दिल में दिल ने घर किया, ले-देकर सौगात..

दिल डोला दिल ने लिया, आगे बढ़कर थाम.
दिल डूबा दिल ने दिया, 'सलिल' प्रीत-पैगाम..

लगे न दिल में बात जो, उसका कहना व्यर्थ.
दिल में चुभती बात जो, दिल ही समझे अर्थ..

दिल लेकर दिल दे दिया, 'सलिल' किया व्यापार.
प्रीत परायी के लिये, दिल अपना बेज़ार.


दिल को चीरे चिकित्सक, कहीं न पाये प्रीत.
प्रीत करे अनुभव वही, जिसके दिल में प्रीत..


दिल धडके सुर-ताल में, श्वास बने संगीत.
बहर भंग हो तो 'सलिल', दिल का चैन अतीत..


दिल टूटे खुद ना जुड़े, जोड़े यदि शल्यज्ञ.
हो न पूर्व सा फिर कभी, दिल अभिज्ञ या भिज्ञ..


जिसका दिल सचमुच बड़ा, वही बड़ा इन्सान.
दिल छोटा तो धनपति, दीन- कहें मतिमान..


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रविवार, 8 अगस्त 2010

गीत: कब होंगे आजाद... ------संजीव 'सलिल'

गीत:
कब होंगे आजाद
संजीव 'सलिल'
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कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
http://divyanarmada.blogspot.com

कविता: उम्मीद की किरण संजीव 'सलिल'

कविता:
उम्मीद की किरण
संजीव 'सलिल'
*

















*
बहुत कम हैं जो
सच को कह पाते हैं
उनसे भी कम हैं
जो सच को सह पाते हैं
अधिकांश तो
स्वार्थ और झूठ की
बाढ़ में बह जाते हैं.
रोशनी की लकीर
बनते और बनाते हैं वही-
जो सच को गह पाते हैं.
वे भले ही सच की
तह नहीं पाते हैं, किन्तु
सच को सहने और कहने की
वज़ह बन जाते हैं.
असच के सामने
तन जाते हैं.
उम्मीद की किरण
बनकर जगमगाते हैं.

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गीत: हर दिन मैत्री दिवस मनायें..... संजीव 'सलिल'

गीत:
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
संजीव 'सलिल'
*








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हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
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होनी-अनहोनी कब रुकती?
सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?
कारण कृपया, मुझे बतायें
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
मन से मन की बात रुके क्यों?
जब मन हो गलबहियाँ डालें.
अमराई में झूला झूलें,
पत्थर मार इमलियाँ खा लें.
धौल-धप्प बिन मजा नहीं है
हँसी-ठहाके रोज लगायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
बिरहा चैती आल्हा कजरी
झांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
लगा अबीर, गायें कबीर
छाछ पियें मिल भंग चढ़ायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*

दोहा सलिला: संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

संजीव 'सलिल'
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कौन कहानीकार है?, किसके हैं संवाद?
बोल रहे सब यंत्रवत, कौन सुने  फरियाद??
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आर्थिक मंदी छा गयी, मचा हुआ कुहराम.
अच्छे- अच्छे फिसलते, कोई न पाता थाम..
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किसका कितना दोष है?, कहो कौन निर्दोष?
विधना जाने कब करे, सर्व नाश का घोष??
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हवामहल पल में उड़ा, वासी हुए निराश.
बिन नींव की व्यवस्था, हाय हो गयी ताश..
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कठपुतलीवत नचाता, थाम श्वास की डोर.
देख न पाते हम झलक, चाहें करुणा-कोर..
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भ्रम होता हम कर रहे, करा रहा वह काज.
लेते उसका श्रेय खुद, किन्तु न आती लाज..
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सुविधा पाने जो गए, तजकर अपना देश.
फिर-फिर आते पलटकर, मन में व्यथा अशेष..
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नगदी के नौ लीजिये, तेरह नहीं उधार.
अब तो छलिये! बंद कर, सपनों का व्यापार..
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चमक-दमक औ' सादगी, वह सोना यह धूल.
 वह पावन शतदल कमल, यह बबूल का शूल..
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पेड़ टूटते, दूब झुक, सह लेती तूफ़ान.
जो माटी से जुड़ रहे, 'सलिल' वही मतिमान..
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पल में पैरों-तले से, सरकी 'सलिल' ज़मीन.
तीसमारखाँ काल के, हाथ हो गए दीन..
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थाम-थमाये विपद में, बिना स्वार्थ निज हाथ.
'सलिल' हृदय में लो बसा, नमन करो नत माथ..
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दानव वे जो जोड़ते, औरों का हक छीन.
ऐश्वर्य जितना बढ़ा, वे उतने ही दीन..
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भूमि, भवन, धन जोड़कर, हैं दरिद्र वे लोग.
'सलिल' न जो कर पा रहे, जी भरकर उपयोग..
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जो पाया उससे नहीं, 'सलिल' जिन्हें संतोष.
वे सचमुच कंगाल हैं, गर्दभ ढोते कोष.
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बात-बात में कर रहे, नाहक वाद-विवाद.
'सलिल' सहज हो कर करें, कुछ सार्थक संवाद..
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