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गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

नवगीत: सड़क संजीव 'सलिल'

नवगीत:

सड़क                                                                                         

संजीव 'सलिल'
*
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

खुशियाँ सभी ने देखीं
पीड़ा न युग ने जानी.
विष पी गयी यहीं पर
मीरां सी राजरानी.

चुप सड़क ने
कुछ न कहकर सत्य बोले.
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

घूमे यहीं दीवाने,
गूँजे यहीं तराने,
थी होड़ सिर कटायें-
अब शेष हैं बहाने.

क्यों सड़क ने
अमृत में भी ज़हर घोले...
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

हर मूल्य क्यों बिकाऊ?
हर बात क्यों उबाऊ?
मौसम चला-चली का-
कुछ भी न क्यों टिकाऊ?

हर सीने में
'सलिल' धड़के आज शोले.
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

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