मुक्ति गान गूँजा माँ!
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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दो पग जब बढ़ चले
देश नया गढ़ चले
कोटि-कोटि जन जुड़े
संकट जय कर चले
चित्र भव्य मढ़ चले
पग पखार पूजा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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रक्त तिलक माथ पे
शीश धरे हाथ में
विप्लव के पंथ पे
कली-फूल साथ थे
खुद अपने नाथ थे
जनगण मिल जूझा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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लोक शक्ति जग गई
देश भक्ति पग गई
सत्याग्रह संग आ
हिंद फ़ौज जुड़ गई
जय गाथा लिख गई
शौर्य सूर्य ऊगा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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देश बँटा; शोक था
संकल्पित लोक था
भुज भेंटे; मिल गले
कौन सका रोक था
दस दिश आलोक था
साम्य नहीं दूजा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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सर्वोदय पथ मिला
अंत्योदय रथ चला
कर दी संपूर्ण क्रांति
जीता हर एक किला
बना सोनार बांग्ला
हर सवाल बूझा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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पचहत्तर पुष्पहार
लाए माँ कर सिंगार
कोटि-कोटि संतानें
तुझ पर होतीं निसार
कण कण पर हो निखार
पूजे जग समूचा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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जग गुरु महिमामयी
मैया ममतामयी
गोदी में प्रभु खेलें
अद्भुत क्षमतामयी
मैया करुणामयी
सर हरदम ऊँचा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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शशि मंगल सूर्य नाप
स्वच्छ बना देश आप
ताकतवर सेनाएँ
भीत शत्रु रहा काँप
दस दिश यश रहा व्याप
विनत चरण पूजा माँ!
मुक्ति गान गूँजा माँ!
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