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सोमवार, 6 जून 2022

छंद गीतिका,शिरीष,दोहा, बगीचा,आम,आँवला, PRAYER Ganesh

PRAYER
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O' Almighty lord Ganesh!
Words are your sword ashesh.
You are always the First.
Make best from every worst.
You are symbol of wisdom.
You are innocent and handsome.
Ultimate terror to the Demon.
Shiv and Shiva's worthy son.
You bring us all the Shubha.
You bless the devotees with Vibha.
Be kind on us mother Riddhi.
Bless us all o mother Siddhi.
O lord Ganesh the Vighnesh.
Make us success o Karunesh.
6-6-2022
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स्वास्थ्य दोहावली
*
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख, कहता छू आकाश।।
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नहा आँवला नीर से, रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
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अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
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रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
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जठर-अग्नि; मंदाग्नि में, फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला, भोजन पचता पूर्ण।।
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भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
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फुला आँवला-चूर्ण को, आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
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अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
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चूर्ण आँवला फाँकिए, नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
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खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
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बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
५-६-२०१८
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दोहा सलिला
आम खास का खास है......
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आम खास का खास है, खास आम का आम.
'सलिल' दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..
आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.
आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..
पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.
चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..
दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.
अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..
छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .
पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..
लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.
सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..
चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.
'सलिल' आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..
तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.
चंचु सदृश दो नोक औ', तोते जैसा चाम..
हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.
अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..
लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.
बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..
आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.
चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..
'सलिल' आम के आम ले, गुठली के भी दाम.
उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..
चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.
सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..
१४-६-२०११
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दोहा दुनिया
शब्द विशेष :बाग़ बगीचा वाटिका, उपवन, उद्यान
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गार्डन-गार्डन हार्ट है, बाग़-बाग़ दिल आज.
बगिया में कलिका खिली, भ्रमर बजाए साज..
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बागीचा जंगल हुआ, देख-भाल बिन मौन.
उपवन के दिल में बसी, विहँस वाटिका कौन?
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ओशो ने उद्यान में, पाई दिव्य प्रतीति.
अब तक खाली हाथ हम, निभा रहे हैं रीति..
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ठिठक बगीचा देखता, पुलक हाथ ले हाथ.
कभी अधर धर चूमता, कभी लगाता माथ..
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गुलशन-गुलशन गुल खिले, देखें लोग विदग्ध.
खिला रहा गुल कौन दल, जनता पूछे दग्ध..
६-६-२०१८, ७९९९५५९६१८
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एक प्रयोग-
चलता न बस, मिलता न जस, तपकर विहँस, सच जान रे
उगता सतत, रवि मौन रह, कब चाहता, युग दाम दे
तप तू करे, संयम धरे, कब माँगता, मनु नाम दे
कल्ले बढ़ें, हिल-मिल चढ़ें, नित नव छुएँ, ऊँचाइयाँ
जंगल सजे, घाटी हँसे, गिरि पर न हों तन्हाइयाँ
परिमल बिखर, छू ले शिखर, धरती सिहर, जय-जय कहे
फल्ली खटर-खट-खट बजे, करतल सहित दूरी तजे
जब तक न मानव काट ले या गिरा दे तूफ़ान आ
तब तक खिला रह धूप - आतप सह, धरा-जंगल सजा
जयगान तेरा करेंगे कवि, पूर्णिमा के संग मिल
नव कल्पना की अल्पना लाख ज्योत्सना जायेगी खिल
६-६-२०१६
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पर्यावरण गीत -
बाँहों में शिरीष
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बाँहों में भर शिरीष
जरा मुस्कुराइए
*
धरती है अगन-कुंड, ये
फूलों से लदा है
लू-लपट सह रहा है पर
न पथ से हटा है
ये बाल-हठ दिखा रहा
न बात मानता-
भ्रमरों का नहीं आज से
सदियों से सगा है
चाहों में पा शिरीष
मिलन गीत गाइए
*
संसद की खड़खड़ाहटें
सुन बज रही फली
सरहद पे हड़बड़ाहटें
बंदूक भी चली
पत्तों ने तालियाँ बजाईं
झूमता पवन-
चिड़ियों की चहचहाहटें
लो फिर खिली कली
राहों पे पा शिरीष
भीत भूल जाइए
*
अवधूत है या भूत
नहीं डर से डर रहा
जड़ जमा कर जमीन में
आदम से लड़ रहा
तू एक काट, सौ उगाऊँ
ले रहा शपथ-
संघर्षशील है, नहीं
बिन मौत रह रहा
दाहों में पसीना बहा
तो चहचहाइए
६-६-२०१६
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छंद सलिला:
गीतिका छंद
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छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु
लक्षण छंद:
लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते
लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते
उदाहरण:
१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े
उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े
खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना
कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े
२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है
एक सा रहता समय कब? , रात लाती प्रात है
३. सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं
दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं
६-६-२०१४
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