होली की कुण्डलियाँ:
मनायें जमकर होली
संजीव 'सलिल'
*
होली हो ली हो रही होगी फिर-फिर यार
मोदी राहुल ममता माया जयललिता तैयार
जयललिता तैयार न जीवनसाथी-बच्चे
इसीलिये तो दाँव न चलते कोई कच्चे
कहे 'सलिल' कवि बच्चेवालों की जो टोली
बचकर रहे न गीतका दें ये भंग की गोली
*
होली अनहोली न हो, खायें अधिक न ताव.
छेड़-छाड़ सीमित करें, अधिक न पालें चाव..
अधिक न पालें चाव, भाव बेभाव बढ़े हैं.
बचें करेले सभी, नीम पर साथ चढ़े हैं..
कहे 'सलिल' कविराय, न भोली है अब भोली.
बचकर रहिये आप, मनायें जम भी होली..
*
होली जो खेले नहीं, वह कहलाये बुद्ध.
माया को भाये सदा, सत्ता खातिर युद्ध..
सत्ता खातिर युद्ध, सोनिया को भी भाया.
जया, उमा, ममता, सुषमा का भारी पाया..
मर्दों पर भारी है, महिलाओं की टोली.
पुरुष सम्हालें चूल्हा-चक्की अबकी होली..
*
होली ने खोली सभी, नेताओं की पोल.
जिसका जैसा ढोल है, वैसी उसकी पोल..
वैसी उसकी पोल, तोलकर करता बातें.
लेकिन भीतर ही भीतर करता हैं घातें..
नकली कुश्ती देख भ्रमित है जनता भोली.
एक साथ मिल खर्चे बढ़वा खेलें होली..
*
४-३-२०१५
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 4 मार्च 2021
होली की कुण्डलियाँ
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