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सोमवार, 20 जून 2022

पिता,गीत,शिवलिंग,शालिग्राम,रैदास,पैरोडी,व्यंग्य गीत,छंद पद्मावती/कमलावती, सदोका, व्यंग्य गीत, आभा सक्सेना, नागरिक अधिकार, लघुकथा

सदोका सलिला 
ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ।
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।१।
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिली
कवि की डलिया में।२।
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।३।
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।४।
 ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पुजा माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय हो नीरव 
क्यों हो रहा शोर?५।
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।६।
गुलाबी हाथ
मृणाल अंगुलियाँ
कमल सा चेहरा।
गुलाब थामे
चम्पा सा बदन
सुंदरी या बगिया?७।
लिए उच्चार
पाँच, सात औ' सात
दो मर्तबा सदोका।
रूप सौंदर्य
क्षणिक, सदा रहे
प्रभाव सद्गुणों का।८।
सूरज बाँका
दीवाना है उषा का
मुट्ठी भर गुलाल
कपोलों पर
लगाया, मुस्कुराया
शोख उषा शर्माई।९।
आवारा मेघ
कर रहा था पीछा
देख अकेला दौड़ा
हाथ न आई
दामिनी ने गिराई
जमकर बिजली।१०।
हवलदार
पवन ने जैसे ही
फटकार लगाई।
बादल हुआ
झट नौ दो ग्यारह
धूप खिलखिलाई।११।
महकी कली
गुनगुनाते गीत
मँडराए भँवरे।
सगे किसके
आशिक हरजाई
बेईमान ठहरे।१२।
घर ना घाट
सन्यासी सा पलाश
ध्यानमग्न, एकाकी।
ध्यान भग्न
करना चाहे संध्या
दिखला अदा बाँकी।१३।
सतत बही
जो जलधार वह
सदा निर्मल रही।
ठहर गया
जो वह मैला हुआ
रहो चलते सदा।१४।
पंकज खिला
करता नहीं गिला
जन्म पंक में मिला।
पुरुषार्थ से
विश्व-वंद्य हुआ
देवों के सिर चढ़ा।१५।
खिलखिलाई 
इठलाई शर्माई 
सद्यस्नाता नवोढ़ा। 
चिलमन भी 
रूप देख बौराया 
दर्पण आहें भरे।१६। 
• 
लहराती है 
नागिन जैसी लट, 
भाल-गाल चूमती। 
बेला की गंध 
मदिर सूँघ-सूँघ 
बेड़नी सी नाचती।१७।
• 
क्षितिज पर 
मेघ घुमड़ आए 
वसुंधरा हर्षाई। 
पवन झूम 
बिजली संग नाचा, 
प्रणय पत्र बाँचा।१८। 
• 
लोकतंत्र में 
नेता करे सो न्याय 
अफसर का राज। 
गौरैयों ने 
राम का राज्य चाहा 
बाजों को चुन लिया।१९। 
• 
घर को लगी 
घर के चिराग से 
दिन दहाड़े आग। 
मंत्री का पूत 
किसानों को कुचले 
और छाती फुलाए। २०।
मेघ गरजे 
रिमझिम बरसे 
आसमान भी तर। 
धरती भीगी 
हवा में हवा हुआ 
दुपट्टा, गाल लाल ।२१। 
• 
निर्मल नीर 
गगन से भू पर 
आकर मैला हुआ। 
ज्यों कलियों का 
दामन भँवरों ने 
छूकर पंकिल किया।२२। 
• 
चुभ रही थी 
गर्मी में तीखी धूप 
जीव-जंतु परेशां। 
धरा झुलसी 
धन्य धरा धीरज  
बारिश आने तक।२३। 
• 
करते पहुनाई 
ढोल बजा दादुर 
पत्ते बजाते ताली। 
सौंधी महक 
माटी ने फैला दी 
झूम उठीं शाखाएँ।२४। 
• 
मेघ ठाकुर 
आसमानी ड्योढी में 
जमाए महफिल। 
दिखाए नृत्य 
कमर लचकाती 
बिजली बलखाती।२५। 
विमर्श
निर्बल नागरिकों के अधिकारों का हनन
लोकतंत्र में निर्बल नागरिकों की जीवन रक्षा का भर जिन पर है वे उसका जीना मुश्किल कर दें और जब कोई असामाजिक तत्व ऐसी स्थिति में उग्र हो जाए तो पूरे देश में हड़ताल कर असंख्य बेगुनाहों को मरने के लिए विवश कर दिया जाए।
शर्म आनी चाहिए कि बिना इलाज मरे मरीजों के कत्ल का मुकदमा आई एम् ए के
पदाधिकारियों पर क्यों नहीं चलाती सरकार?
आम मरीजोंजीवन रक्षा के लिए कोर्ट में जनहित याचिका क्यों नहीं लाई जाती ?
मरीजों के मरने के बाद भी जो अस्पताल इलाज के नाम पर लाखों का बिल बनाते हैं,
और लाश तक रोक लेते हैं उनके खिलाफ क्यों नहीं लाते पिटीशन?
दुर्घटना के बाद घायलों को बिना इलाज भगा देनेवाले डाक्टरों के खिलाफ क्यों नहीं
होती पिटीशन?
राजस्थान में डॉक्टर ने मरीज को अस्पताल में सबके साबके मारा, उसके खिलाफ
आई एम् ए ने क्या किया?
यही बदतमीजी वकील भी कर रहे हैं। एक वकील दूसरे वकील को मारे और पूरे देश में हड़ताल कर दो। न्याय की आस में घर, जमीन बेच चुके मुवक्किदिलाने ल की न्याय की चिंता नहीं है किसी वकील को।
आम आदमी को ब्लैक मेल कर रहे पत्रकारों के साथ पूरा मीडिया जुट जाता है।
कैसा लोकतंत्र बना रहे हैं हम। निर्बल और गरीब की जान बचानेवाला, न्याय
दिलाने वाला, उसकी आवाज उठाने वाला, उसके जीवन भर की कमाई देने का सपना दिखानेवाला सब संगठन बनाकर खड़े हैं। उन्हें समर्थन को संरक्षण चाहिए, और ये सब असहायकी जान लेते रहें उनके खिलाफ कुछ नहीं हो रहा।
शर्मनाक।
२०-६-२०१९
***
संस्मरण:
अपने आपमें छंद काव्य सलिल जी
- आभा सक्सेना, देहरादून
*
संजीव वर्मा सलिल एक ऐसा नाम जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है |उनकी प्रशंसा करना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा |उनसे मेरा परिचय मुख पोथी पर सन २०१४-१५ में हुआ |उसके बाद तो उनसे दूरभाष पर वार्तालाप का सिलसिला चल रहा है| सलिल जी स्वयं में ही एक पूरा छंद काव्य हैं| उन्होने किस विधा में नहीं लिखा हर विधा के वे ज्ञानी पंडित हैं उन के व्यक्तित्व में उनकी कवियित्री बुआ महादेवी वर्मा जी की साफ झलक दिखाई देती है |
सन २०१४, उस समय मैं नवगीत लिखने का प्रयास कर रही थी उस समय मुझे उन्हों ने ही नवगीत विधा की बारीकियाँ सिखाईं। मेरा नव गीत उनके कुछ सुझावों के बाद -
नव गीत
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
अलस्सुबह जा
सांझ ढले
घर को आते हो
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
.....आभा
आजकल वे सवैया छंद पर कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि
“सवैया आधुनिक हिंदी की शब्दावली के लिए पूरी तरह उपयुक्त छंद' है। यह भ्रांति है कि सरस सवैये केवल लोकभाषाओं लिखे जा सकते हैं। सत्य यह है कि सवैया वाचिक परंपरा से विकसित छंद है। लोकगायक प्रायः अशिक्षित या अल्प शिक्षित थे। उन्होंने लोकभाषा में सवैया रचे और उन्हें पढ़कर उन्हीं की शब्दावली हमें सहज लगती है। मैं सवैया कोष पर काम कर रहा हूँ। १६० प्रकार के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं। के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं”। वे कार्यशालाओं में निरंतर नए प्रयोग कर जिज्ञासुओं को छंदों की बारीकियाँ बताते हैं।
एक कथ्य चार छंद:
*
जनक छंद
फूल खिल रहे भले ही
गर्मी से पंजा लड़ा
पत्ते मुरझा रहे हैं।
*
माहिया
चाहे खिल फूल रहे
गर्मी से हारे
पत्ते कुम्हलाय हरे।
*
दोहा
फूल भले ही खिल रहे, गर्मी में भी मौन।
पत्ते मुरझा रहे हैं, राहत दे कब-कौन।।
*
सोरठा
गर्मी में रह मौन, फूल भले ही खिल रहे।
राहत दे कब-कौन, पत्ते मुरझा रहे हैं।।
रोला
गर्मी में रह मौन, फूल खिल रहे भले ही।
राहत कैसे मिलेगी, पत्ते मुरझा रहे हैं।।
*
सलिल जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। उनको देख कर लगता है कि उनका साहित्य के प्रति विशेष रूप से लगाव है इसीलिए उन्होंने अपना जीवन साहित्य के प्रति समर्पित कर दिया है |दोहा लिखना भी मैंने उनसे ही सीखा है। आजकल अपरिपक्व कवि अधकचरी रचनाओं पर भी कॉपी राइट की बात करते और चोरी होनी की आशंका जताकर अहं की पुष्टि करते रहते हैं जबकि सलिल जी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को निरंतर बिना किसी भय या दावेदारी एक नित्य प्रति परोसते रहते हैं। उनकी उदारता यह कि मुझे प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक दोहा मेरे नाम का प्रयोग करते हुए लिखा और कुझे बहुत पसंद आने पर मेरे नाम ही कर दिया।
आभामय दोहे नवल, आ भा करते बात।
आभा पा आभित सलिल, पंक्ति पंक्ति जज़्बात।।
इसे कहते हैं बड़प्पन | उनकी प्रतिभा दूर दूर तक देदीप्यमान है और रहेगी। बेहद आभार आपका।
ऐसे व्यक्तित्व को मेरा कोटिशः नमन भविष्य में उनकी साहित्यिक प्रगति और अच्छे स्वास्थ्य एवं शतायु की कामना करते हुए .....
आभा सक्सेना 'दूनवी'
२०-६-२०१९, देहरादून
***
ॐ सरस्वत्यै नम: ॐ
शारद वंदना
लाक्षणिक जातीय पद्मावती/कमलावती छंद
*
शारद छवि प्यारी, सबसे न्यारी, वेद-पुराण सुयश गाएँ।
कर लिए सुमिरनी, नाद जननि जी, जप ऋषि सुर नर तर जाएँ।।
माँ मोरवाहिनी!, राग-रागिनी नाद अनाहद गुंजाएँ।
सुर सरगमदात्री, छंद विधात्री, चरण - शरण दे मुसकाएँ।।
हे अक्षरमाता! शब्द प्रदाता! पटल लेखनी लिपि वासी।
अंजन जल स्याही, वाक् प्रवाही, रस-धुन-लय चारण दासी।।
हो ॐ व्योम माँ, श्वास-सोम माँ, जिह्वा पर आसीन रहें।
नित नेह नर्मदा, कहे शुभ सदा, सलिल लहर सम सदा बहें।।
कवि काव्य कामिनी, छंद दामिनी, भजन-कीर्तन यश गाए।
कर दया निहारो, माँ उपकारो, कवि कुल सारा तर जाए।।
*
२०-६-२०२०
***
व्यंग्य गीत:

अभिनंदन
लो
*
युग-कवयित्री!
अभिनंदन
लो....
*
सब जग अपना, कुछ न पराया
शुभ सिद्धांत तुम्हें यह भाया.
गैर नहीं कुछ भी है जग में-
'विश्व एक' अपना सरमाया.
जहाँ मिले झट झपट वहीं से
अपने माथे यश-चंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
मेरा-तेरा मिथ्या माया
दास कबीरा ने बतलाया.
भुला परायेपन को तुमने
गैर लिखे को कंठ बसाया.
पर उपकारी अन्य न तुमसा
जहाँ रुचे कविता कुंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
हिमगिरी-जय सा किया यत्न है
तुम सी प्रतिभा काव्य रत्न है.
चोरी-डाका-लूट कहे जग
निशा तस्करी मुदित-मग्न है.
अग्र वाल पर रचना मेरी
तेरी हुई, महान लग्न है.
तुमने कवि को धन्य किया है
खुद का खुद कर मूल्यांकन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
कवि का क्या? 'बेचैन' बहुत वह
तुमने चैन गले में धारी.
'कुँवर' पंक्ति में खड़ा रहे पर
हो न सके सत्ता अधिकारी.
करी कृपा उसकी रचना ले
नभ-वाणी पर पढ़कर धन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
तुम जग-जननी, कविता तनया
जब जी चाहा कर ली मृगया.
किसकी है औकात रोक ले-
हो स्वतंत्र तुम सचमुच अभया.
दुस्साहस प्रति जग नतमस्तक
'छद्म-रत्न' हो, अलंकरण लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
***
टीप: श्रेष्ठ कवि की रचना को अपनी बताकर २३-५-२०१८ को प्रात: ६.४० बजे काव्य धारा कार्यक्रम में आकाशवाणी पर प्रस्तुत कर धनार्जन का अद्भुत पराक्रम करने के उपलक्ष्य में यह रचना समर्पित उसे ही जो इसका सुपात्र है।
***
स्मृति गीत:
*
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे. यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
लेपहचान गैर-अपनों को-कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अबन गोद में बिठलाते हैं.हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं हर दिन पिता याद आते हैं...
२०-६-२०१०
***
लघु कथा
राष्ट्रीय एकता
*
'माँ! दो भारतीयों के तीन मत क्यों होते हैं?'
''क्यों क्या हुआ?''
'संसद और विधायिकाओं में जितने जन प्रतिनिधि होते हैं उनसे अधिक मत व्यक्त किये जाते हैं.'
''बेटा! वे अलग-अलग दलों के होते हैं न.''
'अच्छा, फिर दूरदर्शनी परिचर्चाओं में किसी बात पर सहमति क्यों नहीं बनती?'
''वहाँ बैठे वक्ता अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं न?''
'वे किसी और बात पर नहीं तो असहमत होने के लिये ही सहमत हो जाएँ।
''ऐसा नहीं है कि भारतीय कभी सहमत ही नहीं होते।''
'मुझे तो भारतीय कभी सहमत होते नहीं दीखते। भाषा, भूषा, धर्म, प्रांत, दल, नीति, कर, शिक्षा यहाँ तक कि पानी पर भी विवाद करते हैं।'
''लेकिन जन प्रतिनिधियों की भत्ता वृद्धि, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने, व्यापारियों के कर घटाने, विद्यार्थियों के कक्षा से भागने, पंडितों के चढोत्री माँगने, समाचारों को सनसनीखेज बनाकर दिखाने, नृत्य के नाम पर काम से काम कपड़ों में फूहड़ उछल-कूद दिखाने और कमजोरों के शोषण पर कोई मतभेद देखा तुमने? भारतीय पक्के राष्ट्रवादी और आस्तिक हैं, अन्नदेवता के सच्चे पुजारी, छप्पन भोग की परंपरा का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मद्रास का इडली-डोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, गुजरात का पोहा, बंगाल का रसगुल्ला और मध्यप्रदेश की जलेबी खिलाकर देखो, पूरा देश एक नज़र आयेगा।''
और बेटा निरुत्तर हो गया...
***
पैरोडी
*
प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता
हम हारे, तुम भए विजेता।।
प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी
हमें यातना-पीर घनेरी ।।
प्रभु जी! तुम घपला-घोटाला
हमखों मुस्किल भयो निवाला।।
प्रभु जी! तुम छत्तीसी छाती
तुम दुलहा, हम महज घराती।।
प्रभु जी! तुम जुमला हम ताली
भरी तिजोरी, जेबें खाली।।
प्रभु जी! हाथी, हँसिया, पंजा
कंघी बाँटें, कर खें गंजा।।
प्रभु जी! भोग और हम अनशन
लेंय खनाखन, देंय दनादन।।
प्रभु जी! मधुवन, हम तरु सूखा
तुम हलुआ, हम रोटा रूखा।।
प्रभु जी! वक्ता, हम हैं श्रोता
कटे सुपारी, काट सरोता।।
(रैदास से क्षमा प्रार्थना सहित)
***
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस, उन्नाव-कानपूर

***
दोहा सलिला
*
जूही-चमेली देखकर, हुआ मोगरा मस्त
सदा सुहागिन ने बिगड़, किया हौसला पस्त
*
नैन मटक्का कर रहे, महुआ-सरसों झूम
बरगद बब्बा खाँसते। क्यों? किसको मालूम?
*
अमलतास ने झूमकर, किया प्रेम-संकेत
नीम षोडशी लजाई, महका पनघट-खेत
*
अमरबेल के मोह में, फँसकर सूखे आम
कहे वंशलोचन सम्हल, हो न विधाता वाम
*
शेफाली के हाथ पर, नाम लिखा कचनार
सुर्ख हिना के भेद ने, खोदे भेद हजार
*
गुलबकावली ने किया, इन्तिज़ार हर शाम
अमन-चैन कर दिया है,पारिजात के नाम
*
गौरा हेरें आम को, बौरा हुईं उदास
मिले निकट आ क्यों नहीं, बौरा रहे उदास?
*
बौरा कर हो गया है, आम आम से ख़ास
बौरा बौराये, करे दुनिया नहक हास
***
२०-६-२०१६
lnct jabalpur
***
विमर्श
शिवलिंग और शालिग्राम
*
लोकोक्ति है 'कंकर मन शंकर' तथा 'कण-कण में भगवान'।
सनातन धर्मानुसार श्रुति के जन्मदाता ब्रह्मा, पालक विष्णु और विनाशक महेश हैं।
अपने भाव-गुणों के द्वारा त्रिदेव स्थूल रूप में प्रकृति में अन्तर्निहित हैं। यह भी की हर जीव में त्रिदेवों की उपस्थिति त्रिगुण (सत,रज,तम) के रूप में हैं। श्वेताश्वतर उपनिषद अध्याय ४ मंत्र ५ में ऋषि कहते हैं-
एक जन्म देता अनेक को
रक्त, श्वेत अरु श्याम त्रैगुणी।
अग्यासनी, आसक्त भोगता,
ग्यानी प्रकृति को तज देता।
त्रिदेव वास्तव में निराकार हैं कइँती जनसामान्य को उनकी प्रतीति करने के उद्देश्य से उन्हें साकार रूप में भगवान ब्रह्मा को शंख (सरस्वती ध्वनि रूप में), भगवान विष्णु को शालिग्राम () तथा शिव को शिवलिंग और जिलहरी (पार्वती) रूप में पूजा गया है। सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप शंख के मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है।
मूलत: सनातन धर्म में मूर्ति-पूजा मान्य न होने पर भी शालिग्राम और शिवलिंग को विग्रह रूप में मान्य हैं।
शालिग्राम का मंदिर :
शालिग्राम का एकमात्र प्रसिद्ध मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल में है। यह वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। दुर्गम मुक्तिनाथ की की कृपा से सब कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से पोखरा जाना होता है। पोखरा से जोमसोम जाकर २०० किलोमीटर दूर मुक्तिनाथ जाने के लिए बस, हेलिकॉप्टर या फ्लाइट ले सकते हैं।
शालिग्राम
दुर्लभ शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम दुर्लभ हैं। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।
शालिग्राम के प्रकार : विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। गोल शालिग्राम विष्णु का गोपाल रूप है। मछली के आकार का शालिग्राम श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। कछुए के आकार का शालिग्राम भगवान के कच्छप (कूर्म) अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरे चक्र और रेखाएं विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। लगभग ३३ प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से २४ प्रकार विष्णु के २४ अवतारों तथा वर्ष के २४ एकादशी व्रतों से संबंधित हैं।
शालिग्राम की पूजा :
* घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।
* विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
* शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखें।
* प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराएँ।
* जहाँ शालिग्राम-पूजन होता है, वहाँ लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।
* नियमितशालिग्राम पूजन से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
* शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शिवलिंग :
शिवलिंग
भगवान शिव का जीवंत विग्रह तथा जलहरी को माँ पार्वती हैं। 'ॐ नम: शिवाय' पंचाक्षरी मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक कर महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्त्रोत का पाठ करें। रुद्राभिषेक किसी पुजारी से सम्पन्न कराएँ।
शिवलिंग पूजा के नियम :
* शिवलिंग को पंचांमृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएँ।
* शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएँ, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।
* शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएँ।
* केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढ़ाएँ। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएँ।
* कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।
* शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
* शिवलिंग नहीं शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
* शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है
शिवलिंग का अर्थ : शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि।
शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर १७ तत्वों से बना है - मन, बुद्धि, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और पाँच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं बिंदु रूप हैं।
ब्रह्माण्ड का प्रतीक : शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान : भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी।
आकाशीय पिंड : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्त्राब्दि पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहाँ-जहाँ ये पिंड गिरे, वहाँ-वहाँ इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे १०८ ज्योतिर्लिंग।
संग-ए-असवद : शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड धरती पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद (मक्केश्वर महादेव) भी आकाश से गिरा था।
***
स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे.
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर
दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड़, डाँट, झिड़की, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
२०-६-२०१०

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