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रविवार, 17 दिसंबर 2023

कृष्ण भक्त परमानन्द दास, अष्ट छाप

परमानन्द दास जी
भक्ति सगुण-निर्गुण करें, हरि प्रतीति बिन व्यर्थ।
कण-कण में हरि देख ले, उसी भक्ति का अर्थ॥
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भेद न निर्गुण सगुण में, भक्ति तत्व अनिवार्य।
कंकर में शंकर दिखे, अंश-पूर्ण पर्याय॥
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कृष्ण भक्त आनंद दे, शैव करे कल्याण।
राम भक्त मर्याद रख, शाक्त करे संप्राण॥
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कौशल-लाघव अपरिमित, जिसमें वही सरोज।
पंक-सलिल में विमल रह, सुरभि बिखेरे ओज॥
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भ्रमर गीत गुंजार में, है सर्वत्र सरोज।
कृष्ण जमुन जल राधिका, मुख मण्डल है ओज॥
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भक्ति शिखर कैलाश है, आरोहण का यत्न।
बिन कौशल करिए नहीं, वर वैराग्य प्रयत्न॥
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द्वन्द बिना निर्द्वन्द की, होती नहीं प्रतीति।
हो निर्भीक वही जिसे, कभी हुई हो भीति॥
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अंशुमान है कृष्ण जू, अंशुल प्रभु की भक्ति।
भाव दीप माला सतत, दे प्रकाश अनुरक्ति॥
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दधि-माखन का कुंभ हैं, जो कहिए दाधीच।
भोज्य बने हँस ब्रह्म का, रस-आनंद उलीच॥
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शिक्षक को शिक्षा मिले, जनगण से यह ठान।
उद्धव को हरि भेजते, तजें ज्ञान-अभिमान॥
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परमात्मा ही पुरुष है, आत्मा उसका अंश।
प्रिय-प्रेयसि वत जानिए, मिटे पृथकता-दंश॥
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हैँ अक्रूर उद्धव भ्रमर, श्याम- गोपियाँ गौर।
मिला श्याम से श्याम जा, हो उनका सिरमौर॥
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द्रुपद-धमास विकास कर, भक्त रचा मधुर संगीत।
भोग-राग-सिंगार त्रय, करे पुष्ट हरि-प्रीत॥
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अष्ट छाप कवि सखा हैं, सख्य भाव है भक्ति।
अंतर में अंतर नहीं, दीप माल अनुरक्ति॥
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भक्ति काव्य संगीत त्रय, हरि-दर्शन की राह।
परमानन्द करे अभय, माँ रख प्रभु की चाह॥
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अगले रविवार के विषय
०१. परमानन्द दास जी के साहित्य में शुद्धाद्वैत दर्शन
०२. परमानन्द सागर में रास सौन्दर्य
०३. परमानन्द दास जी के काव्य में विरह वर्णन
०४. परमानन्द दास जी केकाव्य में पर्यावरण और पशु-पक्षी
०५. संगीतविद परमानन्द दास जी

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